निर्भया केस के बाद सड़कों पर उमड़े जनता के सैलाब के चलते , सरकार को दबाव में जस्टिस वर्मा की अध्यक्षता में कमेटी का गठन किया गया। इस कमेटी की सिफारिसों के आधार पर महिलाओं पर होने वाली हिंसाओं को रोकने , खत्म करने या कम करने के लिए कानूनों को और भी कठोर बनाया गया हालांकि कमेटी की सभी सिफारिसों को नहीं माना गया । परन्तु हालात अभी भी न केवल जस के तस हैं, बल्कि स्थिति और भी भयानक बनती जा रही है। महिलाओं , युवा लड़कियों और बच्चियों पर हो रही हिंसा का दायरा व तीव्रता लगातार बढ़ रही है। वे कहीं भी अपने सम्मान व सुरक्षा के लिये आश्वस्त नहीं हैं। महिलाओं के साथ हो रहे बलात्कार और उनके बाद बेरहमी से हत्या की अनेकों घटनाओं को सुनकर थोड़ी देर के लिए तो गुस्सा और विरोध दिखाई देता है परन्तु महिलाओं के नाम पर गाली देने , पीछा करने, घूरने , छींटाकसी करने , पिटाई व तेजाब फैंकने जैसी बहुत सी ऐसी अनेक तरह की हिंसा बदस्तूर जारी है। पुत्र लालसा के चलते छांटकर कन्या भु्रण हत्या या गर्भ से पहले ही बच्चे के सैक्श का चुनाव करने को मजबूर करने , घूंघट में पांच में से चार ज्ञान्न्द्रियों को घोंट कर रखने , दहेज के लिए सीधे या परोक्ष रुप से तंग करने की हिंसा की बाढ़ सी आा गई लगती है। आजकल बसों में अनियन्त्रित भीड़ के चलते महिलाओं के साथ छेड़छाड़ की अभद्र घटनाएं एक तरह से आम बात की तरह हो रही हैं। बच्चियों पर भी हिंसा होने के जघन्य अपराध के मामले सामने आ रहे हैं। इन सब बातों को चुपचाप सहन नहीं किया जा सकता । हिंसा के खिलाफ पीड़ितों की और से प्रतिरोध बढ़ रहा है। समाज के संवेदनशील तबकों ने भी विरोध की आावाजें उठाई हैं। इस बढ़ती सामाजिक असुरक्षा ने भी लिंग अनुपात के बिगड़नें में एक भूमिका निभाई लगती है।
आाशा राम बापू और भी कई तथाकथित बाबाओं की काली करतूतें भी पिछले दिनों सामने आई हैं और पूरा समाज किसी न किसी तरह आहत हुआ है। हरियाणा में भी बरवाला के आश्रम का बबाल और डेरा सच्चा सौदा की शर्मनाक करतूतें किसी से छिपी हुई नहीं हैं और इन सब को किसी न किसी रंग का राजनैतिक संरक्षण भी मिलता रहा बताते हैं और सामने आता भी रहा है।कुछ इलाकों में खाप पंचायतों का फिर से उभार और राजनैतिक संरक्षण भी खतरे की घण्टी बजा रहा है। मगर कानून दूध का दूध और पानी का पानी कब छांटेगा इसका पूरे समाज को बेसब्री से इन्तजार है। मगर फिर भी इन बाबाओं की गिनती और इनके पीछे की भीड़ क्यों बढ़ती जा रही हैं यह सोचने का विषय है।
हमारे समाज की बुन्तर में ही इन जघन्य अपराधों की जडें हैं जिन्हें समझना बहुत जरुरी है। सामाजिक लिंग भेद को जैंडर का नाम दिया गया है। महिलाओं को आज भी दूसरे दर्जे का नागरिक मानने की मानसिकता प्रचलित है और और अधिक मजबूती पकड़ती जा रही है। यदि किसी महिला के साथ हिंसा होती है या वे अपराधों का शिकार होती हैं तो अपराधियों को कटघरे में खड़ा करने की बजाय पीड़ित में ही कसूर ढूंढ़ने के कुतर्क सामने रख दिये जाते हैं। ऐसी मानसिकता आम समाज के साथ साथ प्रशासन , सरकार व कई संस्थाओं में भी व्याप्त है जिसका खामियाजा पीड़ितों को भुगतना पड़ता है और अपराधी न केवल बच निकलते हैं बल्कि उनके होसले बुलन्द हो रहे हैं। समाज द्वारा आरोपित यह सामाजिक लिंगभेद न तो सार्वभौमिक है और न ही स्थाई है। काल संस्कृ्ति के बीच ये बदलता रहता है। आज इस महिला विरोधी वातावरण को चुनौती दिये जाने की बहुत सख्त जरुरत है। इस सामाजिक लिंग भेद पर सांस्कृृतिक , पर्यावरण , आर्थिक व राजनैतिक घटकों का प्रभाव भी पड़ता है। आर्थिक तौर पर हरित क्रान्ति के माध्यम से पूरे भारत में अग्रणी हरियाणा और पंजाब सामाजिक सूचकांकों में पिछड़ गये हैं । लिंग अनुपात का स्तर चिन्ताजनक है। क्या ऐसे विकास को आदर्श विकास कहा जा सकता है? सामाजिक लिेग भेद हर जगह हर क्षेत्र में जा सकता है। मतलब मौत की दर में भी खास तरह की असमानता हैं। मूल भूत सुविधाओं के क्षेत्र में असमानता है। खास मौकों की उपलब्धता में असमानता , प्रोफैसनल क्षेत्र में असमानता , घर के अन्दर की असमानता , सांस्कृृतिक स्तर पर असमानता , मालिकाना हक में असमानता आादि। इन सामाजिक लैंगिक असमानताओं के बढ़ती सामाजिक असुरक्षा के अलावा और भी कई मुख्य कारण हैं। हमारे सभी धर्मों में महिलाओं को दोयम दर्जे का स्थान मिला है। दूसरा हमारा समाज पितृृसतात्मक समाज यानि पुरुष प्रधान समाज है जो महिला के बराबरी के हक के खिलाफ है। कानूनी संस्थाओं में भी सामाजिक लिंग भेद देखा जा सकता है। हमारी राजनैतिक पार्टियों में भी इसे बखूबी ढूंढ़ा जा सकता है। हमारी आर्थिक इकाईयों में तो बहुत ही साफतौर पर इसे देखा परखा जा सकता है। इसी प्रकार प्रिंट और इलैक्ट्रोनिक मीडिया में भी यही हालात नजर आते हैं।शिक्षण संस्थाओं का यही हाल है। हमारी रोजाना के जीवन की मान्यताओं में भी इसकी पूरी झलक देखी जा सकती है। हमारी ज्यादातर कल्चरल प्रैक्टिसिस सामाजिक लिंग भेद को पैदा करने वाली और इसे बराबर बनाए रखने वाली हैं। महिला पूछती है समाज से-
देह मेरी ,हल्दी तुम्हारे नाम की
हथेली मेरी, मेंहदी तुम्हारे नाम की
सिर मेरा , चुनरी तुम्हारे नाम की
मांग मेरी, सिन्दूर तुम्हारे नाम की
माथा मेरा, बिन्दिया तुम्हारे नाम की
नाक मेरी, नथनी तुम्हारे नाम की
गला मेरा, मंगल सूत्र तुम्हारे नाम की
कलाई मेरी, चुड़ियां तुम्हारे नाम की
उंगलियां मेरी, बिछुए तुम्हारे नाम के
बड़ों की चरएा वणदना मैं करुं
और सदा‘सुहागन का आशीष तुम्हारे नाम का
कोख मेरी, खून मेरा, दूध मेरा
और बच्चा तुम्हारे नाम का
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नम्रता से पूछती हूं आाखिर तुम्हारे पास
क्या है मेरे नाम का?
हमारी परम्पराओं में ये दुभांत भरी पड़ी हैं। महिला सबको खाना खिलाकर सबसे बाद में खाना खायेगी । वंश चालक तो लड़का ही हो सकता है। बिना लड़के के वंश कैसे चलेगा? पति परमेश्वर होता है चाहे वह कोढ़ी हो, चाहे शराबी हो, चाहे जुआरी और जारी हो। कन्यादान का रिवाज सबसे अधिक दुभान्त वाली परम्परा रही है और अभी भी जारी है। एक विधवा महिला का जीवन दुभान्त का जीता जागता उदाहरण है। महिला दोबारा शादी नहीं कर सकती लेकिन पुरुष कर सकता है। कहते हैं लड़का तो बुढ़ापे का सहारा है। ‘‘पुत्र लालसा’’ लड़की की कीमत पर खड़ी फल फूल रही है। हमारे ज्यादातर लोक गीतों व रागनियों में भी यह दुभान्त दिखाई देती है। हमारे मालिकाना हकों में , व्यवहार में हद दर्जे की नाबराबरी है। महिला के इलाज में भी असमानता नजर आाती है। लड़के को इलाज के लिए तुरन्त अस्पताल ले जाया जाता है। लड़की के इलाज में यह तत्परता जयादा बार गायब होती है। शर्तिया लड़के की दवाई देने वालों के नुस्खे हर दस बीस मील पर किसी न किसी के पास होंगे। ज्यादातर गर्भवती महिलाएं गर्भ के पहले 3 महीने में लड़का होने की दवाईयों का सेवन करती हैं। और कुछ इनमें से जन्म जात बीमारियों से ग्रस्त बच्चों को जन्म देती हैं। जब लड़का पैदा होता है तो खुशी मनाई जाती है और थाली बजाई जाती है और जब लड़की पैदा होती है तो ठीकरा फोड़ कर मातम मनाया जाता है। लड़के के जन्म पर मिठाई बांटी जाती है। लड़के की छठ मनाई जाती है लड़की की नहीं। लड़के का नामकरण संस्कार किया जाता है मगर लड़की का नहीं । लड़का पैदा होता है तो जच्चा को 10 किलो देशी घी दिया जाता है और लड़की पैदा होती है तो जच्चा को 5 किलो घी दिया जाता है । मरने के बाद शमशान घाट में अग्नि भी पुरुष ही देगा महिला नहीं। अलग अलग पहरावे हैं दोनों के। अलग अलग हेयर स्टायल हैं। घर में तो बहुत बड़ी खानशामा है मगर ताजमहल जैसे होटलों के खानशामा पुरुष ही होंगे। हलवाई भी पुरुष होते हैं। मंगल सूत्र भी वही पहनेगी। वैसे सही मायनों में बायलॉजिकली पुरुष से ज्यादा ताकतवर है महिला।
सब असमानताओं के चलते समाज में काफी दिक्कतें बढ़ी हैं। नतीजतन लिंग अनुपात चिन्ता जनक स्तर पर पहंुच गया है। महिलाओं पर पूरे भारत में हिंसा बढ़ रही है। यदि क्र्राईम ब्यूरो के आंकड़ों पर नजर डालें तो 2011 में बलात्कार के मामलों में 2010 के मुकाबले 9.2 फीसदी की हुई और कुल 24,206 मामले सामने आये । इसी प्रकार हरियाणा विधान सभा में रखी गई एक रिपोर्ट के मुताबिक 2011 के मुकाबले महिला पर अत्याचार के केसों में 2012 में बढ़ोतरी हुई। मोलेस्टेसन के 2011 में 474 केस थे जबकि 2012 में 521 केस हुए। इसी प्रकार ईव टीजिंग के 2011 में 490 केस रजिस्टर किये गये जबकि 2012 में 534 केस हुए। महिला क्राईम के 2011 में कुल केस 5374 हुए मगर 2012 में केस 5955 हुए । इसके साथ ही कन्वाक्शन रेट हरियाणा में 23.4 प्रतिशत थी जबकि उतर प्रदेश में यह 55.50 प्रतिशत थी। बिना ब्याहे लोगों की संख्या बढ़ी है। दूसरे प्रान्तों से खरीदी बहुओं की संख्या बढ़ रही है और इस संदर्भ में बहुत ही अमानवीय घटनाएं भी सामने आा रही हैं।अदला बदली का नया खेल सामने आ रहा है। महिला का अमानवीयकरण बढ़ा है जिसके चलते पूरे समाज का अमानवीयकरण हो रहा है। पिछड़ी सोच की संस्थाओं के फतवे बढ़ रहे हैं । डरैस कोड का बाजार गर्म है। महिलाओं को लेकर तरह तरह के मिथों का प्रचार प्रसार किया जा रहा है।
हरियाणा में गावों में दारु से कोई घर नहीं बचा यह अलग बात है कि घर में एकाध आदमी दारु न पीता हो। पंजाब में भी दारु और नशे का प्रचलन घर घर हो गया है। दारु और नशा महिला पर हिंसा बढ़ाता ही बढ़ाता है। इन सब असमानताओं के चलते समाज में अस्थिरता आई है और अब चूंकि महिलाओं और दलितों ने अपने हकों के लिए असरट करना शुरु कर दिया है इसलिए प्रतिक्रियावादी ताकतों को और भी ज्यादा परेशानी हो रही है ओर उनके हमले भी तेज हो रहे हैं। इस माहौल में कानूनों का सही और वक्त रहते क्रियान्वन करवाने की जरुरत है। साथ ही एक जैंडर फैं्रडली , ईको फै्रडली, सर्वसमावेशी विकास की परिकल्पना के साथ नये नवजागरण के जरिये ही गिरते समाज को बचाने का, महिलाओं पर बढ़ते अत्याचारों का विरोध करते हुए एक नागरिक समाज बनाने का समाज सुधार आन्दोलन चलाया जाना जरुरी हो गया है।
गाव के स्तर पर-
गांव की ईकाई द्वारा की जाने वाली गतिविधियां
1. पुस्तकालयः
*जरूरत के हिसाब से, रूचिकर, सूचना देने वाली तथा साहित्यिक किताबें जुटाई जाएं तथा गांव का एक पुस्तकालय अवश्य होना चाहिए।
* कुछ बड़े गांव में बड़ा पुस्तकालय हो सकता है जहां से छोटे गांव के छोटे पुस्तकालयों को किताबों का आदान-प्रदान किया जा सके।
* प्रत्येक गांव में एक चलती-फिरती लायब्रेरी भी होनी चाहिए।
* शुरुआत के तौर पर कुछ गांव में महिला पुस्तकालयों का गठन किया जा सकता है।
* पुस्तकालय का काम सम्भालने के लिए एक कमेटी का गठन किया जाना बहुत जरूरी है। कमेटी के लोगों में पुस्तकें पढ़ने की आदत को बढ़ावा देने के लिए रचनात्मक कदम उठाएगी। इस कमेटी में 50 प्रतिशत महिलाएं अवश्य हों। गांव के अध्यापकों की महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है।
* दीवारी अखबार का विकास भी यह कमेटी कर सकती है।
* स्थानीय पत्रिका की योजना भी बनाई जा सकती है।
* स्कूल की लाइब्रेरी से तालमेल किया जा सकता है।
* कम कीमत की अच्छी/जनतांत्रिक व धर्म निरपेक्षता तथा राष्ट्रीय एकता की भावनाओं को बढ़ावा देने वाली पुस्तकें भी जरूरी होनी चाहिएं।
* मुंशी प्रेमचन्द, शरत चन्द्र जैसे प्रसिद्ध लेखकों का साहित्य रहे।
2. खेल-कूद प्रतियोगिताओं का आयोजनः हरियाणा, पंजाब में खेल-कूद प्रतियोगिताओं की अपनी एक परम्परा रही है। इस पर जन चेतना केंद्र को खास ध्यान देना चाहिए। इसके लिए लोगों से चन्दा इकट्ठा किया जा सकता है। कुश्ती, कबड्डी प्रतियोगिता, वालीवाल प्रतियोगिता, दौड़ प्रतियोगिता, कुर्सी दौड़, हल चलाने की प्रतियोगिता, साफ-सुथरे घर की प्रतियोगिता, साफ गलियों की प्रतियोगिता, ओढ़नी कढ़ाई प्रतियोगिता और चाट्टी दौड़। खेल-कूद प्रतियोगिताएंः- पुरुषों के लिए व महिलाओं के लिए तथा अलग-अलग उम्र के पुरुषों व महिलाओं में होनी चाहिए।
3. हाथ से बनाई चीजों की प्रतियोगिताः बुनाई, कढ़ाई, सिलाई, रंगाई, छपाई की प्रतियोगिता, कपड़े पर, लकड़ी पर, फैवीकोल पर, शीशे पर या किसी और चीज पर। साक्षरता अनुभव बताता है कि इस प्रतियोगिता के माध्यम से गांव की ईकाई को आत्म निर्भर बनाने की तरफ ले जाया जा सकता है।
4. कर सेवाः नाली साफ करना, स्कूल में सफेदी करना, स्कूल में शौचालय का निर्माण, गली की सफाई। चौपाल का रख-रखाव व उसकी मरम्मत, कुएं की देखभाल, मीठे पानी के नलकों की देखभाल, लाइब्रेरी के लिए कमरा बनाना, खड़े पानी में मच्छरों को मारने के उपाय करना, स्वास्थ्य कैम्पों का आयोजन करना।
5. सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजनः चन्द्र शेखर आजाद, भगत सिंह, नेताजी सुभाष चन्द्र बोस, मुंशी प्रेम चन्द के जन्म दिन, 26 जनवरी, 15 अगस्त पर सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन अवश्य किया जाना चाहिए। साक्षरता सांग, नाटकों का आयोजन किया जाए। महिलाओं का साक्षरता सत्संग किया जा सकता है जिसमें वे गीत गाएं। स्थानीय त्यौहारों या स्वतन्त्रता सेनानियों या गांव की जानी-मानी हस्तियों की याद में सांस्कृतिक कार्यक्रम किए जाने चाहिएं।
6. गांव में गांव की ईकाई की देख-रेख में महिलाओं का प्रोवीजन स्टोर खुलवाया जा सकता है। जींद, सिरसा, हिसार में जिला स्तर पर इस प्रकार के को-ओपरेटिव प्रोवीजन स्टोर के प्रयास किये गये थे।
7. वाशिंग पाउडर बनाने की टेªनिंग लेकर गांव के लिए वाशिंग पाउडर, साबुन बनाने का काम शुरू किया जा सकता है। मोखरा, डीघल आदि जगह पर इस अनुभव के अच्छे नतीजे सामने आये थे।
8. अचार तथा चटनी बनाने की टेªनिंग, गांव के कार्यकर्ताओं तथा नव साक्षरों को दी जा सकती है। रोहतक में ऐसा किया गया। इसके उत्साहवर्धक परिणाम रहे हैं।
9. साक्षरता कक्षाएंः
-गांव की ईकाई की देख-देख में निरक्षरों की कक्षा लगाई जानी चाहिए।
- जो तीन कायदे पढ़ गये वे हफ्ते में दो-तीन बार अवश्य लाईब्रेरी में आकर उत्तर साक्षरता कायदा/अखबार/नव साक्षर कहानी माला अवश्य पढ़े ताकि उनकी कमजोर साक्षरता को और अधिक ताकतवर बनाया जा सके।
- दो साक्षरता की मॉडल कक्षाएं हरेक गांव के स्तर पर अवश्य लगाएं।
10. पठन-पाठन संस्कृति का विकास करनाः
ऽ जन वाचन आन्दोलन के माध्यम से यह बखूबी किया जा सकता है।
ऽ लोगों को पढ़कर किताबें सुनाई जाएं और पढ़ने को प्रेरित किया जाए।
ऽ किताबों के मेले लगाए जाएं।
ऽ प्रत्येक गांव में किताब उत्सवों का आयोजन किया जाए
ऽ भेंट में किताबें देने का प्रचलन बढ़ाया जाए।
ऽ लेगों को किताबें खरीदने के लिए प्रेरित किया जाए।
ऽ इस सारे काम में गांव के लोगों की सक्रिय हिस्सेदारी होना बहुत जरूरी है।
10. चर्चा मण्डल/चर्चा समूह/विचार गोष्ठीः
+ चर्चा समूहों का गठन किया जाए।
+ महिला चर्चा मण्डल अलग से गठित किए जा सकते हैं। अच्छा हो यदि महिला व पुरुषों के इकट्ठे ग्रूपों का भी विकास किया जा सके।
+चर्चा का विषय एवं वक्ता ये समूह खुद तय किया करेंगे।
+ विषय विशेषज्ञों को बुला कर चर्चा की शुरुआत उनसे करवाई जा सकती है।
+ कुछ लोगों को चर्चा समूहों के संचालन में प्रशिक्षित किया जाना चाहिए। उनके पास चर्चा को संचालित करने व दिशा देने के लिए पर्याप्त सामग्री होनी चाहिए।
+ बहस बढ़ाने के लिए अनौपचारिक तौर-तरीकों का भी इस्तेमाल किया जाना चाहिए।
11. प्रशिक्षण कार्यक्रमः
ऽ साधारण तथा कम समय के ओरियेन्टेशन कार्यक्रमों का, भिन्न-भिन्न विषयों पर मसलन स्वास्थ्य, कृषि, पशु पालन, भोजन पकाना, अचार बनाना आदि का आयोजन किया जाना चाहिए।
ऽ विकास से जुड़े विभागों के साथ मिलकर वोकेशनल ट्रेनिंग का कार्यक्रम किया जा सकता है।
ऽ ट्रेनिंग लेने के लिए लोगों को प्रोत्साहित करने के लिए स्वस्थ बेबी कार्यक्रम, अच्छी गृहणी कार्यक्रम या अच्छा किसान कार्यक्रमों का आयोजन किया जा सकता है।
12. सूचना व ज्ञान की खिड़की
ऽ नवसाक्षरों को विभिन्न विभागों की गतिविधियों से परिचित करवाना। जरूरी सूचना उन तक पहुंचाने का प्रयास करना।
ऽ गांव के कन्वीनर को इस प्रकार की किताब या पम्फलेट मुहैया करवाना ताकि सूचना आगे जा सके।
ऽ स्ूचना सामग्री को सरल भाषा में विकसित करना तथा सम्प्रेशन के अलग-अलग तरीकों भाषण, चर्चा, स्लाइड शो, नाटक, गीत, स्वांग, आल्हा आदि से लोगों तक लेकर जाना।
ऽ अलग-अलग विभागों के विशेषज्ञों व नवसाक्षरों का विचार-विमर्श
13. वैज्ञानिक रूझान पैदा करनाः
ऽ विज्ञान का लोकप्रियकरण करना
ऽ चमत्कारों का पर्दाफाश करना
ऽ अन्धविश्वास को दूर करना
ऽ तर्क और विश्लेषण की क्षमता पैदा करना।
ऽ महिलाओं के घर के काम के बोझ को उपयुक्त टेक्नोलॉजी का ज्ञान देकर कम करना ताकि उनकी हिस्सेदारी सामाजिक विषयों पर बढ़ सके। उदाहरण के लिए बिना धुएं वाला चुल्हा, सोलर कूकर, साइकिल आदि।
14. महिला सशक्तिकरण पर विशेष ध्यान देनाः
ऽ आंगनबाड़ी
ऽ पंचायत स्तर पर
ऽ जन चेतना केंद्र में
ऽ महिला स्वास्थ्य संघ में
ऽ महिला मण्डल में
ऽ बचत समूह-बचत की भावना
ऽ डवाकरा समूह
ऽ महिला और शिक्षा
ऽ महिला और कानून
ऽ महिला का उत्पीड़न
ऽ महिला और समता
15. स्कूल जाने वाले बच्चों को स्कूल पहुंचाना
ऽ गाँव के स्कूल की उम्र के सभी बच्चों को स्कूल में भर्ती करवाना
ऽ भर्ती हुए बच्चों को स्कूल न छोड़ने के लिए प्रेरित करते रहना
ऽ जो स्कूल नहीं जा सके उनको अनौपचारिक शिक्षा के माध्यम से औपचारिक शिक्षा तक पहुंचने में सहायता करना।
ऽ ग्राम शिक्षा कमेटी महीने में एक बार मिलकर इस समस्या पर अवश्य बातचीत करे।
ऽ खेल-खेल में शिक्षा आदि कार्यक्रमों का फोलोअप करना।
16. कानूनी साक्षरता तथा सामाजिक मुद्देः
इस सन्दर्भ में नवसाक्षरकों को सूचना तो दी ही जानी चाहिए ताकि वे अपने हकों, कर्त्तव्यों तथा सामाजिक मुद्दों पर अपनी राय कायम कर सकें तथा अपनी भूमिका तय कर सकें।
17. पानी एवं भूमि प्रबन्धन योजनाः
इसमें हिस्सेदारी करने के लिए गांव के लोगों को प्रेरित करना। विकास कार्यों में लगे विभागों के साथ तारतम्य स्थापित करना।
18. गांव में 40 साल से कम उम्र की बांझ महिलाओं को चिन्हित करना तथा उनका इलाज।
19. गांव में स्वास्थ्य रजिस्टर का रख-रखाव पूरी जानकारी के साथ करना।
20. गांव में शौचालयों के बारे जागरुकता पैदा करना।
इसके अलावा खण्ड स्तर या जिला स्तर पर कुछ काम-
1. हिंसा से उजड़ी महिलाओं के पुनर्वास के लिए उन्हें पर्याप्त आर्थिक और सामाजिक सुरक्षा प्रदान करवाना
2. राज्य में न केवल पारिवारिक अदालतों का गठन हो बल्कि उनके कामकाज की देखरेख के लिए भी आवश्यक कदम उठाए जाएं।
3. महिलाओं को कानूनी सहायता देने के केंद्रों का विस्तृत नेटवर्क बनाना तथा पर्याप्त संख्या में महिला आश्रमगृहों की स्थापना करना।
4. महिलाओं के लिए सभी सरकारी गृहों तथा बच्चों के लिए बाल गृहों की निगरानी समितियों में महिला संगठनों के प्रति प्रतिनिधियों को शामिल करना।
5. लिंग परीक्षण पर रोक लगाना।
6. संचार माध्यमों तथा फिल्मों में महिलाओं को उपभोक्ता वस्तु के रूप् में प्रस्तुत किए जाने पर कड़ा सेंसर लागू करना, दूरदर्शन के लिए निगरानी समिति का गठन करना।
7. महिलाओं के विरुद्ध हिंसा के विरोध में जन अभियान चलाना। पितृसत्तात्मक व सवर्णवादी विचारधारा में निहित महिलाओं की गैरबराबरी के खिलाफ लोगों को जारूक व संवेदनशील बनाना।
8. सभी कॉलेजों व यूनिवर्सिटीज में ‘महिला विकास केंद्रों’ की स्थापना ताकि छात्राओं को शुरू से ही विभिन्न सामाजिक मुद्दों व समस्याओं के प्रति जागरूक बनाया जा सके।
9. राज्य महिला आयोग की स्थापना जो स्वतंत्र रूप से महिलाओं के विरुद्ध हिंसा और अन्य समस्याओं की सुनवाई कर सके और महिलाओं के हक की नीतियों को लागू करवाने में मदद कर सकें।
10. जहां है देवदासी प्रथा है व वेश्यावृत्ति का चलन है वहां इसकी समाप्ति तथा इनके पुनर्वास के लिए ठोस कदम उठाना।
11. नेशनल सेम्पल सर्वे द्वारा कराए जा रहे सर्वेक्षण के एक अभिन्न अंग के रूप में महिलाओं द्वारा किए गए अवैतनिक कामों के घंटों तथा उसके अनुरूप दाम का अनुमान लगाना।
12. बलात्कार को ठीक से परिभाषित किया जाए, वैवाहित बलात्कार यानि पति द्वारा जबरन शारीरिक सम्बन्ध बनाने को अपराध की तरह माना जाए।
13. हिंसा व बलात्कार सम्बन्धी कानूनों का कड़ाई से पालन हो।
रणबीर सिंह दहिया
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