कैसा अजीब नजारा
कैसा अजीब नजारा देह मेरी पर हल्दी बीरू के नाम कीकैसा अजीब नजारा हथेली मेरी मेहंदी बीरू के नाम की
कैसा अजीब नजारा सिर मेरा पर चुनरी बीरू के नाम की
कैसा अजीब नजारा मांग मेरी पर सिन्दूर बीरू के नाम की
कैसा अजीब नजारा माथा मेरा पर बिंदी बीरू के नाम की
कैसा अजीब नजारा नाक मेरी पर नथनी बीरू के नाम की
कैसा अजीब नजारा गला मेरा मंगल सूत्र बीरू के नाम की
कैसा अजीब नजारा कलाई मेरी चूड़ियाँ बीरू के नाम की
कैसा अजीब जमाना ऊँगली मेरी अंगूठी बीरू के नाम की
कैसा अजीब जमाना कुछ भी तो नहीं है मेरा मेरे नाम का
चरण वन्दना करूँ सदा सुहागन आशीष बीरू के नाम का
करवा चौथ व्रत मैं करूँ पर वो भी तो बीरू के नाम का
बड़मावस व्रत मैं करती पर वो भी तो बीरू के नाम का
कोख मेरी खून मेरा दूध मेरा और नीरू बीरू के नाम का
मेरे नाम के साथ लगा गोत्र भी मेरा नहीं बीरू के नाम का
हाथ जोड़ अरदास सबसे बीरू के पास क्या मेरे नाम का
रणबीर
6.7.2015
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अगले पिछले का चक्कर
अगले पिछले के चक्कर में अबका हिसाब बिगाड़ लिया
टिकवा पथरों पर माथे हमारे भक्तों ने बिठा जुगाड़ लिया
इसमें भोगा वो पिछले का अब किया वो मिलेगा अगले में
इसकी कोई जगह नहीं है सार सोच कर लिकाड़ लिया
कर्म करो फल की चिंता ना करो कभी से इसे मानते आये
अडानी अम्बानी जैसों ने गीता से क्यों खिलवाड़ किया
अन्धविश्वाशों का हुआ है क्यों बहुत प्रचार प्रसार यहाँ पर
विज्ञान ने अंधविश्वासों का आज पूरा नकाब उघाड़ दिया
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मान सम्मान नहीं मिलता,दिल का फूल नहीं खिलता
मेरा विश्वास रोज हिलता, यह सब कैसे समझाऊँ मैं ||
भाई का भाई दुश्मन लड़की महफूज नहीं घर बार में
पैसा छा गया चारों और खुद गरज बेगैरत संसार में
गरीब मरें बिना दवाई क्यों , बच्चे रहें बिना पढ़ाई क्यों
अम्बानी लूटें हैं कमाई क्यों , यह सब कैसे समझाऊँ मैं ||
हमारी इज्ज़त पर डाका रोजाना सफेदपोश डाल रहे
दबाते हैं हर तरह से मग़र उठ फिर भी सवाल रहे
अमीर गरीब की खाई है , देती बढ़ी हुई दिखाई है
काले धन धूम मचाई है , यह सब कैसे समझाऊँ मैं ||
खुदगर्जी धोखे बजी का बाजार बहुत गरम हुआ है
हुए सरमायेदार लालची जमाना बहुर बेशर्म हुआ है
सच पिटता बीच बाजार , फैला है कितना भ्रस्टाचार
क्यों लूट के खाते ठेकेदार ,यह सब कैसे समझाऊँ मैं ||
नंबर वन की चीज मिलनी बिल्कुल भी आसान नहीं है
नंबर दो में जो चाहो लो कुछ कहता भगवान नहीं है
आत्म सम्मान हम पाएंगे ,तराने आजादी के गायेंगे
हम नया भारत बनायेंगे ,यह सब कैसे समझाऊँ मैं ||
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ऊट पटांग
पुलिस तुम्हारी फ़ौज तुम्हारी
मीडया तुम्हारा कोर्ट बीचारी
जनता द्वारा जनता के लिए
चुनी हुई ये सरकार हमारी
जनतंत्र का झुनझुना पकडाया
कार्पोरेट की करे है ताबेदारी
मसला इस या उस नेता का नहीं
जनतंत्र की पोल खुल गयी सारी
कैसे मजबूत हो जनतंत्र भारत का
कैसे जनता की बढे हिस्सेदारी
सवाल आया है तो जवाब भी
ढूंढेगी मिलके ये जनता सारी
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ranbir dahiya - October 4, 2009
दोहरापन
दोहरा पन जीवन का हम को अन्दर से खा रहा |
एक दिखे दयालु दूसरा राक्षस बनता जा रहा |
चेहरों का खेल चारों तरफ दुनिया में फैल रहा
मुखौटे हैं कई तरह के कोई पहचान ना पा रहा |
सफेद मुखौटा काला चेहरा काम इनके काले हैं,
बिना मुखौटे का तेरा चेहरा नहीं किसी को भा रहा |
कौनसा मुखौटा गुजरात में करतब दिखा रहा ये
जनता को बहला धर्म पे कुरसी को हथिया रहा |
धार्मिक कट्टरता का चेहरा प्यारा लगता क्यों है
मानव से मानव की हत्या रोजाना ही करवा रहा |
कौन धर्म कहता हमें कि घृणा का मुखौटा पहनो,
खुद किसकी झोंपड़ी में आग खुदा जाकर लगा रहा |
राम भी कहता प्यार करो दोहरेपन को छोड़ दो अब
रणबीर सिंह भी बात वही दुजे ढंग से समझा रहा |
CHALE KHETON KI AUR
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