Wednesday, June 21, 2023

आज के हरियाणा की चुनौतियां--1

 आज के हरियाणा की चुनौतियां..1

हरयाणा प्रदेश  ने 1966 में अपना अलग प्रदेश के रूप में सफ़र शुरू किया और आज 2023 तक पहुंचा है ।  इस बीच बहुत परिवर्तन हुए हैं ।  इनका सही सही आकलन ही हमें आगे की सही दिशा दे सकता है । इसके बनने के वक्त पिछड़ी खेती बाड़ी का दौर था ।
         उसके बाद हरित क्रांति का दौर आया । हरित क्रांति का दौर अपने आप नहीं आ गया । यहाँ के किसान और मजदूर की मेहनत रंग ले कर आई  जिसने सड़कों का जाल बिछाया , बिजली गावों -गावों तक पहुंचाई । नहरी पानी की सिचाई का भी विस्तार हुआ । इस सब का सही सही आकलन शायद ही हुआ हो । मगर एक बात जरूर देखी जा सकती है कि इस के आधार पर ही हरित क्रांति दौर आ पाया ।
नए बीज, नए उपकरण , नयी खाद , नए तौर तरीकों को यहाँ के किसान मजदूर ने अंगीकार किया और हरयाणा के कुछ हिस्सों में हरित क्रांति ने उन क्षेत्रों की खेती की पैदावार को बढ़ाया ।
        वहीँ आहिस्ता आहिस्ता इसके दुष्प्रभाव भी सामने आने लगे । जमीन की उपजाऊ शक्ति कम होती चली गई । कीटनाशकों के अंधाधुंध इस्तेमाल ने अपने कुप्रभाव मनुष्यों , पशुओं व् जमीन के अंदर दिखाए हैं जो चिंतनीय स्तर तक जा पहुंचे हैं । 
       हरित क्रांति से एक धनाढय़ वर्ग पैदा हुआ, जिसने अपने अपने इलाके में अपनी दबंगता व् स्टेटस का इस्तेमाल करते हुए यहाँ के राजनैतिक , आर्थिक और सामाजिक क्षेत्र में अपना प्रभुत्व जमाया है । इस सब में हमारी पिछड़ी सोच और अंध विश्वासों के चलते एक अधखबडे़ इंसान का विकास हुआ है जो कुछ बातों में प्रगतिशील है और बहुत सी बातों में रूढ़िवादी है । जात पात और गोत नात अभी भी वंचित तबकों के बेहतर जीवन के लिए बड़ी चुनौती बने हुए हैं।  इस इंसान के व्यक्तित्व का प्रभाव हर क्षेत्र में देखा जा सकता है। चाहे शिक्षा का क्षेत्र हो, चाहे स्वास्थ्य का क्षेत्र हो, चाहे खेती बाड़ी का क्षेत्र हो , चाहे उद्योग का क्षेत्र हो , चाहे सामाजिक क्षेत्र हो ।
      हमारे समाज में कृषि में हरित क्रांति के साथ-साथ जो औद्योगिक प्रगति हुई है, उसका लाभ तो शिक्षित मध्य वर्ग को मिला है। इसके चलते हरियाणा की आबादी के एक बड़े हिस्से की आर्थिक स्थिति मज़बूत हुई है लेकिन सामाजिक-सांस्कृतिक पिछड़ापन बड़े पैमाने पर व्याप्त है। हरियाणा में अर्ध-सामंती मूल्यों पर आधारित जातीय वर्चस्व, पितृसत्ता और पुरुष प्रधानता की मान्यता है; और सामाजिक सम्बन्धों का आधार यही मान्यता है। इसके चलते महिलाओं और दलित-पिछड़ी जातियों का उत्पीड़न आम घटनाक्रम है। इसी के साथ नवधनाढ्य वर्ग में सत्ता की भूख, जोड़-तोड़ के साथ निजी तरक्की का रुझान और आत्मकेंद्रित सोच हावी है। आज़ादी के आंदोलन में पैदा हुए आदर्शवाद की कमज़ोर उपस्थिति आदि के चलते अवसरवादी, भाई-भतीजावाद पर आधारित एवं भ्रष्टाचार से लिप्त राजनीति का बोलबाला है।
    इस अधखबड़े व्यक्तित्व को भरे पूरे मानवीय इंसान में कैसे बदला जाये यह अहम् मुद्दा है जो कि महज राजनैतिक ही नहीं बल्कि सामाजिक भी है। और एक  नवजागरण आंदोलन की मांग करता है । यह हरियाणा के पूरे समाज की जरूरत भी है और जिम्मेदारी भी बनती है कि सामंती और पुरुषवादी पिछड़ी सोच के खिलाफ समाज सुधार आंदोलन चलाया जाए।
   जल संकट से जूझ रहे हरियाणा में भूजल की स्थिति गंभीर है। हरियाणा जल संसाधन प्राधिकरण द्वारा पूरे प्रदेश से जुटाए आंकड़ों के मुताबिक अब 1948 गांव रेड जोन में आ चुके हैं। चिंता की बात यह कि 84 प्रतिशत गांवों में भूजल स्तर तेजी से पाताल की ओर जा रहा है। प्रदेश के कुल 7287 गांवों में से केवल 1304 गांव ग्रीन जोन में हैं, जबकि
6150 गांवों में भूजल तेजी से नीचे जा रहा है।
3041 गांव कमी पानी की
40% संकट में
1948 गम्भीर संकट में
         शिक्षा के क्षेत्र में जहाँ एक और एजुकेशन हब बनाने के दावे किये जा रहे हैं और नए नए विश्विदालयों का खोलना एक अचीवमैंट  के रूप में पेश किया जा रहा है । 14473 सरकारी स्कूल और 10394 प्राइवेट स्कूल  2021 में मंत्री महोदय ने हरयाणा विधान सभा में एक सवाल के जवाब में बताए। 137 संस्कृति सीनियर सेकेंडरी स्कूल भी इन्ही का हिस्सा बताए थे।
   
          वहीँ दूसरी और सरकारी स्कूली शिक्षा की गुणवत्ता कई तरह से प्रभावित हुई है । शिक्षा की प्राइवेट दुकानों में भी शिक्षा की गुणवत्ता का तो प्रश्न ही नहीं बल्कि शिक्षा को व्यापार बना दिया गया है। चाहे वह स्कूली शिक्षा हो , चाहे वह उच्च शिक्षा हो , चाहे वह विष्वविद्यालयों की शिक्षा हो या ट्रेनिंग संस्थाओं की शिक्षा हो , हरेक क्षेत्र में व्यापारीकरण और पैसे के दम पर डिग्रीयों का कारोबार बढ़ा है, बढ़ता ही जा रहा है ।  दलाल संस्कृति ने इस क्षेत्र में दलाल माफियायों की बाढ़ सी लादी है । सेमेस्टर सिस्टम ने भी शिक्षा के स्तर को बढ़ाया तो बिलकुल भी नहीं हाँ घटाया बेशक हो । आगे सर्वे करने के विषय हो सकती हैं ये सब बातें।
       स्कूल बचेंगे तो शिक्षक बचेंगे। शिक्षक बचेंगे तो शिक्षा बचेगी। शिक्षा बचेगी तो देश बचेगा। अन्यथा कुछ नहीं बचेगा क्योंकि निजीकरण से शिक्षा का व्यवसायीकरण होगा। व्यवसायीकरण में शिक्षक और छात्र के बीच गुरु-शिष्य का रिश्ता कम लाभ-हानि का रिश्ता अधिक बनेगा। लाभ-हानि में पूंजीवादी लोग एक शिक्षक का नहीं, बल्कि एक ऐसे नौकर का चुनाव करेंगे, जो पूंजी को सलाम ठोकेगा। इस व्यवस्था में शिक्षक अपना ज्ञान बेचेगा, छात्र शिक्षा खरीदेगा बाक़ी गरीब, दलित, आदिवासी, असहाय, मजदूर इत्यादि से अच्छी शिक्षा कोसों दूर चली जायेगी । बेहतर है, शिक्षा का संरक्षण करें। हमें एकसमान, सरकारी, निःशुल्क, क्वालिटी एजुकेशन की दरकार है। इसी के लिए सरकार है। बेहतर राष्ट्र की कल्पना करते हैं, शिक्षकों का सम्मान करते हैं तो फिर पहले सुगम शिक्षा की बात जरूर कीजिए।
इंस्टीच्युट खोल दिए गए , कई कई सौ करोड़ की इमारतें खड़ी करके मगर उनकी फैकल्टी उनकी कार्य प्रणाली की किसी को कोई चिंता नहीं है ।
        # हरियाणा के 538 सरकारी स्कूलों में लड़कियों के लिए कोई टॉयलेट नहीं हैं
# 131 सरकारी स्कूलों में पीने के पानी की फैसिलिटी भी नहीं है।
# 236 सरकारी स्कूलों में इलेक्ट्रिसिटी कनेक्शन भी नहीं हैं।
# 8240 और क्लास रूम की जरूरत है इसके अलावा 5630 और दूसरे कमरे चाहिए जैसे साइंस लैब आदि के लिए सरकारी स्कूलों में।
# 321 सरकारी स्कूल की बाउंड्री वाल भी नहीं हैं।
# इस सबके लिए हरयाणा सरकार को कुल 1,784.03 करोड़ रुपये की जरूरत होगी।
# विडंबना है कि वित्त वर्ष 2023-24 के लिए सिर्फ 424.22 करोड़ का बजट है।
पंजाब हरियाणा हाई कोर्ट के सामने डॉक्टर अनशाज सिंह डायरेक्टर सेकेंडरी एजुकेशन डिपार्टमेंट हरियाणा ने यह सब आंकड़े रखे।
        विश्वविदयालयों के उपकुलपतियों की नियुक्तियों में यू जी सी की गाइड लाइन्स की धजियां उड़ाई जाती रही हैं । सबके लिए एक समान स्कूल की अनदेखी की जाती रही है जबकि यह सम्भव है । 150 के लगभग स्कूलों को बंद करने या मर्ज करने की खबरें भी आ रही हैं ।
          स्वास्थ्य के क्षेत्र में प्राइवेट सैक्टर की दखलंदाजी बढ़ी है । एम्पैनलमेंट  का कारोबार खूब चल रहा है । सरकारी स्वास्थ्य सेवाएं जैसे तैसे स्टाफ की कमी , डाक्टरों की कमी ,कहीं कुछ और कमियों के चलते , घिसट रही हैं । गरीब जन की सेहत के लिए सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं के माधयम से इलाज के रास्ते बंद होते जा रहे हैं या यूं कहें कि बंद किये जा रहे हैं । जितनी भी स्वास्थ्य सेवा की योजनाएं गरीबों के लिए हैं उनमें एक्जीक्यूसन की भारी कमियां हैं और योजना में भी कई कमियां हैं । प्राइवेट नर्सिंग होम के लिए केंद्र में पारित एक्ट भी हरयाणा में लागू नहीं किया है । इसलिए प्राइवेट  नर्सिंग होम्ज की लूट दिनोदिन आमनवीय रूप अख्तियार करते हुए बढ़ती जा रही है ।
      सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं में कर्मचारियों की भारी कमी देखने को मिलती है। ग्रामीण स्वास्थ्य सेवाएं अप्रैल 2021 को जनसंख्या 18197826 के अनुसार कमी इस प्रकार है:-- उप स्वास्थ्य केंद्र...942
पीएचसी...74
सीएचसी..32
चिकित्सा अधिकारी
पीएचसी..721
विशेषज्ञ सीएचसी..879
नर्सेस पीएचसी/सीएचसी..378
रेडियोग्राफर सीएचसी..113
फार्मासिस्ट पीएचसी/सीएचसी..503
लैब टेक्निशियन पीएचसी/सीएचसी..508
       सरकारी हॉस्पिटलज में सी टी स्कैन की महीनों लम्बी तारीखें दी जाती है । मुख्य मंत्री मुफ्ती इलाज योजना सैद्धांतिक तोर पर बहुत ठीक योजना होते हुए भी इसकी एक्जीक्यूसन बहुत ढीली ढाली चल रही है । इसके लिए मॉनिटरिंग कमेटीज का प्रावधान नहीं रखा गया है । खून की कमी NFHS 4 के मुकाबले NFHS 5 में गर्भवती महिलाओं में बढ़ी है । इसी प्रकार मालन्यूट्रिसन भी बच्चों में बढ़ा है । गरीब के लिए मुफ्त इलाज भी महंगा होता जा रहा है ।
         आज के हरयाणा की कुछ चुनौतियों में से एक बड़ा मसला सामाजिक न्याय  का मसला है । सामाजिक न्याय के सवाल तीव्र रूप से सामने आ रहे हैं । महिलाएं न घर में , न कर्म स्थल पर , न गली कूचों में , न बाजारों में सुरक्षित हैं । लॉ एंड ऑर्डर को स्थापित करने का काम काफी कमजोर होता जा रहा है । भ्रष्ट अफसर , भ्रष्ट पुलिस और भ्रष्ट नेता की तिकड़ी का उभार तेजी हो रहा है ।
     हरियाणा का दुलीना कांड हमें याद है । अक्तूबर 2002 में ठीक दशहरे के दिन पांच दलितों को जिंदा जला दिया गया था। आरोप था गौकशी का। पांच जनों की मौत पर संघ और आर्य समाज हत्यारों के साथ खड़ा था। पिछले महीने 23 सितंबर को  विहिप के केंद्रीय मंत्री डॉ. सुरेंद्र कुमार जैन ने गौकशी को लेकर प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाकर चेतावनी दी कि दुलीना कांड की पुनरावृत्ति हो सकती है। 2012 में दलित लड़कियों के साथ रेप की अनेक वारदातों के समय दलितों में तूफान मचा तो मुख्य पार्टियां  चौधरियों के नाराज होने के डर से उत्पीड़ितों के बजाय आरोपियों के पक्ष में तर्क तलाशते घूम रहे थे। मिर्चपुर, भगाना, डाबडा, दुलीना हर कहीं तो मुख्यधारा की पार्टियां, आर्य समाज, आरएसएस कोई भी आरोपियों के खिलाफ खड़े नहीं हुए। अब विभाजन कारी ताकतें और भी भयानक रूप से लोगों को जात पात और धर्म के नाम पर बांटने का घिनोना काम कर रही हैं ।
        सकारातमक अजेंडा न होने के कारण आज युवा वर्ग का एक हिस्सा नशे , फ्री सेक्स और अपराधीकरण की गिरफत में आता जा रहा है । दलित उत्पीड़न के , महिला उत्पीड़न के  केसिज बढे हैं पिछले कुछ वर्षों में । लम्पटपन बढ़ रहा है ।
       असंगठित क्षेत्र का विस्तार होता जा रहा है जिसमें मजदूर की हालत चाहे वह महिला है , पुरुष है , प्रवासी मजदूर है और उसकी जिंदगी बहुत ही मुस्किल हालातों की तरफ धकेली जा रही है । महंगाई का असर इन तबको के इलावा माध्यम वर्ग को भी प्रेषण किये हुए है ।

        एक तरफ शाइनिंग हरयाणा है जिसका गुणगान हर जगह और बहुत से इससे लाभान्वित तबकों द्वारा किया जाता है । मगर यह सच है कि यह तबका बहुत छोटा होते हुए भी प्रभावशाली है ।
     दूसरी तरफ सफरिंग हरयाणा हैं जिसका बहुत बार कोई भी व्यक्ति गम्भीरता से जिकर तक नहीं करता । इस तबके को हासिये पर धकेला जा रहा है । इसकी जद  में गरीब किसान , मजदूर , वंचित तबके, महिलाएं , नौजवान लड़के लड़की , प्रवाशी मजदूर , माइग्रेटेड पापुलेशन , असंगठित क्षेत्र के कर्मचारी खासकर महिला हैं । यानि हरयाणा का बड़ा हिस्सा इसमें शामिल है ।
     संक्षिप्त में कहें तो
ये बढ़ गई बेरोजगारी, करजे चढ़ते जा रहे भारी, हुई दुखी गरीब जनता सारी,हमारे बालक  बिना दवाई मर रहे हैं, पढ़ाई महँगी से महँगी होती जा रही है।
नाबराबरी ने वंचित तबकों को साँस चढ़ा दिये हैं , कारपोरेट के अत्याचारों की हदें पार हो रही हैं , मीडिया ने वर्तमान सरकार के प्रचारी का रूप धार गया है। ,
जात पात मैं बाँटी है जनता, विरोध किया तो काटी है जनता।
किसान की श्यामत आ गई है, महिला की इज्जत तार तार की जा रही है, चोरी जारी बढ़ती ही जा रही है।
झूठे जुमले रोजाना देते हैं,मगर खबर हमारी कभी नहीं लेते हैं। ये सब देख देख जन की तबियत  खारी होंती जा रही है, क्योंकि शासक हुआ बहुत  भ्रष्टाचारी है।
जनता हिम्मत नहीं  हारी है उसका संघर्ष जारी है । 'लड़े हैं जीते हैं , लड़ेंगे -जीतैंगे' भरतू और भरतारी।
         नैशनल कैपिटल रीजन स्कीम के तहत हरयाणा का ताना बाना काफी बदल रहा है और और भी बदलेगा । फोरलेन , टोल प्लाजा , फलाई ओवर , सेज़ के तहत उपजाऊ जमीनों के अधि गरहण के चलते खेती योग्य जमीन कम से कमतर होती जा रही है । जी डी  पी  में एग्रीकल्चर का योगदान काफी कम हुआ है । नए हरयाणा का सवरूप क्या होगा ? बिखरते गांव  इस पर कोई चर्चा नहीं है । औद्योगिकीकरण के दिशा क्या होगी कोई चर्चा नहीं। नौकरी पैदा करने वाली या नौकरी खत्म करने वाली ? वातावरण का क्षरण रोकने के बारे क्या किया जायेगा ?
          जेंडर फ्रैंडली , एको फ्रैंडली , और सामाजिक न्याय प्रेमी विकास का नक्शा क्या होगा ? ये कुछ मुद्दे हैं जिन पर हरयाणा के प्रबुद्ध नागरिकों को सोच विचार करना चाहिए और फिर एक जनता का चुनाव अजेंडा बना कर सभी राजनैतिक पार्टीयों के सामने पेश करके उनकी इस अजेंडे पर अपनी पोजीसन रखने को  कहा  जाना चाहिए । इस सबके लिए जनता का जनपक्षीय राजनीती के लिए लामबंद होना बहुत जरूरी है ।
हरियाणा नंबर वन -मजदूर किसान बिना , इन सबके सम्मान बिना  इनके चेहरे पर मुस्कान बिना - कैसे हो सकता है?
रणबीर सिंह दहिया




Saturday, June 10, 2023

Mobile phone problems

          In this article, we’ll look at five main problems that are causing people to "break up with their

phones" or quit social media altogether. These are the toxic parts of the new online world.

As businesses, we need social media to be relevant and stay in the eyes of the consumer, too. However,
there are lines that could be crossed if you aren’t careful. Here are just a few issues that are
erupting every day on the internet:
1. Too much content
Ever heard of the "endless scroll?" People become addicted to constantly checking their social media
feeds and companies are constantly posting ads, blogs, photos, questions and podcasts.

The brain can go through serious fatigue even without the added visual stimulation of the real world.
Many young people are being diagnosed with ADHD and similar behavioral issues because of this kind of
content overload.
2. Jealousy and constant competition
With photoshopped images and filters everywhere, it’s no wonder that the statistics for depression,
loneliness, self-esteem issues and suicides are on the rise. Sadly, plenty of companies are taking
advantage of this and posting envy-worthy bodies and lifestyles to make a quick buck from those with
low self-esteem.

3. Cancel culture
This is a more recent phenomenon for social media, where many are being "called out" for their past
transgressions. In some ways, it’s great — the #MeToo movement and other similar movements are weeding
out awful people that have held power for far too long.

However, this trend is also affecting people in a bad way as well. Many "cancellations" were incorrect
but already forever ruined someone’s reputation.

Does cancel culture mean you can’t make mistakes? We’re human, and mistakes are bound to happen, no
matter how careful you are as an individual or company.
4. Not enough fact-checking
"Fake news" is everywhere and sometimes people can’t tell the difference. Of course, Facebook and other
companies are attempting to mitigate the problem, trying to stop conspiracy theories or forcing
articles to go through fact-checks. However, it’s still a very real problem that, in some cases, can
cause huge political upheavals and deadly consequences.
5. Diagnosis without experience
This isn’t just medical. It also calls upon other service industries as well.

Suddenly everyone’s a doctor, plumber or dietitian from watching a YouTube video when, in reality, we
know that most of the expert work comes from years of hands-on experience and education.

This causes a lot of issues and has a real-world impact. Sure, you can pick up some handy tips from the
internet, but you can’t diagnose yourself with a deadly disease just because a website said you had a
few symptoms.

These problems aren’t going anywhere for a while unless the social media companies, governments, and
other technologies can start combating them correctly. Social is now too integral to business success
to stop using, but these are just a few things to keep in mind next time you’re hitting “post” online.

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About the Author
Mashaal Ryan
Mashaal Ryan is a content editor at MultiView. She is based in Dallas, Texas, and graduated from Baylor
University with an English degree in 2014. She blogs somewhat regularly and enjoys writing lifestyle
pieces. In the past, she has worked in marketing as well as journalism.

Thanks and Regards,
Dr. R.S. Dahiya

Manusmirti

 अब अदालतों में फैसले भी मनुस्मृति के आधार पर होने लगे हैं। मामला गुजरात का है। हाल ही में गुजरात हाईकोर्ट का एक फैसला आया है। एक सामूहिक बलात्कार पीड़िता जो कि  नाबालिक है,  प्रेगनेंट हो गई। दुखियारी पीड़िता ने हाईकोर्ट से प्रार्थना की कि उसे गर्भ गिराने की इजाजत दे दी जाए लेकिन हाईकोर्ट के माननीय  जज ने अपने फैसले 

में लिखा   है कि उसे गर्भ गिराने की इजाजत नहीं दी जा सकती क्योंकि मनुस्मृति के अनुसार पूर्व में 14-  15 वर्ष की आयु में ही लड़कियों की शादी हो जाती थी और 17 साल की आयु से पहले ही बच्चे हो जाते थे । अतः उसे गर्भ गिराने की इजाजत नहीं दी जा सकती ।  

   जज साहब का नाम है Justice Samir J. Dave.

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Will fail Fighting and not surrendering

I will rather die standing up, than live life on my knees:

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