Sunday, November 5, 2023

घटना जिसनै अम्बेडकर भी हिला दिया

 घटना जिसनै अम्बेडकर भी हिला दिया


 घटना सन् 1935 की सै। इस घटना नै अम्बेडकर बरगे पहोंच्या औड़ बुद्धिजीवी भी हिला कै धर दिया था। उस बख्त बम्बई सरकार नै एक आदेश जारी करया था कि सार्वजनिक स्कूलां मैं अछूतां के बालकां ताहिं दाखिला दिया जावै। इस आदेश के तहत बम्बई प्रेसीडैंसी के अहमदाबाद जनपद के धोल्का तालुका मैं कबील नाम के गाम मैं 8 अगस्त 1935 नै उस गाम के अछूत अपणे च्यार बालकां नै स्कूल मैं दाखिला करवावण ले कै गए। उननै देखण की खातर सवर्ण हिंदू स्कूल के चारों कान्हीं जमा होगे। जिब दाखिला हो लिया तो आगले कुछ दिनां मैं हिंदुआं नै अपणे बालक स्कूल तै ठा लिये।

 अर उसके कुछ दिन पाछै एक बाहमण नै गाम के एक अछूत पै हमला बोल दिया। इस हमले कै खिलाफ 12 अगस्त नै गाम के अछूत मजिस्ट्रेट की कचहरी मैं शिकायत करण की खातर धोल्का पहोंचे। हिंदुआं नै न्यों देख कै अक अछूता के बालिग लोग गाम मैं कोण्या, लाट्ठी, भाले अर तलवारां गेल्यां अछूतां के घरां पै हमला बोल दिया। उननै महिलावां, बूढ़याँ अर बालकां कै चोट मारी अर वे अधमरे कर दिये। धोल्का गये होए अछूत भी उसे रात नै गाम मैं उलटे आवण आले थे। हिंदू उननै मारण की खातर राह मैं घात लगा कै बैठगे।

 एक बुढ़िया नै इस बात का बेरा लागग्या। उसनै उन धोरै खबर भिजवा दी ज्यां करकै वे उस रात ने कोनी आए अर एक और हादसा टलग्या। हमलावर हिंदू सारी रात उनकी बाट देखते रहे अर आगले दिन तड़कै हे वापस घर नै आए। भयभीत अछूत गांव छोड़ कै अहमदाबाद चाले गए अर उड़ै जाकै गांधी जी की संस्था ‘हरिजन सेवक संघ’ के मंत्री ताहिं सारी बात खोल कै बताई। फेर इस संस्था के मंत्री नै कोए मदद नहीं करी।

 न्यून गाम मैं हिंदुआं नै अछूतां का सामाजिक बहिष्कार कर दिया। उन ताहिं मजदूरी देणा बंद कर दिया। खावण पीवण की चीज बेचण ताहिं इन्कार कर दिया। जड़ असली बात या सै कि उनका घर तै बाहर लिकड़ना मुश्किल कर दिया। और तो और उनके कुंए मैं माट्टी का तेल गेर दिया। आखिर मैं 17 अक्तूबर नै अछूतां नै मजिस्ट्रेट की अदालत मैं फौजदारी का मुकद्दमा दर्ज करवाया। डा. अम्बेडकर नै लिख्या बताया कि इस मामले मैं सबतै अजीब पक्ष तो महात्मा गांधी अर उनके सहयोगी वल्लभ भाई पटेल का रहया जिननै अछूतां ताहिं याहे सलाह दी कि वे गाम छोड़ दें। दलित इस मामले मैं बहोत असहाय महसूस करैं थे।

 जै आज भी देखैं तो कई जगहां मैं हालात उड़ैए सी खड़े दीखैं सैं। चाहे दुलीना कांड हो, चाहे हरसौला का मामला हो अर चाहे पहरावर के सरपंच का मामला हो। दलित उत्पीड़न की मार कसूती पड़री सै।

 कबीर गाम की उस घटना नै सन 1935 मैं बाबा अम्बेडकर का दिल भीतर ताहिं हिला कै धर दिया था। अम्बेडकर जी नै मेवला मैं इस ढाल के उत्पीड़न करण आले हिंदू धर्म मैं ना रहवण की घोषणा करी बताई। उनकी इस घोषणा तै या बात साफ होज्या सै कि दलितां पर उत्पीड़न उन बख्तां मैं कितना था। आम्बेडकर जिसे बुद्धिजीवियां नै भी इसी घोषणा करणी पड़ी।

 इसी घटना आज पूरे हिंदुस्तान मैं अर खास कर उत्तरी भारत मैं बहोत घणी होवण लागगी। बहुजन समाज नै बी अंगड़ाई ली सै अर इस उत्पीड़न का प्रतिरोध भी दिखाई देवण लाग्या सै या अच्छी बात सै। फेर एक बात और समझण की सै कि यू एकला दलित भाइयां के उत्पीड़न का मसला नहीं सै। यू पूरे समाज का मसला सै। यू मानवता का मसला सै अर यू नागरिक समाज के विकास का मसला सै। इस मसले तै रूबरू होवण आली बात सै। आज नहीं तो काल पूरे समाज नै सोचना पड़ैगा कि इतने साल की आजादी पाछै बी दलित उत्पीड़न क्यूं बढ़ता जावण लागरया सै अर इसका के इलाज सै?

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