Tuesday, December 25, 2012

गंडासे तै बेटी काटी

गंडासे तै बेटी काटी 
गाम खोरांव मैं काटी बेटी  इज्जत खातिर बताई 
प्रेमी गेल्याँ  देखी बाबू नै लाठी उस पर बरसाई 
पीट पीट लाठियां तैं बेहोश करी अपनी बेटी रै 
बेहोश का गला काट दिया न्यों झेंप ऊनै मेटी रै 
प्यार की कीमत छोरी नै उडै  मरकै नैए चुकाई ।।
कौशाम्बी उत्तर प्रदेश मैं कोखराज थाना बताया 
खोरंव गाम इसमें बसै  बाप नै यो जुल्म कमाया 
बाबू बोल्या क्यों इसने आडे प्रेम की पींग बढ़ाई ।।
प्रेमी मौका देख कै उड़े तें एकदम फरार होग्या 
किशोरी घरां पहोंची तो बाबू क्यों आपा खोग्या 
गया यो बदल जमाना क्यूं पुरानी बीन बजाई  ।।
एक प्रेमी जोड़ा और भेंट चढ्या कसाई समाज की 
न्योएँ मारे  ज्यावें प्रेमी चढ़ भेंट पुराने रिवाज की 
कहै रणबीर समाज यो कद समझेगा अन्याई ।।


Monday, December 24, 2012

ULTEE SOCH

सोचेगा कति उल्टी सोचैगा
काम करैगा तो उलटे करैगा 

Depth of Gang Rape

गैंग रेप की समस्या की गहराई और जटिलता को समझना बहुत जरूरी है । आब मूल भूत सामाजिक परिवर्तन की मांग साफ उभर कर आ रही है जो नए नव जागरण आन्दोलन को मजबूत करके ही लड़ी जा सकती है ।

rashtreey trasdee

दुष्कर्म की राष्ट्रीय त्रासदी के बाद उसके विरोध का स्वर तेज हो  रहा  है । इस फिल्म में इस मुद्दे को उठाया गया है सामाजिक रिश्तों का द्वन्द  है 

नया साल

नया साल 
नए साल की मुबारक खास रिवाज बन गया 
अमीर गरीब सबकी एक आवाज बन गया 
एक कदम आगे मगर दो कदम पीछे गए 
पुराने दोस्त भुलाकर ढूंढें है कई दोस्त नए 
वातावरण और ख़राब इस साल किया गया 
महिलाओं को अपमान बढ़ा चढ़ा दिया गया 
विज्ञानं और तकनीक से मजदूरों को चूस 
काला धन खूब कमाया दे दे के नेता को घूस
मानवता का मुखौटा लगा ये अमीर घूम रहे 
मेहनत हमारी लूटकर पीके स्कॉच झूम रहे 
गए साल की बेचैनी और बढ़ती जायेगी अब 
जनता और जाग रही आवाज उठायेगी अब 
हम सब गैंग रेपिया माहौल में जी रहे देखो 
कभी दहाड़ने लगते कभी होठ सी रहे देखो 
अराजकता तक हालत को पहोंचवाते हैं जो   
टीयर गैस छोड़ कर भीड़ को भगवाते हैं वो 
संगठित विरोध की आज बड़ी जरूरत देखो 
फासिज्म की वर्ना तो निकल रही मुरत देखो 
लोकतंत्र टाटा अम्बानी का जनता समझ रही 
जनता का लोकतंत्र हो बात कुछ सुलझ रही 
अभी बहुत सी कुर्बानी अगला साल मांगेगा 
कहा नहीं जा सकता अँधेरा बढेगा कि भागेगा 
समाज का पतन रोकना इतना आसान नहीं 
इस पतन में उत्थान के बीजों की पहचान नहीं 
पिछले साल का हिसाब आना है बाकी दोस्तों 
गैंग रेप बढे बलात्कार बहुत धूल फांकी दोस्तों 
पूंजीवादी व्यवस्था का नियम यही बताते देखो 
अमीर और अमीर होते गरीब नीचे ही जाते देखो 
जनता का राज जनता द्वारा जनता के वास्ते 
जनता को चूसने के बनाये गए हैं खास रास्ते 
टी वी पर नए साल का ये जश्न मनाया जायेगा 
कैटरीना का महंगा ठुमका खूब दिल बहलायेगा 
साइनिंग इण्डिया का अलग होगा नया साल 
सफरिंग इण्डिया का होगा ठण्ड में बुरा हाल 
साइनिंग को सफरिंग क्यों ये नजर नहीं आता 
समझा समझा कर रणबीर मैं तो थक जाता 
नए की उम्मीद फिर भी मुबारक नया साल हो 
बदहाली में भी सीखो तो कोई कैसे खुश हांल हो 



 


Monday, December 17, 2012

MERA BHARAT

जनता की जनवादी सरकार का सपना 
1. राज्य की संरचना के क्षेत्र में :-
देश में बसने वाली  विभिन्न जातीयताओं की स्वायतता और वास्तविक समानता के आधर पर ]भारतीय संघ की एकता की हिफाजत करने तथा उसे आगे बढाने के लिए और राज्य की ऐसी संघात्मक जनवादी संरचना के लिए काम करना जरूरी पक्ष बनता है । इस काम की रूपरेखा इस प्रकार होनी चाहिए मगर आप भी अपने सुझाव दे सकते हैं :-
a . जनता प्रभु सत्ता संपन्न है । राजसत्ता के सभी अंग ,जनता के प्रति उत्तरदायी होंगे । राज्य की सर्वोतम सत्ता जन -पेतिनिधियों के हाथ में होगी, जो व्यस्क मताधिकार और आनुपातिक प्रतिनिधत्व के सिद्धांत के आधार पर चुने जायेंगे और जिन्हें निर्वाचकों द्वारा वापस बुलाया जा सकेगा । अखिल भारतीय केंद्र के स्तर पर दो सदन होंगे --लोकसभा और राज्य सभा । महिलों का समुचित प्रतिनिधित्व सुनिश्चित किया जायेगा ।
b. भारतीय संघ में सभी प्रदेशों को वास्तविक स्वयातता तथा समान अधिकार प्राप्त होंगे । जनजातीय क्षेत्रों को अथवा उन अंचलों को , जिनकी आबादी का एक विशिष्ट उपजातीय संयोजन है और जिनकी अपनी विशिष्ट सामाजिक तथा सांस्कृतिक परिस्थितियाँ हैं , संबंधित प्रदेश के अंतर्गत स्वायतता दी जायेगी तथा विकास के लिए पूरी मदद मुहैया कराई जायेगी ।  
c .प्रदेशों के स्तर पर उच्च सदन नहीं होंगे । न ही प्रदेशों में ऊपर से राज्यपाल नियुक्त किये जायेंगे । सभी प्रशासनिक सेवाएँ संबंधित प्रदेशों अथवा स्थानीय सत्ताओं के सीधे नियंत्रण में होंगी । प्रदेश ,सभी भारतीय नागरिकों के साथ समान   व्यवहार करेंगे तथा जाति]  लिंग] क्षेत्र ] सम्प्रदाय तथा जातीयता के आधर पर कोई भेद भाव नहीं किया जायेगा ।
d . संसद और केन्द्रीय प्रशासन में,सभी राष्ट्रीय भाषाओँ की समानता को मान्यता दी जायेगी । संसद सदस्यों को अपनी जातीय भाषा में बोलने का अधिकार होगा तथा अन्य भाषाओँ में साथ साथ अनुवाद की व्यवस्था होगी ।सभी कानून, सरकारी आदेश और प्रस्ताव , सभी भाषाओँ में उपलब्ध कराये जायेंगे । दूसरी सभी भाषाओँ को छोड़कर , एकमात्र सरकारी भाषा के रूप में हिन्दी का उपयोग अनिवार्य नहीं बनाया जायेगा । सभी भाषाओँ को समानता प्रदान करके ही, इसे पूरे देश में संपर्क  की भाषा के रूप में स्वीकार्य बनाया जा सकता है । तब तक , हिन्दी और अंगरेजी के इस्तेमाल की मौजूदा व्यवस्था जारी रहेगी । शिक्षण संस्थाओं में, उच्चतम स्तर तक मातृ भाषा में शिक्षा प्राप्त करने का जनता का अधिकार सुनिश्चित किया जायेगा । हरेक भाषायी प्रदेश की अपनी भाषा का , तमाम सार्वजनिक  व् राजकीय संस्थाओं में उपयोग भी सुनिश्चित किया जायेगा । अल्पसंख्यक समूह या अल्पसंख्यक समूहों की या जहाँ जरूरी हो किसी क्षेत्र विशेष की भाषा को , प्रदेश में अतिरिक्त भाषा का दर्जा देने की व्यवस्था होगी । उर्दू भाषा और इसकी लिपि को संरक्षण दिया जायेगा ।
e. जनता की जनवादी सरकार आर्थिक ,राजनैतिक तथा सांस्कृतिक क्षेत्रों में ,संघटक प्रदेशों के बीच तथा विभिन्न प्रदेशों की जनता के बीच , पारस्परिक सहयोग को पोषित कर और बढ़ावा देकर , भारत की एकता को मजबूत बनाने के के लिए कदम उठाये जाने होंगे । जातीयताओं , भाषाओँ और संस्कृतियों की विविधताओं का आदर किया जायेगा और विविधता में एकता की नीतियां लागू की जायेंगी । वह आर्थिक दृष्टि से पिछड़े व् कमजोर प्रदेशों ,अंचलों और क्षेत्रों पर विशेष ध्यान देना होगा तथा उन्हें वितीय व् अन्य सहायता देनी होगी ताकि पिछड़ापन तेजी से दूर करने में, उन्हें मदद मिल सके । 
f . जनता का जनवादी राज्य स्थानीय प्रशास न   के क्षेत्र में, सबसे नीचे गाँव से लेकर ऊपर तक ऐसे स्थानीय निकायों का व्यापक नेटवर्क खड़ा करेगा , जिनका सीधे जनता द्वारा चुनाव होगा और जिनके हाथ में पर्याप्त सत्ता व् जिम्मेदारियां होंगी और जिन्हें पर्याप्त वितीय संसाधन दिए जायेंगे । स्थानीय निकायों के सक्रिय कामकाज में जनता की भागीदारी सुनिश्चित करने के सभी प्रयास किये जाएँ ।
 
भाग --1--जारी है    

Saturday, December 15, 2012

EK ANUMAN


21वीं सदी  की शुरुआत में विश्व वितीय सौदों का लेन  देन 4,000 ख़रब डालर यानि मालों व् सेवाओं के करीब 70 खरब डालर के सालाना कारोबार से करीब 60 गुना ज्यादा हो जाने का अनुमान है ।

पूंजी की तासीर

पूंजी की तासीर 
" पर्याप्त मुनाफा मिले तो पूंजी बहुत हिम्मती हो जाती है । 10 प्रतिशत का पक्का मुनाफा , उसका कहीं भी लगाया जाना सुनिश्चित कर देगा ;20 फीसद पक्का हो तो वह बहुत उत्सक हो जायेगी ; पचास फीसद पर वह ढीठ हो जायेगी ;100 फीसद पर वह तमाम इंसानी कानूनों को रोंदने के लिए तैयार होगी ; और 300 फीसद मिलता हो तो कोई अपराध नहीं है जिसे करने में उसे हिचक होगी और कोई जोखिम नहीं है जो वह नहीं उठायेगी , यहाँ तक कि मालिक को फांसी चढ़ने का जोखिम भी ।"
मार्क्स --दास कैपीटल 

Tuesday, December 11, 2012

PRAGATEE SHEEL ANDOLAN---SUHEL HASHMI



प्रगतिशील आन्दोलन की विरासत और हमारा समय
  
दोस्तों में अपनी प्रस्तुति की शुरुआत करने से पहले यह साफ़ कर देना चाहता हूँ के साहित्य सर्जन से मेरा कोई दूर का भी वास्ता नहीं है में कवि, कहानीकार, नाटककार, नहीं हूँ, आलोचक भी नहीं, हाँ साहित्य से एक सरोकार मेरा है, में पाठक हूँ और अगर ग़ालिब की ज़बान का इस्तेमाल करू तो इस जहान-ऐ-रंग-ओ-बू  में ६० दहाइयां बिता चुकने  की  वजह से थोडा बुहत ऐसा पढ़ देख चूका हूँ जो प्रगति शील कहलाता है काफी ऐसा भी पढ़ा  है जो प्रगतिशील नहीं है. इस दौरान इन दोनों में अंतर करना और पहले को दुसरे पर तरजीह देना भी आ ही गया. तो आज जो बातें में आपके सामने रखने जा रहा हूँ वो एक पाठक, श्रोता, दर्शक की व्यक्तिगत दृष्टि और विश्लेषण है और उसमें वो सारी खामियां होंगी जो एक पक्षधर व्यक्ति के नज़रिए में होती हैं.
प्रगतिशील आन्दोलन की विरासत क्या है
मेरी नज़र में सामाजिक कुरीतियों के विरूद्ध, महिलाओं, अल्पसंख्यकों, दलितों, पददलितों  और मेहनत  मजदूरी कर के गुज़रा करने वालों के हक में जो भी वैचारिक,  सांगठनिक, सांस्कृतिक, साहित्यिक पहलक़दमी  हुई है वो सब प्रगतिशील आन्दोलन की विरासत है.
इस ब्यान के पीछे मेरी मंशा इस बात को रेखांकित करने की है के प्रगतिशीलता की विरासत और प्रगतिशील आन्दोलन की विरासत में गहरे आपसी रिश्ते हैं. प्रगतिशील आन्दोलन की विरासत उस व्यापक प्रगतिशील विरासत का एक हिस्सा है जो एक लम्बे समय से हमारे यहाँ विकसित हो रही है. प्रगतिशील आन्दोलन जिस की शुरूआत १९३६ में हुई उसे इस परिप्रेक्ष में देखना और इस बात को रेखांकित करना के प्रगतिशील आन्दोलन की जड़ें हिंदुस्तान की ज़मीन में बुहत  गहरी गड़ी हुई हैं इतना ही ज़रूरी है जितना इस बात को जताना के हमारी सेक्युलर परम्पराएँ भी कुछ कम पुरानी नहीं हैं .
इन दोनों बातों को रेखांकित करना इस लिए भी ज़रूरी है क्योंके सेकुलरिज्म और प्रगतिशीलता के दुश्मन यह कहते नहीं अघाते के यह विदेशी विचार हैं और  इसलिए यह भारतीय अस्मिता, भारतीय परम्परा का हिस्सा नहीं हैं.  वो  लोग जो यह  साबित करने में लगे हुए थे, और हैं, के प्रगतिशील आन्दोलन कोई वाम पंथी साज़िश थी दरअसल खुद एक साज़िश का हिस्सा हैं और यह बात उन दूसरे महानुभावों के बारे में भी कही जा सकती है  जिनका इसरार इस बात पर है के हमारी परंपरा में तो धर्म और राजनीती अलग हो ही नहीं सकते और हमारी परम्परा  तो राजा  द्वारा राजधर्म और दासों द्वारा दासों के धर्म का निर्वाह करने की संस्कृति पर ही आधारित थी.
मेरी नज़र में जब चार्वाक दार्शनिकों ने वेदों के श्लोकों को मनुष्यों की रचना कहा और उनके दैविक स्रोत्रों पर प्रशन चिन्ह लगाये, जब उन्होंने कहा के मृत्यु के बाद कुछ नहीं बचता और आत्मा नहीं होती, जब उन्होंने कहा के दुखों से बचो और सुखों का आनद लो और जब उन्होंने त्याग और शरीर को कष्ट देने वाली तपस्याओं का विरोध किया तो उन्होंने अपने समय की प्रगति शील परंपरा को बल दिया और उसे आगे बढाया
जब महावीर और बुध ने जातिप्रथा का विरोध किया, पाली और प्राकृत को संस्कृत पर तरजीह दी तो वो क्या कर रहे थे . बुध ने तो एक जातक के अनुसार अपने उपदेशों के संस्कृत अनुवाद किये जाने के प्रस्ताव का विरोध यह कह कर किया के अगर मेरी बातें संस्कृत  में अनुदित हो गएँ तो उन तक कैसे पौन्ह्चेंगी जिन के लिए वो कही जा रही हैं . अब यह उस समय की वर्ग व्यवस्था के खिलाफ आवाज़ उठाने और शासक वर्ग की भाषा और जन भाषा के बीज जन भाषा को चुनने का  प्रगतिशील क़दम नहीं था  तो क्या था.
मेरा मकसद इस बात को रेखांकित करना है  के प्रगतिशीलता कोई ऐसी चिड़िया नहीं है जो विदेश  से आयातित हुई हो, प्रगतिशीलता अंग्रेजी राज के उन फाएदों में से नहीं ही जिनकी चर्चा मुझ से पिछली पीढ़ी की  पाठ्य पुस्तकों में होती थी और अब वैश्वीकरण के दौर में  और ऑक्सफ़ोर्ड के पढ़े हुए प्रधान मंत्री के दौर में फिर होने लगी है,  वैसे हमारे एक प्रधान मंत्री और  भी थे जो केम्ब्रिज से  पढ़ कर आये थे मगर  अंग्रेजी हुकूमत की बरकतों  का इतना ज़िक्र नहीं करते थे. अंग्रेजों ने उन्हें १० साल जेल में रखा था. वो प्रगतिशील थे आज वाले नहीं हैं .
बहरहाल जिस बात की तरफ में लौट कर जाना चाहता  हूँ वो यह है के हर काल में प्रगतिशील शक्तियां और प्रवार्तियाँ होती हैं , दो सौ साल की गुलामी में हमें यह पढ़ा दिया गया था का भारतीय समाज एक जड़ समाज था और उसमें कोई प्रगति कोइ परिवर्तन न तो हजारों साल से हुआ था, न परिवर्तन के कोई आसार नज़र आते था और न कही भी किसी भी बदलाव की गुन्जाएश थी . हमें फिर यह भी बताया गया के अंग्रेजों के आने से नए विचार नए दृष्टिकोण विकसित हुए और भारतियों को एक आधुनिक नजरिया प्राप्त हुआ और उसी की मदद से हम ने एक आधुनिक राष्ट्र की समझ विकसित की वगेरा वगेरा.
यह समझ दरअसल भारत में होने वाले सभी ऐतिहासिक परिवर्तनों को सिरे से नकारती है .चार्वाक के समय से ले कर अंग्रेजों के आने के समय तक जो लम्बा वैचारिक आर्थिक सामाजिक सफ़र हम ने अंग्रेजों की मदद के बगैर  तै किया है क्या उस  में कोई प्रगतिशील परिवर्तन हुआ ही नहीं ? खगोल शास्त्र, गणित, नाटक, नृत्य, साहित्य, कला, कृषि, हस्तकला, शिल्प, वास्तुशिल्प, संगीत, मूर्तिकला कौन सी ऐसी विधा है  जिसमें इस दौर में नए तजरुबे न किये गए हों,  दरबारों की ज़बानों की जगह अवाम की बोल चाल की भाषा हिन्दवी जो बाद में हिंदी उर्दू बन कर उभरी इसी दौर की पैदावार है, इसी दौर में हम ने हिन्दुस्तानी होने की संस्कृतिक पहचान का निर्माण शुरू किया, इसी काल में एक निराकार भगवन की  कल्पना हुई, एक ऐसा भगवन जिस की उपासना के लिए पुजारी और पूजा के ताम झाम की ज़रुरत नहीं थी, क्या अपने आप में यह ब्राह्मणों के वर्चस्व और भगवन के विचार पर उनके एकाधिकार के खिलाफ एक प्रगतिवादी क़दम नहीं था. एक ऐसा काल जो हमें खुसरू, कबीर, रैदास और नानक जैसी प्रतिभाएं देता है उसे किस तरह जड़ की संज्ञा दी जा सकती है ?
सूफी और निर्गुण आन्दोलन के प्रभाव में हम ने धार्मिक मतभेदों की बिना पर इंसानों में मतभेद करने का विरोध किया और हर तरह के धार्मिक आडम्बर और खोखले रीती रिवाजों का मुकाबला किया, ब्राह्मणवाद को पुनर्स्थापित करने की प्रक्रिया के विरोध में निर्गुण भक्ति की एक लहर जो पूरे देश में फेल गयी क्या अपने आप में एक प्रगतिशील धारा  नहीं थी?
यह ज़रूरी नहीं के सारे प्रगतिशील परिवर्तनों की शुरूआत आम जनता, खेत मजदूर, किसान  फैक्ट्री के मजदूर करें, बुहत से परिवर्तनों की शुरूआत खुद शासक वर्ग से भी हो सकती है , गौतम बुध और महावीर जैन खुद क्या थे, सम्राट अशोक क्या था, खुसरू क्या था?  सती  प्रथा के खिलाफ पहला कानून राजा  राम मोहन राय के अभियान के दबाव में अंग्रेजों ने नहीं पास किया था सती पर पहली बार पाबन्दी लगाने वाला कानून अकबर ने लागू  किया था, खेती पर लगने वाले लगन की दर भूमि की उपजाऊ शक्ति की बिना पर तै होगी इस कानून को शेर शाह सूरी ने लागू किया था.
 दरअसल प्रगतिशील  परिवर्तन वो वर्ग लाते हैं  हैं जो विकसित हो रहे होते हैं आगे बढ़ रहे होते हैं , रूढ़ियों से संघर्ष कर रहे होते हैं. बाद में जब वोही वर्ग सत्तारूढ़ हो जाते हैं तो वो प्रगति के राह में रूकावट बन जाते हैं. सामंती एक समय में प्रगति का प्रतीक थे और इसी तरह पूँजी पति भी,  साम्राजवादी व्यवस्था और  मजदूर वर्ग के चरित्र में परिवर्तन नहीं होता. हमारे निकट अतीत में भी जो परिवर्तन आये हैं उनके कर्णधार हमारे युग के उभरते, विकसित होते हुए जुझारू वर्ग हैं. हमारे युग में यह वर्ग मजदूर वर्ग है मगर अतीत में हमेशा ऐसा नहीं था. प्रगतिवादी क्या है इस की परिभाषा अलग अलग काल में बदल  सकती है  जैसे गुलामी  के काल में ज़मींदारी प्रथा की स्थापना एक प्रगतिशील क़दम था मगर आज वो प्रतिक्रियावाद का स्रोत्र है , ठीक ऐसे ही जैसे समाजवादी समाज की स्थापना के बाद पूँजी वाद प्रतिक्रियावाद के खेमे का सरगना बन जाता है हालांके ज़मींदारी प्रथा के खात्मे के वक़्त उभरते हुए पूँजी वाद  और उसके साथ जनम लेने वाले मजदूर वर्ग ने फ़्रांस की क्रांति और जनतांत्रिक व्यवस्था का सूत्र पात किया था.
साम्राजी  गुलामी के दौर में जो विद्रोह साम्राज की प्रभुसत्ता के खिलाफ उभरे उनमें से सब से ज्यादा व्यापक और संगठित विद्रोह १८५७ का सैनिक विद्रोह था मगर ज़रा गौर से देखिये यह बागी कौन थे ईस्ट इंडीय कम्पनी की लाइट बंगाल इन्फेंट्री में १२५,००० सिपाही थे इनमें से ६५% से अधिक ब्राह्मण और क्षत्रिय थे और बाक़ी बचे हुए ३५% में दलित, आदिवासी, पिछडी जातियों के सदस्य मुसलमान सिख व अन्य लोग थे,  इन्होने बहादुर शाह ज़फर को अपना कमांडर इन चीफ बनाया और वो खुद बख्त खान के नेतृत्व में संगठित थे, खुद बख्त खान एक मामूली सा रिसालदार था.
इन लोगों ने देश को आज़ाद करने के बाद जिस भारत का सपना देखा था वो मुग़ल सामंती दौर में वापसी का सपना नहीं था, वो उस क़दीम, प्राचीन नवाबों बादशाहों और रजवाड़ों के झूठे वैभव कालीन दौर में लौटने का सपना नहीं देख रहे थे  वो आम लोगों की इच्छा से चुनी जाने वाली सरकार स्थापित करना चाहते थे. दिल्ली के लिए जो प्रशासनिक ढांचा उन्होंने तैयार किया था वो दिल्ली के नागरिकों, व्यापारियों और फौजियों द्वारा चुने गए प्रतिनिधियों की एक समिति पर आधारित था. बहादुर शाह ज़फर या उनका प्रतिनिधि इस समिति का एक सदस्य था फैसले सर्व सम्मति से होने ज़रूरी थे, फैसला न हो पाने की स्थिति में ही बादशाह या उसके प्रतिनिधि का फैसला सर्व मान्य होता था मगर बादशाह या उसके प्रतिनिधि को वीटो का अधिकार नहीं था.
१८५७ में यह संविधान बना था, शायद उस समय बुहत कम देश ऐसे थे जो इस तरह की बात सोच भी सकते थे यह भारत् का पहला रिपब्लिकन संविधान था. इस से ज्यादा प्रगतिशील समझ की कल्पना उस काल में कहाँ मिलती है? अंग्रेजी अफसरों की ताना शाही और उनके निरंकुश अनुशासन की प्रतिक्रिया ने इस प्रगतिशील विचार को विकसित किया होगा, पर क्या इस विचार के विकसित होने का श्रय अँगरेज़ ले सकते हैं.
१८८६ में लाला देवराज ने जालंधर  में लड़कियों का स्कूल शुरू किया उनका सम्बन्ध आर्य समाज से था लाला लाजपत राय ने पंजाब केसरी में लेख लिख कर लड़कियों के स्कूलों पर आर्य समाज के सीमित साधनों को व्यर्थ गंवाने का विरोध किया, लालालाजपत राय के समर्थकों ने महीनो लाला देवराज के घर पर सुबह शाम पत्थर फेंके. पंडित अनंत शास्त्री डोंगरे  मंगलौर के मशहूर चित्पावन ब्राह्मण थे १९वी शताब्दी की मध्य में उन्होंने अपनी पत्नी और बाद में अपनी बेटी को संस्कृत पढ़नी शुरू की और इस पाप के लिए उन्हें बरसों दर दर  भटकना पड़ा, उनकी बेटी, रमा बाई  ने बड़े हो कर ब्राह्मण विधवाओं के हालात पर किताब लिखी और ब्राह्मण विधवाओं के लिए आश्रम खोला जहाँ उन्हें लिखना पढना और रोज़गार कमाने के लिए काम  सिखाया जाता था, लोक मान्य तिलक ने जन सभाएं कर के इस बहादुर महिला के खिलाफ अभियान किया और उसे रेवरेंडा के नाम से पुकारा. सर स्येद अहमद खान भी औरतों की तालीम के समर्थक नहीं थे और अलीगढ में लड़कियों के लिए स्कूल खोले जाने के कट्टर विरोधी, उनके सेक्रेटरी ने वहीँ अलीगढ  में उनके मरने के थोड़े समय बाद ही लड़कियों का स्कूल खोला.
यह तीनों मिसालें हमें क्या बता रही हैं सर स्येद सर थे, लाला लाजपत राय आर्य समाज के  स्कूल ग्रुप के नेता थे, स्कूल ग्रुप प्रगतिशील समझा जाता था और लाला देवराज पाठशाला ग्रुप का समर्थन करते थे और यह ग्रुप रूढ़ी वादी समझा जाता था, रमाबाई एक तथा-कथित रूढ़िवादी ब्राह्मण की बेटी थीं और तिलक तो लोकमान्य थे पर प्रगतिशील धारा के साथ कौन था और उसके खिलाफ कौन ? 
१७०३ में औरंगजेब के कमानदार गाजी उद् दिन हैदर ने दिल्ली में एक मदरसा खोला यहाँ गणित और दर्शन के अलावा इस्लामी धार्मिक शिक्षा दी जाती थी १९२५ में अंग्रेजों ने इसे दिल्ली कालेज का नाम दे दिया और यहाँ अंग्रेजी पढाई जाने लगी १८५८ में इस कालेज के दो टीचरों को बगावत  का साथ देने के जुर्म में मौत की सजा दी गयी, वो कालेज जो अंग्रेजों ने अपमे लिए बाबु पैदा करने के लिए खोला था आज़ादी के समर्थकों का अड्डा बन गया, ऐसा ही अलीगढ यूनिवर्सिटी के साथ भी हुआ. अलीगढ तो प्रगतिशील लेखकों का कारखाना ही बन गया था  मजाज़, जज़्बी, जान निसार अख्तर, सरदार जाफरी, आले अहमद सुरूर,  वामिक जौनपुरी, और बुहत से दूसरे
इन मिसालों की मदद से मैं आपकी खिदमत में अर्ज यह करना चाह रहा हूँ के प्रगतिशील विचारों के लिए हम अंग्रेजों के करजदार तो नहीं ही हैं, सभी सभ्य समाजों की तरह हिन्दुस्तानी समाज में भी प्रगतिशील तत्वों का वुजूद हमेशा रहा है, यह न होता तो हम इतने हज़ार साल जिंदा न रह पाते क्योंके अगर प्रगति नहीं होती तो अवनति होना लाज़मी है, समय आप को क़दम ताल का अवकाश नहीं देता. दूसरी तमाम सभ्यताओं की तरह हम ने भी दूसरी सभ्यताओं से सीखा है और बुहत कुछ उनसे लिया भी है और जितना लिया है शायद उतना ही दिया भी है. 
प्रगतिशीलता की एक लंबी विरासत हमारे पास है, आज़ादी के संघर्ष के दौरान साम्राज्यवाद की योजनाओं के विरूद्ध योजनाएं बनाने में हम ने बुहुत कुछ नया ईजाद किया और दुनिया भर के साम्राज विरोधियों से बुहत कुछ सीखा, ठीक वैसे ही जिस तरह नेल्सन मंडेला और मार्टिन लूथर  किंग जूनियर ने गाँधी जी से सीखा.
प्रोग्रेसिव राईटरज एसोसिएशन या प्रगतोशील लेखक संघ जो १९३६ में विधिवत शुरू हुआ दरअसल इस लंबे समय से चलने वाली प्रगतिशील लहर के प्रभाव में लेखकों का एक जुट हो जाना था और उस वक्त के सारे बड़े और संवेदन शील लेखक PWA के साथ खड़े हो गए थे ठीक उसी तरह जिस तरह १९४२ में इप्टा की स्थापना के बाद लगभग सब ही बड़े संगीतकार, गायक, अभिनेता, नृतक इप्टा के साथ आ गए थे. मगर ऐसा भी नहीं है के प्रगतिशील विचारों की विरासत की कुल अभिव्यक्ति ये दो संगठन ही हों, ललित कलाओं में विशेष कर चित्र कला में एक बड़ी पहल कदमी द प्रोग्रेस्सिवे आर्टिस्ट्सग्रुप के नाम से १९४७ में हुई आधुनिक भारत के सभी बड़े कलाकार या तो इस ग्रुप के साथ जुड़े रहे या इस ग्रे प्रभावित रहे, सूजा , बाकरे, रजा, हुसैन, तयेब मेहता, अकबर पदमसी, राम कुमार आदि
इसी तरह वास्तुकला में, फोटोग्राफी में, न्रत्य में, साहित्यक आलोचना में, इतिहास लेखन में, अपने अतीत के मूल्यांकन में, हमारी सभ्यता में क्या हीवित है और क्या मर रहा है किस की रक्षा ज़रूरी है और किस की बर्बादी की राहें हमवार करनी हैं इन सभी सवालों पर प्रगतिशीलता के पक्षधरों की एक साफ़ समाझ है. लोकोन्मुखी आर्थिक नीतियों की पक्षधरता में, स्वास्थ  और शिक्षा की प्रणाली को अवाम के लिए इस्तेमाल करने की वकालत करने वालों में, प्रगतिशील विचारों का योगदान रहा है और आज भी विद्यमान है. विज्ञान और प्रौद्योगिकी का विकास किस दिशा में हो, हमारे शहर कैसे बनें, स्कूलों में फर्नीचर कैसा हो वगेरा वगेरा यह सब वो क्षेत्र हैं जिन के बारे में प्रगतिशील विचारधारा ने अपना महत्व.पूर्ण योगदान दिया है
इन सभी क्षेत्रों में प्रगतिशील लोग अपना योग दान दे पाए हैं वो इस लिए है क्योंके जीवन में जो कुछ ज़िदा है, जिंदगी से भरपूर है, आगे बढ़ रहा है, विकसित हो रहा है, प्रगतिशील लोग उसके साथ हैं. जिंदगी, खुशहाल जिंदगी, सब को साथ ले कर चलने वाली जिंदगी ही दरअसल जिंदगी है और वो निरंतर प्रगति के बिना संभव नहीं, प्रगतिशील विचारों के लगातार विकसत हुए बगैर यह जिंदगी संभव नहीं ऐसे जीवन को हासिल करने का संघर्ष ही प्रगतिशील आंदोलन की विरासत है, हमारी और आपकी विरासत है.                          
   "सुहेल हाशमी "
  
                        

  

       

RICH INDIA INHABITED BY POOR PEOPLE

देश के चौतरफा विकास के लिए जरूरी विराट  संसाधनों -- भरपूर कृषि योग्य भूमि , सिंचाई क्षमताओं , तमाम किस्मों की फसलों के लिए विभिन्न इलाकों की अनुकूल स्थितियां , विपुल खनिज संसाधन और साथ ही बिजली उत्पादन की वृद्ध क्षमताओं से , भारत मालामाल है । भारत की विशाल जनशक्ति , भारतीय जनता की वैज्ञानिक , तकनीकी ,प्रबंधकीय व् बौद्धिक  योग्यताएं , जबरदस्त क्षमताओं के भंडार हैं । इन क्षमताओं के विकास के बजाय , राजसत्ता हासिल करने वाले बड़े पूंजीवादी वर्ग ने , ऐसे  पूंजीवादी विकास का रास्ता अपनाया जो उसके अपने संकीर्ण हितों को पूरा करता था ।

Monday, December 10, 2012

चन्द्र सिंह गढ़वाली

आज हम आजाद देश के नागरिक हैं । आजादी के बाद हमने बहुत कुछ् हासिल किया है । लेकिन वे लोग जिनकी वजह से हमने आजादी पाई , उनके विषय में हम ज्यादा नहीं जानते, न ही उनके त्याग और संघर्षों को जानते हैं । किसी प्राप्ति का मूल्य तभी आँका  जा सकता है जब हम उसके पीछे के बलिदान को समझें । देश के अनेकानेक लोग कई प्रकार से स्वतन्त्रता के लिए संघर्ष रत रहे । कुछ देशभग्ति  की पराकाष्ठा तक पहुँच गए और अमर हो गए पर अधिकांश देशभक्त कहीं किसानों को, कहीं फ़ौज के सिपाहियों को , कहीं हिन्दू मुस्लिम अवाम को संगठित करते हुए नींव के पत्थर बन गए । चन्द्र सिंह गढ़ वाली भी ऐसे सामान्य फ़ौजी थे जिन्होंने गढ़वाल रायफल्ज  का नेतृत्व करते हुए अंग्रेजों का हुकम मानने से इंकार कर दिया और अंग्रेजों की  हिन्दू मुस्लिम बंटवारे की निति को विफल करके लोगों को देशप्रेम का सन्देश दिया । अंग्रेज सरकार ने उनके साथ बहुत सख्ती बरती लेकिन वे देश के लिए लड़ते रहे ।आज के दौर में ऐसे जन नायकों की विरासत को समझना और उससे सबक लेना हमारी जरूरत है । उम्मीद है चन्द्र सिंह गढ़वाली का यह किस्सा सबको प्रेरित करेगा ।
रागनी --1
आजाद देश के वासी सोचो आजादी क्यूकर पाई देखो
जिन करकै आजाद हुए उनकी याद भुलाई देखो ।।
उन शहीदों के बारे हमने रति भर भी ज्ञान नहीं
उनका त्याग और क़ुरबानी इन सबकी पहचान नहीं
उनका संघर्ष याद कराँ घनी तकलीफ ठाई  देखो।।
अनेकानेक लोग देश के जिनने अपना बलिदान दिया
भगत सिंह राजगुरु सुखदेव जीवन पूरा कुर्बान किया
हँसते हँसते देश की खातिर फांसी इन नै खाई देखो ।।
कितै संघर्ष की खातिर संतान किसानों का बनाया
कितै फ़ौज के सिपाहियों नै अपना देश प्रेम दिखाया
हिन्दू मुस्लिम एकता की नींव मजबूत बनाई देखो ।।
हिन्दू मुस्लिम एकता म्हारी अंग्रेजों नै तोड़ बगाई या
देश का बंटवारा करकै अपनी तुर्पी चाल चलायी या
इस बंटवारे के दुखों की नहीं होगी या भरपाई देखो ।।
इन अमर शहीदों मैं एक हुआ चन्द्र सिंह गढ़वाली
फ़ौज मैं बगावत की नींव सबकी साहमी थी डाली
रणबीर सिंह नै दिल लाके करी सै कविताई देखो ।।
रागनी -2
अंग्रेजों नै घने जुलम कमाए अपना राज जमावान मैं
फूट गेरो तरज करो वर लाई न निति अपनावन  मैं
किसानों पर घने कसूते अंग्रेजों नै जुलम कमाए थे
कोहलू मैं पीड़ पीड़ मारे लगान उनके बढ़ाए थे
जगलों  की शरण लिया करते अपने पिंड छटवावन मैं
मजदूरों का बेहाल करया ढाका जमा उजाड़  दिया
मानचैस्टर आगै बढाया जलूस म्हारा लिकाड़ दिया
ढाका की आबादी घटगी माहिर मलमल बनावन मैं
युवा घने सताए गोरयां नै ये सारी सीम लाँघ गए
बंदर बाँट मचा देश मैं फेर रच घने ये सांग गए
पहली आजादी आली जंग लड़ी गयी थी सतावन मैं
ठारा सौ सतावन की जंग मैं देशी सेना बागी होगी
अंग्रेजों के हुए कान खड़े चचोत कालजै लगी होगी
रणबीर सिंह की कविताई हो सै  जनता जगावन मैं






Sunday, December 9, 2012

दो दिवसीय सम्मेलन -- जनतंत्र और मानवाधिकार

                                       दो दिवसीय  सम्मेलन -- जनतंत्र और मानवाधिकार 
                                          महिला केंद्र  की अध्यक्ष --प्रोफेसर डा अमृता यादव --
      महिला और मानवाधिकार --  आज  भले ही महिलाओं के लिए बहुत से अधिकार हैं ,
लेकिन हकीकत कुछ और ही है । वह इस बात के लिए संघर्ष कर रही हैं कि उनको  भी इंसान माना  जाये ।

इस  सत्र की अधयक्षता  महिला आन्दोलन की नेत्री जगमाती सांगवान ने की । कहा की महिलाओं की आवाज बुलंद करने में महिला आन्दोलन और जागरूक संस्थाओं का अहम रोल रहा है ।
                                    जनवादी  महिला  की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष जगमाती सांगवान 

Thursday, December 6, 2012

DEFINITION


चुनौती

चुनौती
"मैं अब्राहम टी  कोबूर ,तिरुविल्ला , पामानकाडालेन  , कोलम्बो -6 का निवासी , यह घोषणा करता हूँ  कि  मैं श्री  लंका के एक लाख रुपये का इनाम संसार भर के किसी भी ऐसे व्यक्ति  को देने को त्यार  हूँ जो ऐसी स्थिति में , जहाँ धोखा न हो , कोई चमत्कार या अलौकिक  शक्ति का प्रदर्शन कर सकता हो । यह पेशकश मेरी मृत्यु तक या इससे  पहले  इनाम जीतने वाला मिलने तक खुली रहेगी ।" देव पुरुष , संत,योगी , सिद्ध , गुरु , स्वामी एवं अन्य दुसरे जिन्होंने आत्मिक क्रिया क्लापों  से या परमात्मा की शक्ति से शक्ति प्राप्त की है , इस इनाम को निम्नलिखित चमत्कारों में से किसी एक का प्रदर्शन करके जीत सकते हैं -------------
1. जो सीलबंद करेंसी नोट का क्रमांक पढ़ सकता हो ।
2. जो किसी करेंसी नोट की ठीक नक़ल पैदा कर सकता हो ।
3. जो जलती हुयी आग पर , अपने देवता की सहायता से , आधे मिनट तक नंगे पैरों पर खड़ा हो सकता हो ।
4. ऐसी वस्तु , जिसकी  मैं मांग करूं , हवा में से पेश कर सकता हो ।
5. मनोवैज्ञानिक शक्ति से किसी वस्तु को हिला या मोड़ सकता हो ।
6. टेली पैथी के माध्यम से , किसी दूसरे व्यक्ति के विचार पढ़ सकता हो ।
7. प्रार्थना , आत्मिक शक्ति , गंगा जल या पवित्र राख  से अपने शरीर के अंग को एक इंच बधा सकता हो ।
8. जो योग शक्ति से हवा में उड़ सकता हो ।
9. योग शक्ति से पञ्च मिनट के लिए अपनी नब्ज रोक सकता हो ।
10. पानी के ऊपर पैदल चल सकता हो ।\
11. अपना शरीर एक स्थान पर छोड़कर दुसरे स्थान पर प्रकट हो सकता हो ।
12. योग शक्ति से 30 मिनट तक अपनी साँस क्रिया रोक सकता हो ।
13.रचनात्मक बुद्धी का विकास करे।भक्ति या अज्ञात शक्ति से एटीएम ज्ञान प्राप्त करे।
14. पुनर्जन्म  के  कारण कोई अद्भुत भाषा बोल सकता हो ।
15, ऐसी आत्मा या प्रेत को पेश कर सके , जिसकी फोटो ली जा सकती हो ।
16. फोटो लेने के उपरांत फोटो में से गायब हो सकता हो ।
17. टला लगे कमरे में से अलौकिक शक्ति से बाहर आ सकता हो ।
18. किसी वस्तु का भर बाधा सकता हो ।
19.छुपी हुई वस्तु को खोज सके ।
20. पानी को शराब या पैट्रोल  में परिवर्तित कर सकता हो ।
21. शराब को खून में परवर्तित कर सकता हो ।
22. ऐसे ज्योतिषी एवं पाण्डे ,जो यह कह कर लोगों को गुमराह करते हैं कि ज्योतिष और हस्त रेखा एक विज्ञानं है , मेरे इनाम को जीत सकते हैं ,यदि वे दस हस्त चित्रों या दस ज्योतिष पत्रिकाओं को देखकर आदमी और औरत की अलग अलग संख्या मृत और जीवित लोगों की संख्या या जन्म ठीक समय व् स्थान , अक्षांस रेखांश के साथ बता दें । इसमें 5 प्रतिशत गलती मुआफ होगी ।
यह चुनौती निम्नलिखित शर्तों के साथ क्रियान्वित होगी :
1. जो व्यक्ति मेरी इस चुनौती को स्वीकार करता है , हालांकि वह इनाम जीतना चाहता है या नहीं , उसे मेरे पास या मेरे नामजद किये हुए आदमी के पास एक हजार रुपये जमानत के रूप में जमा करने होंगे । यह पैसे ऐसे लोगों को  दूर भागने के लिए हैं जो सस्ती सोहरत की खोज में हैं नहीं तो ऐसे लोग मेरा धन , शक्ति और कीमती समय को बेकार में ही नष्ट कर देंगे ।यह रकम जीतने की हालत में वापस कर दी जायेगी ।
2. किसी व्यक्ति की चुनौती उस समय स्वीकार की जायेगी , जब वह जमानत के पैसे जमा करा देगा । जो ऐसा नहीं करता उसके साथ किसी तरह का पत्र व्यवहार नहीं किया जायेगा ।
3. जमानत जमा कराने के बाद , किसी व्यक्ति के चमत्कार का सर्वप्रथम मेरे द्वारा नामजद किये हुए व्यक्ति के द्वारा लोगों की उपस्थिति में किसी निश्चित दिनांक को परीक्षण किया जायेगा ।
4. यदि वह व्यक्ति परीक्षण का सामना नहीं कर सकता या आरंभिक परीक्षण में असफल हो जाता है तो उसकी जमानत जब्त कर ली जायेगी ।
5. यदि वह इस आरंभिक जाँच पड़ताल में सफल हो जाता है तो अंतिम जाँच मेरे द्वारा लोगों की उपस्थिति में की जायेगी ।
6. यदि कोई व्यक्ति इस अंतिम जाँच पड़ताल में जीत जाता है तो उसको एक लाख रुपये का इनाम जमानत की राशि  के साथ दे दिया जायेगा ।
7. सभी परीक्षण , धोखा न होने वाली स्थिति में और मेरी या मेरे द्वारा नामजद किये हुए व्यक्ति की पूर्ण तसल्ली तक किये जायेंगे ।
अब्राहम टी कोवूर 
 

beer's shared items

Will fail Fighting and not surrendering

I will rather die standing up, than live life on my knees:

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