मरम्मत हिन्दी में खूब रचा-बसा शब्द है । अरबी मूल का यह शब्द फ़ारसी के ज़रिये हिन्दी समेत कई भारतीय भाषाओं में प्रचलित हुआ । मरम्मत शब्द का अर्थ है बिगड़ी वस्तु को सुधारना, उद्धार करना, संशोधन करना, सँवारना, कसना, योग्य बनाना, सुचारू करना, कार्यशील बनाना आदि । इन तमाम भावों के बावजूद हिन्दी में मरम्मत का प्रयोग ठुकाई-पिटाई या मार-पीट के तौर पर ज्यादा होता है । “इतनी मरम्मत होगी कि नानी याद आ जाएगी” जैसे वाक्य से पिटाई का भाव स्पष्ट है । किसी की पिटाई में भी उसे सबक सिखाने का भाव है, सज़ा देने का भाव है ।
Tuesday, September 17, 2013
Wednesday, September 11, 2013
amerika
दुनिया भर में अमरीकी चौधराहट, अमरीकी सदी और
वाशिंगटन आम सहमति का गुब्बारा भी पिचक रहा है.
विश्व जनगण की आकांक्षा और कार्यभार को तय करने
वाली सच्चाई आज भी यही है- देश आज़ादी चाहते हैं,
राष्ट्र मुक्ति चाहते हैं, जनता इन्कलाब चाहती है..
"आशु "
वाशिंगटन आम सहमति का गुब्बारा भी पिचक रहा है.
विश्व जनगण की आकांक्षा और कार्यभार को तय करने
वाली सच्चाई आज भी यही है- देश आज़ादी चाहते हैं,
राष्ट्र मुक्ति चाहते हैं, जनता इन्कलाब चाहती है..
"आशु "
Monday, September 9, 2013
janta
मुझे जनता पर भरोसा है वह अपने विवेक से
इस संकट की घड़ी में सोच विचार के साथ बहकावे
में अब और नहीं आयेगी और शांति कायम करेगी ॥
इस संकट की घड़ी में सोच विचार के साथ बहकावे
में अब और नहीं आयेगी और शांति कायम करेगी ॥
MY POEM
My poems.......
मुझे याद रहा
कि मैंने चोटी रखी है
उसकी दाढ़ी है
कि मैंने धोती बाँधी है
और उसने तहमद
कि मैं मंदिर जाता हूँ
और वह मस्लिद
मुझे नहीं याद रहा
उसका इंसान होना
नहीं याद रहा कि
उसका दुःख और मेरा दुःख
एक है
मैं क्यों सहन नहीं कर पाता
भिन्नता
दीपा
मुझे याद रहा
कि मैंने चोटी रखी है
उसकी दाढ़ी है
कि मैंने धोती बाँधी है
और उसने तहमद
कि मैं मंदिर जाता हूँ
और वह मस्लिद
मुझे नहीं याद रहा
उसका इंसान होना
नहीं याद रहा कि
उसका दुःख और मेरा दुःख
एक है
मैं क्यों सहन नहीं कर पाता
भिन्नता
दीपा
Sunday, September 8, 2013
BUR VAKT
अभी और बुरा वक्त हम हिन्दुस्तानियों
की इन्तजार कर रहा है ।
कब क्या हो जाये कहना मुश्किल है ।
हमें आखरी पांत तक बाँट कर लूटने की
तयारियां जोर पकडती जा रही हैं ।
की इन्तजार कर रहा है ।
कब क्या हो जाये कहना मुश्किल है ।
हमें आखरी पांत तक बाँट कर लूटने की
तयारियां जोर पकडती जा रही हैं ।
Saturday, September 7, 2013
kissan
आज के दिन टी वी पर किसी भी
सीरियल में किसान का दुःख दर्द
बयाँ नहीं किया जा रहा |
आखिर क्यूं ?
AGLA PICHHLA
ना पिछला है ना अगला जनम है ,
सारा हिसाब इसी जनम में है
बहुत बहका लिया है हमको अगले
पिछले के चक्कर में तुमने
Friday, September 6, 2013
EK BAAT
मध्य युगीन सूफी संतों के साथ आज के
तथा कथित संतों और बाबाओं को एक
साथ रख कर देखना उन सूफी संतों के
साथ सरासर अन्याय है ।
तथा कथित संतों और बाबाओं को एक
साथ रख कर देखना उन सूफी संतों के
साथ सरासर अन्याय है ।
Thursday, September 5, 2013
EK BAAT
घोर निराशा का दौर देखो भारत में आज छाया है ॥
बाजार व्यवस्था माध्यम अमेरिका घर में आया है॥
चारों तरफ अँधेरा बहुतों को देता आज दिखलाई
घोटालों से बनी भारत वर्ष की देखो ये काया है ॥
कभी अन्नाजी कभी राम देव के माध्यम से जुटे हैं
अभी तक जनता को सही रास्ता नहीं मिल पाया है ॥
यकीन है हमको की निराशा में से आशा की किरण
एक दिन फूटेगी जरूर हमेशा ही तो बदलाव आया है ॥
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Will fail Fighting and not surrendering
I will rather die standing up, than live life on my knees: