Saturday, May 31, 2008

CLIMATE CHANGE EFFECTING BIRDS LIFE

THE BIRDS ARE ALSO CHANGING THEIR LIFE SYTYLE AS PER CLIMATE CHANGE

EFFECTC OF CLIMATE CHANGE

OUR UNIVERSE

THERE ARE MANY MYTHS REGARDING THIS UNIVERSE AND ITS ORIGION> SOMETHING ON IT THROUGH A FOLK SONG

OUR CLIMATE

There is a new term called Planet Earth Crisis. The environment is getting polluted . In Folk song it has been said something on it.

PADHANGI JAROOR




BOL BAKHAT KEY

बोल बख्त के
हरियाणा में पंचायतों की सख्ती और रोक के बावजूद भी बढ़ रहे हैं प्रेम विवाह के मामले | सच्चा प्यार कभी नहीं झुकता |
क़्या लिखा कवि ने भला--------
सच्चा प्यार करणियां नै कदे पाछै कदम हटाये कोन्या |
एक बर जो मन धार लिया मुड़्कै फेर लखाये कोन्या |
हीर रांझा नै अपने बख्तां मैं पूरा प्यार निभाया कहते
लीलो चमन हुये समाज मैं घणा ए लोड़ उठाया कहते
सोनी महिवाल सच्चे प्रेमी मौत को गले लगाया कहते
आज के पंचायती बेरा ना प्रेमियां नै क्यों नहीं सहते
सुण फरमान पंचायतियां के कदे प्रेमी घबराये कोन्या |
नल दमयन्ती का किस्सा हम कदे कदीमी सुणते आवां
दमयन्ती नै वर माला घाली या सच्चाई कैसे भुलावां
अपना वर आपै ए चुन्या क्यों इस परम्परा नै छुपावां
अपनी मर्जी तै जो ब्याह करैं उनकै फांसी क्यों लगावां
हरियाणा के प्रेमी जोड़े पंचायतां कै काबू आये कोन्या |
सत्यवान और सावत्री का किस्सा बाजे लख्मी गागे आड़ै
सावत्री लड़ी यमराज तै वे कहते पिंड़ा छुड़ा भागे आड़ै
सावत्री तै इतनी आजादी देकै लिखणियां बी छागे आड़ै
हरियाणा के आज के जोड़े फेर क़्यों फांसी पागे आड़ै
हरियाणा नम्बर वन प्यार मैं इसे गाने गाये कोन्या |
जातां बीच मैं प्रेम विवाह का चलन यो बढ़ता आवै सै
फांसी का फंदा दीखै साहमी पर प्यार की पींग बढ़ावै सै
इसी के चीज बताई प्यार मैं जो प्रेमियां नै उकसावै सै
रणबीर सोचै पड़्या खाट मैं बात समझ नहीं पावै सै
तहे दिल तै साथ सूं थारै मनै झूठे छन्द बनाये कोन्या |

PAIDAL AADMI

KISSA1857

Kissa 1857

सतावन की कथा सुनाऊं, सुनियो सजनो ध्यान लगाय |

राजे और सामंत लड़े थे,जिनके तख्त-ताज खो जाएं |

लड़े किसान , मजदूर लड़े थे,अपने सारे भेद मिटाय |

हुनरमंद कारीगर लड़ गए, जान की बाजी दई लगाय |


हिंदू और मुसलमानों ने, भेदभाव कुछ माना नाय |

दई चुनौती सामराज को, ताकत जिसकी कही न जाय |

दुनिया थी जिसके कदमों में, सिक्का अपना रहे चलाय |

यूं कहते थे राज में जिनके, सूरज कभी ड़ूबता नाय |

उसी फिरंगी राज को देखो, नाकों चने दिए चबवाय |

उन वीरों की कथा सुनाऊं,सुनियो सज्जनो ध्यान लगाय |

पहले सुमरूं मातृभूमि को, वीरों को लूं शीश नवाय |

रानी झांसी और तात्यां, सतावन के वीर कहाएं |

नाना साहब पेशवा थे और बेगम हजरत महल बताएं |

नाहर सिंह और कुवंर सिंह थे, बड़े लड़ाके रहे बताए |

रेवाड़ी का राव लड़ाका, तुलेराम था नाम कहाय |

मौलवी थे वो अहमदुल्ला, जिनका खौफ फिरंगी खाएं |
तवायफ अजीजन बाई ने भी, अपनी पलटन लई बनाय |

सदरूद्दीन मेवाती ने थी, धुल फिरंगी को चटवाय |

बाबर रांघड़, मुनीर बेग और जैन हुकमचंद रहे बताय |

वीर अनेकों शहीद हुए यूं, किस किस के दूं नाम गिनाए|

हिंदू और मुसलमानों ने, कंधे से कंधे लिए मिलाय |

मिलकर टूट पड़े बैरी पर, पंचो सुनियो ध्यान लगाय|

चिंगारी फूटी मेरठ में लपटें पहुंची दिल्ली आय |

ज़फर बादशा दिल्ली वाला बूढ़ा और लाचार कहाय |

लालकिले तक बादशाही थी , बाहर फिरंगी रहे इतराय |

ताजिर बनकर आये थे जो , ऍसा जाल दिया फैलाय |

राजे और रजवाड़े सारे ताबेदार रहे कहलाय |

कलकते के बाजारों में दौलत अपनी रहे लुटाय |

लाल जवाहिर, हार नौलखे नीलामी पर चढ़ते जाएं |

कारीगर का हुनर लुटा, किसान कू लुटती खेती जाए |

ढाके की मलमल के जैसे मेहनत सारी लुटती जाय |

भूख बिमारी ही बैरी ने सबकी किस्मत दई बनाय |

चौफेरे पड़ रहे अकाल और धरती मरघट सी हो जाय |

दौलत इज्जत सारी लुट गई आग दिलें में बलती जाय |

उसी आग की एक चिंगारी पंचो मेरठ पंहुची जाय |

बागी फौज पंहुच गई दिल्ली किले पे ड़ेरा दिया लगाय |

मार भगाया अंग्रेजों को , जफर बादशा फिर हो जाय |

आजादी आई थी फिर से अब था खौफ किसे का नाय |

हुक्म चला फिर बहादुर शाह का दिल्ली अब अपना हो जाय |

मुल्क उठा अंगड़ाई लेकर धरती सुर्ख लाल हो जाए|

अवध कानपुर झांसी सब पर झंड़ा अपना ही लहराय |

यह था हाल देश का सज्ज्नो अब हरियाणे का दूं हाल बताय|

Wednesday, May 28, 2008

सुरक्षित कौन?

रोहतक में करोड़ों रूपये का

व्यापार रोजाना होता है

पिछले पांच महीने में इस

शहर में व्यापारियों की दो

हत्याएं हो चुकी हैं

चार व्यापारियों को

लूटा जा चुका है |

एक पर जान लेवा हमला

किया गया दिन दहाड़े

यदि व्यापारी ही

असुरक्षित हैं तो

सीएम सिटी में

फिर सुरक्षित कौन है ?

Tuesday, May 27, 2008

NAYA PATENT

DOHRAPAN

दोहरा पन जीवन का हम को अन्दर से खा रहा |

एक दिखे दयालु दूसरा राक्षस बनता जा रहा |

चेहरों का खेल चारों तरफ दुनिया में फैल रहा

मुखौटे हैं कई तरह के कोई पहचान ना पा रहा |

सफेद मुखौटा काला चेहरा काम इनके काले हैं,

बिना मुखौटे का तेरा चेहरा नहीं किसी को भा रहा |

कौनसा मुखौटा गुजरात में करतब दिखा रहा ये

जनता को बहला धर्म पे कुरसी को हथिया रहा |

धार्मिक कट्टरता का चेहरा प्यारा लगता क्यों है

मानव से मानव की हत्या रोजाना ही करवा रहा |

कौन धर्म कहता हमें कि घृणा का मुखौटा पहनो,

खुद किसकी झोंपड़ी में आग खुदा जाकर लगा रहा |

राम भी कहता प्यार करो दोहरेपन को छोड़ दो अब

रणबीर सिंह भी बात वही दुजे ढंग से समझा रहा |

कैसे इन्सान हो

शराब भी नहीं पीते तो क्यों इस संसार में आये तुम |

तुमने छेड़ छाड़ भी न की तो क्यों नहीं पछताए तुम |

मारो खाओ हाथ ना आओ जीवन का दस्तुर यही,

इस दस्तुर को दोस्त मेरे कयों ना निभा पाये तुम |

चोरी जारी नहीं करना सीखा तो क्या खाक जवानी,

जेल की सजा नही काटी ना शहीद कहलाए तुम |

दो तीन लड़कियां नहीं भकाई रहे कोरे के कोरे

समय से पीछे क्यों रहे ना अखबारों में छाये तुम |

Monday, May 26, 2008

DOST YA DUSHMAN

मेरी सूरत को न पहचानो ये तो होगा गंवारा मुझको |
अपने दुश्मन को ना जानो कैसा लगेगा नजारा मुझको |
खुद राह बदल गए मासूम से अनजान बने तुम,
कहो ए खुदा के इन्सानों तुमने क्यों है पुकारा मुझको |
कर इन्सां से मोहब्बत क्यों मिलकर कसमें खाई थी,
अब खंजर मुझ पे तानो बिना खंजर के ही मारा मुझको |
दिलकशो क्यों नजरें झुकाई सिर उठाके देखो तो सही,
तुम मानो या मत मानो तुमने ही तो संवारा मुझको |
कसमें वायदे भुलने वाले ना कोई शिकवा है तुमसे,
क्यों वायदा फिर से करते क्या समझा है बिचारा मुझको |
कहां से चल पहुंचे कहां देख के दंग है "रणबीर" आज
सम्भलो मेरे कदरदानो लगता है दूर किनारा मुझको |

MERA SAATHI

AAJ KI DUNIYA

हमने तरक्की की है

किस कीमत पर हमारी बला से

ऊंची ऊंची इमारतें पाश इलाकों में

जहां पांच दस करोड़ लोग रहते हैं

एयर कंडीशंड घर हैं

गाडी भी एयर कंडीशंड

बाजार भी कंडीशंड

हो गये

हमारी क्या खता हम भी कंडीशंड

हो गये
फिर चाहे गरीबी बढ़ती है तो बढ़े

नब्बे करोड़ के मकान बरसात में टपकते रहें

हमारी बला से

कारपोरेट सैक्टर फ़ल फूल रहा है

अभी और भी फूलेगा

फिर चाहे बेरोज गारी बढ़ती है तो बढे

सल्फास की गोली किसान खा कर मरता है तो मरे

हमारी बला से |

हमारा आई टी उद्योग आसमान की ऊंचाईयां

छू रहा है क्या दिखाई नहीं देता

बदेश में बच्च घूमने जा रहे हैं

अच्छी खासी तनखा पा रहे हैं

फिर चाहे बहुत से लोग भूख से मरते हैं

तो मरें, हमारी बला से |

हमारा अपना बिजनेश है

कई माल हैं हमारे

पै सा करोड़ों से अरबों में हो गया

हमारे पास फोरन एक्सचेंज है

फिर चाहे छोटी छोटी किरयाना की दुकानें

बन्द होती हैं तो हमारी बला से

बहुत आधुनिक हैं हम

सभ्यता की सब सीमाएं

लांघ गए हैं हम

हमारे शरीरों पर कपड़े

कम से कम तर होरे जा रहे हैं

फिर चाहे कोई बिना कपड़े नंगा

घूम रहा है तो हमारी बला से |

एटम बम्ब है हमारे पास


मिसाइल है दूर मार की

अच्छी खासी फौज है हमारे पास

फिर चाहे सामाजिक असुरक्षा बढ़ती है तो

हमारी बला से |

पांच सितारा अस्पताल हैं

महान भारत देश में

मैड़ीकल टूरिज्म फल फूल रहा है

फिर चाहे लोग बिना ईलाज के मरते हैं

तो मरें

प्लेग फैलता है तो फैले

एड़ज दनदनाता है तो दनदनाए

वेश्यावर्ति बढ़ती है तो बढ़े

हमारी बला से |

आर्थिक स्तर पर गोवा के बाद है

हरियाणा

"सेज" बिछाई जा रही हैं तेजी से

फिर चाहे लिंग अनुपात में

सबसे नीचे है तो क्या?

हमारी बला से |

कुछ हथियार और हों कुछ

पैसा और हो

गोरक्षा हमारा धर्म है

फिर चाहे दलितों के घर

जलाए जाते हैं तो क्या!

मनुष्य मरते हैं तो मरते रहें

हमारी बला से |

हम २०२० तक दुनिया की

"महाशकित बन सकते हैं

विकास की कीमत तो अदा करनी

ही पड़ेगी

आइड़ियोलोजीका जमाना गया

क्वालिटी जीवन का जमाना आया है

हमने तरक्की की है

किस कीमत पर

हमारी बला से |

Ranbir

Sunday, May 25, 2008

पृथ्वी जैसे एक और ग्रह की खोज
यूरोप के खगोल वैज्ञानिकों की एक टीम का कहना है कि उन्होंने सौर मंडल के बाहर पृथ्वी जैसे एक और ग्रह की खोज कर ली है.

वैज्ञानिकों का दावा है कि अभी तक सौर मंडल से बाहर जितने भी ग्रह मिले हैं उनमें से यह ग्रह पृथ्वी से सबसे अधिक मिलता जुलता है.

इस नए ग्रह को वैज्ञानिकों ने ग्लीज़ 581 सी नाम दिया है जो मात्र दौ सौ ख़रब किलोमीटर दूर है.

इसका आकार पृथ्वी के लगभग बराबर है. तापमान गर्म है और संभवत इस ग्रह पर पानी तरल अवस्था में पाया जाता है.

एस्ट्रोनॉमी एंड एस्ट्रोफिज़िक्स नामक पत्रिका में प्रकाशित शोध में वैज्ञानिकों की टीम ने कहा है कि यह ग्रह एक छोटे से लाल सितारे के चक्कर लगाता है.

यह छोटा लाल सितारा पृथ्वी से 20 प्रकाश वर्ष दूर है.

वैज्ञानिकों ने इस छोटे सितारे से नए ग्रह ( ग्लीज़ 581सी) की दूरी मापी है और अनुमान लगाया है कि ग्लीज़ 581 सी का तापमान शून्य से चालीस डिग्री के बीच होगा.
अभी तक हमारे सौर मंडल से बाहर 200 से अधिक ग्रहों की खोज की जा चुकी है.

इनमें से कई तो जुपिटर ग्रह की तरह गैस पिंड है जबकि कुछ ही ग्रह ऐसे हैं जिनमें पृथ्वी की तरह बड़ी चट्टानें देखी गई हैं.

ग्लीज़ 581सी का सौरमंडल पृथ्वी के सौरमंडल से अलग है और ग्लीज़ के सौरमंडल में अब तक दो और ग्रहों की पहचान भी की जा चुकी है.

BAIR KAYON

A FOLK SONG

BADESHI COMPANY

Saturday, May 24, 2008

Should not be coeducation in Schools?

क्या स्कूलों में सह शिक्षा नहीं होनी चाहिए.?
रनबीर्

Gam Ka Gora

गाम का गोरा बहस के लिए है
रनबीर्
http://goragamka.blogspot.com/
गंगा से हार गए थे हिलेरी
29 मई 1953 को एवरेस्ट फ़तह करने वाले एडमंड हिलेरी ने एक इतिहास रचा और बुलंद हौसलों और साहस का प्रतीक बन गए.

अपार जीवटवाले हिलेरी ने उसके बाद भी हिमालय की 10 और चोटियों की चढ़ाई की. वे उत्तरी और दक्षिणी ध्रुवों पर गए और जोखिम और विजय की संभावनाओं के कई दरवाज़े खोले.

लेकिन बहुत कम लोग ये जानते होंगे कि एक समय वो भी आया था जब हिलेरी गंगा के आगे हार गए थे.

जोशीमठ और श्रीनगर के सरकारी दस्तावेज़ों में हिलेरी के इस अधूरे रह गए अभियान का ज़िक्र मिलता है. क़रीब 30 साल पहले 1977 में हिलेरी 'सागर से आकाश' नामक अभियान पर निकले थे.

हिलेरी का मक़सद था कलकत्ता से बद्रीनाथ तक गंगा की धारा के विपरीत जल प्रवाह पर विजय हासिल करना. इस दुस्साहसी अभियान में तीन जेट नौकाओं का बेड़ा था- गंगा, एयर इंडिया और कीवी.

उनकी टीम में 18 लोग शामिल थे जिनमें उनका 22 साल का बेटा भी था. हिलेरी का ये अभियान उस समय चर्चा का विषय बना हुआ था और सबकी निगाहें उस पर लगी थी कि हिमालय को जीतनेवाला क्या गंगा को भी साध लेगा.

हिलेरी की इस यात्रा को क़रीब से देखनेवाले आज भी उसे याद करके रोमांचित हो उठते हैं. वे कहते हैं कि हिलेरी कलकत्ता से पौड़ी गढ़वाल के श्रीनगर तक बिना किसी बाधा के पहुँच गए थे और उनका उत्साह और जोश चरम पर था.

उस समय श्रीनगर में उनका साक्षात्कार लेने वाले स्थानीय पत्रकार धर्मानंद उनियाल ने बीबीसी को बताया, "हिलेरी 26 सितंबर 1977 को श्रीनगर पहुँचे थे और हिमायल के इस हीरो को देखने के लिए भीड़ उमड़ रही थी. हिलेरी यहाँ कुछ देर रुके लोगों से गर्मजोशी से मिले और उसी दिन अपनी जेट नाव पर सवार होकर बद्रीनाथ के लिए निकल पड़े. उनकी नावें बहुत तेज़ गति से जा रही थी."

हिलेरी का ये साक्षात्कार श्रीनगर की नगरपालिका की स्मारिका में भी देखा जा सकता है. धर्मानंद उनियाल ने उनसे पूछा, "क्या आप अपने मिशन में कामयाब हो पाएँगे?"

मन में था विश्वास

हिलेरी ने पूरे आत्मविश्वास से कहा था, "ज़रूर मेरा मिशन जरूर सफल होगा." श्रीनगर से कर्णप्रयाग तक गंगा की लहरों की चुनौतियाँ उन्हें ललकारती रहीं और वो उन्हें साधते हुए तेज़ी से आगे बढ़ते गए.

लेकिन नंदप्रयाग के पास नदी के बेहद तेज़ बहाव और खड़ी चट्टानों से घिर जाने के बाद उनकी नाव आगे नहीं बढ़ पाई. उन्होंने कई कोशिशें की और आख़िरकार हार मानना पड़ा.

इस तरह से एडमंड हिलेरी को बद्रीनाथ से काफ़ी पहले नंदप्रयाग से ही वापस लौटना पड़ा और 'सागर से आकाश तक' का उनका अभियान सफल नहीं हो पाया.

धर्मानंद उनियाल बताते हैं, "तब हिलेरी सड़क मार्ग से लौटे और धार्मिक आस्था रखनेवाले लोगों ने यही कहा कि गंगा माँ को जीतना सरल नहीं और गंगा माता ने उन्हें हरा दिया."

नंदप्रयाग में हिलेरी के इस अभियान का प्रतीक एक पार्क है जिसका नाम हिलेरी स्पॉट है. एक स्थानीय स्वयंसेवी संस्था के सचिव नंदनसिंह बिष्ट कहते हैं, "हिलेरी की यात्रा भले ही अधूरी रह गई हो लेकिन साहसिक अभियानों के लिए आज भी वे एक प्रेरणास्रोत हैं."

गंगा से हार जाने की ये कसक शायद हिलेरी के मन में आजीवन रही होगी और तभी जब वे 10 साल बाद दोबारा उत्तरकाशी के नेहरू पर्वतारोहण संस्थान में आए तो उन्होंने विजीटर बुक में लिखा, "मनुष्य प्रकृति से कभी नहीं जीत सकता हमें प्रकृति का सम्मान करना चाहिए."

ये वही हिलेरी थे जिन्होंने हिमालय पर चढ़ाई के बाद कहा था- हमने उस बदमाश का घमंड चूर कर दिया.
BBC
सौरमंडल का एक और 'हमशक्ल' मिला
अंतरिक्ष वैज्ञानिकों ने एक तारे के चक्कर काटने वाले ग्रहों के एक ऐसे समूह की खोज की है जो बहुत कुछ हमारे सौरमंडल जैसा ही दिखाई देता है.

वैज्ञानिकों को दो ग्रह मिले जो हमारे बृहस्पति और शनि जैसे दिखाई देते हैं और जो हमारे सूर्य के आकार से क़रीब आधे आकार वाले एक तारे के चक्कर काट रहे हैं.

ब्रिटेन की सेंट एंड्रयूज़ यूनिवर्सिटी के मार्टिन डोमिनिक कहते हैं कि यह खोज संकेत देती है कि हमारा सौरमंडल कोई अनूठा नहीं है, ऐसे कई ग्रहमंडल मौजूद हैं.

यही वजह है कि खगोल विज्ञानी सौरमंडल से मिलती-जुलते ग्रहों के ढेर सारे समूहों की खोज कर सकते हैं.

सेंट एंड्रयूज़ यूनिवर्सिटी के एक शोधार्थी ने कहा कि पृथ्वी जैसे ग्रह की खोज अब सिर्फ़ समय की बात है कि इसमें कितना वक़्त लगता है.

अंतिम लक्ष्य

उन्होंने कहा, "ऐसा लगता है कि यह भी हमारे सौर मंडल की तरह ही बना है. और यदि ऐसा हुआ तो लगता है कि हमारा सौर मंडल अंतरिक्ष में अनोखा नहीं होगा. वहाँ ऐसे अनेक ग्रहमंडल हो सकते हैं जिनमें हमारी पृथ्वी जैसा कोई ग्रह हो."

उनके अनुसार, "यह ग्रह मंडल हमारे सौर मंडल से छोटा है और क़रीब पाँच हज़ार प्रकाश वर्ष दूर है."

हालाँकि अब तक क़रीब 300 ऐसे ग्रहों की पहचान की गई है जो हमारे सौरमंडल के नहीं है. लेकिन खगोलशास्त्री अब तक हमारे सौर मंडल जैसा दिखने वाले किसी ग्रहमंडल को ढूंढने में नाकाम रहे हैं.

उन्होंने कहा कि बाहरी ग्रहों को खोजने वाले शोधार्थियों का अंतिम लक्ष्य ऐसे ग्रहों की खोज करना था जहाँ जीवन संभव हो. और यह लक्ष्य प्राप्त किया जा सकता है क्योंकि तकनीक हमेशा उन्नत होती जा रही है.

उन्होंने कहा, "मैं समझता हूँ कि यह काफ़ी जल्दी हो गया और हमारे खगोलशास्त्रियों ने माइक्रो लेंसिंग तकनीक से पृथ्वी से भी ज़्यादा भार वाले ऐसे अनेक ग्रह खोज निकाले हैं जहाँ ज़िंदगी संभव है."

उन्होंने कहा कि इन ग्रहों में पृथ्वी की तरह ज़िंदगी की तलाश करने की संभावना अभी बहुत कम है क्योंकि यह ग्रहमंडल बहुत दूर है.
BBC

Vigyan galat Hathan Mai

beer's shared items

Will fail Fighting and not surrendering

I will rather die standing up, than live life on my knees:

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