Thursday, October 27, 2011

BALBEER SINGH RATHEE GAJAL

कोई मंजिल न रास्ता है कोई
फासिलों में उलझ गया है कोई |
हर किसी को यूं जांचता है कोई
जैसे बस्ती का वो खुदा  है कोई |
जलजलों को समेत कर खुद में 
कैसे पत्थर का हो गया है कोई |
कैसी सीढ़ी थी जिस पे चढ़ते ही 
सब की नजरों से गिर गया है कोई |
वक्त ने रख दिया था चोटी पर  
फिर जमीं पर ही आ गिरा है कोई 
जो भी आया वही उलझता गया 
जाल ऐसा बिछा गया है कोई |
लोग है मुत मइन अंधेरों से 
वर्ना सूरज लिए खड़ा है कोई |
ये बुलंदी कहाँ नसीब उसे 
इस जगह उसको रख गया है कोई |
ले उडी सब दिलों से हम दर्दी 
वक्त की ये नयी हवा है कोई |
एक नफरत कदे में बरसों से 
प्यार की बात कर रहा है कोई |
रूठने की कोई वजह तो नहीं 
मुझ से किस बात से खफा है कोई |
बे वजह दर्द जो मिला 'राठी' 
बे गुनाही की ये सजा है कोई |

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