Thursday, May 25, 2023

आज के हरयाणा की चुनौतियां

 आज के हरयाणा की चुनौतियां

हरयाणा प्रदेश  ने 1966 में अपना अलग प्रदेश के रूप में सफ़र शुरू किया और आज 2023 तक पहुंचा है ।  इस बीच बहुत परिवर्तन हुए हैं ।  इनका सही सही आकलन ही हमें आगे की सही दिशा दे सकता है । इसके बनने के वक्त पिछड़ी खेती बाड़ी का दौर था ।
         उसके बाद हरित क्रांति का दौर आया । हरित क्रांति का दौर अपने आप नहीं आ गया । यहाँ के किसान और मजदूर की मेहनत रंग ले कर आई  जिसने सड़कों का जाल बिछाया , बिजली गावों -गावों तक पहुंचाई । नहरी पानी की सिचाई का भी विस्तार हुआ । इस सब का सही सही आकलन शायद ही हुआ हो । मगर एक बात जरूर देखी जा सकती है कि इस के आधार पर ही हरित क्रांति दौर आ पाया ।
नए बीज, नए उपकरण , नयी खाद , नए तौर तरीकों को यहाँ के किसान मजदूर ने अंगीकार किया और हरयाणा के कुछ हिस्सों में हरित क्रांति ने उन क्षेत्रों की खेती की पैदावार को बढ़ाया ।
        वहीँ आहिस्ता आहिस्ता इसके दुष्प्रभाव भी सामने आने लगे । जमीन की उपजाऊ शक्ति कम होती चली गई । कीटनाशकों के अंधाधुंध इस्तेमाल ने अपने कुप्रभाव मनुष्यों , पशुओं व् जमीन के अंदर दिखाए हैं जो चिंतनीय स्तर तक जा पहुंचे हैं । 
       हरित क्रांति से एक धनाढय़ वर्ग पैदा हुआ, जिसने अपने अपने इलाके में अपनी दबंगता व् स्टेटस का इस्तेमाल करते हुए यहाँ के राजनैतिक , आर्थिक और सामाजिक क्षेत्र में अपना प्रभुत्व जमाया है । इस सब में हमारी पिछड़ी सोच और अंध विश्वासों के चलते एक अधखबडे़ इंसान का विकास हुआ है जो कुछ बातों में प्रगतिशील है और बहुत सी बातों में रूढ़िवादी है । इस इंसान के व्यक्तित्व का प्रभाव हर क्षेत्र में देखा जा सकता है। चाहे शिक्षा का क्षेत्र हो, चाहे स्वास्थ्य का क्षेत्र हो, चाहे खेती बाड़ी का क्षेत्र हो , चाहे उद्योग का क्षेत्र हो , चाहे सामाजिक क्षेत्र हो ।
    इस अधखबड़े व्यक्तित्व को भरे पूरे मानवीय इंसान में कैसे बदला जाये यह अहम् मुद्दा है जो कि महज राजनैतिक ही नहीं बल्कि सामाजिक भी है। और एक  नवजागरण आंदोलन की मांग करता है । यह हरियाणा के पूरे समाज की जरूरत भी है और जिम्मेदारी भी बनती है कि सामंती और पुरुषवादी पिछड़ी सोच के खिलाफ समाज सुधार आंदोलन चलाया जाए।
         शिक्षा के क्षेत्र में जहाँ एक और एजुकेशन हब बनाने के दावे किये जा रहे हैं और नए नए विश्विदालयों का खोलना एक अचीवमैंट  के रूप में पेश किया जा रहा है । 14473 सरकारी स्कूल और 10394 प्राइवेट स्कूल  2021 में मंत्री महोदय ने हरयाणा विधान सभा में एक सवाल के जवाब में बताए। 137 संस्कृति सीनियर सेकेंडरी स्कूल भी इन्ही का हिस्सा बताए थे।
          वहीँ दूसरी और सरकारी स्कूली शिक्षा की गुणवत्ता कई तरह से प्रभावित हुई है । शिक्षा की प्राइवेट दुकानों में भी शिक्षा की गुणवत्ता का तो प्रश्न ही नहीं बल्कि शिक्षा को व्यापार बना दिया गया है। चाहे वह स्कूली शिक्षा हो , चाहे वह उच्च शिक्षा हो , चाहे वह विष्वविद्यालयों की शिक्षा हो या ट्रेनिंग संस्थाओं की शिक्षा हो , हरेक क्षेत्र में व्यापारीकरण और पैसे के दम पर डिग्रीयों का कारोबार बढ़ा है, बढ़ता ही जा रहा है ।  दलाल संस्कृति ने इस क्षेत्र में दलाल माफियायों की बाढ़ सी लादी है । सेमेस्टर सिस्टम ने भी शिक्षा के स्तर को बढ़ाया तो बिलकुल भी नहीं हाँ घटाया बेशक हो । आगे सर्वे करने के विषय हो सकती हैं ये सब बातें।
       स्कूल बचेंगे तो शिक्षक बचेंगे। शिक्षक बचेंगे तो शिक्षा बचेगी। शिक्षा बचेगी तो देश बचेगा। अन्यथा कुछ नहीं बचेगा क्योंकि निजीकरण से शिक्षा का व्यवसायीकरण होगा। व्यवसायीकरण में शिक्षक और छात्र के बीच गुरु-शिष्य का रिश्ता कम लाभ-हानि का रिश्ता अधिक बनेगा। लाभ-हानि में पूंजीवादी लोग एक शिक्षक का नहीं, बल्कि एक ऐसे नौकर का चुनाव करेंगे, जो पूंजी को सलाम ठोकेगा। इस व्यवस्था में शिक्षक अपना ज्ञान बेचेगा, छात्र शिक्षा खरीदेगा बाक़ी गरीब, दलित, आदिवासी, असहाय, मजदूर इत्यादि से अच्छी शिक्षा कोसों दूर चली जायेगी । बेहतर है, शिक्षा का संरक्षण करें। हमें एकसमान, सरकारी, निःशुल्क, क्वालिटी एजुकेशन की दरकार है। इसी के लिए सरकार है। बेहतर राष्ट्र की कल्पना करते हैं, शिक्षकों का सम्मान करते हैं तो फिर पहले सुगम शिक्षा की बात जरूर कीजिए।
इंस्टीच्युट खोल दिए गए , कई कई सौ करोड़ की इमारतें खड़ी करके मगर उनकी फैकल्टी उनकी कार्य प्रणाली की किसी को कोई चिंता नहीं है ।
        विश्वविदयालयों के उपकुलपतियों की नियुक्तियों में यू जी सी की गाइड लाइन्स की धजियां उड़ाई जाती रही हैं । सबके लिए एक समान स्कूल की अनदेखी की जाती रही है जबकि यह सम्भव है । 150 के लगभग स्कूलों को बंद करने या मर्ज करने की खबरें भी आ रही हैं ।
          स्वास्थ्य के क्षेत्र में प्राइवेट सैक्टर की दखलंदाजी बढ़ी है । एम्पैनलमेंट  का कारोबार खूब चल रहा है । सरकारी स्वास्थ्य सेवाएं जैसे तैसे स्टाफ की कमी , डाक्टरों की कमी ,कहीं कुछ और कमियों के चलते , घिसट रही हैं । गरीब जन की सेहत के लिए सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं के माधयम से इलाज के रास्ते बंद होते जा रहे हैं या यूं कहें कि बंद किये जा रहे हैं । जितनी भी स्वास्थ्य सेवा की योजनाएं गरीबों के लिए हैं उनमें एक्जीक्यूसन की भारी कमियां हैं और योजना में भी कई कमियां हैं । प्राइवेट नर्सिंग होम के लिए केंद्र में पारित एक्ट भी हरयाणा में लागू नहीं किया है । इसलिए प्राइवेट  नर्सिंग होम्ज की लूट दिनोदिन आमनवीय रूप अख्तियार करते हुए बढ़ती जा रही है ।
      सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं में कर्मचारियों की भारी कमी देखने को मिलती है। ग्रामीण स्वास्थ्य सेवाएं अप्रैल 2021 को जनसंख्या 18197826 के अनुसार कमी इस प्रकार है:-- उप स्वास्थ्य केंद्र...942
पीएचसी...74
सीएचसी..32
चिकित्सा अधिकारी
पीएचसी..721
विशेषज्ञ सीएचसी..879
नर्सेस पीएचसी/सीएचसी..378
रेडियोग्राफर सीएचसी..113
फार्मासिस्ट पीएचसी/सीएचसी..503
लैब टेक्निशियन पीएचसी/सीएचसी..508
       सरकारी हॉस्पिटलज में सी टी स्कैन की महीनों लम्बी तारीखें दी जाती है । मुख्य मंत्री मुफ्ती इलाज योजना सैद्धांतिक तोर पर बहुत ठीक योजना होते हुए भी इसकी एक्जीक्यूसन बहुत ढीली ढाली चल रही है । इसके लिए मॉनिटरिंग कमेटीज का प्रावधान नहीं रखा गया है । खून की कमी NFHS 4 के मुकाबले NFHS 5 में गर्भवती महिलाओं में बढ़ी है । इसी प्रकार मालन्यूट्रिसन भी बच्चों में बढ़ा है । गरीब के लिए मुफ्त इलाज भी महंगा होता जा रहा है ।
         आज के हरयाणा की कुछ चुनौतियों में से एक बड़ा मसला सामाजिक न्याय  का मसला है । सामाजिक न्याय के सवाल तीव्र रूप से सामने आ रहे हैं । महिलाएं न घर में , न कर्म स्थल पर , न गली कूचों में , न बाजारों में सुरक्षित हैं । लॉ एंड ऑर्डर को स्थापित करने का काम काफी कमजोर होता जा रहा है । भ्रष्ट अफसर , भ्रष्ट पुलिस और भ्रष्ट नेता की तिकड़ी का उभार तेजी हो रहा है ।
        सकारातमक अजेंडा न होने के कारण आज युवा वर्ग का एक हिस्सा नशे , फ्री सेक्स और अपराधीकरण की गिरफत में आता जा रहा है । दलित उत्पीड़न के , महिला उत्पीड़न के  केसिज बढे हैं पिछले कुछ वर्षों में । लम्पटपन बढ़ रहा है ।
       असंगठित क्षेत्र का विस्तार होता जा रहा है जिसमें मजदूर की हालत चाहे वह महिला है , पुरुष है , प्रवासी मजदूर है और उसकी जिंदगी बहुत ही मुस्किल हालातों की तरफ धकेली जा रही है । महंगाई का असर इन तबको के इलावा माध्यम वर्ग को भी प्रेषण किये हुए है ।
        एक तरफ शाइनिंग हरयाणा है जिसका गुणगान हर जगह और बहुत से इससे लाभान्वित तबकों द्वारा किया जाता है । मगर यह सच है कि यह तबका बहुत छोटा होते हुए भी प्रभावशाली है । दूसरी तरफ सफरिंग हरयाणा हैं जिसका बहुत बार कोई भी व्यक्ति गम्भीरता से जिकर तक नहीं करता । इस तबके को हासिये पर धकेला जा रहा है । इसकी जद  में गरीब किसान , मजदूर , वंचित तबके, महिलाएं , नौजवान लड़के लड़की , प्रवाशी मजदूर , माइग्रेटेड पापुलेशन , असंगठित क्षेत्र के कर्मचारी खासकर महिला हैं । यानि हरयाणा का बड़ा हिस्सा इसमें शामिल है ।
         नैशनल कैपिटल रीजन स्कीम के तहत हरयाणा का ताना बाना काफी बदल रहा है और और भी बदलेगा । फोरलेन , टोल प्लाजा , फलाई ओवर , सेज़ के तहत उपजाऊ जमीनों के अधि गरहण के चलते खेती योग्य जमीन कम से कमतर होती जा रही है । जी डी  पी  में एग्रीकल्चर का योगदान काफी कम हुआ है । नए हरयाणा का सवरूप क्या होगा ? बिखरते गांव  इस पर कोई चर्चा नहीं है । औद्योगिकीकरण के दिशा क्या होगी कोई चर्चा नहीं। नौकरी पैदा करने वाली या नौकरी खत्म करने वाली ? वातावरण का क्षरण रोकने के बारे क्या किया जायेगा ?
          जेंडर फ्रैंडली , एको फ्रैंडली , और सामाजिक न्याय प्रेमी विकास का नक्शा क्या होगा ? ये कुछ मुद्दे हैं जिन पर हरयाणा के प्रबुद्ध नागरिकों को सोच विचार करना चाहिए और फिर एक जनता का चुनाव अजेंडा बना कर सभी राजनैतिक पार्टीयों के सामने पेश करके उनकी इस अजेंडे पर अपनी पोजीसन रखने को  कहा  जाना चाहिए । इस सबके लिए जनता का जनपक्षीय राजनीती के लिए लामबंद होना बहुत जरूरी है ।
रणबीर सिंह दहिया

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