कृषि संकट
हमारे देश का बड़ा सरमायेदार वर्ग आज एक निर्णायक संकट का सामना कर रहा है। वह अंतरराष्ट्रीय भी पूंजी के साथ गठजोड़ करते हुए दोनों उत्पादक वर्गों मतलब किसानों और मजदूरों के शोषण को तेज कर के संकट को दूर करने के भ्रम में हैं । न्यूनतम मजदूरी व कई अन्य लाभों को नकारने वाली चार श्रम संहिताओं और कृषि उपज के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य को नकारने वाले तीन कृषि अधि- नियमों का लाया जाना इस दिशा में उठाए गए कदम ही हैं । दूसरी ओर, किसान और मजदूर वर्ग को कॉरपोरेट के दबदबे का सामना करने के लिए मजबूर किया जाता है । यह हालत उनके गंभीर दरिद्रता पैदा करेंगे और उनकी क्रय शक्ति में गिरावट का कारण बनेंगे जो कि पूंजीवाद को और गहरे संकट की ओर ले जाएंगे ।भारत में सामाजिक प्रगति का प्रमुख पहलू किसी प्रश्न का समाधान है। आजादी के बाद भारतीय राज्य का नेतृत्व करने वाले बड़े सरमायेदार वर्ग ने व्यापक भूमि सुधारों को लागू करने के बजाय, जमीदार वर्ग के साथ गठबंधन किया। कृषि सुधारों के माध्यम से कृषि आधारित उद्योगों पर जोर देते हुए घरेलू औद्योगिकरण के आधार पर उत्पादक शक्तियों को आगे बढ़ाने के बजाय, उन्होंने अंतरराष्ट्रीय वित पूंजी के साथ सहयोग करके विकास के नव उदारवादी मॉडल के लिए आत्मसमर्पण कर दिया। भारत में पूंजीवादी संकट का प्रमुख कारण भूमि का केंद्रीय करण है। भाजपा की अगुवाई वाली केंद्र सरकार विशाल किसान वर्ग के हितों की रक्षा के लिए व्यापक भूमि सुधार करके और कृषि आधारित उद्योग विकसित करने की जगह कृषि संकट के समाधान के रूप इन कृषि के निगमीकरण के प्रस्ताव को आगे बढ़ा रही है । इस प्रकार की गलत नीति के कारण ही देश भर में जहां भी किसान संघर्षरत है, भाजपा का जनाधार खिसकना शुरू हो गया है ।
तीनों कृषि अधिनियम कार्पोरेट बलों के हितों का प्रतिनिधित्व करते हैं। जबकि किसानों के हितों की रक्षा के लिए कानून लाए जाने की जरूरत है। गरीब व मंझोले किसान परिवारों और खेत मजदूरों को कृषि क्षेत्र से बाहर करने से गंभीर सामाजिक राजनीतिक प्रभाव पड़ेगा और असल में मौजूदा किसान संघर्ष वास्तव में इसी खतरे का प्रतिरोध कर रहे हैं । अंतर्राष्ट्रीय वित्त पूंजी के साथ गठजोड़ कर काम करने वाले बड़े पूंजीपति वर्ग ने बड़े पैमाने पर किसानों के साथ वर्ग संघर्ष को तेज करने की संभावनाएं पैदा की हैं जिसमें अमीर किसानों तथा जमींदारों के वर्ग भी शामिल हैं। शासक वर्ग में सत्ता के साझेदारों के बीच इस संघर्ष ने मजदूर वर्ग , गरीब किसान व खेत मजदूरों के लिए कार्पोरेट -जमींदार प्रभुत्व के खिलाफ वर्ग संघर्ष को तेज करने की संभावनाएं पैदा की हैं। विनिवेश के जरिए हमारी राष्ट्रीय संपत्ति की लूट के साथ नव उदारवादी आर्थिक सुधारों को जबरदस्ती आगे बढ़ाने और अंधाधुंध निजीकरण ने बड़े पूंजीपतियों और गैर- पूंजी पतियों के बीच एक नए अंतर्द्वंदों को जन्म दिया है। इन अंतर्द्वंदों ने भाजपा के खिलाफ व्यापक एकता बनाने के लिए संभावनाएं और क्षमताएं पैदा की हैं।
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