Friday, January 11, 2013

लिंग और जाति
अपने अस्तितत्व की रक्षा के लिए इंसान को कुछ उत्पादों की जरूरत होती है जिन्हें वह प्रकृति में उपलब्ध विभिन्न पदार्थों पर तरह तरह के श्रम करके प्राप्त करता है । जानवरों-इंसानों के बीच मौलिक अंतर 'श्रम निष्पादन ' होता है । इंसान कुदरती तौर पर उपलब्ध जमीन का इस्तेमाल करता है और ऐसी चीजें और ऐसी जिन्सें पैदा करता है जो उसके जिन्दा रहने के लिए आवश्यक हैं ।'श्रम'करने की इस प्रक्रिया में इंसान 'उत्पादन सम्बन्ध ' या 'श्रम सम्बन्ध ' बनाता  है । अगर सरे इंसान 'श्रम' करें तो 'श्रम सम्बन्ध ' सामान होते हैं । लेकिन जब सिर्फ कुछ ही लोग 'श्रम 'करते हैं और शेष कोई कम नहीं करते तो 'श्रम सम्बन्ध ' ' असमानता के सम्बन्ध होते हैं । यानि श्रम के शोषण की बदौलत एक वर्ग किसी तरह का श्रम नहीं करता , जबकि दूसरा वर्ग श्रम करता है । वह वर्ग जो श्रम नहीं करता , जमीन और श्रम के दुसरे तमाम साधन उसकी निजी संपत्ति होते हैं । वह वर्ग सम्पति का स्वामी हो जाता है । सम्पति विहीन वर्ग 'श्रमिक वर्ग 'बन जाता है । इतिहास के पहले वर्ग थे --दास और स्वामी ।दास और दास स्वामियों के समय से ही वर्ग संघर्ष शुरू हो गया । वर्ग सघर्ष ने ही दासों को दासता से मुक्ति दिलाई । लेकिन वह वर्ग संघर्ष मजदूरों को श्रम के शोषण से मुक्ति नहीं दिला सका। आज मजदूर और पूंजीपति दो वर्ग हैं । हमें सामंती जागीरदार और किसान जैसे तबके भी नजर आते हैं । शोषक वर्ग तीन तरह से होने वाली आय पर जीते हैं । यह आय उनके अपने श्रम का नतीजा नहीं होती ,बल्कि जमीन के किराये और उनकी पूंजी के ब्याज से होती है । श्रमिक वर्ग अपने श्रम का बड़ा हिस्सा स्वामी वर्ग के हाथों खो देता है । श्रम के शोषण की समस्या की वजह से मानव जाति  के बीच मालिक और नौकर का भेद (असमानता ) पैदा होता है । शोषक वर्ग धन सम्पति अर्जित करता चला जाता है और श्रमिक वर्ग गरीबी से झूझता रहता है । इसका अर्थ यह है कि धन वैभव , स्वामित्व और दासता श्रम के शोषण का नतीजा हैं । इस समस्या का हल यह है कि वर्ग संघर्ष के जरिये निजी सम्पति के अधिकार निरस्त कर दिए जाएँ और प्रभुत्व वर्ग को अपने श्रम पर जीने पर विवस किया जाये ।\
लिंग और जाति के सवाल की व्याख्या स्वीकारने के लिए व्यक्ति के 'श्रम' से जुड़े विभिन्न पहलुओँ  को समझना जरूरी है , मसलन उत्पादन संबंधों ,सम्पति संबंधों , श्रम विभाजन , वितरण संबंधों , मूल्य , धन ,बेसी मूल्य ,शारीरिक श्रम,मजदूरी , जमीन की लगान , उत्पादक श्रम,अनुत्पादक श्रम,स्वतंत्र मक्ज्दूर घरेलू मजदूर वगैरह ।

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