भारत_में_शिक्षा ; #यूनेस्को_रिपोर्ट
🔴 ज्यों ज्यों दिन की बात की गयी, त्यों त्यों रात हुयी🔵 युनेस्को की 2021 की भारत में शिक्षा की स्थिति पर तीसरी रिपोर्ट अभी हाल में जारी हुयी। इसे 5 अक्टूबर विश्व शिक्षक दिवस पर जारी किया गया। रिपोर्ट में भारत में शिक्षा की स्थिति की हालत का इस रिपोर्ट के शीर्षक से ही पता चल जाता है। ‘‘शिक्षक नहीं - कक्षायें नहीं ’’ इसमें बिलकुल भी अतिरंजना नहीं है। यह हमारे देश में शिक्षा की वास्तविक स्थिति है। मुंबर्ह के टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज के शोधकर्ताओं द्वारा यूनेस्को के दिशा निर्देश पर बनायी यह रिपोर्ट हमारे देश की शिक्षा की दयनीय स्थिति को उजागर करने वाली है। शिक्षा के अधिकार का कानून पारित करने के बावजूद इस स्थिति का होना खराब बात ही कहा जाएगा।
🔵 इस रिपोर्ट के बाद यूनेस्को द्वारा दिये गये सुझाव गौरतलब हैं। यह रिपोर्ट बताती है कि आज भी इस देश में ग्रामीण और शहरी शिक्षा संस्थानों की गुणवत्ता में जमीन आसमान का अंतर है। मोदी सरकार की 2020 में पारित शिक्षा नीति की कड़ी आलोचना करते हुये यह रिपोर्ट कहती है कि आश्चर्य है कि जब सारे शिक्षा संस्थान कोरोना महामारी के चलते बंद थे तब यह नीति घोषित हुयी और स्कूलों-कॉलेजों के बंद रहते हुए ही इस साल उसका एक वर्ष मना भी लिया गया।
🔵 रिपोर्ट बताती है कि देश के 15 लाख 51 हजार स्कूलों में 96 लाख शिक्षक हैं। इनमें पचास प्रतिशत महिला शिक्षक हैं। मध्य प्रदेश में यही प्रतिशत 44 प्रतिशत है। 30 प्रतिशत से अधिक स्कूल शिक्षक उन निजी स्कूलों में हैं जिन्हे कोई सरकारी मदद नहीं मिलती है। केवल 50 प्रतिशत शिक्षक सरकारी स्कूलों में हैं।
🔵 मजेदार और सोचने वाली बात यह है कि शिक्षा जिसकी नींव पर पूरे समाज का ढांचा खडा होता है उसे निजी हाथों में देने की पैरवी करने वाली सरकार के आका अमरीका में भी सरकारी स्कूलों पर सबसे अधिक जोर दिया गया है और आज वहां पर सरकारी स्कूलों में पढ़ाने वाले शिक्षकों की संख्या 32 लाख और निजी स्कूलों के शिक्षकों की संख्या 4 लाख है।
🔵 रिपोर्ट के मुताबिक़ देश में एक लाख से अधिक स्कूल एक शिक्षक के भरोसे पर हैं। इसमें सबसे अधिक 21,077 स्कूल मध्य प्रदेश में हैं। यह कुल स्कूलों का 14 प्रतिशत का है। ये एक शिक्षक वाले 89 प्रतिशत स्कूल ग्रामीण इलाकों में हैं। और स्वाभाविक रूप से इन स्कूलों में किसी भी प्रकार की सुविधाओं के बारे में सोचा नहीं जा सकता है। यह इकलौते मास्साब भी स्कूल कितने दिन जा पाते होंगे क्योंकि उन्ही पर सरकारी योजनाओं के आंकड़े इकट्ठा करने से लेकर सारे कामकाज का बोझा भी लदा हुआ है।
🔵 इस पूरी स्थिति वाले देश के मुकाबले केरल एकदम अलग दिखायी देता है जहां पर 88 प्रतिशत स्कूलों में जिसमें 80 प्रतिशत ग्रामीण स्कूल भी शामिल हैं इंटरनेट की सुविधा है, लाइब्रेरी है, 90 प्रतिशत से अधिक स्कूलों में मुफ्त किताबों का वितरण होता है। यहां पर 99 प्रतिशत में साफ पीने के पानी की सुविधा है, 98 प्रतिशत स्कूलों में लड़कियों के लिये अलग शौचालय है और 99 प्रतिशत स्कूलों में अबाध बिजली की सुविधा है। डिजिटल इंडिया का नारा देने वाली भाजपा के द्वारा शासित प्रदेशों के स्कूलों में इंटरनेट की स्थिति उनमें बिजली की उपलब्धता से देखी जा सकती है। मध्य प्रदेश के केवल 11 प्रतिशत स्कूलों में इंटरनेट की सुविधा है।
🔵 इस रिपोर्ट से देश की सरकार और शिक्षा मंत्रालय के कानों पर जूं भी नहीं रेेंगने वाली है क्योंकि एक अर्धशिक्षित और कुशिक्षित पीढ़ी तैयार करने का काम इस देश की भाजपा की सरकारें बड़ी तेजी से कर रही हैं। उनके लिए इसी तरह की जनता मुफीद है। इनके विद्यालय व्हाट्स अप पर हैं और भाजपा की आई टी सेल इनके शिक्षक हैं। इतिहास में झांकने से ऐसी पीढियां तैयार करने वाले दो देशों के भयानक उदाहरण देखे जा सकते हैं जर्मनी और जापान जिन्होने अपनी पूरी नौजवान पीढी को आज्ञाकारी, झूठ पर गर्व करने वाली नस्लवादी सोच की पीढ़ी के देशों में बदल कर रख दिया था और जो हुआ वह द्वितीय विश्वयुद्ध के रूप में हमारे सामने था।
🔵 शिक्षा की स्थिति पर युनेस्को की यह रिपोर्ट आंखें खोलने वाली है इसीलिये इतिहास की गलतियों से सबक लेकर इस दिशा में काम करना शुरू करना और स्थाई वैश्विक लक्ष्य 2030 हासिल करने की ओर बढना पूरे देश की जनता की जिम्मेदारी है।
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