बलबीर सिंह राठी जी की ek gajal
अब हालत बदलने होंगे ग़म का बोझ उठाने वाले |
वरना देते ही जायेंगे दुःख दिन रात ज़माने वाले |
मजलूमों को बाँट रहे हैं जुल्म का खेल रचाने वाले
इस साजिस ही में शामिल हैं वे नफरत फ़ैलाने वाले |
दुनिया पर कब्ज़ा है जिन का वो उस के हक़दार नहीं हैं
उनसे अब कब्ज़ा छीनेंगे सब का बोझ उठाने वाले |
पत्थर दिल लोगों से अपने जख्मों को ढांपे ही रखो
खुद को हल्का कर लेते हैं सबको जख्म दिखाने वाले |
कोई किसी का साथ निभाए इतनी फुर्सत ही किसको है
अफसानों में मिल सकते हैं अब तो साथ निभाने वाले |
खुदगरजे की बस्ती में भी कौन तुझे हमदर्द मिलेगा
इन लोगों को अपने ग़म की हर रूदाद सुनाने वाले |
बेसब्रे पां से तो अक्सर बांटे काम बिगड़ जाते हैं
धागों को उलझा देते हैं जल्दी में सुलझाने वाले |
जंग अभी लम्बी चलनी है राहों में सुस्ताना कैसा
कब आराम किया करते हैं , जुल्मों से टकराने वाले |
मण्डी की तहजीब में यारो ! मक्कारी ही काम आती है
साच को अच्छा क्यों मानेंगे झूठ से काम चलाने वाले |
मैं जब उनके पास गया था तब मुझ को मालूम नहीं था
छोड़ के दूर चले जायेंगे मुझ को पास बुलाने वाले |
'राठी" जी तो दीवाने हैं , उन से रूठ के कैसे जाएँ
उन की सूनी सी आँखों में उजले ख्वाब सजाने वाले |
No comments:
Post a Comment