Monday, April 8, 2024

साक्षरता

विजय कुमार dc RK खुल्लर dc P K Das dc इन अधिकारियों का गजब का सहयोग रहा पानीपत के साक्षरता अभियान में। इन्होने साक्षरता को पहली प्राथमिकता दी । **मुख्य कार्यकर्ता कमल कौर, सबीता, दीपा, मंजीत राठी, अनिता, अंजली, डॉ सुरेश शर्मा, सत्य प्रकाश, राजीव, राजपाल दहिया, राजेश अत्रे, डॉ शंकर इसराना, डॉ जयपाल इसराना, शीलक राम , साथी वीरेंद्र शर्मा, शीश पाल, साथी श्याम लाल, 2 साल के डेपुटेशन पर गया था मैं सरकार की इजाजत से मगर मेरे hod ने मुझे भगौड़ा करार दे दिया और मेरी एसीआर खराब कर दी। इंक्रीमेंट रुकी मेरी इस वजह से। ***जत्थे तैयार किये उन्होंने माहौल बनाया **स्लोगन्स **Primar तैयार किया छपवाया दिल्ली की प्रेस से उस दौर के छपे primers में सबसे सस्ता था । प्रेस हमारे voluntarism से काफी प्रभावित हुई। बाद तक इस प्रेस से संपर्क बना रहा। *** कुल निरक्षरों के 21 % लोगों को ही साक्षर कर पाए उस दौर में। ** जत्था लेकर गए । चौपालाे में। क्लासों में महिलाएं ज्यादा आई। उनसे पहले दौर में बहुत कम सीधा संपर्क कर पाये थे। जो कहते थे लोग पढ़ना नहीं चाहते, इस बात को झूठा साबित किया उन महिलाओं ने। पहले महिलाएं चौपाल के सामने से जाते हुए घूंघट करके जाती थी, उनको चौपाल में चढ़ कर महिलाओं को चौपाल में मीटिंग करना सिखाया। कई महिलाओं के घूंघट स्टेज से ही खुलवाये। बहुत कुछ सीखा ***** 1992 में क्लोजिंग रैली 10--12 दिसंबर 1992 को की गई। बाबरी मस्जिद के गिराने का दौर था। बड़ी संख्या में मुस्लिम साक्षर आये थे। **** मुझे मेरे hod ने abscondar का मेरी acr में तगमा दिया। जो आज भी है मेरे पास। **** लोगों से संवाद के तरीके सीखे। ***** बहुत कुछ है दो साल के सफर में। 3 लड़ाई 1526---राजा इब्राहिम लोदी और बाबर के बीच 1556---हेमू और अकबर के बीच 1761 -- अहमद शाह अब्दाली और मराठों के बीच पानीपत की चौथी लड़ाई 1990..1992 के बीच कुछ बातें कुछ सवाल लोगों के बीच से निकल कर आए: 1 . एक किसान एक एकड़ में कितना गन्ना पैदा करता है ? 2 एक क्विन्टल गन्ने में कितनी चिन्नी बनती है ? 3 . कितना शीरा बनता है ? 4 . कितनी खोही बनती है ? 5 . इनसे आगे एक किलो शीरा से एक दारू की बोतल बनती है । 6 . इसी प्रकार खोही से कापी पेन्सिल और बिजली बनती है । क्या कोई किताब है ऐसी जिसमें इसका पूरा हिसाब किया गया हो ? 1990-92 में पानीपत की चौथी लड़ाई नाम से साक्षरता अभियान में ये सवाल लोगों ने उठाये थे । मैंने दो साल वहां काम किया था \ तब से उस किताब को ढूंढ रहा हूँ ? आपके पास हो तो एक कापी मुझे भी भेजना जी । कुछ अनुभव जो अभी भी दिमाग में घूमते रहते हैं:- पानीपत की चौथी लड़ाई सारे मिलकर करैं पढ़ाई शायद मतलौडा ब्लॉक की वर्कशॉप थी टीचर्स और अक्षर सैनिकों कि primar निरक्षरों की क्लास में कैसे पढ़ना पढ़ाना है । एक पाठ बरसात कैसे होती है इस पर था । कैसे सूर्य की गर्मी और पानी के वाष्पीकरण से बादल बनते हैं और बरसात होती है। एक अध्यापक महोदय ने कहा यह गलत है, बरसात तो हवन करने से होती है । हमारे साथी ने उसे और ज्यादा सहजता के साथ समझाया कि बरसात के पीछे क्या क्या वैज्ञानिक मसले हैं । मास्टरजी तो अड़े रहे। फिर हमारे साथी ने पूछा-मास्टरजी आपका बच्चा कौनसी क्लास में पढता है? जवाब था-- आठवीं में। साथी-- यदि उसके एग्जाम में यह सवाल आ जाय कि बरसात कैसे होती है तो आप उसे क्या सलाह देंगे मास्टरजी-- उसे तो मैं यही कहूंगा कि बरसात बादलों से होती है यही लिख कर आना। साथी से रहा नहीं गया और कहा- फूफा फेर आध घण्टे तैं म्हारा सिर क्यूँ खान लागरया सै। यूं ही याद आयी पानीपत की चौथी लड़ाई जो 1990 में शुरू की और अब तक जारी है । एक दक्ष ***** “जो विचारों मे जिंदा रहते है वह कभी मरते नहीं” अलविदा ड़ा शंकर लाल, सलाम, जिंदाबाद हरियाणा मे ज्ञान - विज्ञान के मूल्यों पर आधारित नवजागरण के सजग प्रहरी और कर्मठ एवं समर्पित, नए हरियाणा का स्वप्न्न देखने वाले, भारतीय सविधान मे प्रदत बराबरी (जाती व धर्म, महिला पुरुष,) देश मे बढ़ती आर्थिक गैर बराबरी, यानि आर्थिक, सामाजिक व राजनैतिक तौर पर फ़ैली गैर बराबरी के खिलाफ डटकर लड़ने वाले वैज्ञानिक समझ के व्यक्तितव के धनी ड़ा. शंकर से मेरा परिचय 17 सितंबर 1990 मे हुआ था जब मै 16 वर्ष का था। व एक ग्रामीण बच्चो की तरह ही संसार को समझता था। उनसे मुलाक़ात पानीपत की चौथी लड़ाई (निरक्षरता के खिलाफ जंग) के समय हुई जब वह हमारे स्कूल मे सभी बच्चों के साथ साक्षरता अभियान के लिए स्वेछिक रूप से जुडने की अपील करने आए थे। उस समय बस इतना आभास सा था की समाज मे जो हो रहा है उसमे कुछ गड़बड़ है हमे कुछ करना चाहिए। उस समय पानीपत की चौथी लड़ाई के अगुवा साथियो मे पानीपत जिले मे डाक्टर शंकर, ड़ा सुरेश शर्मा व राजेश आत्रेय हुआ करते थे। ड़ाक्टर साहब के उस समय के साथ ने जिंदगी के मायने, सोचने के तरीके, मान्यताएँ सभी कुछ बदल दिया। मेरे जैसे कितने ही साक्षरताकर्मी है जिनकी जिंदगी मे बदलाव आया है व वैज्ञानिक समझ पैदा हुई है। यह श्र्देय डाक्टर साहब का ही योगदान की आज हम देश, दुनिया मे कही भी रहे लेकिन समाज बदलाव व समाज मे वैज्ञानिक समझ के पैदा करने का प्रयास निरंतर जारी है। और जारी रहेगा। वैचारिक, मानसिक, दोस्त - गुरु डाक्टर शंकर लाल अलविदा सलाम, जिंदाबाद ****** बैंक में पैसे जमा करवाने का मसला विजय कुमार जी ने एक बैंक बताया हमने कई बैंकों से पूछा इंटरेस्ट कितना देंगे। जिसने ज्यादा दिया वहां करवाया। विजय कुमार जी ने खुशी जताई। ****** जी जान लगा दी थी साथियों ने साथी वीरेंद्र ने अपनी जान पर खेल कर लोगों की ज्यान बचाई उसी दौर में। ****** हरयाणवी भाषा जीवन शैली बन गयी। लोगों के बीच हिंदी या अंग्रेजी भाषा काम नहीं आई। हरयाणवी में बातचीत शुरू हुई। अब यह हरयाणवी मेरी रोजाना की भाषा बन गई है। **** खर्च का मसला लोगों ने बहुत मदद की तो खर्च बहुत कम हुआ और काफी पैसा बच गया। इस वक्त उसका बेहतर इस्तेमाल नहीं कर पाए । बैंको में पड़ा है ******** हरियाणा के साक्षरता आंदोलन के कुछ अनुभव व विचार सन 90 से लेकर सन 1998 तक चले साक्षरता अभियानों के अनुभव कुछ इस प्रकार हैं, इन्हें और ज्यादा गहराई तथा आलोचनात्मक दृष्टि से देखने की आवश्यकता से इनकार नहीं किया जा सकता। 1) यह साक्षरता आंदोलन एक ऐतिहासिक आंदोलन के रूप में दर्ज किया जाएगा। 2) इसमें बहुत सारी जन गतिविधियां (मास एक्टिविटीज) आयोजित की गई जिनका लोक जन समूह (masses)पर व्यापक प्रभाव हुआ 3 ) इस प्रक्रिया ने कई नई संभावनाओं को जन्म दिया जिन्हें गहराई से समझा जाना चाहिए तथा महज नव साक्षरों के आंकड़ों तक सीमित करके इस प्रक्रिया को नहीं देखा जाना चाहिए 4) बड़ी संख्या में कला कर्मियों तथा स्वयंसेवी कार्यकर्ता संपर्क में आए तथा इस आंदोलन का हिस्सा बने 5) सामूहिकता तथा खुद की पहल कदमी जैसी प्रक्रियाएं उभरती दिखाई दे रही हैं या इनकी संभावनाएं पैदा हुई हैं 6) महिलाएं बड़े पैमाने पर इस आंदोलन में शामिल हुई तथा इस आंदोलन को अपना आंदोलन माना 7) पहले की अपेक्षा स्रोत व्यक्तियों की संख्या तथा उनके अपने क्षेत्र के काम में गहराई में विकास हुआ है 8) साक्षरता से संबंधित काफी पठन सामग्री तथा दूसरे सॉफ्टवेयर तैयार किए गए हैं 9) फंड्स के बारे में भी साक्षरता अभियान ने अपनी क्रेडिबिलिटी बनाई है 10) इसके बावजूद कई ऐसे अन देखे, अन पहचाने क्षेत्र हो सकते हैं जिनका पता विधिवत कंडक्ट की गई इंपैक्ट स्टडी से ही लगाया जा सकता है। 11) ग्रामीण जीवन की और शहरी जीवन की बारीकियों से जानकारियां सामने आई। 12) ग्रामीण महिलाओं को कैसे मोबिलाइज किया जाए इसके रास्ते निकाले 13) आईएस अफसरों के बारे कई भ्रांतियां भी साफ हुई। 14) गीत, रागनी, नाटक, ग्रुप वार्ता की अहमियत सामने आईं लोगों के बीच अपनी बात ले जाने के लिए । 15) पानीपत जिले के अनुभव ने रोहतक , जिंद, भिवानी, हिसार जिलों में भी अभियान चलाने का हौंसला दिया 16) बहुत सा साहित्य भी नव साक्षरों के लिए तैयार किया गया। 17) कई छोटी छोटी बुकलेट छापी गई 18) 19) मगर साक्षरता आंदोलन की कई सीमाएं भी रही जिनके चलते अपेक्षित सफलताएं नहीं मिल सकी । 1) जैसा कि सोचा गया था यह अभियान एक जन आंदोलन नहीं बन पाया हालांकि इसने व्यापक प्रभाव जरूर पैदा किया 2) इस अभियान का परिप्रेक्ष्य नीचे तक पूरी तरह से नहीं जा पाया साथ ही फीडबैक भी काफी कमजोर रहा 3) इस आंदोलन से बहुत ज्यादा अपेक्षाएं की गई जिनमें पूरा या सफल न होने पर इस आंदोलन के रैंक एंड फाइल में भी निराशा पैदा हुई 4) मध्यम वर्ग के उन हिस्सों को जिन्हें इस अभियान में शामिल किया जा सकता था हम शामिल नहीं कर पाए 5) सांप्रदायिकता, जात-पात तथा लिंग भेद के मुद्दों पर ज्यादा संवेदनशीलता की जरूरत थी 6) अपने कैडर की निरंतर शिक्षा व प्रशिक्षण (परिप्रेक्ष्य के बारे में) की कमी भी रही 7) राज्य स्तर पर काम कर रही बीजीवीएस तथा जेड एस एस (जिला साक्षरता समिति) के बीच भी gaps रहे 8) टीएलसी के विभिन्न स्तरों पर वांछित क्षमताओं की कमी तथा TLC/PLC जरूरतों को समय रहते लक्षित करके कारगर कदम उठाने की कमी भी एक कारण रही। टीएलसी पीएलसी की नेचुरल overlaping भी विजुलाइज नहीं कर पाए 9) ज्यादातर शिक्षण संस्थाएं इस अभियान से अछूती रही या इनडिफरेंट रही 10) हम पार्ट टाइमर के लिए उनका स्थान, उनकी इस अभियान में भूमिका सुनिश्चित नहीं कर पाए । उनका बहुत कम समय भी बहुत कीमती था 11) ज्यादा योजना बद्ध और सोचे समझे ढंग से पानीपत का पीएलसी नहीं चलाया जा सका 12) आंकड़ों के दबाव ने इस अभियान की गुणवत्ता को काफी प्रभावित किया 13) महिलाओं के मुद्दों पर अलग से योजना बनाने में काम में कमजोरी तथा कमी रही 14) राज्य स्तर पर राजनीतिक प्रतिबद्धता की अखरने वाली कमी भी एक मुख्य कारण रही 15) अफसरशाही ने भी जनतांत्रिक ने ढंग से पार्टिसिपेटरी तौर तरीकों को अंगीकार नहीं किया इससे भी काफी असर पड़ा 16 यमुनानगर और अंबाला जिलों में चले साक्षरता के सरकारी कार्यक्रमों की कागजी सफलता को सरकारी मान्यता तथा प्रचार ने भी साक्षरता अभियानों के मनोबल पर प्रतिकूल असर डाला वास्तव में वहां के आंकड़े कहीं कम थे 17) पूर्ण कालिक कार्यकर्ताओं पर अभियान की निर्भरता और पूर्ण कालिक कार्यकर्ताओं की Wage dependence ने अभियान को व्यापकता प्रदान करने में प्रतिकूल असर डाला। स्वयं सेवी भावना (अक्षय सैनिक की) तथा सीपीसी की Wage dependence में एक अंतर विरोध निहित था। इसका और ज्यादा विश्लेषण किया जाना चाहिए 18) Self Sustainef आत्म निर्भर गतिविधियों का अभाव रहा जबकि Sponsered गतिविधियों पर निर्भरता ज्यादा रही। इसलिए शायद नीचे के स्तर पर इनीशिएटिव भी ट्रांसफर नहीं हो पाया 19) दलित वर्गों से सरोकार रखने वाले विषयों तथा मुद्दों की भी कमी खलने वाली रही इस अभियान में 20) इस प्रोजेक्ट की आधारभूत संरचना ही कमांड स्ट्रक्चर की रही। इस प्रकार के ढांचे में अति केंद्रीयतावाद के खतरे बहुत होते हैं 21) स्वयं सेवी संस्थाओं का ग्राम स्तर पर सांगठनिक ढांचा न होना भी एक कारण था अभियान के दौरान यह ढांचा खड़ा नहीं हो सका । रणवीर सिंह दहिया 19.5.1998 Move to folder... 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