सवाल ये उठता है कि भारत में वैज्ञानिक मानसिकता की जड़ें क्यों नहीं जम पाई और उसका फैलाव क्यों नहीं हो पाया?
यह सही है कि एक समय था जब भारत में वैज्ञानिक मानसिकता थी। बुद्ध और उससे पहले चार्वाक और लोकायत ने उस समय तार्किक सोच को प्रतिपादित किया। वाराहमिहिर, आर्यभट्ट, सर्जन सुश्रुत भी हुए। 7वीं सदी
ईसा पश्चात से लेकर 18वीं सदी ईसा पश्चात तक (1000)साल तक अंधकार का युग रहा । कई बेहतरीन राजा थे, बेहतरीन दार्शनिक थे, बेहतरीन सन्त और समाज सुधारक थे मगर वैज्ञानिक कोई नहीं था ।
1 सर्व प्रथम हमारी संस्कृति में सवाल पूछे जाने को प्रतिष्ठा नहीं दी जाती ।
2 हमारे समाज में वैज्ञानिक मानसिकता का प्रसार न होने का दूसरा कारण परिवार में निरंकुशता का होना है।
3 तीसरी बात यह है कि महान व्यक्तियों को देवताओं की तरह पूजा जाना है। आ लोचनात्मक विश्लेषण व्यक्तियों का नहीं किया जाता।
4 वैज्ञानिक मानसिकता की राह में चौथी रूकावट हमारे आमजन पर परम्परागत रीति रिवाज का जबरदस्त शिकंजा है ।
5 हमारे देश में वैज्ञानिक मानसिकता के विकास न कर पाने का सब से महत्वपूर्ण कारण जाति-व्यवस्था और पितृसत्ता है।
6 हमारे देश में आज भी ब्रह्म और परब्रह्म है- इन दोनों का मिश्रण है। यही सत्य है बाकी सब मिथ्या है । संसार ही स्वयं में मिथ्या या माया है तो यहाँ वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास कैसे हो ?
साइंटिफिक टेम्पर पर हमला आज कल बहुत तेज हो गया है । वैज्ञानिक विचारों और इतिहास का मिथ्याकरण जोर शोर से किया जा रहा है ।
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