गोरखपुर ( हरयाणा ) परमाणु ऊर्जा संयंत्र महाविनाश को बुलावा
जापान के फुकुशिमा के दायिची परमाणु संयंत्र में सुनामी व् भूकम्प के कारण बड़ी दुर्घटना घटी , जिसकी वजह से 2 लाख लोगों को वहाँ से प्लायन करना पड़ा तथा हजारों लोग रेडिएशन से प्रभावित हुए । जिसके कारन पूरी दुनिया में परमाणु तकनीक पर फिर से सवाल उठने शुरू हो गए । इसी कारण जर्मनी , स्पेन ,स्वीडन व् चीन ने अपने नए परमाणु रियेक्टरों की मंजूरी पर रोक लगा दी । खुद जापान के प्रधान मंत्री ने कहा कि अब हमें परमाणु से बिजली पैदा करने की तकनीक से परे जाना होगा।
तो फिर हरयाणा के गोरखपुर में यह संयंत्र क्यूँ लगाय़ा जा रहा है ??? सोचने का विषय है । पूछो चुनाव में सबसे।
इटली ने लोगों के बहुमत का ख्याल रखते हुए परमाणु ऊर्जा पर रोक लगा दी। फ़्रांस जो कि दुनिया का उन्नत परमाणु तकनिकी देश है ने भी इस पर फिर से सोचना शुरू कर दिया है। अमरीका ने पहले से ही 1979 के बाद कोई नया संयंत्र नहीं लगाया , लेकिन हिंदुस्तान की सरकार 39 नए रियेक्टर देश में लगाने पर तुली हुई है , जबकि जापान जैसा तकनिकी उन्नत देश व् सारी दुनिया के परमाणु वैज्ञानिक रेडिएशन के खतरे को रोक नहीं पा रहे हैं।
तो फिर हरयाणा के गोरखपुर में यह संयंत्र क्यूँ लगाय़ा जा रहा है ??? सोचने का विषय है । पूछो चुनाव में सबसे।
इसी के तहत हरयाणा के जिला फतेहाबाद के गोरखपुर गाँव में देश का दूसरे नंबर का सबसे बड़ा परमाणु संयंत्र लगाया जाना प्रस्तावित किया गया और आधारसिला भी रख दी गयी है । जबकि सच्चाई यह है कि यह क्षेत्र भी भूकम्प चार जोन में है जहाँ पर 3 से 6 रिएक्टर स्केल तक के भूकम्प आ सकते हैं । देश की राजधानी यहाँ से मात्र 210 कि. मी. की दूरी पर है । जब फुकुशिमा परमाणु संयंत्र की वजह से टोक्यो जो कि 240 कि.मी.की दूरे पर है खाली होता है तो गोरखपुर पर सरकार चुप क्यों है ?
इससे पहले भीं परमाणु संयंत्रों की दुर्घटना 26 अप्रैल 1986 में सोवियत यूनियन के चरणोबिल में हुई थी जिसके कारण यूक्रेन की सरकार के आंकड़ों के मुताबिक रेडिएशन से 65000 से 1 . 10 लाख के बीच लोगों की मौत हो चुकी है । इसी प्रकार थ्रीमाइलआईलैण्ड परमाणु संयंत्र के फटने की घटना 1979 में अमेरिका जैसे ताकतवर देश में घटित हुई जिसे वह नहीं रोक पाया तो क्या हिंदुस्तान जैसा ढीले ढाले तंत्र वाला ऐसी घटना को रोक पाने में सक्षम है । लेकिन इसके विपरीत भारत सरकार के प्रधानमंत्री यह कह रहे हैं कि भारत के सभी परमाणु संयंत्र सुरक्षित हैं तथा टी वी चैनलों व् मीडिया से यहाँ के परमाणु ऊर्जा के समर्थक वैज्ञानिक यह कह रहे हैं कि हम इस खतरे से निपटने में सक्षम हैं तथा हमारे पास भूकम्परोधी रिएक्टर हैं जो कि सरासर झूठ है , जबकि पूरी दुनिया के देश अपनी अपनी ऊर्जा निति में बदलाव कर रहे हैं ।
1 . दुर्घटना ना हो तो भी परमाणु ऊर्जा संयंत्र लाखों सालों तक मानव के लिए बड़ा खतरा :
a ) रिएक्टर भौतिकी के अनुसार परमाणु विस्फोट अचानक हो सकता है तथा इसमें लगातार अनियंत्रित क्रियाएं होती हैं । दुनिया का कोई भी देश परमाणु संयंत्र से निकलने वाले कचरे का सफल प्रबंधन नहीं कर पाया है । इसका रिसाई कलिंग प्रोसेस अभी तक कामयाब नहीं हुआ है । इंग्लैण्ड जैसे विकसित देश ने कचरा प्रबंधन के लिए लगभग 50 अरब पोंड खर्च किये लेकिन सफल नहीं हुआ फ़्रांस जो कि परमाणु ऊर्जा में तकनीकी रूप से सबसे विकसित है , का मानना है कि परमाणु कचरा एक गम्भीर समस्या है तथा इसका कोई समाधान नहीं है । वैज्ञानिकों का यह मानना है कि रेडियो एक्टिव कचरे से मानव जीवन सुरक्षित होने में लगभग 2. 50 साल लग जायेंगे , क्योंकि एक हजार मेगावाट का परमाणु संयंत्र हर साल 30 टन रेडियोधर्मी कचरा छोड़ता है ।
b ) कोई भी परमाणु ऊर्जा संयंत्र सामान्य स्थिति में भी रेडियो एक्टिव गैस वातावरण में छोड़ता रहता है । ये रेडियो एक्टिव गैस 40 -50 कि. मी. क्षेत्र में फैलती रहती हैं तथा हमारी श्वास प्रक्रिया के साथ शरीर के अंदर जाती है जिसके कारण फेफड़ों का कैंसर ,टी. बी. ,चरम रोग ,अपंगता ,मंदबुद्धि बच्चों का पैदा होना आदि बीमारियां फैलती हैं , जो भविष्य की पीढ़ियों के लिए भी अनैतिक है ।
c ) परमाणु संयंत्र से निकलने वाले रेडियो एक्टिव तत्व हवा के द्वारा हमारी खाद्य श्रंखला में दूध ,मांस ,मछली ,फल ,सब्जी , आदि के द्वारा शरीर में सीधे पहुँचते हैं जहाँ पर वे शरीर की कोशिकाओं को तोड़कर छोटा करते हैं , जिसके कारण बीमारियां फैलती हैं ।
2. परमाणु ऊर्जा एक महंगी बिजली : परमाणु ऊर्जा के बारे में सस्ती बिजली के दावे लगातार गलत साबित हुए हैं ।
1. परमाणु तकनीक को व्यवाहरिक बनाने के लिए शोध तथा विकास का सारा खर्चा सरकारें वहन करती हैं इसलिए इस खर्चे को परमाणु -----------
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