तुम्हें गर अपनी मंजिल का पता है फिर खड़े क्यों हो ,
तुम्हारा कारवां तो जा चूका है फिर खड़े क्यों हो |
उजाला तुम तो ला सकते हो लाखों आफताबों का
अँधेरा चारों तरफ गहरा गया है फिर खड़े क्यों हो |
तबाही और होती है - तमाशा और होता है
नगर कब से जलाया जा रहा है खड़े क्यों हो |
अभी तो मंजिल की तरफ कुछ दूर आए हो ,
अभी पूरा सफ़र बाकि पड़ा है फिर खड़े क्यों हो |
ख़ुशी जब खुद सिमित कर कुछ घरों में बंद हो जाये ,
जहाने गम मसल्सल फैलता है फिर खड़े क्यों हो |
मुसीबत कब तलक झेलोगे तुम दुःख झेलने वालो ,
बगावत का तो वक्त आ गया है फिर खड़े क्यों हो |
ये मुमकिन था की चौराहे पे तुम सहमें खड़े रहते
मगर अब रास्ता भी मिल गया है फिर खड़े क्यों हो |
जो तूफ़ान से बचा कर तुम को लाया अपनी किस्ती में
तुम्हारे सामने वो डूबता है फिर खड़े क्यों हो |
बहुत दुश्वार थी राहें सफ़र से डर गए होंगे
मगर आगे तो आसान रास्ता है फिर खड़े क्यों हो |
तुम्हें खुद रहबरी के वास्ते जिस पर भरोसा था
वहीँ 'राठी' तुम्हारा रहनुमा है फिर खड़े क्यों हो |
बलबीर सिंह राठी जी का परिचय
बलबीर सिंह राठी (अप्रैल १९३३) तरक्की पसंद शायर एवं चिन्तक हैं | व्यवसाय से वे अंग्रेजी के प्राध्यापक ,संवेदनशील शिक्षाविद एवं प्रशासक रहे | हरयाणा के विभिन्न राजकीय महाविद्यालयों में प्राचार्य के पद पर भी रहे |
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