Tuesday, August 22, 2023

तराना सीख लिया मैने

 पूंजीवाद

दूसरे को बर्बाद करके खुद
आबाद होने का दस्तूर यहाँ
दूसरों के कन्धों पर पैर रख
बस आगे बढ़ना है मंजूर यहाँ
इस पूंजीवाद का नियम है यह
मग़र बताते मेरा कसूर यहाँ
अपनी कमजोरियों को  इसने
इन्सान की कमजोरियां कहकर
अपने को साफ़ सुथरा रखा
जब तब असलियत चेहरे की
सामने हम सब के आ जाती
कुछ देर के लिए हम सबको
कभी न कभी तो रुला जाती
चेहरे लूटेरों के बहुत मासूम
लगते हैं हमको जैसे दिखाऊँ
टाटा अम्बानी जी का चेहरा
कहीं यह दान किया कहीं कुछ
और दान दिया और लूट का
दो प्रतिशत सेवा में लगाया
अपना काला चेहरा छिपाया
यह पूंजीवाद बहुत शातिर है |
क्या कुछ नहीं बदला
---------------------
उखल कहाँ अब
मुस्सल  कहाँ अब
गौजी  कहाँ अब
राबडी  कहाँ अब
बाजरे की खिचडी
बताओ कहाँ अब
गुल्गले  कहाँ अब
पूड़े  कहाँ अब
सुहाली  कहाँ अब
शकर पारे  कहाँ अब
पीहल  कहाँ अब
टींट कहाँ अब
हौले  कहाँ अब
मखन का टींड
कहाँ दिखता अब
छोटी  सी बात
आलू ऊबाल कर
आलू के परोंठे
कहाँ चले गये
पौटेटो चिप्स आये
बीस गुना महंगे
छद्म आधुनिकता
पौटेटो चिप्स खाना
फैशन बन गया
बहुत कुछ बदला
लम्बी फहरिस्त है |
*******
तपती लू साईकिल  का सफ़र
फेस बुक की बन गयी खबर
न बर्फ का पानी न ही फ्रीज़ 
बिजली का पंखा बिजली का
बार बार कट बनी बात जबर
सारे दिन की दिहाड़ी सौ रुपे
चले जा रहे है हम  अंधी डगर 
क़िस्मत में यही लिखा बताया
सुन कर बस कर लिया सबर
********
कार्बन से पैदा हुए और मरकर कार्बन बन जाना  है |
अंतहीन है यह कहानी जिसका छोर नहीं आना  है |
कुछ तो कर ऐसा ए बन्दे कि याद करे जग सारा ये
खाली हाथ आया है और जाना खाली हाथ  माना है।
******
उनका व्यापार ही है उनकी आत्मा बताते यारो
उनका मुनाफा ही उनका परमात्मा जताते यारो
अमानवीय और पाशविक प्रकृति के वाहक है ये
हृदयहीन अहंकारी लालची दो रोटी न पचाते यारो
*****
अगला पिछला और वर्तमान
ना इस जन्म में झूठ बोला
ना कभी दुकान पे कम तोला
फिर भी भगवान नाराज हुए
हार्ट अटैक मुश्किल इलाज हुए
मैंने सोचा मुझे क्यों कष्ट मिला
मिला बताया पिछले का सिला 
वर्तमान का कब होगा हिस्साब
अगले में मिलेगा इसका जवाब
पिछला ना कभी समझ आया
ना अगले बारे ही जान पाया
आज की बाबत नहीं बताते वो
अगले पिछले में फँसाते हैं  वो
दम मारो दम मिट जाएँ गम
देवी देवता हमारे इनके हैं हम
सवाल उठाने वाले कौन हो तुम ?

******
इस बेवफा सिस्टम से वफ़ा मांग रहे हैं
हमें क्या मालूम हम खता मांग  रहे हैं 
ये क़िस्मत का खेल रचाया है जिसने
उसी से क़िस्मत की दुआ मांग रहे हैं
सच को छिपाता आधा सच बताता हमें
जहर घोलता उससे साफ हवा मांग रहे हैं
रोजाना जो खेलता हमारे जज्बात के साथ
सुख के रास्ते का उससे पता मांग रहे हैं
स्वर्ग की कामना में छिपी हुयी रणबीर
अपने खुद की ही हम चिता मांग रहे हैं
*******
किसी पर ऐसे ही  एतबार न कर
भावुकता में बर्बाद घरबार न कर
बात है बात का कोई भरोसा क्या
जाँ किसी पर कभी निसार न कर
अमीर के वायदे सच मत मानना      
इससे कभी  कोई इकरार न कर
बेवफा से वफ़ा की उम्मीद करके
जाने दिल को तूं बेक़रार न कर
रणबीर एक दिन टूट जायेगा यह
ख्वाब है ख्वाब से प्यार न कर
******
मनुष्य होने से अच्छा
कुछ और हो ही नहीं सकता
क्यों ?
यह कुदरत की सबसे बड़ी
नियामत है |
पशु के पास विवेक की कमी
बताते हैं
मनुष्य की पूँजी इसे ही
जताते हैं
बहोत बार हम अपना विवेक
खो जाते हैं
इसी कारण कई बार हम पशु
कहाते हैं |
******

कितनी जल्दी यह मुलाकात गुजर जाती है
प्यास बुझती नहीं कि बरसात गुजर जाती है
अपनी यादों से कहदो कि यूं ना आया करेँ
नींद आती नहीं कि पूरी रात गुजर जाती है
********
इस सिस्टम  की खास बात यही लगती कि हमें बहकाता है
बहक जाते हम सहज ही इस पर ना ऊँगली कोई उठाता है 
हमारी जूती है और सिर भी हमारा ऐसा खेल खिलाया है
मारते बिना गिनती क़ी जूतियाँ हिसाब ना कोई लगाता है
******
मेहरबां कोई-न-कोई आप-सा मिलता रहा,
काम बी ऐसे ही दोस्तों अपना चलता रहा.
अब ठिकाना ही बदल लें आप तो मैं क्या करूँ,
चिट्ठियों पर पता मैं तो ठीक ही लिखता रहा.
जशन में था शहर सारा,जगमगाहट जीत की,
जंग से लोटा सिपाही,देखता,हँसता रहा.
खेतियाँ जलती रहीं,झुलसा किये इंसां मगर,
एक दरिया बेखबर जाने किधर बहता रहा.
रोंगटे उठते हैं अब भी याद क्र वो दास्ताँ,
ये जमीन सुनती रही जो आसमां कहता रहा.
******

बाजार में सब चीजों की बोली लगादी
गुरु शिष्य का रिश्ता कैसे बचता यारो
पैसे ने चारों तरफ दहशत सी फैलादी
फिर भी लड़ेंगे जीजाँ से हम सब यारो
कुछ लाइनों  में बात पूरी हमने बतादी
********
बात पते की
सुबह होती है फिर श्याम होती है
सुबह रोती  है फिर श्याम रोती है
अपनी इज्जत आबर एक महिला
सुबह खोती है फिर श्याम खोती है
दलित जीवन में अमीरीदुख के  बीज
सुबह बोती है फिर श्याम बोती है
दबंग  और  पैसे की दुनिया रंगीन
सुबह होती है फिर श्याम होती है
लगते हैं जो धब्बे काली रातों में
सुबह धोती है फिर श्याम धोती है
सफरिंग दुनिय शाइनिंग  दुनिया को
सुबह ढ़ोती है फिर श्याम ढ़ोती है
*********
आज का दौर
अपने स्वभाव के हिस्साब से ही
साम्राज्यवादी आक्रामकता बढ़ी
उसने ठीक उन्ही भीमकाय से
वितीय  खिलाडियों को जो इस
मंदी के संकट को पैदा करने के
सही सही जिम्मेदार हैं इनको
बड़ी रकमों के बेल आउट पैकेज
देने के माध्यम से संकट पे काबू
पाने की कशिश की है |
इसमें कोई शक नहीं है दोस्तों
इन कम्पनीयों को तो फिर से
जीवन हासिल करवा के मुनाफा
बटोरने का फिर मौका दे दिया
देशों की राज्य सरकारों पर कर्जों
का भारी बोझ लाद दिया गया है
कमाल की बात अबतो करदी यारो
नैगम कम्पनीयों के दीवालों को अब
संप्रभु शासनों के ही दीवालों में
तब्दील  कर दिया गया है
जिसका असर  योरोपीय संघ के
अनेक देशों पर पड़ा और
अमेरिका भी नहीं बच पाया
बचेंगे हम जैसे भी नहीं |
********
मेहनत कर हमने ताज महल बनाया क्यों नहीं दिखाई देता
ताज महल के साथ सब कोई नाम शाहजहाँ का ही क्यूँ लेता
*******
असल में जो नंगे हो गये वो अपना नंगा पन  छिपाने को
सबको नंगा कहते हैं ताकि हम झिझकें उंगली उठाने को
*******
मेरा ना होना तुम बर्दास्त नहीं कर सकते
मेरी ताकत का अहसास है तुम्हें
इसीलिये बाँट दिया मुझे धर्म, जात ,
इलाके, भाषा के नाम पर
मुझे अपनी कमजोरी का जिस दिन
अहसास  हो जायेगा उस दिन ये जमाना
बदल जायेगा  \\
*********
छोटे शहर बदल रहे

रात के ढाई बज चुके हैं यारो पर

मेरा शहर अब भी जाग रहा है

मेरे युवा भारत की आँखों में नींद

नहीं है

कुछ नौजवान डी जे की धुन पर

थिरक रहे हैं और मस्ती में मस्त हैं

यह सीन किसी मैट्रो शहर का हो

मगर ऐसा नहीं है यह सीन तो अब

लखनऊ बनारस लुधियाना और

रायपुर इंदौर भोपाल गुडगाँव

जैसे शहरों में भी रात का शबाब

अपने पूरे यौवन पर होता है

नौजवान यहाँ के सो कर नहीं बिताते

रातें बिताते है जाग जाग कर यहाँ

कहते जिन्दगी बहुत हसीं हो जाती

माई न्ड रिफरेशमेंट हम सब की हो पाती

इन शहरों का भूगोल तो अब भी

वैसा ही है मेरे ख्याल में

मगर बदल गए युवाओं के मिजाज

दिल्ली मुंबई कोलकता जैसे शहरों

या फिर  में यू के या यू एस ए में

कुछ साल  के  बाद

वापसी हुई है नौजवानों की तो

अपने साथ उन शहरों के लाये हैं

लाइफ़ स्टाइल और मस्ती के नुस्खे

सौगात में

जबर दस्त ललक है इस तरह से

जीने की उनके दिल में आज

इस बदले मिजाज को बाजार ने

बहुत अच्छी तरह पहचान लिया है

इसीलिये छोटे शहरों में भी इसके

शो रूम ,इटिंग पॉइंट्स उभर रहे हैं

और एक मॉल कल्चर विकसित

हो रही है

हमारे में से कुछ बुजुर्ग

युवाओं की इस आजाद ख्याली को

सभ्यता और संस्कृति की राह में

बड़ी रूकावट मान रहे हैं

वे इसको युवाओं की महत्वाकांक्षा  और

भोग विलास का नाम दे रहे हैं

पर सामाजिक चिन्तक इस बदलाव का

स्वागत करते नजर आये
*******
जब नयी सुबह के सूरज को सदा दी जायेगी ।।
सफ़ेद पोश हैवानों को फिर सजा दी जायेगी ।।
आज के दौर में प्रमियों की ऑंनर किलिंग होती
नयी सुबह में इन्हें शहीदों की जगा दी जायेगी।।
हमारी मेहनत लूटते हैं दगा देकर हमको यारो
वो सुबह आएगी जब न कोई दगा दी जायेगी।।
हमारे बच्चे मजदूरी करते रहते क्यों बिन पढ़ाई
यकीं मानों ये सारी बातअब समझा दी जायेगी।।
जात पात धर्म की लक्ष्मण रेखाएं सब टूटेंगी
मानवता को सब जगह पर पन्हा दी जायेगी ।।
********
आग सीने की तुम कब तक दबाये रखोगे
सीने में दर्द लब पे मुस्कान सजाये रखोगे
कराहें उठ रही हर घर में आज देखो यारो
जात गोत मजहब की बेड़ियां लगाये रखोगे
आसान नहीं मानवता तक यूं पहुंच पाना
हैवानियत को कब तक तुम उठाये रखोगे
जाग जायेगा इंसान तो हक तो मांगेगा ही
शातिर हो तुम सोये हुए को सुलाये रखोगे
जुल्म की रात भी कट जायेगी एक दिन
जो ए कामगारों आस अपनी जगाये रखोगे
********
जनून
क्या कहूं तुम से कि ये क्या है जनून
जान का रोग है यह बड़ी बला है जनून
जनून ही जनून है दिलो दिमाग में
सारे आलम में ही  भर रहा है जनून
जनून मेरा प्यार मेरा इश्क है यारो
यानि अपना ही मुबतला है जनून
गरीब की मेहनत मशकत में यारो
लगता खुद से भी ज्यादा है जनून
कौन मकसद को जनून बिन पहुंचा
आरजू है जनून और मुद्दा है जनून
तुमने आज तक नहीं समझा मतलब
मगर एक तरह से जिया है  जनून
**********
तुममें  शिकश्त और जिल्लत का अहसास बाकी
पता हमें तुममें  अभी नफरत का अहसास बाकी
कितना ही दिखावा करो अपनी सादगी का तुम
खूब तुममें देखा है  हिमाकत का अहसास बाकी
मुहब्बत से कहते हैं दौलत का कोई वास्ता नहीं
तुम्हारे दिल में अपनी दौलत का अहसास बाकी
कितना ही अपमान करो तुम बार बार ये हमारा
रहेगा हममें फिर भी कयामत का अहसास बाकी
हमारी शराफत को करदो बिल्कुल तार तार तुम
रणबीर को रहेगा ही शराफत का अहसास बाकी
*********
कई बार सोचता हूँ तो बस
सोचता ही रह जाता हूँ मैं
सड़क पर रहने वाले बचों की
बेमिशाल हिम्मत संकट का  दौर
फिर भी हंसी के पल चुरा लेना
इन बचों से ही सीखे कोई
उनका साहस उनकी जीवटता
देखकर अचरज होता है  मुझे
कई बार सोचता हूँ तो बस
सोचता ही रह जाता हूँ मैं
********
अब  सीख  लिया  तुमसे  मैंने नया तराना सीख लिया
औरों के कन्धों पर रख के बन्दूक चलाना सीख लिया
सच को झूठ झूठ को सच  तुरंत  बनाना सीख लिया
अपनी ही तस्वीर से मैंने तो ऑंखें  चुराना सीख लिया
अब  सीख  लिया  तुमसे  मैंने नया तराना सीख लिया  ||
पैसे के दम पे दुनिया में अब इठलाना सीख लिया
धर्म के नाम पर जनता को खूब लड़ना सीख लिया
अब  सीख  लिया  तुमसे  मैंने नया तराना सीख लिया  ||
भूल कर गाम अपना झूठे सपने सजाना सीख लिया
जीणा है तो भूलो अपने को नया फ़साना सीख लिया
अब  सीख  लिया  तुमसे  मैंने नया तराना सीख लिया  ||
सब कुछ दांव पर लगाकर पैसा कमाना सीख लिया
जैसा मौसम हो मैंने वैसा बजा बजाना  सीख  लिया 
अब सीख लिया तुमसे  मैंने नया तराना सीख लिया ||
********

तलछट की जनता

 जिन्दगी का सफ़र

स्कूल से आगे बढ़कर फिर
कालेज में जाना होगा इसके
सपने बहोत बार देखे थे मैंने
कोनसे कालेज में दाखिला हो
यह भी कई बार सोचा था मैंने
एक साल पहले सोचना शुरू किया
पहले दिन का पहनावा क्या होगा
हेयर स्टायल पर भी नजर डाली थी

क्या सायकिल पर ही कालेज जाना होगा

या फिर स्कूटर का जुगाड़ करेंगे

घर की हालत जुगाड़ की भी नहीं है

इसी उधेड़ बुन में गुजर जाता है

पूरा का पूरा दिन मेरा जुगाड़ पर

आखिर एक दिन पाँच सात लोग आये

आव भगत हुई मेरे से भी पूछा

कोनसी क्लास पास की है बेटी

दूसरा सवाल था कितने नंबर आये

नंबर बताये मैंने धीमे से ही सही

नजरें मुझे घूरती सी महसूस हुई

जैसे बकरे को घूरती हैं मारने से पहले

हर कसाई की नजरें और फिर हलाल

कर दिया जाता है बेचारा बकरा

मुझे क्या पता था कि मेरा भी

हलाल होने का वक्त आ गया है

हाँ एक महीने बाद ही मेरी शादी

कर दी गयी एक बेरोजगार के साथ

दो बेरोजगारों कि दुनिया के सपने

मैं नहीं देख पाई क्योंकि अँधेरे के

सिवाय कुछ दिखाई नहीं दी रहा था

भूखे घर कि आ गयी हम क्या करेँ ?

ये दिन देखने के लिए क्या छोरे

को जन्म दिया था ?

प्यार मोहबत बेहतर जिन्दगी

ये सब अतीत कि बातें थी

घर भी तंग सा दो ही कमरे

साथ में भैंस व बछिया का भी

सहवास रहता था चौबीस घंटे

समझ सकता है कोई भी कि

दो कमरों में छः सात सदस्यों के

परिवार का कैसे गुजारा होता है !

फुर्सत ही नहीं होती एक दूसरे के लिए

चोरों कि तरह मुलाकातें होती हैं हमारी

बस जीवन घिसट रहा है हमारा

एक दिन सोचा इस नरक से कैसे

छुटकारा मिले ?

मगर उसे ताश खेलने से फुर्सत कहाँ

घर खेत हाड़ तोड़ मेहनत और तान्ने

यही तो है जिन्दगी हमारी

हमारे जैसे करोड़ों युवक युवतियां हैं

कभी कभी जीवन लीला को ख़त्म

कर लेने का मन बनता है फिर

ख्याल आता है इससे क्या होगा

दो चार दिन का रोना धोना फिर खत्म

यह सिलसिला यूंही चलता रहेगा आगे

इस अँधेरे को कैसे ख़त्म किया जाये ?

कैसे रौशनी कि किरण हम तक भी

पहुँच सके यही तो यक्ष प्रश्न है

बहुत बार सोचा कई बार सोचा है

मगर रास्ता नजर नहीं आता है हमें

बस इसी कशमोकश में जीवन

किसी तरह गुजर रहा है हमारा

जीवन सरक रहा है हमारा !

पूजा पाठ बालाजी कि सेवा सब

कर के देख लिया मगर सब मन की

शांति की बात करते हैं कोई भी

रोटी और रोजगार की बात नहीं करता

आप ही बताओ क्या करेँ हम ?
******
मुझे लगता है कि उन्ही के मैदान में खेल रहे हैं हम
उन्हीं की शर्तों को आज भी देखो झेल रहे हैं हम

संस्कृति के नाम पर उनहोंने मेहनत छीनी हमारी
परम्परा के नाम पर अच्छे से खाल गयी है उतारी

हमारे नेताओं ने भी उनके मैदान में झोंक दिया रे
अपना मैदाने जंग नहीं पूरा अभी तयार किया रे

समझने की ताकत हैं अंगिन्नत ये दिमाग हमारे
कम्प्यूटर फेल हो जाते हैं बहुत बार देखो बेचारे

हमारी सोचने की ताकत को घुमा दिया है दोस्तों
अपने मैदान में आने का मन बना लिया है दोस्तों

अपनी लड़ाई अपने मैदान में लड़ने की ठान ली
समझो मालिकों ने हार शुरू हुई पक्का मान ली

इंकलाब तो आएगा ही नहीं कोई रोक पायेगा रे
इंसान का कब्ज़ा पूंजी पर फिर हो ही जायेगा रे

सबके लिए सब कुछ होगा नहीं भूख रहेगी यारो
मानवता की जीत होगी हैवानियत ये ढहेगी यारो

******
Please React
इस बेवफा सिस्टम से वफ़ा मांग रहे हैं
हमें क्या मालूम है हम खता  मांग रहे हैं
ये क़िस्मत  का खेल रचाया है इसी ने तो---
इसी से हम क़िस्मत क़ि दुआ  मांग रहे हैं
पूरा सच छिपा ये आधा  सच बताते हमको --
जहर घोला उसीसे साफ हवा मांग रहे हैं
रोजाना जो खेलता हमारे जज्बात के साथ--
सुख क़ि राही का उससे पाता मांग रहे हैं --
सुरग क़ि कामना में छिपी हुयी रणबीर--
अपने खुद क़ि ही हम चिता मांग रहे हैं 
*****
SUN JARA AUR KAH JARA
किसी पर भी तूं एतबार न कर

भावुकता में बर्बाद घरबार न कर

बात हैं बात का भरोसा क्या है
--
जाँ किसी पर निस्सार न कर

अमीर क़ि नजरें जाँ लेलेंगी--

इनसे कभी कोई करार न कर

बेवफा से वफ़ा नहीं होती है
--
जाने दे दिल को बेक़रार न कर

अमीर गरीब क़ि दुनिया है यह
--
झूठे वायदे हैं स्वीकार न कर

रणबीर एक दिन टूट जायेगा--

ख्वाब है ख्वाब से प्यार न कर |
*******
अन्दर और बाहर को समझना जरूरी है
न समझने की भी कईयों की मजबूरी है
अन्दर का मतलब हमारा अपना शरीर
बाहर का मतलब वातावरण की शमशीर
बाहर अन्दर को प्रभावित  करता बताते
अन्दर बाहर को प्रभावित करता जताते
अन्दर बाहर का आपसी क्या तालमेल
इसे समझने में हो ही जाता है घालमेल
अंदर बहुत छिपाता हमारी हकीकत को
फिर भी आ जाता बाहर कई मुशीबत को
******
बलात्कारियों का दबदबा चारों तरफ छा  रहा
रोजाना ब्लात्कार हो रहे समझ नहीं आ रहा
एक तरफ पेट में मारते जांच पड़ताल करके
महिला भ्रूण हत्या हरयाणा में गुल खिला रहा
शरीफ से शरीफ का दिमाग भी फिसल जाता
जब भी उसे मौका मिले शरीफ नहीं गवां रहा
औरत को दोषी ठहराने का झूठा चलन आज
हरयाणा में रोजाना दिन दिन बढ़ता जा रहा 
रिश्तेदार ठेकेदार  बने हमारी संस्कृति के देखो
बाप चाचा भाई पड़ौसी मुंह काला करवा रहा
पतन समाज का हो रहा नंबर वन हरयाणा में
नम्बर वन कहने में मेरा कलम तो घबरा रहा
*******
दो हजार तेरा का आधा बरस बीत गया 
सुधार कहाँ मंहगायी का दानव जीत गया 
भारत की अर्थ व्यवस्था चली गयी खाई मैं 
विकास दर बीते दस साल की नीची इकाई मैं 
औद्योगिक विकास दर की क्या बात बताऊं 
पिछ्ले बीस साल में सबसे नीचे गई दिखाऊँ 
बजट घाटा हमारी आज की चुनौती बड़ी है 
मोदी के बसकी नहीं आई सी यू में पड़ी है 
राजनीति दिशाभ्रम इसका कारण हैं बताते 
पूंजीवादी विकास दोषी ये बात क्यों छिपाते
********
अभी बहुत कुच्छ बाकी है इस तुम्हारी 
खुश्क दुनिया में 
हमारी मेहनत 
हमारी सच्चाई 
हमारी इंसानियत 
हमारी कुर्बानी
हमारी मोहब्बत 
हमारी शर्मो लिहाज 
हमारी भूख मरी
--------------
--------------
लंबी फहरिश्त है 
इस दुनिया को 
तबाह नहीं होने देंगे 
रणबीर
********
असमंजस
पता नहीं आज का जमाना किधर को जा रहा है ।।
सुबह कहीं शाम कहीं अगली सुबह कहीं पा रहा है ।।
नई तकनीक ने कब्ज़ा जमाया पूरे इस संसार पर
इंसान इंसान को दिन दिहाड़े नोच नोच खा रहा है ।।
दूसरों के कन्धों पर पैर रख कर आसमान छू रहे हैं
फ्री सेक्स और नशा आज नई पीढी पर छा रहा है ।।
दारू समाज के हर हिस्से में सम्मान पाती जा रही
अच्छा  खासा हिस्सा आज दारू पीके गाने गा रहा है।।
लालच फरेब धोखा धडी का दौर चारों तरफ छाया
नकली दो नंबर का इंसान हम सबको ही भा रहा है ।।
बाजार व्यवस्था का मौसम है मुठ्ठी भर मस्त इसमें
बड़ा हिस्सा दुनिया का आज नीचे को ही आ रहा है।।
भाई भाई के सिर का बैरी आतंक वाद बढ़ गया है
पुलिश और अफसर दायें बाएं से पैसे खूब बना रहा है।।
पूर्व के पूरे सिस्टम को दीमक खाती जा रही देखो
आज भ्रष्टाचार चारों तरफ डंक अपना चला रहा है।।
एक तरफ माल खड़े हुए दूजी तरफ टूटी सड़कें हैं
तरक्की का यह माडल दूरियां कितनी बढ़ा रहा है।।
अपने भार तले एक दिन मुश्किल होगा साँस लेना
तलछट की जनता जागेगी रणबीर उसे जगा रहा है।।

********
राखी का त्यौहार मन में उल्टा सवाल उठाता यारो
ना बराबरी का मसला लगता कहीं ये छिपाता यारो
करवा चौथ रख कर महिला लम्बी उम्र मांगती है
रक्षा करवाने को आपकी कलाई पर राखी बांधती है
कितना इमोशनल ब्लैक मेल सवाल उठाते डरता हूँ
मन में उठे सवाल पूछने की न मैं हिम्मत रखता हूँ
महिला का शोषण है इस जगह से सोच कर देखो
पुरुष प्रधान व्यवस्था को यारो खोल कर तो देखो
********
यही रफ़्तार रही ज़माने की ताऊ
तो इंसानों की जगह होंगे ये हाऊ
खुदगर्जी चुगलखोरी खुसामद की
मौज होगी हर चीज यहाँ बिकाऊ
अमेरिका और कोर्पोरेट छाया देखो
भारत बनाया इन्होंने बैल हिलाऊ
******
गरीब  परिंदा उड़ान में  है 
तीर अमीर की कमान में है
है डराने को मारने को नहीं
मरा तो अमीर नुकसान में है
जिन्दा रख कर लहू चूसना
अमीरों के दीन ईमान में है
खौफ ही खौफ है जागते सोते
लूट हर खेत खलिहान में है
मरने न देंगे न जीने देंगे
साजिश  पूंजी महान  में है
*******
आम जनता के लिए बेरोजगारी है
घरों से बेदखली है बड़े पैमाने पर
समाज कल्याण के प्रावधानों में
कटौतियां बखूबी से जारी यारो
सरकारी खजाने की कीमत पर
बैंकों और  वितीय कम्पनियों को
फिर बड़ा मुनाफा बटोरने का ये
मौका मिल रहा है भारत देश में
मेहनतकश की कीमत पर ही तो
मग़र कब तक एक दिन हिस्साब
तो माँगा जायेगा  पाई पाई का
*******
बड़ी मुश्किल से ये आंसू छिपाए हमने
हँसना चाहा झूठे ठहाके लगाये हमने
तुमको मालूम ये  शायद हो के ना  हो
तुम्हारे जाने के बाद आंसू बहाए हमने
प्यार किया हमने नहीं  छुपाया कभी
दिल के तराने थे तुमको सुनाये हमने
तेरे साथ इन्कलाब के जो नारे लगाये
यारो अब तलक नहीं हैं भुलाये  हमने
राह में साथ छोड़ गये अफ़सोस तो है
पल याद हैं वो जो संग बिताये हमने
जानते हैं आप हमें नहीं  भूल सकेंगे
एक अनुभव बस बिंदु दिखाए हमने
हादसा नहीं एक सच्चाई है ये प्यार
अफ़सोस है क्यों ये रास्ते भुलाये तुमने
*******
कुछ नए बन रहे  कुछ पुराने बने
हर कदम पर यहाँ कैदखाने बने
किस तरफ से चली गोलियां क्या पता
किन्तु हर बार हम ही निशाने बने
था क्या हमने सोचा ये क्या हो गया
हमें क्यों इस चमन से गिला हो गया
दिया जिसकी खातिर था हमने लहू
वही मौसमें गुल क्यों खफा हो गया

*****
हम तो काँटों को भी नरमी से पकड़ते हैं
मगर लोग हैं जो फूलों को बेदर्दी से मसलते हैं

********
उस दिल में और इस दिल में
फर्क सिर्फ इतना ही तो है
वो पत्थर है जो साबूत है
ये शीशा था जो टूट गया

******
असमंजस
पता नहीं आज का जमाना किधर को जा रहा है ।।
सुबह कहीं शाम कहीं अगली सुबह कहीं पा रहा है ।।
नई तकनीक ने कब्ज़ा जमाया पूरे इस संसार पर
माणस माणस को दिन दिहाड़े नोच नोच खा रहा है ।।
दूसरों के कन्धों पर पैर रख कर आसमान छू रहे हैं
फ्री सेक्स का फैशन आज नई पीढी पर छा रहा है ।।
दारू समाज के हर हिस्से में सम्मान पाती जा रही
अछ खासा हिस्सा आज दारू पीके  गाने गा रहा है।।
लालच फरेब धोखा धडी का दौर चारों तरफ छाया
नकली दो नंबर का इंसान हम सबको ही भा रहा है  ।।
बाजार व्यवस्था का मौसम है मुठ्ठी भर मस्त इसमें
बड़ा हिस्सा दुनिया का आज नीचे को ही आ रहा है।।
भाई भाई के सिर का बैरी आतंक वाद बढ़ गया है
पुलिश और अफसर दायें बाएं से पैसे खूब बना रहा है।।
पूर्व के पूरे सिस्टम को दीमक खाती जा रही देखो
आज भ्रष्टाचार चारों तरफ डंक अपना चला रहा है ।।
एक तरफ माल खड़े हुए दूजी तरफ टूटी सड़कें हैं
तरक्की का यह माडल दूरियां कितनी बढ़ा रहा है ।।
अपने भार तले एक दिन मुश्किल होगा साँस लेना
तलछट की जनता जागेगी रणबीर उसे जगा रहा है ।।

थोड़ी और बातें

 मत कहो की तुम्हे हमसे प्यार  हो गया 

गर था तो इतनी जल्दी   कहाँ खो गया
प्यार तो सोनी महीवाल का बताते यारो 
कचा  मटका भी उनके प्यार पे रो गया

*******
लेगे उडारी देखो
मियां बीबी रहगे ऐकले तीनो बालक लेगे उडारी देखो।
के के सपने संजोये थे जिब हुई ये संतान म्हारी देखो ।
बचपन उनका सही बीते करे दीन रात काले हमनै
क्याहें की परवाह करी ना बहा पसीना पाले हमनै
पढ़न खंदाये लाड लड़ाए तनखा खर्ची सारी देखो।
कदे रुसजया कदे कुबध करै यो छोरा सबते छोटा मेरा
बड़ी छोरी हुई सयानी शादी का दुःख था मोटा मेरा
बिचली छोरी का के जिकरा वा तिनुओं मैं न्यारी देखो।
एक अम्बाला दूजी सूरत मैं परिवार अपने चला रही
ये मोबाइल साँझ सबेरी हमते रोजाना ही मिला रही
बात करें दुनिया भर की उमर बीतती जारी देखो।
कई बार बहोत ऐकले मियां बीबी हम हो ज्यावें सें
झगडा करल्याँ छोटी बात पै लड़भीड़ सो ज्यावें सें
रणबीर सिंह आप बीती सै कलम मेरी पुकारी देखो।
******
सच छिपाए न छिपे
एक बार भोपाल से ग्वालियर
ट्रेन से अपने घर जा रहा था मैं
उसी ट्रेन में उसी डिब्बे में एक
लड़की पास की सीट पर बैठी थी
थोड़ी बातचीत शुरू हुयी तो पूछा
मेरे घर परिवार के बारे में उसने
बताया पिता हाई कोर्ट में जज मेरे
मम्मी सुप्रीम कोर्ट की वकील हैं
लड़की मन ही मन में हंसने लगी
समझ नहीं सका मैं उसका हँसना
अपनी सीट पर लेट सो गया मैं
घर पहुंचा तो देखा वही लड़की
मेरे घर पर मेरे से पहले पहुंची थी
देख मुझे बहुत जोर से हँसी लड़की
असल में मेरी मौसी की बिटिया
मैंने सफ़र में पहली बार देखा उसे
उसकी हँसी ने शर्मशार किया मुझे
क्योंकि ट्रेन में जो बताया था मैंने
सभी कुछ झूठा था था कथन मेरा
उस दिन के बाद मैंने कसम खाई
अब के बाद झूठ नहीं बोलूँगा मैं
बहुत हद तक कसम मैंने है निभायी
कभी कभी झूठ बोलता हूँ मैं तो
ट्रेन का नजारा जरूर याद आता
एक बार फिर मुझे याद दिला जाता
******
इम्तिहान
हमारा इम्तिहान लिया हर बार पास हुए
सब कुछ तुम्हारे पास फिर भी उदास हुए
पता है तुम्हारा तुम एक अमर बेल हो
रब राखा क़िस्मत का रचा रहे खेल हो
तुम्हारा अहम् और ये अहंकार
दिखाता अन्दर का पूरा अंधकार
अंधी गली में तुम बढ़ते जा रहे
अपनी मौत के श्लोक पढ़ते जा रहे
******
कारोबार नया साल हुआ
आज नए साल का मनाना भी एक कारोबार हों गया
बनावटी पन लटके झटके मस्त हमारा घरोबार हों गया
कैटरिना मलायका के ठुमके कैसी इन्तहा ये बेहयाई की
देखके पूरा हिंदुस्तान ख़ुशी से कितना ये सरोबर हों गया
एक फुटपाथ पर बैठा हुआ वह यह सब देख रहा है
दो चार लकड़ी इकठी करके हाथ अपने सेक रहा है
सामने दुकान पर देखी ठुमकों की झलक थोड़ी सी
घरवाली ने देख लिया तो सच मुच ही झेंप रहा है
नए साल का जश्न मनाकर आज मुंबई छाई देखो
ठिठुरे बचपन और जवानी ये गाँव की रुसवाई देखो
लड़की मारके पेट में हमने लूटी है वाह वाही देखो
शराब नशा और मस्ती ठुमकों की ये बेहयाई देखो
गला काट मुकाबला आज दुनिया में है छाया देखो
भाई का भाई दुश्मन इसने यहाँ पर है बनाया देखो
आखिर कहाँ जा रहे है हम जरा देर सोचो तो यारो
इंसानियत का चेहरा यहाँ पर किसने है चुराया देखो
******
हम और वो
मिला वो भी नहीं करते , मिला हम भी नहीं करते
गिला वो भी नहीं करते , शिकवा हम भी नहीं करते
किसी मौड़ पर टकराव हों जाता है अक्सर हमारा
रुका वो भी नहीं करते , ठहरा हम भी नहीं करते
*******
मेरी शादी से पहले
मेरी शादी से पहले परिवार ने
खूब पूछताछ छानबीन की थी
बहुत गुणवान लड़का है कोई
मांग नहीं हैं उनकी सीधे सादे
सैल पर दो एक बार बात की
सपनों के संसार में खो गए हम
बस झट मंगनी और पट ब्याह
महीना दो महीना बहुत यादगार
गुजर गया वक्त पता नहीं चला
फिर असली जिन्दगी से सामना
हुआ मेरा तो बस धडाम से गिरी
सोचा यह सब किससे साँझा करूँ ?
या फिर घुट घुट के मैं यूं ही मरूं
उसकी शिकायत कि माँ को मैं
बिल्कुल खुश नहीं रख पा रही हूँ
बहुत देर बाद समझ आया कि
खुश ना रहने का दिखावा करती माँ
मुझे प्रताड़ित करना फितरत ये
माँ की बनता चला गया समझो
बहुत कोशिश की मैंने तो दिल से
मगर तीन साल में परिवार पूरा
कलह का अखाडा सा बन गया
मेरी माँ (सास) तीन साल हुए हैं
मुझसे बोलती ही नहीं है कभी
पूरा परिवार बायकाट पर उतरा
ऐसे में पति देव भी अब तो
छोटी छोटी बात के बहाने ही
मुझ में कमियां देखने लगे हैं
मेरे परिवार की विडम्बना पर
मुझे रोना आता है कई बार
मैंने तो लव मेरेज भी नहीं की
न ही एक गौत्र कि गलती की है
न ही एक गाँव में बसाया घर
दहेज़ जैसा बना वैसा तो लाई मैं
मैं जीन भी नहीं पहनती कभी भी
नौकरी भी करती हूँ और घर भी
पूरी तरह सम्भालती हूँ फिर भी
यह सब क्यों हों गया बताओ तो
हमारे बीच कोई लगाव न बचा
बस ये लोग क्या कहेंगे हमको
इस अदृश्य भय के कारण ही तो
हम एक छत के नीचे जी रहे
छत एक है मकान एक है
पर घर नहीं है यह हमारा
बंद करती हूँ यहीं पर मैं किस्सा
वर्ना अब खुल जायेगा पिटारा पूरा
आज का दौर नाज्जुक दौर है
मैं दुखी हूँ तो पति खुश है
ऐसी बात नहीं मानती हूँ मैं
दुखी वे भी बहुत जानती मैं
मगर क्या समाधान है इसका ?
एक साल मैं अपने पीहर रही
वहां भी बोझ ही समझी गयी
सासरे में दूरियां और बढ़ी मेरी
कई बार सोचा अलग हों जाऊं
अलग होंकर क्या हांसिल होगा
शायद पति के बिना नहीं रह
सकती मैं अकेले अकेले कहीं पर
तलाक का लोड सोच कांप जाती
समझौता कर के जीने की सोची
पता नहीं ठीक हूँ या गलत मैं !!!
******
तीर सच्चाई के
हम तीर सच्चाई के रूक रूक के चलाते हैं
दीवाने हैं इसके औरों को दीवाना बनाते हैं
हम रखते हैं ताल्लुक सफरिंग दुनिया से
उसके तस्सवुर में हम खवाब जगाते हैं
रहना होशियार उनके छलकते जामों से
ये मय के बहाने से बस जहर पिलाते हैं
चलना सही राहों पर रख जान हथेली पर
लूटेरे है धर्म की आड़ में खूब लूट मचाते हैं
साईनिंग जाल साजी रचते रचते हम पर
हम हैं की अपने से दीवाने बनाना चाहते हैं
*******
कम उमर के बच्चे होते हैं बहोत सच्चे
उमर  ही ऐसी है करे ऐसी की तैसी है
उलटी सीधी बात मिलें  दोस्तों के हाथ
हारमोन का कसूर आकर्षण का दस्तूर
माँ बाप भी  चुप हैं ये तो अँधेरा घुप है
नासमझी नादानी नहीं सिर्फ हिन्दुस्तानी
दुनिया में ऐसा होता नासमझ इसे ढोता
इतने जालिम न बनो हद से आगे न तनों
********
मेरा कसूर
हमने दोनो ने मिलकर सोचा

जिन्दगी का सफ़र तय करेंगे

बहुत सुन्दर सपने संजोये थे
प्रेम का पता नहीं ये हरयाणा
क्यों पुश्तैनी दुश्मन बन गया
यह सब मालूम था हमको पर

प्यार की राहों पर बढ़ते गए

मेरे परिवार वाले खुश नहीं थेa

क्यों मुझे पता नहीं चला है

न तो मैंने एक गोत्र में की है
न ही एक गाँव में शादी मेरी
न ही दूसरी जात में की मैंने

तो भी सब के मुंह आज तक

फुले हुए हैं हम दोनों से देखो

प्यार किया समझा फिर शादी

ससुराल वाले भी खुश नहीं हैं

शायद मन पसंद गुलाम नहीं

मिल सकी जो रोजाना उनके

पैर छूती पैर की जूती बनकर

सुघड़ सी बहु का ख़िताब लेती

दहेज़ ढेर सारा लाकर देती ना

प्यार का खुमार काम हुआ अब

जनाब की मांगें एकतरफा बढ़ी

मैं सोचती हूँ नितांत अकेली अब

क्या हमारा समाज दो प्रेमियों के
रहने के लायक बन पाया यहाँ \

चाहे कुछ हो हम लोड उठाएंगे

मगर घुटने नहीं टिकाएंगे यारो

वो सुबह कभी तो आयेगी की
इंतजार में ये संघर्ष जारी रखेंगे
झेलेंगे इस बर्बर समाज के सभी
नुकीले जहरीले तीर छाती पर ही
जिद हमारी शायद यही है कसूर

बाढ़ सी आयी

 क्या कुछ नहीं बदला 

---------------------

उखल कहाँ अब

मुस्सल  कहाँ अब 

गौजी  कहाँ अब 

राबडी  कहाँ अब 

बाजरे की खिचडी 

बताओ कहाँ अब 

गुल्गले  कहाँ अब 

पूड़े  कहाँ अब 

सुहाली  कहाँ अब 

शकर पारे  कहाँ अब 

पीहल  कहाँ अब 

टींट कहाँ अब

हौले  कहाँ अब

मखन का टींड 

कहाँ दिखता अब 

छोटी  सी बात 

आलू ऊबाल कर 

आलू के परोंठे 

कहाँ चले गये 

पौटेटो चिप्स आये 

बीस गुना महंगे 

छद्म आधुनिकता 

पौटेटो चिप्स खाना 

फैशन बन गया 

बहुत कुछ बदला 

लम्बी फहरिस्त है |

******

बेचैनी जनता की बढ़ती जा रही 

समझौता संघर्ष करती आ रही 

डायलैक्टिस इसी को कहते हैं 

आज बेचैनी दुनिया पर छा रही 

डेमोक्रेसी ने आगे कदम बढाया है 

जनता ने कुछ अधिकार पाया है 

कितना ही भ्रष्टाचार बढ़ गया हो 

इसके खिलाफ विरोध जताया है 

उठती बैठती जीवण बिता रही है 

कई बार घन घोर अँधेरा हटाया है 

लूट के हथियार बदल लिए जाते हैं 

जनता ने एकता हथियार बनाया है

******

शादी की अल्बम

शादी वह मौका है जब दो दिल 

दो ख़ानदान अपने सुख के पलों को 

पूरे भरपूर अंदाज में जीते हैं यारो 

इसके गवाह होते हैं कई परिवार 

बहुत से मेहमान दूर से आते यारो 

वे सब अपनी हाजरी दर्ज करवाते

कैमरे की जद में सब कैद हों जाते

जब भी शादी का अल्बम पल्टा जाता

यादों के हम सब के दरीचे खुल जाते

पुरानी खुसबूएं फिर महकने लगती हैं

धुंधले पड़ गए चेहरे साफ दिखाई देते

तभी तो हम तुम सब अपनी अल्बम

देखकर मुस्कुरा उठते हैं मन ही मन

हर तस्वीर एक कहानी कहती है

जाने क्या क्या यादें ताजा होती

फूफा बुआ ताऊ ताई सब आये 

कुछ लोगों के बीच नई शादी का

आगाज भी बनता इन शादियों में

आप भी देखना एक बार फिर आज

अपनी शादी की एल्बम और

लिख देना अपने दिल की बात

अपनी डायरी के किसी पन्ने पर

*****

मेरा कसूर

हमने दोनो ने मिलकर सोचा 


जिन्दगी का सफ़र तय करेंगे 


बहुत सुन्दर सपने संजोये थे

प्रेम का पता नहीं ये हरयाणा

क्यों पुश्तैनी दुश्मन बन गया

यह सब मालूम था हमको पर 


प्यार की राहों पर बढ़ते गए 


मेरे परिवार वाले खुश नहीं थे, 


क्यों मुझे पता नहीं चला है 


न तो मैंने एक गोत्र में की है

न ही एक गाँव में शादी मेरी

न ही दूसरी जात में की मैंने 


तो भी सब के मुंह आज तक 


फुले हुए हैं हम दोनों से देखो 


प्यार किया समझा फिर शादी 


ससुराल वाले भी खुश नहीं हैं 


शायद मन पसंद गुलाम नहीं 


मिल सकी जो रोजाना उनके 


पैर छूती पैर की जूती बनकर 


सुघड़ सी बहु का ख़िताब लेती 


दहेज़ ढेर सारा लाकर देती ना 


प्यार का खुमार काम हुआ अब 


जनाब की मांगें एकतरफा बढ़ी 


मैं सोचती हूँ नितांत अकेली अब 


क्या हमारा समाज दो प्रेमियों के

रहने के लायक बन पाया यहाँ \ 


चाहे कुछ हो हम लोड उठाएंगे 


मगर घुटने नहीं टिकाएंगे यारो 


वो सुबह कभी तो आयेगी की

इंतजार में ये संघर्ष जारी रखेंगे

झेलेंगे इस बर्बर समाज के सभी

नुकीले जहरीले तीर छाती पर ही

जिद हमारी शायद यही है कसूर

*******

TO OPPOSE

कहना बहुत आसान है मुश्किल चलना सच्चाई पर

लहर के उल्ट तैर कर ही पहुंचा जाता अच्छाई पर

बुराई की ताकत को यारो देख कर डर जाते हम

इसके दबाव में बहुत सी गलती भी कर जाते हम

आका बैठ के हँसते रोजाना फिर हमारी रुसवाई पर

मेहनत हमारी की अनदेखी रोजाना हो रही दोस्तो

चेहरे की लाली हम सबकी रोजाना खो रही दोस्तो

कहते वो हमको बेचारा जो जीते हमारी कमाई पर

बीज है खाद और खेत भी इससे फसल नहीं उगती

फसल उगती है तब यारो जब मेहनत हमारी लगती

महल बने ये सभी तुम्हारे हम सब की तबाही पर

******

सब कुछ बहता जा रहा है 

एकाध खड़ा रम्भा रहा है 

सफेद धन ढूंढें मिलता यहाँ 

काला धन सब पे छा रहा है 

गंभीरता शिकार हुई उतावलेपन की 

मानवता शिकार हुई शैतानियत की 

इमानदारी शिकार हुई बेईमानी की 

वो शिकारी हैं और हम शिकार उनके 

खेल पूरे यौवन पर है जीत उनकी है 

पर डर सता रहा है उनको क्योंकी 

जीत कर भी हारेंगे ही अम्बानी जी 

हार कर भी जीत तो हमारी ही होगी 

क्योंकी मानवता इंसानियत गंभीरता 

ये तो हमारे पास ही हैं और रहेंगी भी

******

प्यार का तोफा 

एक लड़की ने एक लड़के से प्यार किया 

लड़के ने उसे बलात्कार का उपहार दिया 

इतने मेंभी सबर नहीं उस वहसी को आया 

अपने चार मुसटन्ड़ों को था साथ में लाया 

उन्होंने भी बारी बारी मुंह किया था काला 

गिरती पड़ती ताऊ के घर पहुँची थी बाला 

ताऊ को  बाला ने सारी हकीकत बताई थी 

ताऊ ने भी वह हवस का शिकार बनाई थी 

माँ बाप ने जाकर बाला को छुड वाया था 

पुलिस में हिम्मत कर केस दर्ज कराया था

गाँव के कुछ नौजवानों ने आवाज उठाई थी 

पाँचों की  और साथ ताऊ की जेल कराई थी 

आज भी जेल में पैर पीट रहे हैं सारे के सारे 

क्या हुआ समाज को हवस ने हैं पैर पसारे

******

अभी तो शुरुआत है

लालच खुदगर्जी ये 

हमें शैतान बनायेंगी 

जरा संभल के !!!!! 


हमारी इंसानियत को 

हवानियत में तब्दील 

करने के अथक प्रयास 

किये जा रहे हैं दोस्तों 

अबतोसंभलना ही होगा 


जितना समझा दुनिया को 

उतना दुःख बढ़ता गया मेरा 

कि इतना भेदभाव क्यूं है 

क़िस्मत का ये जुमला तेरा 

मुझे सबसे बड़ा हथियार लगता 

इस भेदभाव के असली कारणों 

को छिपाने का !!!!!!!!!!!!

*********

एक लड़की ने साहस किया और आवाज उठाई 

बदतमीज गुरु जी ने अपनी बदनीयत दिखाई 

कुछ लडकीयों ने साहस किया और भीड़ गयी 

गुरु जी की सरेआम की सबने मिल कर पिटाई 

केस दर्ज होने जा रहा था उस गुरु के खिलाफ 

लड़की के बाप ने बीच में आकर के  खेल रचाई 

पैसे लेकर केस बिगड़ दिया गुरु छुट गया साफ़

यह कहानी नही हकीकत है आप तक पहुंचाई 

कहाँ जा रहे हैं हम समझ नहीं पा रहा दोस्तों 

एक घटना नहीं है ऐसी घटनाओं की बाढ़ आयी

कुछ काम की बातें हैं

 कैसा अजीब नजारा

कैसा अजीब नजारा देह मेरी पर हल्दी बीरू के नाम की
कैसा अजीब नजारा हथेली मेरी मेहंदी बीरू के नाम की
कैसा अजीब नजारा सिर मेरा पर चुनरी बीरू के नाम की
कैसा अजीब नजारा मांग मेरी पर सिन्दूर बीरू के नाम की
कैसा अजीब नजारा माथा मेरा पर बिंदी बीरू के नाम की
कैसा अजीब नजारा नाक मेरी पर नथनी बीरू के नाम की
कैसा अजीब नजारा गला मेरा मंगल सूत्र बीरू के नाम की
कैसा अजीब नजारा कलाई मेरी चूड़ियाँ बीरू के नाम की
कैसा अजीब जमाना ऊँगली मेरी अंगूठी बीरू के नाम की
कैसा अजीब जमाना कुछ भी तो नहीं है मेरा मेरे नाम का
चरण वन्दना करूँ सदा सुहागन आशीष बीरू के नाम का
करवा चौथ व्रत मैं करूँ  पर वो भी तो बीरू के नाम का
बड़मावस व्रत मैं करती पर वो भी तो बीरू के नाम का
कोख मेरी खून मेरा दूध मेरा और नीरू बीरू के नाम का
मेरे नाम के साथ लगा गोत्र भी मेरा नहीं बीरू के नाम का
हाथ जोड़ अरदास सबसे बीरू के पास क्या मेरे नाम का
रणबीर
6.7.2015
*******
अगले पिछले का चक्कर
अगले पिछले के चक्कर में अबका हिसाब बिगाड़ लिया
टिकवा पथरों पर माथे हमारे भक्तों ने बिठा जुगाड़ लिया
इसमें भोगा वो पिछले का अब किया वो मिलेगा अगले में
इसकी कोई जगह नहीं है सार सोच कर लिकाड़ लिया
कर्म करो फल की चिंता ना करो कभी से इसे मानते आये
अडानी अम्बानी जैसों ने गीता से क्यों खिलवाड़ किया
अन्धविश्वाशों का हुआ है क्यों बहुत प्रचार प्रसार यहाँ पर
विज्ञान ने अंधविश्वासों का आज पूरा नकाब उघाड़ दिया

****
मान सम्मान नहीं मिलता,दिल का फूल नहीं खिलता
मेरा विश्वास रोज हिलता, यह सब कैसे समझाऊँ मैं ||
भाई का भाई दुश्मन लड़की महफूज नहीं घर बार में
पैसा छा  गया चारों और खुद गरज बेगैरत संसार में
गरीब मरें बिना दवाई क्यों , बच्चे रहें बिना पढ़ाई क्यों
अम्बानी लूटें हैं कमाई क्यों , यह सब कैसे समझाऊँ मैं ||
हमारी इज्ज़त  पर डाका रोजाना सफेदपोश डाल रहे
दबाते हैं हर तरह से मग़र उठ फिर भी सवाल रहे
अमीर गरीब की खाई है , देती बढ़ी हुई दिखाई है
काले धन धूम मचाई है , यह सब कैसे समझाऊँ मैं ||
खुदगर्जी धोखे बजी का बाजार बहुत गरम हुआ है
हुए सरमायेदार लालची जमाना बहुर बेशर्म हुआ है
सच पिटता बीच बाजार , फैला है कितना भ्रस्टाचार
क्यों लूट के खाते ठेकेदार ,यह सब कैसे समझाऊँ मैं ||
नंबर वन की चीज मिलनी बिल्कुल भी आसान नहीं है
नंबर दो में जो चाहो लो कुछ कहता भगवान नहीं है
आत्म  सम्मान हम पाएंगे ,तराने आजादी के गायेंगे
हम नया भारत बनायेंगे ,यह सब कैसे समझाऊँ मैं ||
*****
ऊट पटांग
पुलिस तुम्हारी फ़ौज तुम्हारी
मीडया तुम्हारा कोर्ट बीचारी
जनता द्वारा जनता के लिए
चुनी हुई ये सरकार हमारी
जनतंत्र का झुनझुना पकडाया
कार्पोरेट की करे है ताबेदारी
मसला इस या उस नेता का  नहीं
जनतंत्र की पोल खुल गयी सारी
कैसे मजबूत हो जनतंत्र भारत का
कैसे जनता की बढे हिस्सेदारी
सवाल आया है तो जवाब भी
ढूंढेगी मिलके ये जनता सारी
******
ranbir dahiya - October 4, 2009
दोहरापन
दोहरा पन जीवन का हम को अन्दर से खा रहा |

एक दिखे दयालु दूसरा राक्षस बनता जा रहा |

चेहरों का खेल चारों तरफ दुनिया में फैल रहा

मुखौटे हैं कई तरह के कोई पहचान ना पा रहा |

सफेद मुखौटा काला चेहरा काम इनके काले हैं,

बिना मुखौटे का तेरा चेहरा नहीं किसी को भा रहा |

कौनसा मुखौटा गुजरात में करतब दिखा रहा ये

जनता को बहला धर्म पे कुरसी को हथिया रहा |

धार्मिक कट्टरता का चेहरा प्यारा लगता क्यों है

मानव से मानव की हत्या रोजाना ही करवा रहा |

कौन धर्म कहता हमें कि घृणा का मुखौटा पहनो,

खुद किसकी झोंपड़ी में आग खुदा जाकर लगा रहा |

राम भी कहता प्यार करो दोहरेपन को छोड़ दो अब

रणबीर सिंह भी बात वही दुजे ढंग से समझा रहा |

CHALE KHETON KI AUR

कुछ बातें काम की

 


******
गरीब और गरीब हो गये अमीर के कहने क्या
रोटी नहीं नसीब मुरारी देखे उनके गहने क्या
उनके तो हैं सूट सुपारी हम बताओ पहने क्या
देख के हाल सारा आंसू तुम्हारे ना बहने क्या
****
रोने से किसी को कभी पाया नहीं जा सकता
खोने से किसी को भुलाया नहीं जा सकता
वक्त तो  मिलता है जिंदगी बदलने के लिए
मगर जिंदगी छोटी है वक्त बदलने के लिए
****
आज रास्ते बदल लिए मौका परस्ती दिखलाई
पन्द्रह साल तक तुमने कदम से कदम  मिलाई
चुनौती ज्यादा गंभीर आज जब सामने है आयी
भूल गए वो इंकलाबी नारे नकली कुर्सी है भाई
******
इंकलाब छुपा रखा है  इन पलकों मे ही
पर इनको ये बताना ही  तो नहीं आया,
संकट के वक्त लाल हो जाती ऑंखें पर ,
गरीब का दर्द दिखाना ही तो  नहीं आया
****
ये रिश्ते काँच की तरह होते है,
टूट जाए तो चुभते है अंदर तक
इन्हे संभालकर हथेली पर यारो
क्योकि इन्हे टूटने मे एक पल
और बनाने मे बरसो लग जाते हैं
*****
एक क्रोधित  हुए दिल का  आगाज़ मुझे कहिए
सुर जिसमें सब क्रान्ति के, वो साज़ मुझे कहिए
मैं कौन हूँ क्या हूँ  मैं किसके लिए ज़िंदा हूँ यारो
वंचित और दमित की एक आवाज  मुझे कहिए
******
मेरे अल्फाज़ों को झूठ ना समझना यारो
असल में ही चाहता समाज बदलना यारो ,
जी रहा हूँ ईमानदारी का दामन  थाम कर,
नहीं बदल पाऊँ तो बेवफा मत समझना..
****
दोस्ती फूल से करोगे तो महक जाओगे
सावन से करोगे तो जरूर भीग जाओगे
सूरज से करोगे तो जरूर जल जाओगे
हमसे करोगे तो जरूर "बिगड़"जाओगे
******
ए दोस्तों कभी हमको तुम भुला ना देना
इस हँसते हुए चेहरे को तुम रुला ना देना
कभी किसी बात पर खफा हो भी जाओ
मुझ से दूर होकर जुदाई की सजा ना देना
*****
उलटे सीधे धंधे करते डर नहीं थारै घळणे का
सब कुछ छोड़ कै जाना साथ कुछ ना चळणे का
बाजार मैं आज सब किमैं  बिकता पाया देखो
इसनै पीस्से का रिश्ता हर घर पहोंचाया देखो
मानवता को नचाया देखो फूल इंका ना खिळणे का ।
सब कुछ छोड़ कै जाना साथ कुछ ना चळणे का
त्याग प्रेम की भावना आज ये जमा सुखा दई रै
आपसी आव भगत भी या पढ़ण बिठा दई रै
ईमानदारी रुआ दई रै यो संकट ना टळणे का ।
सब कुछ छोड़ कै जाना साथ कुछ ना चळणे का
पीसा चाहिए बेशक काला रास्ते करे काले रै
पूरी दुनिया पै छाया अपने चमचे घने पाले रै
बद राजनीत घर घाले रै खेल रचाया दलणे का।
सब कुछ छोड़ कै जाना साथ कुछ ना चळणे का
रिश्ते नाते बिगाड़ दिए यो व्यभिचार फैला दिया
चोरी जारी और डकैती पूरा समाज हिला दिया
फासिज्म याद दिला दिया रणबीर ना फ़लणे का ।
सब कुछ छोड़ कै जाना साथ कुछ ना चळणे का
****
हम सब किधर जा रहे हैं जरा सोचो तो सही
हम सब क्या बना रहे हैं जरा सोचो तो सही
सार्वभौमिक शिक्षा पर अब हमला बोल दिया
कैसी शिक्षा ला रहे हैं जरा सोचो तो सही
स्वास्थ्य भी प्राइवेट सेक्टर को सौंपा जा रहा 
पाकिट खर्च बढ़ा रहे हैं जरा सोचो तो सही
भूख बेरोजगारी पूरे देश में आज बढ़ाई देखो
देश विश्वगुरु बना रहे हैं जरा सोचो तो सही
समाधान सबका कंधों पे कावड़ लाद दिये
असली रास्ता छिपा रहे हैं जरा सोचो तो सही
जात धर्म पर बांट रहे बहुविविधता पर हमला
आज धर्मांधता फैला रहे हैं जरा सोचो तो सही
*****
76वें आजादी दिवस पर एक तस्वीर यह भी है मेरे देश महान की कि जहाँ ---
1 देश में शिक्षण संस्थानों से ज्यादा धार्मिक स्थल हैं
2 देश में गाय दूध की जगह वोट देती है
3 देश के बच्चों के हाथ में कलम की बजाय झूठे बर्तन हैं
4 देश का शिक्षक अध्ययन की जगह घर घर जाकर जनगणना , आर्थिक गणना और मतदाता सर्वे करता है
5 देश का अन्नदाता कर्ज में डूब कर आत्महत्या कर रहा है
6 देश में शिक्षा और स्वास्थ्य बाजार की वस्तु हैं
7 देश में मजदूर की मज़दूरी और किसान की उपज का भाव बढ़ाने में तकलीफ होती है
8 देश में नेताओं का वेतन एक मिनट में बढ़ जाता है
9 देश की जनता हाथ जोड़ कर नेताओं के सामने गिड़गिड़ाती है
10 देश में धर्म ,जाति, सम्प्रदाय,लिंग और गोत्र के नाम पर पहचान की राजनीति होती है
11 देश के नेताओं के लिए शिक्षा, उम्र और चरित्र का कोई पैमाना नहीं है
  *********** उस लोकतांत्रिक देश का भविष्य क्या होगा-------- ?
****
76वें आजादी दिवस पर एक तस्वीर यह भी है मेरे देश महान की कि जहाँ ---
1 देश में शिक्षण संस्थानों से ज्यादा धार्मिक स्थल हैं
2 देश में गाय दूध की जगह वोट देती है
3 देश के बच्चों के हाथ में कलम की बजाय झूठे बर्तन हैं
4 देश का शिक्षक अध्ययन की जगह घर घर जाकर जनगणना , आर्थिक गणना और मतदाता सर्वे करता है
5 देश का अन्नदाता कर्ज में डूब कर आत्महत्या कर रहा है
6 देश में शिक्षा और स्वास्थ्य बाजार की वस्तु हैं
7 देश में मजदूर की मज़दूरी और किसान की उपज का भाव बढ़ाने में तकलीफ होती है
8 देश में नेताओं का वेतन एक मिनट में बढ़ जाता है
9 देश की जनता हाथ जोड़ कर नेताओं के सामने गिड़गिड़ाती है
10 देश में धर्म ,जाति, सम्प्रदाय,लिंग और गोत्र के नाम पर पहचान की राजनीति होती है
11 देश के नेताओं के लिए शिक्षा, उम्र और चरित्र का कोई पैमाना नहीं है
  *********** उस लोकतांत्रिक देश का भविष्य क्या होगा-------- ?
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दिल की बात दिल से

हमने तो बस निभा दी किसी तरह ईमानदारी यहां
तुमने तो बस दबा दी किसी तरह ईमानदारी यहां
स्टेज पर मशवरे देना बड़ा आसान है सब कहते
मगर जीवन में धारणा बड़ा मुश्किल कहते रहते
करनी कुछ कथनी कुछ सारी उम्र झूठ ढोते देखे
ऊपर से प्यार मुलाहजा वैसे जहर बीज बोते देखे
जब मैडीकल में दाखिल हुए समाज सेवा इरादा था
हमें सिखाया उसमें अपनी सेवा का भाव ज्यादा था
मैडीकल में भी लालच बहुत गये थे दिखाये हमको
पैसा कमाओ मौज उडाओ यही मंत्र सिखाये हमको
बाकी समाज से अलग मैडीकल ऐसा समझा जाता
जीने मरने के बीच का जीवन इन्सान यहां बिताता
मरीजों से ही सीखा मैने ये इलाज हर बीमारी का
अब सर्जन बन कर कैसे रुप धारुं मैं व्यापारी का
यह भी अच्छा ही हुआ माहिर सर्जन न बन पाया
कई माहिर सर्जनों ने पैसे के पीछे ईमान ही गंवाया
दिखावटी ईमानदारी का लबादा कुछ ने बात बनाई
हमारी ईमानदारी की कसम लोगों ने कई बार उठाई
चीफ विजीलैंस आफिसर की चुनौती भरी जिम्मेदारी
इस चुनौती के दांव पर सच्चाई ये चाही खरी उतारी 
हमने समाज सेवा पक्ष जीवन में पूरी तरह अपनाया
वी आर एस ली चाहते समाज सेवा को आगे बढ़ाया
आप सबका सहयोग चाहिये यही है अरदास साथियो
समाज सुधार का ही एजैंडा रहेगा आस पास साथियो
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मुझे लगता है कि उन्ही के मैदान में खेल रहे हैं हम
उन्हीं की शर्तों को आज भी देखो झेल रहे हैं हम

संस्कृति के नाम पर उनहोंने मेहनत छीनी हमारी
परम्परा के नाम पर अच्छे से खाल गयी है उतारी

हमारे नेताओं ने भी उनके मैदान में झोंक दिया रे
अपना मैदाने जंग नहीं पूरा अभी तयार किया रे

समझने की ताकत हैं अंगिन्नत ये दिमाग हमारे
कम्प्यूटर फेल हो जाते हैं बहुत बार देखो बेचारे

हमारी सोचने की ताकत को घुमा दिया है दोस्तों
अपने मैदान में आने का मन बना लिया है दोस्तों

अपनी लड़ाई अपने मैदान में लड़ने की ठान ली
समझो मालिकों ने हार शुरू हुई पक्का मान ली

इंकलाब तो आएगा ही नहीं कोई रोक पायेगा रे
इंसान का कब्ज़ा पूंजी पर फिर हो ही जायेगा रे

सबके लिए सब कुछ होगा नहीं भूख रहेगी यारो
मानवता की जीत होगी हैवानियत ये ढहेगी यारो
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सुबह तैयार हो अस्पताल को चला
हरेक इंसान भागता हुआ सा मिला
परेशन सी ये सूरत भागती सी टाँगें
किसी का भी चेहरा दिखा न खिला 
सड़कों पर ये कारें सरपट दौड़ रही 
स्कूटर आगे निकालें लग हौड  रही
पैदल लड़के आदमी औरत ये बच्चे
सबको वे लड़कियां पीछे छोड़ रही
लंगड़ाते मरीज संबंधी का है सहारा
धक्के खाता इधर उधर को बेचारा
कभी यहाँ लाइन कभी वहां लाइन
उसे नहीं मिलता कोई छोर किनारा
क्या इलाज इस भीड़ की बीमारी का
धक्के मुक्के खेल देखो लाचारी का
गरीब दुखी ये कर्मचारी दुखी भीड़ से
पहोंच रिश्वत का तमाशा महामारी का
सुबह शुरू किया साँस नहीं  आया भाई
मरीजों की कतार ने खूब  थकाया भाई 
हाली भी हलाई के बाद रेस्ट कर लेता
डेढ़ बजे तक दबाव मेरे पे  बनाया भाई
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चौका--तुक्का
जनतंत्र में जनता कईबार,झुका देती अलंबरदारों को
संगठित जनता हिला देती,बड़ी से बड़ी सरकारों को
अलंबरदार जूटे हैं फिर, इसे जात धर्म पर बाँटने को
छिपायें ताकि करतूतें छूट की, दी हैं जो साहूकारों को
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चौका--तुक्का
जनतंत्र में जनता कईबार,झुका देती अलंबरदारों को
संगठित जनता हिला देती,बड़ी से बड़ी सरकारों को
अलंबरदार जूटे हैं फिर, इसे जात धर्म पर बाँटने को
छिपायें ताकि करतूतें छूट की, दी हैं जो साहूकारों को
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नीलाम कुछ इस कदर हुए , बाज़ार_ए_वफ़ा में हम आज ,
बोली लगाने वाले भी वो ही थे , जो कभी झोली फैला कर माँगा करते थे  !
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असमंजस
पता नहीं आज का जमाना किधर को जा रहा है ||
सुबह कहीं शाम कहीं अगली सुबह कहीं पा रहा है ||
नई तकनीक ने कब्ज़ा जमाया पूरे इस संसार पर
माणस माणस को दिन दिहाड़े नोच नोच खा रहा है ||
दूसरों के कन्धों पर पैर रख कर आसमान छू रहे हैं
फ्री सेक्स का फैशन आज नई पीढी पर छा रहा है ||
दारू समाज के हर हिस्से में सम्मान पाती जा रही
अछ खासा हिस्सा आज दारू पीके  गाने गा रहा है||
लालच फरेब धोखा धडी का दौर चारों तरफ छाया
नकली दो नंबर का इंसान हम सबको ही भा रहा है  ||
बाजार व्यवस्था का मौसम है मुठ्ठी भर मस्त इसमें
बड़ा हिस्सा दुनिया का आज नीचे को ही आ रहा है ||||
भाई भाई के सिर का बैरी आतंक वाद बढ़ गया है
पुलिश और अफसर दायें बाएं से पैसे खूब बना रहा है||
पूर्व के पूरे सिस्टम को दीमक खाती जा रही देखो
आज भ्रष्टाचार चारों तरफ डंक अपना चला रहा है ||
एक तरफ माल खड़े हुए दूजी तरफ टूटी सड़कें हैं
तरक्की का यह माडल दूरियां कितनी बढ़ा रहा है ||
अपने भार तले एक दिन मुश्किल होगा साँस लेना
तलछट की जनता जागेगी रणबीर उसे जगा रहा है ||
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भक्त लोग
इतिहास को तो मिथ बनाने चले हैं लोग
महाकाव्य को इतिहास बताने चले हैं लोग
विज्ञान को रूढ़िवाद सिखाने चले हैं लोग
महानता का कैसा पर्व मनाने चले हैं लोग
पाकिस्तान से व्यापार बढ़ाने चले हैं लोग
चीन से लेनदेन अरबों कमाने चले हैं लोग
जात मजहब पर हमें लड़ाने चले हैं लोग
मनुवाद को फिर से जमाने चले हैं लोग
महिलाओं को चीज दिखाने चले हैं लोग
वंचित को हर रोज बहकाने चले हैं लोग
बहुविविधता देश की मिटाने चले हैं लोग
संविधान का मख़ौल उड़ाने चले हैं लोग
क्या और क्यों पे ताले लगाने चले हैं लोग
रणबीर
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मुझे लगता है कि उन्ही के मैदान में खेल रहे हैं हम
उन्हीं की शर्तों को आज भी देखो झेल रहे हैं हम
संस्कृति के नाम पर उनहोंने मेहनत छीनी हमारी
परम्परा के नाम पर अच्छे से खाल गयी है उतारी
हमारे नेताओं ने भी उनके मैदान में झोंक दिया रे
अपना मैदाने जंग नहीं पूरा अभी तयार किया रे
समझने की ताकत हैं अंगिन्नत ये दिमाग हमारे
कम्प्यूटर फेल हो जाते हैं बहुत बार देखो बेचारे
हमारी सोचने की ताकत को घुमा दिया है दोस्तों
अपने मैदान में आने का मन बना लिया है दोस्तों
अपनी लड़ाई अपने मैदान में लड़ने की ठान ली
समझो मालिकों ने हार शुरू हुई पक्का मान ली
इंकलाब तो आएगा ही नहीं कोई रोक पायेगा रे
इंसान का कब्ज़ा पूंजी पर फिर हो ही जायेगा रे
सबके लिए सब कुछ होगा नहीं भूख रहेगी यारो
मानवता की जीत होगी हैवानियत ये ढहेगी यारो
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मेरे चाहने से दुनिया बदलती तो कब की बदल चुका होता
मेरी चाहत से समाज सुधरता तो कब का सुधर चुका होता
यही तो बड़ा सवाल है कि सब चाहते हैं समाज सुधर जाये
मगर दिन बी दिन ख़राब क्यों होती हम सबकी नजर जाये
गढ़ दिए हैं हमारे सिर पर नैतिकता के मापदण्ड यहाँ पर
नहीं बताता कोई ये मापदंड पूरे हुए हैं आज तक कहाँ पर
जदोजहद जारी है शासनतंत्र भारी है लूट हुई हमारी देखो
हमारी जूती हमारे ही सिर पर मार रहे हैं बड़े व्यापारी देखो
पूंजी का शब्द शायद सुना होगा इस पूंजी ने कहर ढाया है
मानव को मानव का दुश्मन बना कितना जहर फैलाया है
पूंजी का चरित्र समझ गया मानव तो जीवन सुधार पायेगा
वरना इसके चक्रव्यूह में और भी गहरे फंसता ही जायेगा
पूंजी मुनाफे के लिए हमें आपको सबको लूटती है यहां पे
भारी मुनाफे के वास्ते तो मालिक को भी चूटती है यहाँ पे
इस लूट का सच छिपाने को जबरदस्त संस्कृति जाल लाई
बाँट दिए इंसान जातों गोतों और नस्लों की हैं ढाल बनाई
पूंजी का खेल मार्क्स ने समझने समझाने का प्रयास किया
सरप्लस पूंजी का कन्सेप्ट मुनाफे का भी पर्दाफास किया
पूंजी छा गई इंसान पर कुछ जगह इसपे इंसान छाया देखो
किसका किस पर कब्जा हो घमासान इसने मचाया देखो
पूँजी और इंसान की जंग जारी ये इंसान से हैवान बनाती
हैवान पर करके पूंजी सवारी पूरे ही समाज को ये खाती
रणबीर
4.8.2015
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अब हालत बदलने होंगे ग़म का बोझ उठाने वाले |
वरना देते ही जायेंगे दुःख दिन रात ज़माने वाले |
मजलूमों को बाँट रहे हैं जुल्म का खेल रचाने वाले
इस साजिस ही में शामिल हैं वे नफरत फ़ैलाने वाले |
दुनिया पर कब्ज़ा है जिन का वो उस के हक़दार नहीं हैं
उनसे अब कब्ज़ा छीनेंगे  सब का बोझ उठाने वाले |
पत्थर दिल लोगों से अपने जख्मों को ढांपे ही रखो
खुद को हल्का कर लेते हैं सबको जख्म दिखाने वाले |
कोई किसी का साथ निभाए इतनी फुर्सत ही किसको है
अफसानों में मिल सकते हैं अब तो साथ निभाने वाले
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ज़माने की हकीकत से रूबरू होना आसान कहाँ
ज़माने का स्तर कहीं और तय होता उनमान कहाँ
गीता का सार महज मजदूर किसान के लिए यारो
हरित क्रांति लाओ ताज बनाओ खुद की छान कहाँ
अडाणी अम्बानी को फल की चिंता सबसे पहले
कर्म बाद में करते खुद करते गीत का गुणगान यहाँ
हमें बहकाते पिछले का इस जन्म में भुगतना है
इसका अगले में अगले पिछले की पहचान कहाँ
नहीं बताते जो है इसी जन्म में है बाकि सब धोखा
जात धर्म पर बाँट दिया बचा हममें है इंसान कहाँ
रातों रात अडाणी कैसे बनें बहुतों की यही सोच
गरीब के लिए झूठे वायदे पूरे हुए हैं अरमान कहाँ
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गर मेरे  बर्बाद  होने  से तुम्हारा आबाद होना जुड़ा है 
तो आज बन्दा तयार होके  तुम्हारे सामने देखो खड़ा है
कुछ भी कर लो मगर बेवफाई का ख़िताब न दे देना तुम
ईमानदारी और वफादारी के लिए ही तो बन्दा लड़ा है

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सोचना कैसे हो --
1. लिंग असमानता कैसे खत्म हो
2. जात-पात पर आधारित असमानता कैसे खत्म हो
3. अवसाद से छुटकारा कैसे हो
4. बेरोजगारी का खात्मा कैसे हो
5. निर्ममता का खात्मा कैसे हो
6.अन्धविश्वास , मूर्खता का खात्मा कैसे हो
7. परजीवी वर्गों का खात्मा कैसे हो
8. ग्रामीण गरीबी का खात्मा कैसे हो
9. शहरी गन्दी बस्तियों का खात्मा कैसे हो
10.आर्थिक असमानता का खात्मा कैसे हो
11. धार्मिक कट्टरता का खात्मा कैसे हो
12. बेईमानी का खात्मा कैसे हो
13. नशों का खात्मा कैसे हो
14. व्यक्तिवाद का खात्मा कैसे हो
15. शिथिलता का खात्मा कैसे हो
16. आलस्य का खात्मा कैसे हो

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मेरा स्वतंत्र वो वजूद
मेरे से किसने पूच्छा था कि वहां
पैदा होना भी चाहता हूँ मैं कि नहीं
वो घर वो गाओं वो जिला वो प्रदेश
वो देश वो मजहब चिपक से गए
बिना कभी पूच्छे मेरे वजूद के साथ
बहुत बार अहसास करवाया जाता
मेरे इस प्रकार के अनचाहे वजूद का
मेरी मानवता मेरा स्वतंत्र वो वजूद
पता नहीं कहाँ खो गया ढूंढ रहा हूँ
ढूंढ नहीं पाया अभी तक तो शायद
कभी इसे ढूंढ भी पाऊंगा कि नहीं
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एक नया ट्रेंड
आज की मोहब्बत फेसबुक और व्हाट्सअप हो गई हैं बताते
धीरे - धीरे दोस्ती और फिर मोहब्बत का अहसास हैं  जताते
फिर नम्बरों का आदान प्रदान होता पूरी रात जागके बिताते
मोहब्बत के पाठ पढ़े जाते हैं ,वादों का सिलसीला हैं  चलाते  
और फिर मॉल में मुलाकातें शुरू हो हाँ में हाँ कुछ रोज मिलाते
कुछ दिन का सिलसिला फिर किसी बात पर तकरार बनाते
और फिर अन्फ्रेंड का बटन दब जाता है सब कुछ फिर भुलाते
और फिर एक नया चेहरा उस पर लाइक कर  नया प्यार रचाते
सिलसिला जारी है चार के बाद पांचवें प्यार से फेरे फिर घुमाते 
दो तीन साल चलता मगर  फिर तलाक का परचम  उठाते
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SOME OF THE FRIENDS REQUESTED TO WRITE IN HINDI BECAUSE THEY DONOT UNDERSTAND HARYANVI/ MEDICAL PROFESSION KO DHYAN MEIN RAKH KAR

*एक काउन्सिलिंग में कई साल पहले पाया।।*
*एम बी बी एस छोड़ के बी डी एस को चाहया।।*
समझ ना सका लड़की ने क्यों किया ऐसा
*बाद में पूछा तो माली हालत कारण बताया।।*
बहुत से मैरिट वाले बच्चे छोड़ते देखे हैं
*टैस्ट पास पर नाम एम बी बी एस से कटाया।।*
कोटा आजकल ट्रेनिंग के लिए मशहूर है
*मगर वहां का खर्चा बहुतों को रास ना आया।।*
कई ऐसे भी बताए विदेशों में लोन लेते
*वोम्ब बेचकर अपना वो लोन जाता लौटाया।।*
मेहनत करके दिन रात बने जो डाक्टर
*भूल रहे अपना अतीत मरीज से पैसा कमाया।।*
शायद यही दस्तुर हमारे समाज का यारो
*आगे बढे जिस मेहनत के दम उसे ही भुलाया।।*
काबिल डाक्टर बना मरीजों पे सीख करके
*फिर उसी काबलियत को बाजार में भुनवाया।।*
क्या करुं बच्चे को बिना कैपिटेशन दाखिला नहीं
*रस्ता तो है पर बच्चों को वह रस्ता न सिखाया।।*
काश उनको भी अपना रास्ता सिखा पाते यारो
*मैंने कोशिष से ही पहला रास्ता ही पढ़ाया।।*
इतना मंहगा इलाज सपने में नहीं सोचा था
*मुफत इलाज के नाम गया क्वालिटी को गिराया।।*
एम्पैनलमैंट के रास्ते प्राईवेट को लाये हैं
*सरकारी संस्थाओं को बैक सीट पर बैठाया।।*
बिना नीति और नियत के हम चल दिये हैं
*मुफत इलाज का दे नारा नब्बे को है बहकाया।।*
बीमा योजना करी लरगू सब फेल हो रही हैं
*गरीब साथ खेल हुआ कम्पनी धन कमाया।।*
जनता को भी थ्री डी का गल्त रास्ता दिखा रहे
*डीजीज डाक्टर और ड्रग नुस्खा गल्त थमाया।।*
साफ पानी और हवा पौष्टिक खाना मिले तो
*अस्सी प्रतिषत बीमारी होगी ही नहीं बताया।।*
संसाधनों का टोटा नहीं नियत साफ नहीं है
*संसाधनों में भारत सबसे अमीर है गिनवाया।।*
सिस्टम का मसला है नहीं समझ पाई जनता
*नब्बे दस का खेल सारा हमसे गया छिपाया।।*
नब्बे को बांट दिया जात गोत मजहब पर
*नब्बे कैसे आयें एक मंच सवाल ये उठाया।।*

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मेरा जनाजा निकाल कर कितने दिन जी पाओगे ।।
तुम मेरी मेहनत बिना कैसे शक्कर घी खाओगे।।
कई ढंग से बांट रहे हैं एक दूजे के दुश्मन बनाए
ये चाल तुम्हारी समझी तो दस के एक बांटे आओगे।।
हमारे वास्ते जो गढ़े खोदे इनका पता चल गया तो
याद रखना इन्हीं गढ़ों में मूंधे मूंह गिरते जाओगे।।
ये संकट बढ़ता जा रहा हमारा निवाला खोसते हो
यूं कितने दिन जालिमो दुनिया को ठेके पे दौड़ाओगे।।
तुमसे ज्यादा शतिर कौन पैदा करते हो आतंकवादी
पालते पोसते हो इन्हें सच कब तक छिपाओगे।।

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असल में जो नंगे हो गये वो अपना नंगा पन  छिपाने को
सबको नंगा कहते हैं ताकि हम झिझकें उंगली उठाने को
पत्थर तोड़ कर ताज महल बनाया क्यों नहीं दिखाई देता
ताज महल के साथ सब कोई नाम शाहजहाँ का ही लेता
*****
कैसा अजीब नजारा
कैसा अजीब नजारा देह मेरी पर हल्दी बीरू के नाम की
कैसा अजीब नजारा हथेली मेरी मेहंदी बीरू के नाम की
कैसा अजीब नजारा सिर मेरा पर चुनरी बीरू के नाम की
कैसा अजीब नजारा मांग मेरी पर सिन्दूर बीरू के नाम की
कैसा अजीब नजारा माथा मेरा पर बिंदी बीरू के नाम की
कैसा अजीब नजारा नाक मेरी पर नथनी बीरू के नाम की
कैसा अजीब नजारा गला मेरा मंगल सूत्र बीरू के नाम की
कैसा अजीब नजारा कलाई मेरी चूड़ियाँ बीरू के नाम की
कैसा अजीब जमाना ऊँगली मेरी अंगूठी बीरू के नाम की
कैस

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Will fail Fighting and not surrendering

I will rather die standing up, than live life on my knees:

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