Monday, May 6, 2019

व्यवस्था का अमानवीयकरण


व्यवस्था का अमानवीयकरण
मनमोहन
आज अगर अपने चारों और देखना शुरु करें तो लगेगा कि हम चापलूसों ईर्ष्यालुओं,स्वार्थियों,हत्यारों, कायरों, कुंठितों,कुत्सितों,पराजितों और शरीर और मन के गुलामों या भ्रष्ट व्यवसायियों के बीच फंसे हुए ऐसे ही कोई आदमीनुमा जन्तु हें। सरा देश एक जुगल का खूबसूरत दृश्य पेश उपस्थित कर रहा है, जहां लोग झगड़ रहे हैं, एक दूसरे को खा रहे हैंए भाग रहे हैं, रो रहे हैं, नाच और गा रहे हैं,भूखे मर रहे हैं, तबाह हो रहे हैं, तबाह कर रहे हैं, जिससे जो बन पड़ रहा है, वह कर रहा है। एक मुक्त युद्ध शुरु हो गया है, हर आदमी की निगाहों में एक क्रूर स्वार्थी चमक है। किसी कि आंखों में भीख है, याचना है, गिड़गिड़ाहट है, किसी कि आंखों में तिरिस्कार है, उपेक्षा है, एक शातिर परायापन है, एक चालाकबिजनिस मैन शिपहै। रिश्ते रश्म अदायगी हो चुके हैं।क्या हाल चाल है?’ पूछने वाले का अपना हाल चाल पूछने और जानने का कोर्ठ मन्तव्य नहीं होता। दीपावली पर शुभ कामना कार्ड भेजने वाले के दिल में अक्सर कोई शुभ भावना आपके लिए नहीं होती। लोग होली पर भी मिलते हैं पर ऐसे जैसे दो लाशों को जर्बदस्ती गले मिलाया जा रहा हो।दो घर जिनकी छतें मिली हुई हैं एक दूसरे से सबसे अधिक डाह करते हैं। दो खेत जिसकी एक ही मेंड है एक दूसरे के खून के प्यासे हैं।दो कलर्क  जो एक ही कतार में दिन भर बराबर बैठ कर काम करते हैं - एक दूसरे के दुश्मन हैं।एक का प्रोमोशन दूसरे का दुख होगा। हर व्यकित, हर दूसरे के बारे में हर तीसरे से कानाफूसी करता हुआ मिलेगा। सब धोखा धड़ी से नजरें बचाकर अपनी गोटी फिट करने में व्यस्त हैं। लोग दूसरों को धोखा दे रहे हैं, अपने आप को धोखा दे रहे हैं, दुहरी जिन्दगी जी रहे हैं, अपने आप से भाग रहे हैं, अपनी निजता खो रहे हैं,अपने आत्म सममान को चूर चूर होता हुआ दैख रहे हैं। खुलम खुल्ला दिन की रोशनी में अन्याय और अत्याचार हो रहा है और देखने वाले बचकर गुजर रहे हैं, यहां जतक कि उसमें रस ले रहे हैं, दया भी कर रहे हैं, बस इतनी जितनी टीका टिप्पणी के लिए जरुरी है।हम लोग आये दिन रोंगटे खड़े हो जाने वाली खबरें पढ़ रहे हैं। देख रहे हैं।अध्यापक के सीने पर चाकू विद्यार्थी रखता है, विद्यार्थी से आर्थिक व्यवसाय अध्यापक करता है। कालेज हॉस्टल में, कोतवाली में ब्लात्कार होते हैं, पुलिस के संरक्षण में हत्या होती है, भाग्य विधाता और कानून निर्माता तस्करी औरघोटाले करते हैं। बाप बेटी का गला घोंट रहा है क्योंकि उसके पास उसकी शादी के लिए दहेज नहीं, बेटा बाप के लिए सोच रहा है कि इसका बुढ़ापे का पीरियड कब खत्म हो जिससे उसका बजट थोड़ा ढीला हो सके, पति पत्नीको पीट रहा है, पत्नी पति को कोस रही है। आप कुछ सिक्कों में किसी का कत्ल कर सकते हैं, आप किसी की इज्जत उतार सकते हैं।
यह सब क्या हो गया है?
यह सब क्या हो रहा है?
इस सब का कारण क्या है?
मनमोहन के एक पुराने लेख से एक हिस्सा

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