‘सप्तरंग’ कार्यक्रम रिपोर्ट
‘शराब आदत नहीं, जानलेवा बीमारी है।’
ऐल्कहौलिक्स एनौनिमस संस्था से जुड़े एक समय के पुराने शराबियों परन्तु अब उस से मुक्ति
पा चुके प्रतिनिधियों ने रोहतक के अनजान लोगों के सामने इस इतवार (8 जनवरी 2023) अपने दिल
खोल कर रख दिए। ‘सप्तरंग’ द्वारा आयोजित गोष्ठी में इन चार वक्ताओं ने शौक़िया यदा-कदा शराब
का सेवन करने की शुरुआत से ले कर शराबी हो जाने और फिर शराब से निजात पाने की अपनी कहानी
सुनाई। उन का कहना था कि शराब कोई आदत नहीं, लाइलाज बीमारी है - मधुमेह (डायबीटीज़/शूगर) की
तरह जीवनभर चलने वाली बीमारी। जिस तरह मधुमेह का मरीज़ कुछ सावधानियाँ रख कर बीमारी से
निपट सकता है, उसी तरह एक शराबी भी अपनी इस बीमारी से निपट सकता है। इस से निपटने में एक
समय के शराबी परन्तु अब उसे छोड़ चुके लोग उस की काफ़ी सहायता कर सकते हैं क्योंकि वह एक
शराबी की मन: स्थिति को भली-भाँति समझते हैं। यह संस्था नियमित ऑनलाइन एवं आमने-सामने,
दोनों तरह की बैठकों के माध्यम से शराबी को मानसिक रूप से शराब छोड़ने के लिए तैयार करती है।
संस्था के सदस्य कोई दवाई नहीं देते।
वक्ताओं में कोई 25 साल की उम्र तक आते-आते ही शराबी हो गया था तो कोई 32 की उम्र में।
कोई 20 साल शराबी रहने के बाद शराब छोड़ पाया था, किसी को शराब छोड़े 10 बरस हुए थे तो कोई
5 साल की कोशिश के बाद अभी मात्र 2 महीने से ही शराब से बचा हुआ था। वक्ताओं ने बताया कि
शराबी होने (यानी शराब के नशे की गिरफ़्त में आ चुके) एवं यदा-कदा शराब पीने वाले के बीच तीन
अन्तर होते हैं जिन के आधार पर व्यक्ति ख़ुद पहचान सकता है कि वह शराबी है या नहीं। एक शराबी
भले ही पीये केवल शाम को परन्तु वह 24 घण्टे शराब के बारे में सोचता रहता है - कि कब, कहाँ, कैसे
मिलेगी। वह एक तरह का मानसिक खिंचाव महसूस करता है। दूसरा, शराब पीने पर उस के शरीर की
ऐसी प्रतिक्रिया होती है कि वह शारीरिक तौर पर इस की और अधिक ज़रूरत महसूस करता है और शराब
अन्दर जाते ही वह अपना नियंत्रण खो बैठता है। तीसरा, वह नैतिक/मानसिक तौर पर खोखला हो जाता
है। यहाँ तक कि वह माँ के दाह संस्कार के एक घण्टे बाद ठेके पर हो सकता है और फिर शर्म तथा
आत्म-ग्लानि के चलते दोबारा पी सकता है। इन तीनों में से कोई एक लक्षण भी आप में है, तो आप
शराबी बन चुके हैं।
इस बीमारी की पहचान के उपरोक्त तीन तत्वों के अलावा, इस के प्रभाव भी चिह्नित किये गए।
पहला, इस से बचने के लिए पूरा जीवन प्रयास करने होंगे। अगर उपाय न किये जाएँ तो यह रोग बढ़ता
जाता है। और यह जानलेवा है - न केवल जानलेवा बल्कि दर्दनाक रूप से जानलेवा रोग, जिस का चरम
लिवर (कलेजा/जिगर) इस हद तक ख़राब होने के रूप में सामने आता है कि ‘पी लो या जी लो’ की
स्थिति आ पहुँचती है। यह बीमारी केवल शराबी को ही नहीं, पूरे परिवार को तबाह करती है। सब से
दर्दनाक पक्ष यह है कि व्यक्ति इस के होने को स्वीकार ही नहीं करता। उसे लगता ही नहीं कि उसे कोई
रोग है, कि वह इस के सामने लाचार हो चुका है। व्यक्ति को लगता है कि वह दो पैग तक सीमित रह
सकता है परन्तु शराब का एक घूँट अन्दर जाते ही वह अपना नियंत्रण खो बैठता है। इस लिए
ऐल्कहौलिक्स एनौनिमस का पहला प्रयास शराबी को यह एहसास दिलाने का रहता है कि वह इसे रोग के
रूप में स्वीकार करे। बिना इस तथ्य को स्वीकार किए आगे प्रगति करना मुश्किल है। उसे यह स्वीकार
करना होगा कि उस के लिए पहला घूँट अंतिम घूँट नहीं हो सकता। इस लिए उसे पहला घूँट ही नहीं
लेना।
वक्ताओं के मुताबिक़ शराब छोड़ने की प्रक्रिया में ‘HALT’ प्रक्रिया प्रभावी पाई गई है। H से
हंगरी यानी भूखा न रहना। ऐल्कहौलिक्स एनौनिमस का अनुभव है कि पेट भरा होने पर शराब पीने की
सम्भावना कुछ कम हो जाती है। A से ऐंग्रि यानी ग़ुस्सा नहीं होना। ग़ुस्सा/झगड़ा शराब पीने की
सम्भावना को बढ़ा देता है। इस लिए शराब छोड़ने के इच्छुक व्यक्ति को ग़ुस्से और लड़ाई-झगड़े की
स्थिति से बचना चाहिए। L से लोनली, यानी अकेले रहने से बचें। शराब न पीने वाले दोस्तों/परिजनों के
साथ रहें। आख़िर में, T से टायर्ड नहीं होना यानी बहुत ज़्यादा मशक्कत/थकने से बचना चाहिए (क्योंकि
थकान के बाद शराब की ज़रूरत महसूस होगी)। मीठा खाने से भी शराब की तलब कुछ कम होती है।
इस के अलावा, शराबी को शराब छोड़ने के लिए छोटे लक्ष्य रखने चाहिएँ; यह कोशिश करनी चाहिए कि
कम से कम आज शराब नहीं पीनी। उन की सलाह थी कि जो भी आप का इष्ट हो, उस से सुबह उठते
ही प्रार्थना करें कि कम से कम आज का दिन बिना पीये गुज़र जाए। इसी तरह एक-एक दिन कर के
शराब से दूरी बनाए रखी जा सकती है। साथ ही, होली-दीवाली जैसे मौक़ों पर विशेष सावधानी बरतनी
चाहिए।
वक्ताओं ने बताया कि विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार पूरी दुनिया में यह मृत्यु का तीसरा
सब से बड़ा कारण है। अगर दुर्घटना और चोट इत्यादि को शामिल कर लें तो पहला सब से बड़ा कारण
बन जाता है। उन्होंने यह भी बताया कि आंकड़े दिखाते हैं कि शराब का सेवन करने वालों में से 10-
15% लोग शराबी हो जाते हैं। युवतियों में भी यह समस्या बढ़ती जा रही है, यहाँ तक कि दिल्ली में उन
के सदस्यों में लगभग 20% महिलाएँ हैं।
ऐल्कहौलिक्स एनौनिमस का अनुभव यह है कि शराब केवल व्यक्ति नहीं बल्कि पूरे परिवार के
लिए बीमारी है। इस लिए उन का पहला प्रयास परिवार को इस के प्रभाव से निकाल कर जितना सम्भव
हो, सामान्य जीवन जीने के लिए तैयार करने का रहता है। इसी लिए शराब- पीड़ित परिवारों के लिए
काम करने वाली भी एक संस्था है जिस का नाम ALANON (सम्पर्क सूत्र - https://al-anon.org या
9871970664) है। यह नियमित बैठक के माध्यम से परिवारों को शराबी की शराब छुटवाने या कम से
कम परिवार पर उस के असर को कम करने में सहायता करती है। शराब के अलावा अन्य नशों से बचने
के लिए नार्कोटिक्स एनौनिमस नामक एक नयी संस्था शुरू की गई है ( https://nadelhi.org/ या
https://na.org/ )। ये सभी संस्थाएँ पूरी तरह से नि:शुल्क सहायता प्रदान करती हैं। इन से
9811908707 एवं 9810912534 या www.aagsoindia.in के माध्यम से सम्पर्क किया जा सकता है।
वक्ताओं ने बताया कि क्योंकि वे स्वयं भुक्तभोगी रहे हैं, इस लिए वे शराब छोड़ने के इच्छुक लोगों की
सहायता करना अपना फ़र्ज़ समझते हैं। देश भर में उन के सदस्य/समूह हैं एवं पीड़ित व्यक्ति या परिवार
द्वारा सम्पर्क करने पर उन की संस्था के सदस्य फ़ोन पर या व्यक्तिगत तौर पर मिल कर सहायता
करते हैं और यह सहायता पूरी तरह नि:शुल्क होती है। संस्था का सब साहित्य भी उन के वेबसाइट पर
मुफ़्त उपलब्ध है।
बैठक में ‘सप्तरंग’ के नियमित प्रतिभागी कम थे परन्तु नए प्रतिभागी काफ़ी थे। 30 के लगभग
लोगों ने बैठक में भाग लिया जिन में बड़ी संख्या नए लोगों की थी। इस से इस समस्या की भयावहता
का एहसास होता है। इस चर्चा में प्रतिभागियों ने यह भी रेखांकित किया कि शराब केवल व्यक्ति या
परिवार के लिए ही नहीं, बल्कि समाज के लिए भी एक बीमारी है। न केवल इस के प्रभाव सामाजिक हैं,
इस के सामाजिक कारण भी हैं। इसलिए इस से निपटने के लिए व्यक्तिगत या पारिवारिक उपायों के
साथ-साथ सामाजिक स्तर के उपाय भी आवश्यक हैं। हालाँकि कार्यक्रम में सामाजिक पक्ष पर चर्चा नहीं
हुई परन्तु इस को नज़रअंदाज़ करना सही नहीं होगा।
ऐल्कहौलिक्स एनौनिमस के प्रतिनिधियों की पीड़ा के साथ-साथ शराब छोड़ पाने का गौरव उन के
चेहरों से साफ़ झलक रहा था। आशा है कि हम सब लोग मिल कर पीड़ित व्यक्तियों/परिवारों तक यह
जानकारी पहुँचाएँगे ताकि कल को उन के चेहरे भी गर्व भरे दिखाई दें। ‘सप्तरंग’ ऐल्कहौलिक्स एनौनिमस
के प्रतिनिधियों के प्रति दिल से आभारी है।
कार्यक्रम के फ़ोटो संलग्न हैं। ऐल्कहौलिक्स एनौनिमस के नियमों के चलते कार्यक्रम की
वीडियो/ऑडियो रिकार्डिंग नहीं की गई एवं प्रतिनिधियों की पहचान भी ज़ाहिर नहीं की गई है।
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