Tuesday, April 30, 2019

आज का हरियाणा-बहस के लिए

आज का हरियाणा.बहस के लिए
रणबीर दहिया

1857 की आजादी की पहली जंग में हरियाणा वासियों की काफी महत्वपूर्ण हिस्सेदारी रही। मगर उसके बाद विभाजन कारी ताकतों का सहारा लेकर अंग्रेजो ने हरियाणा की एकता को काफी चोट पहुंचाई। बाद में हरियाणा में यह कहावत चली कि ष्साहब की अगाड़ी और घोड़े की पिछाड़ी नहीं  होना चाहिये . नवजागरण के दौर में हरियाणा में आर्य समाज भी काफी लेट आया। महिला शिक्षा पर बहुत जोर लगाया आर्य समाज ने मगर सहशिक्षा का डटकर विरोध किया। एक और कहावत का चलन भी हुआ म्हारे  हरियाणा की बताई सै या विद्या की कमजोरी- बांडी बैल की के पार बसावै जब जुआ डालदे धोरी।
        आज का साम्राज्यवाद पहले के किसी भी समय के मुकाबले ज्यादा संगठित,ज्यादा हथियारबन्द और ज्यादा विध्वंसक है। नवस्वतंत्र या विकासशील  देशों  की खेतियों, देसी उद्योग धन्धों और सामाजिक संस्कृतियों को तबाह करने पर लगा है।दुनिया भर में साम्राज्यवादी वैश्वीवीकरण की यही विध्वंसलीला हम देख रहे हैं। नव सांमन्तवाद और नवउदारीकरण का दौर हरियाणा में पूरे यौवन पर नजर आता है। जहां एक तरफ हरियाणा ने आर्थिक तौर पर किसानों और कामगरों तथा मध्यमवर्ग  के लोगों  के अथक प्रयासों से पूरे भारत में  दूसरा स्थान ग्रहण किया है वहीं दूसरी तरफ हरियाणा के ग्रामीण समाज का संकट शहरों के मुकाबले ज्यादा तेजी से गहराता जा रहा है। सामाजिक सूचकांक चिन्ताजनक स्थिति की तरफ इशारा करते नजर आते हैं।भूखी, नंगी, अपमानित और बदहाल आाबादी के बीच छदम सम्पन्नता के जगमग द्वीपों जैसे गुड़गांव पर जश्न  मनाते इन नये दौलतमंदों का सफरिंग हरियाणा से कोई वासता नजर नहीं आता।  कुछ भ्रष्ट  राजनितिज्ञों, भ्रष्ट पुलिस अफसरों, भ्रष्ट नौकरशाहों तथा भ्रष्ट कानून के रखवालों , गुण्डों के टोलों के पचगड्डे ने काले धन और काली संस्कृति को हरियाणा के प्रत्येक स्तर पर बढ़ाया है। फिलहाल देश  के और हरियाणा के दौलतमंदों का बड़ा हिस्सा साम्राज्यवादी वैश्वीकरण  का पैरोकार बना हुआ नजर आता है। वह सुख भ्रान्ति का शिकार है या समर्पण कर चुका है। वह पूरे हरियाणा या पूरे देश  के बारे में नहीं महज अपने बारे में सोचता है। फसलों की जमीन के बढ़ते बांझपन के कारण पैदावार कम से कमतर होती जा रही है। तालाबों पर नाजायज कब्जे कर लिये गये जिनके चलते उनकी संख्या कम हो गई और जो बचे उनके आकार छोटे होते गये। अन्धाधुन्ध कैमिकल खादों और कीट नाशकों और घास फूसी नाशिकों के इस्तेमाल के कारण जमीन के नीचे का पानी प्रदूशित होता जा रहा है। गांव की शामलात जमीनों पर दबंग लोगों   ने कब्जे जमा लिए हैं। सरकारी पानी की डिगियों की बुरी हालत है। पीने के पानी का व्यवसायिकरण बहुत से गावों में टयूबवैलों के माध्यम से हो गया। ।पानी के नलकों की टूटियां गायब हैं | पानी की वेस्टेज बहुत ज्यादा है | इसीलिये  गलियों का बुरा हाल है |  यदि पक्की भी हो गई हैं तो भी पानी की निकासी का कोई भी उचित प्रबन्ध न होने के कारण जगह जगह पानी के चब्बचे बन गये हैं जो बहुत सी बीमारियों के जनक हैं। बिजली ज्यादातर समय गुल रहती है। बैल आमतौर से कहीं कहीं बचे हैं।भैंसो का पालन बढ़ा है |  भैंसों के सुआ लगा कर दूध निकालने की कुरीति बढ़ती जा रही है। सब्जियों में भी सुआ लगाने का चलन बहुत बढ़ता जा रहा है। खेती की जोत का आकार कम से कमतर हुआ है और दो एकड़ या इससे कम जोत के किसानों की संख्या किसी भी गांव में कुल किसानों की संख्या में सबसे जयादा है।किसानों और खेती के तरीकों में कई बदलाव दिखाई देते हैं |  गांव के सरकारी स्कूलों का माहौल काफी खराब हो रहा है। इन स्कूलों में खाते पीते व दबंग परिवारों के बच्चे नहीं जाते। इसलिए उनकी देखभाल भी नहीं बची है। दलित और बहुत गरीब किसान परिवार के बच्चे ही इन स्कूलों में जाते हैं। उपर से सैमैस्टर सिस्टम और बहुत दूसरी नीतिगत खामियों के चलते माहौल और खराब हो रहा है।इस सबके चलते प्राइवेट स्कूलों की बाढ़ सी आ गई है। उंची फीसें इन प्राइवेट स्कूलों का फैशन बन गया है। बीएड के कालेजों की एक बार बाढ़ आई, फिर नर्सिंग कालेजो की और फिर डैंटल कालेजों की। ज्यादातर प्राईवेट सैक्टर में हैं। बी एड कालेजों में से ज्यादातर बन्द होने के कगार पर हैं। प्राईवेट सैक्टर में दुकानदारी बढ़ी है और शिक्षा की गुणवता काफी कम हुई है। प्राइवेट विश्व विद्यालयों की सांख्य में भी काफी बढ़त दिखाई दे रही है | इन की समीक्षा अपने आप में एक लेख की मांग करती  है। स्वास्थ्य के क्षे़त्र में 90 के बाद प्राईवेट सैक्टर 57 प्रतिशत हो गया है। गांव के सबसैंटर में,प्राईमरी स्वास्थ्य केन्द्र में या सामुदायिक स्वास्थय  केन्द्र में क्या हो रहा है यह गांव के दबंगों की चिन्ता का मसला कतई नहीं है। बल्कि इनमें काम करने वाले कुछ भ्र्ष्ट कर्मचारियों के साथ सांठगांठ करके ठीक काम करने वाले डाक्टरों व दूसरे कर्मचारियों को परेशान किया जाता है। कहने को संस्थागत प्रसव का प्रतिशत बढ़ा है | गांव में सरकार द्वारा बनाई गई डिगियों का इस्तेमाल न के बराबर हो रहा है जिसके चलते प्राइवेट ट्यूबवैलों  से पानी खरीदना पड़ रहा है । अब भी पीने के पानी के कुंए अलग अलग जातियों के अलग अलग हैं। बहुत कम गांव हैं जहां सर्वजातीय कुँए  हैं। खेती में ट्रैक्टर का इस्तेमाल बहुत बढ़ गया है। आज ट्रैक्टर से एक एकड़ की बुआही के रेट 500  से 550 रुपये हो गये हैं। ट्यूबवैल से एक एकड़ की सिंचाई के रेट 80 रुपये घण्टा हो गये हैं। थ्रैशर से गिहूं निकालने के रेट1500रुपये प्रति एकड़ हो गये हैं। हारवैस्टर कारबाईन से गिहूं कटवाने के 1400 रुपये प्रति एकड़ और निकलवाने के रैपर के रेट 1200 प्रति एकड़ हो गये हैं। बड़ी बड़ी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों का सामान हरेक गांव की छोटी से छोटी दुकानों पर आम मिल जाता है। 8.10 दुकानों से लेकर 40.50 दुकानों का बाजार छोटे बड़े सभी गांव में मौजूद है। छोटी छोटी किरयाने की दुकानों पर दारु के प्लास्टिक के पाउच आसानी से उपलब्ध हैं। पहले का डंगवारा जिसमें एक एक बैल वाले दो किसान मिलकर खेती कर लेते थे बिल्कुल खत्म हो गया है। पहले दो एकड़ वाला 10 एकड़ वाले की जमीन बाधे पर लेकर बोता रहा है और काम चलाता रहा है। साथ एक दो भैंस भी रखता रहा है जिसका दूध बेचकर रोजाना के खर्चे पूरे करता है। पहले कहावत थी "दूध  बेच दिया इसा पूत बेच दिया"। आज दूध भी बेचना पड़ता है और बेटा भी बेचना पड़ता है। मगर आज 10 किल्ले वाला भी दो किल्ले वाले की जमीन बाधे पर लेकर बोता है। खेती में मशीनीकरण तेजी से हुआ और हरित क्रांन्ति का दौर शुरु हुआ। हरित क्रान्ति ने बहुत नुकसान किये हैं जो अपने आप में एक बहस और रिसर्च का विषय है। मगर किसानी के एक हिस्से को लाभ भी बहुत हुआ है। एक नया नवधनाढ़य वर्ग पैदा हुआ है हरियाणा में जिसका हरियाणा के हरेक पक्ष पर पूरा कब्जा है। इन्ही के दायरों में अलग अलग जातों के नेताओं का उभरना समझ में आता हैं । मसलन चौधरी देवीलाल जाटों के नेता, चौधरी चान्द राम दलितों के नेता. उनमें भी एक हिस्से के.। पंडित भगवतदयाल शर्मा पंडितों के नेता , राव बिरेन्द्र सिंह अहीरों के नेता आदि। आज इन जाटों के नेताओं में भी एक ही जात में प्रतिष्पर्धा बढ़ी है। इस धनाढ़य वर्ग का एक हिस्सा आढ़तियों में शामिल हो गया है। सब आढ़तिये  कम जमीन वाले किसान की कई तरह से खाल उतार रहे  हैं । पुराने दौर के परिवारों में से डी एल एफ ग्रूप और जिन्दल ग्रूपों ने राष्ट्रीय  स्तर पर पहचान बनाई है। इसी धनाढ़य वर्ग में से कुछ भठ्ठों के मालिक हो गये हैं | दारु के ठेकों के ठेकेदार हैं, प्राप्रटी डीलर बन गये हैं। नेताओं के बस्ता ठाउ भी इन्ही में से हैं। हरेक विभाग के दलाल भी इन्हीं लोगों में से पैदा हुए हैं। इन ज्यादातरों के और भी कई तरह के बिजिनैश हैं। इनका जीवन ए सी  जीवन में  बदल गया है चाहे शहर में रहते हों या गांव में। हर तरह के दांव पेच लगाने में यह तबका बहुत माहिर हो गया है। जिन लोगों  की हाल में  जमीने बिकी हैं उन्होंने पैसा इन्वैस्ट करने का मन बनाया मगर पैसा लगाने की उपयुक्त जगह न पाकर वापिस गांव में आकर मकान का चेहरा ठीक ठ्याक कर लिया और एक 8.10 लाख की गाड्डी कार ले ली। एक मंहगा सा मोबाइल ले लिया। जिनके पास कई एकड़ जमीन थी और संयुक्त परिवार था उन्होंने सिरसा की तरफ या कांशीपुर में या मध्यप्रदेश  में खेती की जमीनों में यह पैसा लगा दिया। कुछ लोगों ने 200 से 300 गज का प्लॉट शहर में लेकर सारा पैसा वहां मकान बनाने पर खर्च कर दिया। आगे क्या होगा उनका  कुछ नहीं कहा जा सकता। इन बिकी जमीनों पर जीवन यापन करने वाले खेत मजदूर और बाकी के तबकों का जीना मुहाल हो गया है।बड़ी मुश्किल में है इनका जीवन यापन। ऊपर से दारू का चलन भी इन तबकों में भी बढ़ा है।  यह दबंगों और मौकापरस्तों के समूह हरेक कौम में पैदा हुए हैं। इनका वजूद जातीय , गोत्रों और ठोले पाने की राजनिति पर ही टिका है। ज्यादातर गांव में सड़कें पहुंच गई हैं बेशक खस्ता हालत में हों बहुत सी सड़कें। किसी भी गांव में चार पहियों के वाहनों की संख्या भी बढ़ी है। बहुराष्ट्रीय  कम्पनियों के प्रोडक्ट ज्यादातर गावों में मिलने लगे हैं। टी वी अखबार का चलन भी गांव के स्तर पर बढ़ा है। सीडी  प्लेयर तो बहुत सें घरों में मिल जाएगा। मोबाइल फोन गरीब तबकों के भी खासा हिस्से के पास मिल जाएगा। संप्रेषन के साघन के रुप में प्रोग्रेसिव ताकतों को इसके बारे में सोचना होगा। माइग्रेटिड लेबर की संख्या ग्रामीण क्षेत्र में भी बढ़ रही है। किसानी के एक हिस्से में अहदीपन बढ़ रहा है।गाँव में कई परतें बन गई लगती हैं आर्थिक समानताओं के बढ़ते जाने क्र कारण।  गांव की चौपालों की जर्जर हालत हमारे सामूहिक जीवन के पतन की तरफ इशारा करती है। नशा , दारु और बढ़ता संगठित सैक्स  माफिया सब मिलकर गांव की संस्कृति को कुसंस्कृति के अन्धेरों में धकेलने में अहम भूमिका निभा रहे हैं।पुरुष  प्रघान परिवार व्यवस्था में छांटकर महिला भ्रूण हत्या के चलते ज्यादातर गांव में लड़कियों की संख्या काफी कम हो रही है। बाहर से खरीद कर लाई गई बंहुओं की संख्या में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। पुत्र लालसा बहुत प्रबल दिखाई देती है यहां के माईडं सैट में। हर 10 किलो मीटर पर शर्तिया  छोरा के लिए गर्भवती महिला को दवाई देने वाले मिल जाएंगे। उंची से उंची पढ़ाई भी हमारे दकियानूसी विचारों में सेंध लगाने में असफल रही लगती है।बल्कि अंधविश्वासों को बढ़ावा भी दिया जा रहा लगता है।  जैंडर बलाइन्ड और साइंटिफिक टेम्पपर रहित  उच्च शिक्षा ने महिला विरोधी सामन्ती सोच को ही पाला पोसा लगता है। हमारे आपस के झगड़े बढ़े हैं। इस सबके चलते महिलाओं पर घरेलू हिंसा में बढ़ोतरी हुई  है। महिलाओं पर बलात्कार के केस बढ़े हैं। महिलाओं के साथ छेड़छाड़ आदि के केस बढ़े हैं जिनमें से ज्यादातर केस दर्ज ही नहीं हो पाते। कचहरियों में तलाक के केसिज की संख्या बेतहासा बढ़ रही है। सल्फास की गोली खाकर हर रोज 1 या 2 नौजवान मैडीकल पंहुच जाते हैं। 30. से 40 ट्रक ड्राईवर ज्यादातर  गांव में मिल जाएंगे । एडस की बीमारी के इनमें से ज्यादातर वाहक हैं। सुबह से लेकर शाम  तक ताश  खेलने वाली मंडलियों की संख्या बढ़ती जा रही है। युवा लड़कियों का यौन शोषण संगठित ढ़ंग से किया जा रहा है तथा सैक्स  रैकेटियर बहुत से  गांवों  तक फैल गये लगते  हैं। इसके अलावा युवा लड़कियों में शादी से पहले गर्भ की तादाद बढ़ रही है। मौखिक तौर पर कुछ डाक्टरों का कहना है कि इस प्रकार के केसिज में 50 प्रतिशत से ज्यादा परिवार के सदस्य, रिस्तेदार या  पड़ौसी ही होते है जो यौन षोशण करते हैं । महिला न घर के अन्दर सुरक्षित  रही है न घर से बाहर। युवा लड़कियों का गांव की गांव में यौण उत्पीड़न हरियाणवी ग्रामीण समाज की भयंकर तसवीर पेश  करता है। गांव के युवाओं .लड़के लड़कियों . को अपनी स्थगित ऊर्जा का सकारात्मक इस्तेमाल करने का कोई अवसर हमारी दिनचर्या में नहीं है। इस सब के बावजूद बहुत सी लड़कियों व महिलाओं ने खेलों में हरियाणा का नाम रोशन किया है। केबल टीवी  ज्यादातर बड़े गांव में पहुंच गया है। टी वी में आ रही बहुत सी अच्छी बातों के साथ साथ देर रात बहुत सी जगह बल्यू फिल्में दिखाई जाती हैं। युवाओं में आत्म हत्या के केसिज बढ़ रहे हैं। महिलाओं के दुख सुख की अभिव्यक्ति महिला लोक गीतों में साफ झलकती दिखाई देती है। हमारे सांगों में पितृसतात्मक मूल्यों का बोलबाला दिखाई देता है। इसके साथ साथ महिला विरोधी और दलित विरोधी रुझान भी साफ झलकते हैं। मूल्यों के संदर्भ में हमारा साहित्य दबंग के हित की संस्कृति का ही निर्वाह करता नजर आता है खासकर  ज्यादातर सांगों के कथानक में। पूरे हरियाणवी चुटकलों के भण्डार में एक सेकुलर चुटकुला मिलना मुश्किल।  झगड़ों में इन्होंने समझौते करवाये उनमें 100 में से 99 फैंसले दबंग के हक में और पीड़ित के खिलाफ किये गये। बहोत बार बलात्कारी के केस के समझौतों में बलात्कारी को ही राहत दिलवाई गई। कत्ल के केस में जेल में बन्द कुछ कातिलोन  को ही राहत दिलवाई जाती है  । तरीके अलग अलग हो सकते हैं मगर नतीजे हमेशा  पीड़ित के खिलाफ ही हुए। कमजोर के हक में न्यायकारी फैंसला शायद ही कोई हों। इसी प्रकार ब्याह शादी के मामलों में गांव की गांव और गोत की गोत का केस एक मनोज बबली का ही केस है। बाकी सारे के सारे केस दो गौतों के बीच के हैं जिनमें ज्यादातर में बच्चों के माता पिताओं को बहन भाई बन कर रहने के फतवे जारी किए गये हैं और प्रेमियों के कत्ल किये गये हैं। या दूसरी तरह के उत्पीड़न किये गये हैं। राई का पहाड़ बनाया जा रहा है। असली मुद्दों से युवाओं का ध्यान बांटा जा रहा है। भावनात्मक स्तर पर लोगों  की भावनाओं से खिलवाड़ किया जा रहा है। किसानी के संकट से किसानों को दिशा  भ्रमित किया जा रहा है। गांव के युवा लड़के और लड़की जिन्दगी के चौराहे पर खड़े हैं। एक तरफ नवसामन्तवादी और नवउदारवादी अपसंस्कृति का बाजार उन्हें अपनी ओर खींच रहा है। दूसरी ओर बेरोजगारी युवाओं के सिर पर चढ़ कर इनके जीवन को नरक बनाए है। नशा  , दारु, सैक्स व  पोर्नोग्राफी उसको दिशा भ्रमित करने के कारगर औजारों के रुप में इस्तेमाल किए जा रहे हैं। साथ ही समाज में व्याप्त पिछड़े विचारों और रुढ़ियों को भी इस्तेमाल करके इनका भावनात्मक शोषण किया जा रहा है। हरियाणा में खाते पीते मध्यमवर्ग और अन्य साधन सम्पन्न तबकों का साम्राज्यवादी वैष्वीकरण को समर्थन किसी हद तक सरलता से समझ में आ सकता है जिनके हित इस बात में हैं कि स्त्रियां,दलित,अल्पसंख्यक और करोड़ों निर्धन जनता नागरिक समाज के निर्माण के संघर्ष  से अलग रहें।  लेकिन साधारण जनता अगर फासीवादी मुहिम में शरीक कर ली जाती है तो वह अपनी भयानक असहायता, अकेलेपन, हताषा, अवरुद्ध  चेतना , पूर्व ग्रहों, उदभ्रांत कामनाओं के कारण शरीक होती है। फासीवाद के कीड़े जनवाद से वंचित ओर उसके व्यवहार से अपरिचित, रिक्त, लम्पट और घोर अमानुशिक जीवन स्थितियों में रहने वाले जनसमूहों के बीच आसानी से पनपते हैं। यह भूलना नहीं चाहिये कि हिन्दुस्तान की आधी से अधिक आबादी ने जितना जनतन्त्र को बरता है उससे कहीं ज्यादा फासीवादी परिस्थितियों  में रहने का अभ्यास किया है। इसमें कोई शक नहीं कि हरियाणा में जहां आज अनैतिक ताकत की पूजा की संस्कृति का गलबा है वहीं अच्छी बात यह है कि शहीद भगत सिंह से प्रेरणा लेते हुए युवा लड़के लड़कियों का एक हिस्सा इस अपसंस्कृति के खिलाफ एक सुसंस्कृत सभ्य समाज बनाने के काम में सकारात्मक सोच के साथ जुटा हुआ है। साधुवाद इन युवा लड़के लड़कियों को। इतने बडे़ संकट को कोई भी  अपनी अपनी जात के स्तर पर हल करने की सोचे तो मुझे संभव नहीं लगता । कैसे सामना किया जाए इसके लिए विभिन्न विचारकों के विचार आमन्त्रित हैं।
कुछ विचारणीय बिन्दू इस प्रकार हो सकते हैं.


1-  भेड़ों कि तरह बेघर लोगों का शहरों के ख़राब से ख़राब घरों में बढ़ता जमावड़ा
2-   सभी सामाजिक नैतिक बन्धनों का तनाव ग्रस्त होना तथा टूटते जाना
3-   परिवार के पितरी स्तात्मक   ढांचे में अधीनताए ;परतंत्रता , का तीखा होना
4-   पारिवारिक रिश्ते नाते ढहते जाना ... युवाओं के सामने गंभीर चुनौतीयाँ
5-    परिवारों में बुजुर्गों की असुरक्षा
6-   महिलाओं और बच्चों पर काम का बोझ बढ़ते जाना, असंगठित क्षेत्र में सुविधाओं का भी काफी अभाव है
7-   मजदूर वर्ग को पूर्ण रूपेण ठेकेदारी प्रथा में धकेला जाना
8-   गरीब लोगों के जीने के आधार संकुचित होना
9-    गाँव से शहर को पलायन बढ़ना तथा लम्पन तत्वों की बढ़ोतरी , शहरों के विकास में,अराजकता,ठेकेदारों  और प्रापर्टी डीलरों का बोलबाला
10- जमीन की  उत्पादकता में खड़ोत , पानी कि समस्या , सेम कि समस्या
11-  कृषि से अधिक उद्योग कि तरफ व व्यापार की तरफ जयादा ध्यान 
12- स्थाई हालत से अस्थायी हालातों पर जिन्दा रहने का दौर
13- अंध विश्वासों को बढ़ावा दिया जाना , हर दो किलोमीटर पर मंदिर का उपजाया जाना
14- अन्याय का बढ़ते जाना
15- कुछ लोगों के प्रिविलिज बढ़ रहे है
16-  मारूति से सैंट्रो कार की तरफ रूझान, आसान काला धन काफी इकठ्ठा किया गया है
17- उत्पीडन अपनी सीमायें लांघता जा रहा है , रूचिका कांड ज्वलंत उदाहरण है ,
18- व्यापार धोखा धड़ी  में बदल चुका  है
19- शोषण उत्पीडन और भ्रष्टाचार की तिग्गी भयंकर रूप धार रही है
20- प्रतिस्पर्धा ने दुश्मनी का रूप धार लिया है
21- तलवार कि जगह सोने ने ले ली है
22-  वेश्यावृति दिनोंदिन बढ़ती जा रही है
23-  भ्रम व अराजकता का माहौल बढ़ रहा है , धिगामस्ती बढ़ रही है
24- संस्थानों की स्वायतता पर हमले बढ़ रहे हैं
25- लोग मुनाफा कमा कर रातों रात करोड़ पति से अरब पति बनने के सपने देख रहे हैं और किसी भी                   हद तक अपने को गिराने को तैयार हैं
26- खेती में मशीनीकरण तथा औद्योगिकीकरण  मुठ्ठी भर लोगों को मालामाल कर गया तथा लोक जन को गुलामी व दरिद्रता में धकेलता जा रहा है
27- बहुराष्ट्रीय कम्पनियों का शिकंजा कसता जा रहा है
28- वैश्वीकरण को जरूरी बताया जा रहा है जो असमानता पूर्ण विश्व व्यवस्था को मजबूत करता जा रहा है
29- पब्लिक सेक्टर की मुनाफा कमाने वाली कम्पनीयों को भी बेचा जा रहा है
30- हमारी आत्म  निर्भरता  खत्म करने की भरसक नापाक साजिश की जा रही हैं
31- साम्प्रदायिक ताकतें देश के अमन चैन के माहौल को धाराशाई करती जा रही हैं
32- गुट निरपेक्षता की विदेश निति से खिलवाड़ किया जा रहा है
33- युद्ध व सैनिक खर्चे में बेइंतहा बढ़ोतरी की जा रही है
34-  परमाणू हथियारों की होड़ में शामिल होकर अपनी समस्याएँ और अधिक  बढ़ा ली हैं
35- सभी संस्थाओं का जनतांत्रिक माहौल खत्म किया जा रहा है
36-  बाहुबल, पैसे , जान पहचान , मुन्नाभाई , ऊपर कि पहुँच वालों के लिए ही नौकरी के थोड़े बहुत अवसर बचे हैं 
 मैं इस पक्ष पर अभी जान बूझ कर कुछ नहीं कह रहा ताकि हिड्डन अजैंडे की समस्या से बचा जा सके। संस्कृति को भी  सांझी संस्कृति के रुप में ही बचाया जा सकता है न कि संकुचित दायरों में बांधकर।


रणबीर सिह

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