Tuesday, March 19, 2024

हरियाणा

 

यह एक सच्चाई है कि हरियाणा के आर्थिक विकास के मुकाबले में सामाजिक विकास बहुत पिछड़ा रहा है ऐसा क्यों हुआ ? यह एक गंभीर सवाल है और अलग से एक गंभीर बहस कि मांग करता है हरियाणा के सामाजिक सांस्कृतिक क्षेत्र पर शुरू से ही इन्ही संपन्न तबकों का गलबा रहा है यहाँ के काफी लोग फ़ौज में गए और आज भी हैं मगर उनका हरियाणा में क्या योगदान रहा इसपर ज्यादा ध्यान नहीं गया है उनकी एक भूमिका है।


इसी प्रकार देश के विभाजन के वक्त जो तबके हरियाणा में आकर बसे उन्होंने हरियाणा की दरिद्र संस्कृति को कैसे प्रभावित किया ; इस पर भी गंभीरता से सोचा जाना शायद बाकी है क्या हरियाणा की संस्कृति महज रोहतक, जींद सोनीपत जिलों कि संस्कृति है? क्या हरियाणवी डायलैक्ट एक भाषा का रूप ले  सकता है ? महिला विरोधी, दलित विरोधी तथा प्रगति विरोधी तत्वों को यदि हरियाणवी संस्कृति से बाहर कर दिया जाये तो हरियाणवी संस्कृति में स्वस्थ पक्ष क्या बचता है ? इस पर समीक्षात्मक रुख अपना कर इसे विश्लेषित करने की आवश्यकता है क्या पिछले दस पन्दरा सालों में और ज्यादा चिंताजनक पहलू हरियाणा के सामाजिक सांस्कृतिक माहौल में शामिल नहीं हुए हैं ? व्यक्तिगत स्तर पर महिलाओं और पुरुषों ने बहुत सारी सफलताएँ हांसिल की हैं | समाज के तौर पर 1857 की आजादी की पहली जंग में सभी वर्गों ,सभी मजहबों सभी जातियों के महिला पुरुषों का सराहनीय योगदान रहा है इसका असली इतिहास भी कम लोगों तक पहुँच सका है


        हमारे हरियाणा के गाँव में पहले भी और कमोबेश आज भी गाँव की संस्कृति , गाँव की परंपरा , गाँव की इज्जत शान के नाम पर बहुत छल प्रपंच रचे गए हैं और वंचितों, दलितों महिलाओं के साथ न्याय कि बजाय बहुत ही अन्याय पूर्ण व्यवहार किये जाते रहे हैं ।उदाहरण के लिए हरियाणा के गाँव में एक पुराना तथाकथित भाईचारे सामूहिकता का हिमायती रिवाज रहा है कि जब भी तालाब (जोहड़) कि खुदाई का काम होता तो पूरा गाँव मिलकर इसको करता था रिवाज यह रहा है कि गाँव की हर देहल से एक आदमी तालाब कि खुदाई के लिए जायेगा पहले हरियाणा के गावों क़ी जीविका पशुओं पर आधारित ज्यादा रही है। गाँव के कुछ घरों के पास 100 से अधिक पशु होते थे इन पशुओं का जीवन गाँव के तालाब के साथ अभिन्न रूप से जुड़ा होता था गाँव क़ी बड़ी आबादी के पास ज़मीन होती थी पशु होते थे अब ऐसे हालत में एक देहल पर तो सौ से ज्यादा पशु हैं, वह भी अपनी देहल से एक आदमी खुदाई के लिए भेजता था और बिना ज़मीन पशु वाला भी अपनी देहल से एक आदमी भेजता था वाह कितनी गौरवशाली और न्यायपूर्ण परंपरा थी हमारी? यह तो महज एक उदाहरण है परंपरा में गुंथे अन्याय को न्याय के रूप में पेश करने का


             महिलाओं के प्रति असमानता अन्याय पर आधारित हमारे रीति रिवाज , हमारे गीत, चुटकले हमारी परम्पराएँ आज भी मौजूद हैं इनमें मौजूद दुभांत को देख पाने क़ी दृष्टि अभी विकसित होना बाकी है | लड़का पैदा होने पर लडडू बाँटना मगर लड़की के पैदा होने पर मातम मनाना , लड़की होने पर जच्चा को एक धड़ी घी और लड़का होने पर दो धड़ी घी देना, लड़के क़ी छठ मनाना, लड़के का नाम करण संस्कार करना, शमशान घाट में औरत को जाने क़ी मनाही , घूँघट करना , यहाँ तक कि गाँव कि चौपाल से घूँघट करना आदि बहुत से रिवाज हैं जो असमानता अन्याय पर टिके हुए हैं सामंती पिछड़ेपन सरमायेदारी बाजार के कुप्रभावों के चलते महिला पुरुष अनुपात चिंताजनक स्तर तक चला गया मगर पढ़े लिखे हरियाणवी भी इनका निर्वाह करके बहुत फखर महसूस करते हैं यह केवल महिलाओं की संख्या कम होने का मामला नहीं है बल्कि सभ्य समाज में इंसानी मूल्यों की गिरावट और पाशविकता को दर्शाता है हरियाणा में पिछले कुछ सालों से यौन अपराध , दूसरे राज्यों से महिलाओं को खरीद के लाना और उनका यौन शोषण  आदि हरियाणा का सामाजिक सांस्कृतिक परिदृश्य

रणबीर सिंह दहिया


 भाग: 1


       हरियाणा एक कृषि प्रधान प्रदेश के रूप में जाना जाता है राज्य के समृद्ध और सुरक्षा के माहौल में यहाँ के किसान और मजदूर , महिला और पुरुष ने अपने खून पसीने की कमाई से नई तकनीकों , नए उपकरणों , नए खाद बीजों पानी का भरपूर इस्तेमाल करके खेती की पैदावार को एक हद तक बढाया , जिसके चलते हरियाणा के एक तबके में सम्पन्नता आई मगर हरियाणवी समाज का बड़ा हिस्सा इसके वांछित फल नहीं प्राप्त कर सका


का चलन बढ़ रहा है सती, बाल विवाह अनमेल विवाह के विरोध में यहाँ बड़ा सार्थक आन्दोलन नहीं चला स्त्री शिक्षा पर बल रहा मगर को- एजुकेसन का विरोध किया गया , स्त्रियों कि सीमित सामाजिक भूमिका की भी हरियाणा में अनदेखी की गयी उसको अपने पीहर की संपत्ति में से कुछ नहीं दिया जा रहा जबकि इसमें उसका कानूनी हक़ है चुन्नी उढ़ा कर शादी करके ले जाने की बात चली है दलाली, भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी से पैसा कमाने की बढ़ती प्रवृति चारों तरफ देखी जा सकती है यहाँ समाज के बड़े हिस्से में अन्धविश्वास , भाग्यवाद , छुआछूत , पुनर्जन्मवाद , मूर्तिपूजा , परलोकवाद , पारिवारिक दुश्मनियां , झूठी आन-बाण के मसले, असमानता , पलायनवाद , जिसकी लाठी उसकी भैंस , मूछों के खामखा के सवाल , परिवारवाद ,परजीविता ,तदर्थता आदि सामंती विचारों का गहरा प्रभाव नजर आता है ये प्रभाव अनपढ़ ही नहीं पढ़े लिखे लोगों में भी कम नहीं हैं हरियाणा के मध्यमवर्ग का विकास एक अधखबड़े मनुष्य के रूप में हुआ


             तथाकथित स्वयम्भू पंचायतें नागरिक के अधिकारों का हनन करती रही हैं और महिला विरोधी दलित विरोधी तुगलकी फैसले करती रहती हैं और इन्हें नागरिक को मानने पर मजबूर करती रहती हैं राजनीति प्रशासन मूक दर्शक बने रहते हैं या चोर दरवाजे से इन पंचातियों की मदद करते रहते हैं यह अधखबड़ा मध्यम वर्ग भी कमोबेश इन पंचायतों के सामने घुटने टिका देता है एक दौर में हरयाणा में सर्व खाप पंचायतों द्वारा जाति, गोत ,संस्कृति ,मर्यादा आदि के नाम पर महिलाओं के नागरिक अधिकारों के हनन में बहुत तेजी आई  और अपना सामाजिक वर्चस्व बरक़रार रखने के लिए जहाँ एक ओर ये जातिवादी पंचायतें घूँघट ,मार पिटाई ,शराब,नशा ,लिंग पार्थक्य ,जाति के आधार पर अपराधियों को संरक्षण देना आदि सबसे पिछड़े विचारों को प्रोत्साहित करती हैं वहीँ दूसरी ओर साम्प्रदायिक ताकतों के साथ मिलकर युवा लड़कियों की सामाजिक पहलकदमी और रचनात्मक अभिव्यक्ति को रोकने के लिए तरह तरह के फतवे जारी करती रही हैं जौन्धी और नयाबांस की घटनाएँ तथा इनमें इन पंचायतों द्वारा किये गए तालिबानी फैंसले जीते जागते उदाहरण हैं युवा लड़कियां केवल बाहर ही नहीं बल्कि परिवार में भी अपने लोगों द्वारा यौन-हिंसा और दहेज़ हत्या की शिकार हों रही हैं | ये पंचायतें बड़ी बेशर्मी से बदमाशी करने वालों को बचाने की कोशिश करती है अब गाँव की गाँव, गोत्र की गोत्र और सीम के लगते गाँव के भाईचारे की गुहार लगाते हुए हिन्दू विवाह कानून 1955 में संसोधन की बातें की जा रही हैं ,धमकियाँ दी जा रही हैं और जुर्माने किये जा रहे हैं। हरियाणा के रीति रिवाजों की जहाँ एक तरफ दुहाई देकर संशोधन की मांग उठाई जा रही है वहीँ हरियाणा की ज्यादतर आबादी के रीति रिवाजों की अनदेखी भी की जा रही है  


            हरियाणा में  खाते-पीते मध्य वर्ग और अन्य साधन सम्पन्न तबक़ों का इसे समर्थन किसी हद तक सरलता से समझ में सकता है, जिनके हित इस बात में हैं कि स्त्रियां, दलित, अल्पसंख्यक और करोड़ों निर्धन जनता नागरिक समाज के निर्माण के संघर्ष से अलग रहें। लेकिन साधारण जनता अगर फ़ासीवादी मुहिम में शरीक कर ली जाती है तो वह अपनी भयानक असहायता , अकेलेपन, हताशा अन्धसंशय, अवरुद्ध चेतना, पूर्वग्रहों, भ्रम द्वारा जनित भावनाओं के कारण शरीक होती है। फ़ासीवाद के कीड़े जनवाद से वंचित और उसके व्यवहार से अपरिचित, रिक्त, लम्पट और घोर अमानुषिक जीवन स्थितियों में रहने वाले जनसमूहों के बीच आसानी से पनपते हैं। यह भूलना नहीं चाहिए कि हिन्दुस्तान की आधी से अधिक आबादी ने जितना जनतंत्र को बरता है, उससे कहीं ज़्यादा फ़ासीवादी परिस्थितियों में रहने का अभ्यास किया है।


           गाँव की इज्जत के नाम पर होने वाली जघन्य हत्याओं की हरियाणा में बढ़ोतरी हों रही है समुदाय , जाति या परिवार की इज्जत बचाने के नाम पर महिलों को पीट पीट कर मार डाला जाता है , उनकी हत्या कर दी जाति है या उनके साथ बलात्कार किया जाता है एक तरफ तो महिला के साथ वैसे ही इस तरह का व्यवहार किया जाता है जैसे उसकी अपनी कोई इज्जत ही हों , वहीँ उसे समुदाय की 'इज्जत' मान लिया जाता है और जब समुदाय बेइज्जत होता है तो हमले का सबसे पहला निशाना वह महिला और उसकी इज्जत ही बनती है अपनी पसंद से शादी करने वाले युवा लड़के लड़कियों को इस इज्जत के नाम पर सार्वजनिक रूप से फांसी पर लटका दिया जाता है


           यहाँ के प्रसिद्ध संगियों हरदेवा , लख्मीचंद ,बाजे भगत ,मेहर सिंह ,मांगेराम ,चंदरबादी, धनपत ,खेमचंद दयाचंद की रचनाएं काफी प्रशिद्ध हुई हैं। रागनी कम्पीटिसनों का दौर एक तरह से काफी कम हुआ है ऑडियो कैसेटों की जगह सीडी लेती गई और अब यु ट्यूब और सोशल मीडिया ने ले ली है। स्वस्थ ,जन पक्षीय सामग्री के साथ ही पुनरुत्थानवादी अंधउपभोग्तवादी मूल्यों की सामग्री भी नजर आती है हरियाणा के लोकगीतों पर  समीक्षातमक काम कम हुआ है महिलाओं के दुःख दर्द का चित्रण काफी है हमारे त्योहारों के अवसर के बेहतर गीतों की बानगी भी मिल जाती है


        गहरे संकट के दौर में हमारी धार्मिक आस्थाओं को साम्प्रदायिकता के उन्माद में बदलकर हमें जात गोत्र धर्म के ऊपर लड़वा कर हमारी इंसानियत के जज्बे को , हमारे मानवीय मूल्यों को विकृत किया जा रहा है गऊ हत्या या गौ-रक्षा के नाम पर हमारी भावनाओं से खिलवाड़ किया जाता है दुलिना हत्या कांड और अलेवा कांड गौ के नाम पर फैलाये जा रहे जहर का ही परिणाम थे। इसी धार्मिक उन्माद और आर्थिक संकट के चलते हर तीसरे मील पर मंदिर दिखाई देने लगे हैं राधास्वामी और दूसरे सैक्टों का उभार भी देखने को मिलता है


         सांस्कृतिक स्तर पर हरयाणा के चार पाँच क्षेत्र हैं और इनकी अपनी विशिष्टताएं हैं हरेक गाँव में भी अलग अलग वर्गों जातियों के लोग रहते हैं एक गांव में कई गांव बस्ते हैं। जातीय भेदभाव एक ढंग से कम हुए हैं मगर अभी भी गहरी जड़ें जमाये हैं आर्थिक असमानताएं बढ़ रही हैं सभी पहले के सामाजिक नैतिक बंधन तनावग्रस्त होकर टूटने के कगार पर हैं   मगर जनतांत्रिक मूल्यों के विकास की बजाय बाजारीकरण की संस्कृति के मान मूल्य बढ़ते जा रहे हैं बेरोजगारी बेहताशा बढ़ी है मजदूरी के मौके भी कम से कमतर होते जा रहे हैं। मजदूरों का जातीय उत्पीडन भी बढ़ा है दलितों से भेदभाव बढ़ा है वहीँ उनका असर्सन भी बढ़ा है कुँए अभी भी कहीं कहीं अलग अलग हैं परिवार के पितृसतात्मक ढांचे में परतंत्रता बहुत ही तीखी हो रही है | पारिवारिक रिश्ते नाते ढहते जा रहे हैं मगर इनकी जगह जनतांत्रिक ढांचों का विकास नहीं हों रहा तल्लाकों के केसिज की संख्या कचहरियों में बढ़ती जा रही है इन सबके चलते महिलाओं और बच्चों पर काम का बोझ बढ़ता जा रहा है मजदूर वर्ग सबसे ज्यादा आर्थिक संकट की गिरफ्त में है खेत मजदूरों ,भठ्ठा मजदूरों ,दिहाड़ी मजदूरों माईग्रेटिड मजदूरों का जीवन संकट गहराया है लोगों का गाँव से शहर को पलायन बढ़ा है


                      कृषि में मशीनीकरण बढ़ा है तकनीकवाद का जनविरोधी स्वरूप ज्यादा उभर कर आया है ज़मीन की दो -ढाई एकड़ जोत पर 70 प्रतिशत के लगभग किसान पहुँच गया है | ट्रैक्टर ने बैल की खेती को पूरी तरह बेदखल कर दिया है। थ्रेशर और हार्वेस्टर कम्बाईन ने मजदूरी के संकट को बढाया है।सामलात जमीनें खत्म सी हों रही हैं कब्जे कर लिए गए या आपस में जमीन वालों ने बाँट ली अन्न की फसलों का संकट है पानी की समस्या ने विकराल रूप धारण कर लिया है नए बीज ,नए उपकरण , रासायनिक खाद कीट नाशक दवाओं के क्षेत्र में बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की दखलंदाजी ने इस सीमान्त किसान के संकट को बहुत बढ़ा दिया है प्रति एकड़ फसलों की पैदावार घटी है जबकि इनपुट्स की कीमतें बहुत बढ़ी हैं किसान का कर्ज भी बढ़ा है स्थाई हालातों से अस्थायी हालातों पर जिन्दा रहने का दौर तेजी से बढ़ रहा है अन्याय अत्याचार बेइन्तहा बढ़ रहे हैं किसान वर्ग के इस हिस्से में उदासीनता गहरे पैंठ गयी और एक निष्क्रिय परजीवी जीवन , ताश खेल कर बिताने की प्रवर्ति बढ़ी है हाथ से काम करके खाने की प्रवर्ति का पतन हुआ है साथ ही साथ दारू सुल्फे का चलन भी बढ़ा है और स्मैक जैसे नशीले पदार्थों की खपत बढ़ी है
पिछले दिनों एक साल तक चले किसान आंदोलन ने एक बार किसानी एकता को मजबूत करने का काम किया है। लेकिन किसानी संकट बढ़ता ही नजर रहा है। मध्यम वर्ग के एक हिस्से के बच्चों ने अपनी मेहनत के दम पर सॉफ्ट वेयर आदि के क्षेत्र में काफी सफलताएँ भी हांसिल की हैं मगर एक बड़े हिस्से में एक बेचैनी भी बखूबी देखी जा सकती है कई जनतांत्रिक संगठन इस बेचैनी को सही दिशा देकर जनता के जनतंत्र की लडाई को आगे बढ़ाने में प्रयास रत दिखाई देते हैं अब सरकारी समर्थन का ताना बाना टूट गया है और हरियाणा में कृषि का ढांचा बैठता जा रहा है इस ढांचे को बचाने के नाम पर जो नई कृषि नीति या नितियां परोसी जा रही हैं उसके पूरी तरह लागू होने के बाद आने वाले वक्त में ग्रामीण आमदनी ,रोजगार और खाद्य सुरक्षा की हालत बहुत भयानक रूप धारण करने जा रही है और साथ ही साथ बड़े हिस्से का उत्पीडन भी सीमायें लांघता जा रहा है, साथ ही इनकी दरिद्र्ता बढ़ती जा रही है नौजवान सल्फास की गोलियां खाकर या फांसी लगाकर आत्म हत्या को मजबूर हैं


                 गाँव के स्तर पर एक खास बात और पिछले कुछ सालों में उभरी है , वह यह कि कुछ लोगों के प्रिविलेज बढ़ रहे हैं इस नव धनाड्य वर्ग का गाँव के सामाजिक सांस्कृतिक माहौल पर गलबा है पिछले सालों के बदलाव के साथ आई छद्म सम्पन्नता , सुख भ्रान्ति और नए उभरे सम्पन्न तबकों --परजीवियों ,मुफतखोरों और कमीशन खोरों -- में गुलछर्रे उड़ाने की अय्यास कुसंस्कृति तेजी से उभरी है नई नई कारें ,कैसिनो ,पोर्नोग्राफी ,नँगी फ़िल्में ,घटिया केसैटें , हरयाणवी पॉप ,साइबर सैक्स ,नशा फुकरापंथी हैं,कथा वाचकों के प्रवचन ,झूठी हैसियत का दिखावा इन तबकों की सांस्कृतिक दरिद्र्ता को दूर करने के लिए अपनी जगह बनाते जा रहे हैं। जातिवाद साम्प्रदायिक विद्वेष ,युद्ध का उन्माद और स्त्री द्रोह के लतीफे चुटकलों से भरे हास्य कवि सम्मलेन बड़े उभार पर हैं इन नव धनिकों की आध्यात्मिक कंगाली नए नए बाबाओं और रंग बिरंगे कथा वाचकों को खींच लाई है विडम्बना है की तबाह हो रहे तबके भी कुसंस्कृति के इस अंध उपभोगतावाद से छद्म ताकत पा रहे हैं |


                     दूसर तरफ यदि गौर करेँ तो सेवा क्षेत्र में छंटनी और अशुरक्षा का आम माहौल बनता जा रहा है। इसके बावजूद कि विकास दर ठीक बताई जा रही है , कई हजार कर्मचारियों के सिर पर छंटनी कि तलवार चल चुकी है और बाकी कई हजारों के सिर पर लटक रही है सैंकड़ों फैक्टरियां बंद हों चुकी हैं बहुत से कारखाने यहाँ से पलायन कर गए हैं छोटे छोटे कारोबार चौपट हों रहे हैं संगठित क्षेत्र सिकुड़ता और पिछड़ता जा रहा है असंगठित क्षेत्र का तेजी से विस्तार हों रहा है फरीदाबाद उजड़ने कि राह पर है , सोनीपत सिसक रहा है , पानीपत का हथकरघा उद्योग गहरे संकट में है यमुना नगर का बर्तन उद्योग चर्चा में नहीं है ,सिरसा ,हांसी रोहतक की धागा मिलें बंद हों गयी हैं धारूहेड़ा में भी स्थिलता साफ दिखाई देती है


                शिक्षा के क्षेत्र में बाजार व्यवस्था का लालची दुष्ट्कारी खेल सबके सामने अब आना शुरू हो गया है सार्वजनिक क्षेत्र में साठ साल में खड़े किये ढांचों को या तो ध्वस्त किया जा रहा है या फिर कोडियों के दाम बेचा जा रहा है शिक्षा आम आदमी की पहुँच से दूर खिसकती जा रही है शिक्षा के क्षेत्र में जहां एक और एजुकेशन हब बनाने के दावे किए जा रहे हैं और नए नए विश्वविद्यालयों का खोलना एक अचीवमेंट के रूप में पेश किया जा रहा है, वहीं दूसरी ओर सरकारी स्कूल की शिक्षा की गुणवत्ता कई तरह से प्रभावित हुई है शिक्षा की प्राइवेट दुकानों में भी शिक्षा की गुणवत्ता का तो प्रश्न ही नहीं बल्कि शिक्षा  को व्यापार बना दिया गया है, चाहे वह स्कूली शिक्षा हो ,चाहे वह उच्च शिक्षा हो, चाहे वह विश्वविद्यालयों की शिक्षा हो या ट्रेनिंग संस्थाओं की शिक्षा हो, हरेक क्षेत्र में व्यापारी करण और पैसे के दम पर डिग्रियों का कारोबार बढ़ा है। दलाल संस्कृति ने इस क्षेत्र में दलाल माफियाओं की बाढ़ सी ला दी है सेमेस्टर सिस्टम ने भी शिक्षा के स्तर को बढाया तो बिल्कुल भी नहीं है घटाया बेशक हो। इंस्टिट्यूट खोल दिए गए कई कई सौ करोड़ की इमारत खड़ी करके , मगर उनकी फैकल्टी उनकी कार्यप्रणाली की किसी को कोई चिंता नहीं है। विश्वविद्यालयों के उपकुलपतियों की नियुक्तियां में यूजीसी की गाइडलाइन्स की धज्जियां उड़ाई जाती रही हैं और उड़ाई जा रही हैं  सबके लिए एक समान स्कूल की अनदेखी की जाती रही है जबकि यह संभव है।



          स्वास्थ्य के क्षेत्र में और भी बुरा हाल हुआ  है गरीब मरीज के लिए सभी तरफ से दरवाजे बंद होते जा रहे हैं लोगों को इलाज के लिए अपनी जमीनें बेचनी पड़ रही हैं आरोग्य कोष या राष्ट्रिय बीमा योजनाएं ऊँट के मुंह  में जीरे के समान हैं उसमें भी कई सवाल उठ रहे हैं स्वास्थ्य के क्षेत्र में प्राइवेट सेक्टर की दखलअंदाजी बढ़ी है एंपैनलमेंट का कारोबार खूब चल रहा है सरकार की स्वास्थ्य सेवाएं जैसे तैसे स्टाफ की कमी, डॉक्टरों की कमी, कहीं कुछ और कमियों के चलते घिसट रही हैं। गरीब जन की सेहत के लिए सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं के माध्यम से इलाज के रास्ते बंद होते जा रहे हैं जितनी भी स्वास्थ्य सेवा की योजनाएं गरीबों के लिए हैं उनमें एग्जीक्यूशन की भारी कमियां हैं और योजना में भी कई कमियां हैं। प्राइवेट नर्सिंग होम के लिए केंद्र में पारित एक्ट भी हरियाणा में लागू नहीं किया है, इसलिए कई प्राइवेट नर्सिंग होम की लूट दिनोंदिन अमानवीय रूप धारण करती जा रही है सरकारी हॉस्पिटल में सीटी स्कैन की महीनों लम्बी तारीखें दी जाती हैं मुख्यमंत्री मुफ्त इलाज योजना सैद्धांतिक तौर पर बहुत ठीक योजना होते हुए भी उसकी एग्जीक्यूशन बहुत धीरे चल रही है। इसके लिए मॉनिटरिंग कमेटियों का प्रावधान नहीं रखा गया है। खून की कमी nfhs 4 के मुकाबले nfhs 5 में   गर्भवती महिलाओं में बढ़ी है। इसी प्रकार कुपोषण बच्चों में बढ़ा है गरीब के लिए मुफ्त इलाज महंगा होता जा रहा है।

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