Friday, July 1, 2022

अग्निपथ विरोध 24/6/22

 *ध्यान रहें 24/6/22 को लाखों बच्चों का JEE का पेपर हैं,उनको सैंटरों तक पहुंचने में रूकावटें नहीं सहयोग करना हैं। इसलिए कोई बस,ट्रैन, व्यक्तिगत साधन कहीं भी नहीं रोका जाएगा।*

         अग्निपथ के शांतिपूर्ण विरोध को सर्व कर्मचारी संघ हरियाणा व हरियाणा विद्यालय अध्यापक संघ का पूरजोर समर्थन
24/6/22 को सभी नजदीकी,टोल नाकों, तहसील, सबडिवीजन व डीसी दफ्तरों पर संयुक्त किसान मोर्चा द्वारा अग्निपथ के विरोध में होने वाले विरोध प्रदर्शनों में बढ़ चढ़ कर भाग लेंगे सभी शिक्षक व कर्मचारी।
     सरकार चाहती है कि युवा बहकावे में तोड़फोड़ करें, आगजनी करें, संपत्ति को नुक्सान करें....ऐसे मौकों पर पुलिस मुक दर्शक बनी खड़ी रहेगी ताकि युवाओं की जायज मांगों के विरोध में जनभावनाओं को भड़काया जा सके। प्राइवेटाइजेशन व उदारीकरण करने वाले सरकारें चाहती हैं कि संघर्षरत लोगों व जनता को आपस में लडा़कर, कार्पोरेट की लूट जारी रखी जाए। परन्तु अब बेरोजगार युवा, मजदूर, किसान ,शिक्षक व कर्मचारी सरकार की इस चाल को समझते हैं। अग्निपथ को वापिस लेने तक आन्दोलन चलेगा, परन्तु शांतिपूर्ण तरीके से,किसान आंदोलन की तरह सभी का सहयोग लेते हुए चलेगा। मुसाफिरों की सहायता के लिए टोल नाकों पर विद्यार्थियों के लिए फ्री टोल की सुविधाएं करवातें हुए प्रदर्शन किते जाएंगे।
  ध्यान रहे अपने घर के काम व ड्यूटी करते हुए,युवा, दुकानदार, मजदूर किसान,शिक्षक व कर्मचारी जहां भी हो, वहीं अपने नजदीकी प्रदर्शन में जरूर से जरूर शामिल हो। अग्निपथ अकेले फौज के प्राइवेटाइजेशन का,फौज के पद व पैंशन के प्राइवेटाइजेशन का मसला,या युवाओं की मान सम्मान व रोज़ी रोटी का ही मसला नहीं है, बल्कि यह देश की सुरक्षा व संप्रभुता का भी मसला हैं। अंबानी, अडानी, रामदेव,भाजपा व RSS का इतना दुस्साहस हमारी नासमझी,फूटप्रस्ती,मौन रहने व जुल्म सहने के कारण ही हो पाया है।गले तक पानी इसलिए आया क्योंकि

हम नोटबंदी के समय चुप रहे,जिससे 3 लाख कंपनियों के बंद होने से 2 करोड़ रोजगार छीन गये

गलत GST के समय चुप रहे

बिना तैयारी के हत्यारे लाकडाऊन पर चुप रहे

महंगाई पर चुप रहें

कश्मीर के असंवैधानिक बंटवारे पर चुप रहे।

असंवैधानिक व अमानवीय CAA,NRC पर चुप रहे।

इस तरह तानाशाही बढ़ती गई,हम नहीं समझे
काली शिक्षा नीति पर चुप्पी,रोड सेफ्टी बिल पर चुप्पी,बिजली संशोधन विधेयक पर मौन, रहे और भविष्य के लिए  शिक्षा,बिजली व परिवहन आम जरूरत की चीजें न रह कर सिर्फ अमीरों के लिए आरक्षण का रास्ता बन गया।
अब नई स्वास्थ्य नीति ने इलाज महंगा कर आमजन को मरने के लिए छोड़ दिया है।
हम चुप रहें और मर्ज व दर्द बढ़ता गया।लुटेरी सरकार अपने मालिकों को देश की धन दौलत व सभी सरकारी विभाग बेचती चलीं गईं।साथ ही बिकते चले आते युवाओं के सपने,उनका मान सम्मान, मानवीय गरीमा व प्रतिष्ठा।बिकती चली गई पक्की नौकरी,पैंशन, गुजारें लायक वेतन व सेवाशर्त। परन्तु हम फिर भी चुप रहे,मौन रहे,जुल्म सहते रहे।हमारी यहीं सहने की शक्ति दुश्मन की लूट व तानाशाही की ताकत बनती चली गई।

इसी बढ़ती ताकत के दम पर लुटेरी भाजपा की सरकार ने RSS की मंशानुरूप हमारी आंतरिक सुरक्षा यानि पुलिस के लगभग 50कामो को प्राइवेट कर दिया, पुलिस की नौकरी भी पार्ट टाइम,10-12 हजार की,बिना पैंशन की कर दी,,, हम तब भी चुप रहे।पर कब तक... सांस रोके बैठें रहे युवा,आखिर कब तक

जब फौज के गोले बारूद, हथियार बनाने की आयुध कंपनियों को भी देशी विदेशी कार्पोरेट को बेचकर देश की सुरक्षा में बड़ी सेंध लगाई,हम तब भी चुप रहे... हमारी चुप्पी ही हमारी बर्बादी का कारण बनती चलीं गईं।
परन्तु अब और नहीं।अब फैंसला होकर रहेगा।यह आर पार की लड़ाई होनी चाहिए।
*अब युवा समझ गया है कि भाजपा व RSS उनके हिस्से के रोजगार को पूंजीपतियों की पूंजी को रोजगार देकर भरना चाहती है।यह लड़ाई 166 घर बनाम 1.1 करोड़ जनता की है।*

अग्निपथ इस आक्रोश का एकमात्र कारण नहीं है।समाज का हर तबका तंग व बेहाल है। अग्निपथ तो एक आखिरी व तत्कालीन कारण है गुस्से के फ़ूटने का।
4 साल बाद ना तो युवा भाजपा के दफ्तरों पर और ना ही कार्पोरेट की गुलामी करेगा।वह शान से देश की सेवा भी करेगा और परिवार की परवरिश भी।ये दोनों काम एक दूसरे से ऐसे गुंथे हुए हैं कि अलग अलग किते ही नहीं जा सकते हैं। परिवार की परवरिश की चिन्ता में देश सेवा नहीं हो सकती और देश की सुरक्षा- सेवा के बिना परिवार की परवरिश नहीं हो सकती हैं।
इस गलत स्कीम को लागू करने के लिए सरकार द्वारा सेना प्रमुखों से भावनात्मक ब्लैकमेलिंग तक का सहारा लेना पड़ रहा है।
      ना तो ये देश कार्पोरेट का हैं,ना ही RSS का इस देश की आजादी में कोई योगदान हैं। इसलिए इसकी नीतियों के निर्धारण में भी इनकी भूमिका सहन नहीं करेगा आज का युवा। सावरकर नहीं भगतसिंह के सपनों का देश बनाने के लिए आज युवा जाग गया है।वह पढ़ेगा भी और कढ़ेगा भी।पर देशहित में पुरा काम भी करेगा और काम के पुरे दाम भी लेगा।देश का मान सम्मान व स्वतंत्रता और युवा का मान सम्मान व रोजगार अलग अलग चीजें नहीं है, बल्कि एक ही सिक्के के दो पहलू हैं।एक दूसरे के बिना दोनों अधूरे हैं।
तलवें चाट, चाटुकार,58 साल तक की नौकरी कर रिटायर्ड हुए,2-3 पैंशन लेने वाले लोगों के अग्निपथ के समर्थन की साज़िश उनकी कथनी व करनी के अंतर से समझी जा सकती हैं। कार्पोरेट का समर्थन कहना ही ग़लत हैं क्योंकि उनके व RSS के इशारों पर तो यह सब देश विरोधी काम हो ही रहे हैं।
     अपील है कि जायज मुद्दों के संघर्ष को साम्प्रदायिक ,दंगाई, आतंकी रंग देने वालों से बचाएं।जनता का आन्दोलन -जनता का सहयोग लेने देने से बनेगा,जनता को तंग करने से नहीं।अनजाने में अपनी उर्जा सरकार की इच्छा अनुसार देश की संपत्ति को नष्ट करने में न लगाएं।
      देश के विकास यानि सबके साथ वह सबके विकास की पूर्व शर्त हैं, कार्पोरेट व RSS भाजपा का विनाश।इनके हर रंग रूप का विनाश।

महत्व पूर्ण दिवस

 






महत्व पूर्ण दिवस
31 जुलाई
मुंशी प्रेमचंद
शहीद उधम सिंह  शहीदी दिवस
6 अगस्त
हिरोशिमा शांति दिवस
8 अगस्त 1942
भारत छोड़ो आंदोलन
9 अगस्त
नागाशाकी शांति दिवस
5 सितंबर
राष्ट्रीय अध्यापक दिवस
(सर्वपल्ली राधाकृष्ण का जन्म दिन )
8 सितंबर
अंतरराष्ट्रीय साक्षरता दिवस
23 सितम्बर
हरियाणा वीर शहीदी दिवस
(राव तुलाराम शहीदी दिवस)
27 सितम्बर
शहीद भगत सिंह जयंती
1 अक्टूबर
रक्तदान दिवस
2 अक्टूबर
महात्मा गांधी और लाल बहादुर शास्त्री जयंती
5 अक्टूबर
अंतरराष्ट्रीय अध्यापक दिवस
8 अक्टूबर
वायु सेना दिवस
24 अक्टूबर 1945
संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना
1 नवम्बर 1966
हरियाणा राज्य का गठन
4 नवम्बर 1966
यूनेस्को की स्थापना
14 नवम्बर
बाल दिवस
(जवाहर लाल नेहरू का जन्म दिन )
16 नवम्बर
करतार सिंह सराभा व 6 अन्य क्रांतिकारियों के शहीदी दिवस
26 नवम्बर 1949
भारत का संविधान पारित
3 दिसम्बर
खुदीराम बोस जयंती
4 दिसम्बर
जल सेना दिवस
7 दिसम्बर
झंडा दिवस
10 दिसम्बर
मानव अधिकार दिवस
19 दिसम्बर
राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खां व रोशन सिंह शहीदी दिवस
22 दिसम्बर
गणित दिवस
( श्री निवास रामानुज का जन्म दिन )
23 दिसम्बर
किसान दिवस
(चौ. चरण सिंह का जन्म दिन)
25 दिसम्बर
उपभोक्ता दिवस और क्रिसमिस दिवस
26 दिसम्बर
शहीद उधम सिंह जयंती

विश्व सामाजिक मंच

 आज से 18 साल पहले जनवरी 2004 को मुम्बई में विश्व सामाजिक मंच का 6 दिवसीय एक सम्मेलन हुआ जिसमें दुनिया 180 देशों के करीब 2 लाख लोग प्रतिनिधि थे, जिसका उद्देश्य था "वैकल्पिक दुनिया संभव है" आओ मिलकर प्रयास करें। कोई ताकतवर देश या समुदाय छोटे देश या समुदाय पर हमला ना कर सके। बेहतर मानवीय प्रेम की दुनिया बनाने की दिशा में काम करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता हिस्सेदारी कर रहे थे। उसमें करीब दो हजार सेमिनार आयोजित किए गए जो सामानतर चल रहे थे जिसमें भाषा अनुवादक की सुविधा उपलब्ध थी, उसमें हमें शामिल होने का मौका मिला था। सोचा शेयर कर दूं।

Malnutrition in India

 The vicious cycle of malnutrition in India


Today’s India looks forward to a healthy India, which is directly linked to people’s proper nutrition. Proper nutrition can lead to a healthy present and future generation. The people of India account for one of the most powerful as well as the most incredible resource for the country itself considering women and children as the prior groups. But the vicious cycle of not getting proper nutrition is still a concern as half of the population is deprived of what one can call proper nutrition. An undernourished child limits its performance in studies as well as employment opportunities. This whole process in a way creates a barrier in the development process of the country.

With time there have been signs of progress in overcoming the serious issue of malnutrition among women as well as children, but the improvement has been quite humble. This is despite the implementation of various government programs. The National Family Health Survey (NFHS-5) indicated the marginal improvement in different nutrition indicators. The reason for very slow progressing rate is that children in several states are still malnourished & undernourished.

The slow pace of growth

According to the report of NFHS-5, at the national level, child nutrition indices have improved slightly, with stunting falling from 38 percent to 36 percent (stunting is defined as low height-for-age), wasting from 21 percent to 19 percent (wasting is defined as low weight-for-height), and underweight falling from 36 percent to 32 percent.

In all phase-II States/UTs, child nutrition has improved, but the improvement is not considered because drastic improvements in these indicators are improbable in a short period of time. Overweight children have increased from 2.1 percent to 3.4 percent of children. India also has a widespread presence of anaemia.

In all Indian states, the incidence of anaemia in children under the age of five has increased (from 58.6 to 67 percent), women (53.1 to 57 percent), and males (22.7 to 25 percent) (20 percent -40 percent incidence is considered moderate). All states are in the “severe” category, with the



exception of Kerala (39.4%).

These situations remain serious and it is very vital to discuss them in a routine manner as these undernourished conditions of the people in India create a minus point in the overall development of the country as well as its national growth. While these situations need a very prominent discussion for a favorable outcome, there always comes the need for greater investment in the nutrition section regarding the women and children of the country. A need for channeled financial commitments is currently the most important thing through government programs and schemes.

Grass root level initiatives are required

India must look forward to a more result-oriented as well as innovative approach to different nutrition programs.

It is also very important that the parliamentarians shall begin monitoring the needs and awareness of the particular situation, moreover, the raising of awareness and monitoring of the situation must be engaged at the local level to create an engagement with the local people and find solutions according to the kind of challenges they face regarding the problem of malnutrition.

First molding up public opinions and implementing programs from the grass-root level can then be recreated at the district as well as national level. Education plays a vital role for every individual; a basic education will lead to a sense of awareness. Taking initiative at a personal level will bring about a great change in the nation. As the idea of sustainable development revolves around the process of a promising future for the future generation, in the same way, today raising awareness about proper nutrition patterns and regular monitoring of the programs regarding malnutrition can lead to a healthy and nourished future for the children and women of the country.

Shalini Jena




Global Education Crisis

 Global Education Crisis, 78.2 Million Children Are Out Of School


June 26, 2022Barsha Bohidar

“Education is the most powerful weapon you can use to change the world”- Nelson Mandela

Nelson Mandela, the former President of South Africa and one of the most prominent leaders of the Anti-Apartheid Movement once said, “Education is the most powerful weapon you can use to change the world” which indeed is true as it makes people aware of their potential and helps them to nourish their talents and become productive. It gives us a better idea of the world around us, helps to make decisions in life in a more effective way and perform our duties properly.

Quality Education for everyone is one of the 17 sustainable development goals of the United Nations. As per the data available on the website of the UN, about 260 million children were still out of school in 2018, globally.

Now, according to the Education Cannot Wait (ECW) report by the UN, about 222 million school aged children are affected globally due to protracted crisis. These children are in need of educational support.

About 78.2 million children are out of school, the majority of which are girls- around 54%, followed by children with functional disabilities-17% and children who were forcibly displaced-16%; while 119.6 million students have not achieved proficiency in reading or mathematics despite going to school.

This report also highlighted the prime causes of such alarming numbers of children in need of educational support are armed conflicts, forced displacements, climate induced disasters and protracted crisis.

To respond to this Global Education crisis, the ECW and strategic partners launched the #222milliondreams resource mobilization campaign in Geneva on June 21, 2022.

According to the report, ECW may consider to prioritize investments more explicitly in countries with the highest number of out of school children. The ECW has also called up on donors, various philanthropic foundations, the multi-millionaires and billionaires around the world to donate more in order to invest more resources to deliver quality education to the affected children.

Barsha Bohidar

अग्निपथ का विरोध क्यों

 *अग्निपथ का विरोध क्यों जरूरी है?*

मोदी ने 2014 में दिल्ली पर कब्जा करने की अपनी खोज में सशस्त्र बलों के कर्मियों को वन-रैंक-वन-पेंशन (ओआरओपी) का वादा किया था। आठ साल बाद उन्होंने केवल नो-रैंक-नो-पेंशन (एनआरएनपी) दिया है।
उन्होंने 4 साल की छोटी अवधि के लिए 46,000 सैनिकों की भर्ती की 'अग्निपथ' योजना शुरू करके भारतीय सशस्त्र बलों को एक और बड़ा झटका दिया है।
   संस्थाओं के गले से उतारी मनमौजी नीति ने सशस्त्र बलों के नेतृत्व को स्तब्ध कर दिया है और ग्रामीण भारत में सदमे की लहरें भेज दी हैं।
नौकरी की सुरक्षा और सेवानिवृत्ति के बाद पेंशन वापस लेकर, पहले भर्ती रद्द करने और फिर सैन्य सेवा को अनाकर्षक बनाने के लिए युवा सरकार की मनमानी पर संघर्ष का हथियार उठा रहे हैं।
    सेना 2015 से हर साल औसतन लगभग 50,000 पुरुषों की भर्ती कर रही है। सेना में भर्ती की प्रक्रिया को 2020 में कोविड -19 महामारी के बहाने रोक दिया गया था। हालांकि, इस अवधि के दौरान नौसेना और वायु सेना ने नाविकों और वायुसैनिकों को भर्ती करना जारी रखा।
    चालू वर्ष में, अग्निपथ योजना के तहत केवल 40,000 सेना में शामिल होंगे, जिससे यूनिट स्तर पर भारी कमी होगी। वायु सेना और भारतीय नौसेना को 3,000-3,000 अग्निशामक मिलेंगे।
      "हम सबसे अच्छी तरह जानते हैं और आप नहीं समझते" 'दृष्टिकोण', मोदी सरकार की एक बानगी एक बार फिर एक अनिश्चित नीति के बचाव में प्रदर्शित होती है। विमुद्रीकरण, जीएसटी और कृषि कानूनों जैसी एकतरफा नीतियों की घोषणा के बाद प्रतिक्रिया से निपटने के लिए एक समान दृष्टिकोण अपनाया गया था।
            इस तरह के दुस्साहस और अहंकार ने पहले छोटे और मध्यम स्तर के क्षेत्रों में नौकरियों को नष्ट कर दिया और अब मोदी सशस्त्र बलों को नष्ट करने पर आमादा हैं, जो आज देश में सबसे अच्छा प्रदर्शन करने वाली संस्था है। सरकार बड़े पैमाने पर मीडिया अभियानों के माध्यम से इस योजना को बेचने की कोशिश कर रही है, लेकिन देश के बेरोजगार युवा इस योजना को आगे बढ़ाने के सरकार के मन्तव्यों और इन इरादों के बारे में आश्वस्त नहीं हैं।
       सरकार में पूरी तरह से भ्रम की स्थिति है क्योंकि देश भर के युवा, उच्च मुद्रास्फीति और बढ़ती बेरोजगारी के युग में नौकरियों और सामाजिक सुरक्षा प्रावधानों को चूसने के सरकार के फैसले के विरोध में सड़कों पर हैं।
सरकार का एक हाथ दूसरे का विरोध करने में लगा हुआ है। योजना को बेचने के लिए सरकारी पीआर मशीनरी द्वारा कुछ सेवारत एडमिरल, जनरल और एयर मार्शल तैनात किए गए हैं, लेकिन अग्निपथ के बचाव में उनके द्वारा दिए गए तर्क सबसे कमजोर और अतार्किक हैं।
        एक सेवारत जनरल एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहते हैं कि सशस्त्र बलों का आकार कम करना एक लंबे समय से लंबित सुधार है और सेवा 1984 से एक दुबला प्रोफ़ाइल पर विचार कर रही है। जबकि रक्षा मंत्रालय (MoD) का कहना है कि इस योजना के तहत भर्ती किए जाने वाले स्वयंसेवकों की संख्या पहले चार वर्षों में 46,000 स्वयंसेवकों से बढ़कर पांचवें वर्ष में 90,000 स्वयंसेवकों की और छठे वर्ष में 125,000 स्वयंसेवको की हो जाएगी।
     कुछ का कहना है कि इससे सशस्त्र बलों को पैसे बचाने में मदद मिलेगी जिसका आधुनिकीकरण के लिए बेहतर उपयोग किया जा सकता है, पश्चिमी सैन्य-औद्योगिक परिसर और देश में नवजात निजी रक्षा उद्योग के खजाने को मोटा करने के लिए एक व्यंजना भी है। प्रतिष्ठान के अन्य लोगों का दावा है कि यह योजना वेतन और पेंशन बिलों को कम करने के लिए नहीं बनाई गई है, यह केवल एक जवान की औसत आयु 32 से 26 तक कम करके बलों को युवा दिखाने के लिए है। यह एक विशिष्ट तर्क है क्योंकि 32 वर्ष - वृद्ध व्यक्ति सैन्य कर्तव्यों का पालन करने के लिए किसी भी तरह की कल्पना के हिसाब से  अयोग्य नहीं है।
      विराट कोहली 33 साल के हैं और अपनी फिटनेस के चरम पर हैं। एक सैन्य प्रशिक्षण कार्यक्रम और दिनचर्या जो एक सैनिक को उसके शुरुआती 30 के दशक में फिट नहीं रख सकती, उसे खत्म करने की जरूरत है।
       सशस्त्र बलों के सामने एक फास्ट ट्रैक संरचना के तहत प्रशिक्षित नाविकों, वायुसैनिकों और जवानों का इष्टतम उपयोग है, जो "रैपिडेक्स इंग्लिश स्पीकिंग कोर्स" के समान है। कई लोगों ने आशंका व्यक्त की है कि चुनौतीपूर्ण माहौल में 'एग्निवीरज' एक ऑपरेशनल खतरा साबित हो सकता है।
इकाइयों और संरचनाओं के कमांडिंग अधिकारी अत्याधुनिक उपकरणों को बनाए रखने और संचालित करने के लिए 'अग्निवर' का उपयोग करने के लिए ही  सावधान रहेंगे। इसलिए, महत्वपूर्ण कार्यों के लिए या यहां तक ​​कि महत्वपूर्ण पदों पर काम करने के लिए 'अग्निवर' का उपयोग सीमित रहेगा।
        पूरी संभावना है कि अग्निवीर सेना में विविध कार्य करेंगे। उदाहरण के लिए, एक युद्धपोत में, 4 साल के कार्यकाल के दौरान (जिसमें से एक वर्ष वार्षिक अवकाश में जाता है) एक अग्निवीर को लुकआउट कर्तव्यों के लिए, या डेक की पेंटिंग और चिपिंग जैसे बुनियादी सीमैनशिप कर्तव्यों के लिए सबसे अच्छा नियोजित किया जाएगा। जहाज का कप्तान एक अग्निवीर को जहाज का पहिया सौंपने से पहले दो बार सोचेगा।
       इस तरह की आशंकाओं से न केवल एक युवा व्यक्ति के पेशेवर विकास में बाधा आएगी बल्कि युद्धपोत या हवाई जहाज के संचालन में लगे प्रशिक्षित जनशक्ति पर भी अतिरिक्त दबाव पड़ेगा
    अग्निपथ' के रक्षकों का तर्क है कि चूंकि युद्ध की प्रकृति बदल रही है और ड्रोन और इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT) जैसी विघटनकारी तकनीकों का उपयोग तेजी से सेवाओं में किया जा रहा है, इसलिए एक छोटा टूथ-टू-टेल अनुपात होना अनिवार्य है .
     दूसरी ओर, सरकार दावा कर रही है कि चार साल पूरे करने के बाद अग्निवीरों को या तो केंद्रीय अर्धसैनिक बलों या बड़े उद्योग में समाहित किया जाएगा। यदि नए युग की प्रौद्योगिकियां सेना में नौकरियों को कम करने जा रही हैं तो कोई उनसे नागरिक क्षेत्र में बढ़ने की उम्मीद कैसे कर सकता है?
    अग्निपथ सेना के भीतर इकाई सामंजस्य पर भी प्रहार है। एक यूनिट में अब जवानों के दो सेट होंगे, एक पेंशन के साथ और दूसरा बिना इसके। 15 साल की सेवा करने वाले जवान को साल में 90 दिन का अवकाश मिलेगा, वहीं अग्निवीर को सिर्फ 30 दिन का वार्षिक अवकाश मिलेगा.
    अधिकारी रैंक (पीबीओआर) से नीचे का व्यक्ति मूल रूप से गरीब ग्रामीण पृष्ठभूमि से आता है। 15 साल की पेंशन योग्य सेवा ने न केवल जवान की मदद की बल्कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था में भी बहुत योगदान दिया। एक PBOR के बच्चे को सशस्त्र बलों द्वारा चलाए जा रहे स्कूलों और पेशेवर कॉलेजों में सबसे अच्छी शहरी शिक्षा सुविधाएं मिलीं, जिससे गरीब परिवारों के लिए सामाजिक गतिशीलता सुनिश्चित हुई।
    सशस्त्र बलों के समुदाय को विभाजित करने का सरकार का निर्णय और उसका समर्थन वापस लेना ग्रामीण भारत के लिए लंबे समय में सामाजिक संरचनाओं पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।
      सरकार किसके दबाव में 'अग्निवीर' पेश कर रही है? यदि दबाव वित्तीय है तो सरकार राज्य के सबसे प्रतिष्ठित संस्थान को लक्षित करने से पहले कई क्षेत्रों में खर्च कम कर सकती है।
     लेकिन मोदी सरकार का ऐसा कोई झुकाव नहीं है क्योंकि यह उन अमीर वर्गों का प्रतिनिधित्व करती है जो पेंशन और सामाजिक सुरक्षा के विचार से नफरत करते हैं। मोदी न केवल सामाजिक सुरक्षा पर सीधे हमले के लिए प्रतिबद्ध हैं, बल्कि व्यापक निजीकरण के एजेंडे के लिए भी प्रतिबद्ध हैं, जो राष्ट्रीय ताकतों के लिए मौत की घंटी लगता है।
    अधिकांश भारतीयों को सामाजिक सुरक्षा पसंद है, अमीरों को नहीं। और अमीर वर्ग का प्रतिनिधित्व करने वाली मोदी सरकार पेंशन से नफरत करती है। मोदी की नीतियां निजी निगमों को न केवल पूंजीगत बजट बल्कि रक्षा राजस्व बजट का एक बड़ा हिस्सा उपभोग करने के द्वारा भारतीय राज्य को कमजोर कर रही हैं।
  यह उसी विचार का फल है जिसके लिए मोदी लक्ष्य बना रहे हैं। और यह पूर्व नियोजित डिजाइन आज सशस्त्र बलों द्वारा अनुभव किए गए सामूहिक आघात का कारण है।
   

Agni path yojna

 



MODI promised one-rank-one-pension (OROP) to the armed forces personnel in his quest to capture Delhi in 2014. After  eight years all he has ended up giving is no-rank-no-pension (NRNP). He has administered another rude shock to the Indian armed forces by launching the ‘Agnipath’ scheme of recruiting  46,000 soldiers for a short period of 4 years.

The maverick policy thrust down the institution's throat has left the armed forces leadership in a state of stupor and sent shock waves through rural India. The youth are up in arms at the government's highhandedness in first cancelling the recruitment and then making the military service unattractive, by withdrawing the job security and post retirement pensions. 

On an average the army has been recruiting around 50,000 men every year since 2015. The process of recruitment in the army was expediently stopped in 2020 using the pretext of Covid-19 pandemic. However, during this period the naval and air force continued to enlist sailors and airmen.  In the current year, under the Agnipath scheme only 40,000 would join the Army, leading to massive shortfalls at the unit level. The Air Force and Indian Navy will get 3,000 Agniveers each.

“We know best and you don’t understand’ approach, a hallmark of the Modi government is once again displayed in defence of an indefensible policy. A similar approach was adopted to tackle the backlash after announcing the lopsided policies like the demonetisation, GST and farm laws.

Such audacity and arrogance first destroyed jobs in the small and medium scale sectors and now Modi is hell bent on destroying the armed forces, the best performing institution in the country today.

The government is trying to hard-sell the scheme through massive media campaigns but the unemployed youth of the country remains unconvinced about its motives and intentions in pushing the scheme.

There is utter confusion in the government as the youth, across the country, are out on streets protesting against the government's decision to suck jobs and social security provisions in an era of high inflation and rising unemployment.  

One arm of the government is busy contradicting the other. A few serving admirals, generals and air marshals have been deployed by the government PR machinery to sell the scheme, but the arguments put forth by them in defence of Agnipath are at best flimsy and illogical. 

A serving general says, in a press conference, that downsizing the armed forces is a long pending reform and the service have been contemplating a leaner profile since 1984.

While the ministry of defence (MoD) says that the number of volunteers being recruited under the scheme would rise from 46,000 volunteers in each of the first four years, to 90,000 volunteers in the fifth year, and to 125,000 in the sixth year.

Some say that this would help the armed forces save money which could be better utilised for modernisation, a euphemism for fattening the coffers of western military-industrial complex and the new-born private defence industry in the country. 

Others in the establishment claim that the scheme is not designed to prune pay and pension bills, it is only to make the forces look youthful by reducing the average age of a jawan from 32 to 26. This is a specious argument because a 32-year-old person is by no stretch of imagination unfit to perform military duties.
Virat Kohli is 33-years-old and is at the peak of his fitness. A military training program and routine that cannot keep a soldier fit in his/her early 30s needs to be scrapped.

The challenge before the armed forces is optimal utilisation of sailors, airmen and jawans trained under a fast-track structure, something akin to the “Rapidex English speaking course”.
Many have expressed the fear that  ‘Agniveers’ could prove to be an operational hazard in a challenging environment.

The commanding officers of the units and formations would be wary of using the ‘Agniveers’ to maintain and operate the state-of the art equipment. Therefore, ‘Agniveers’ utilisation for critical operations or even for manning critical posts will remain limited.

In all likelihood, the Agniveers would end up doing sundry jobs in the forces. For example, in a warship, throughout the 4-year tenure (of which one year would go in annual leave) an Agniveer would at best be employed for lookout duties, or for basic seamanship duties like painting and chipping of the deck. The captain of the ship would think twice before handing over the ship’s wheel to an Agniveer.

Such apprehensions will not only hamper the professional growth of a young person but would also put extra strain on the trained manpower engaged in operating the warship or an airplane.

The defenders of ‘Agnipath’ argue that since the nature of warfare is changing and disruptive technologies like drones and Internet of things (IoT) are going to be increasingly used in the services therefore it is imperative to have a small teeth-to-tail ratio.
On the other hand, the government is claiming that after completing four years the Agniveers would either be absorbed in central para military forces or big industry. If new age technologies are going to reduce jobs in the military then how does one expect them to grow in the civilian sector? 

Agnipath is also an assault on unit cohesion within the army. A unit will now have two sets of jawans one with pension and the other without it. The jawan serving for 15-years will enjoy 90-days leave in a year, on the other hand, Angniveer would be entitled to just 30-days of annual leave.

The person below the officer rank (PBORs) basically hail from poor rural backgrounds. The 15-year pensionable service not only helped the jawan but also contributed immensely to the rural economy. A PBOR’s child got the best urban education facilities in the schools and professional colleges run by the armed forces, which in turn ensured upward social mobility for poor families.

The government’s decision to splinter the armed forces community  and its withdrawal of support

to rural India will adversely impact the social structures in the long run.

Under whose pressure is the government introducing Agniveers’? If the pressure is financial the government could reduce expenditure in many areas before targeting the most revered institution of the state.
But the Modi government has no such inclination because it represents the rich classes that hate pensions and the very idea of social security. Modi is not just committed to a frontal attack on social security but to a broader privatisation agenda that sounds the death knell for the national forces.   

Most Indians love social security, the rich don’t. And the Modi government that represents the rich classes hates pensions. Modi's policies are enfeebling the Indian State by making private corporations consume not only  the capital budget but also a large chunk of the defence revenue budget.
It is the fruition of this very idea for which Modi is aiming. And this premeditated design is the cause of the collective trauma experienced by the armed forces today.

 

पर्यावरण संरक्षण

 हमारा परिवार.

15जुलाई -15 अगस्त.
(पर्यावरण संरक्षण मास)
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पेड़ो के बारे मे महत्वपूर्ण जानकारी.

☄️पेड़ धरती पर सबसे पुरानें living organism हैं, और ये कभी भी ज्यादा उम्र की वजह से नही मरते.

☄️हर साल 5 अऱब पेड़ लगाए जा रहे है लेकिन हर साल 10 अऱब पेड़ काटे भी जा रहे हैं.

☄️एक पेड़  दिन में इतनी ऑक्सीजन देता है कि 4 आदमी जिंदा रह सकें.

☄️देशों की बात करें, तो दुनिया में सबसे ज्यादा पेड़ रूस में है उसके बाद कनाडा में उसके बाद ब्राज़ील में फिर अमेरिका में और उसके बाद भारत में केवल 35 अऱब पेड़ बचे हैं.

☄️दुनिया की बात करें, तो 1 इंसान के लिए 422 पेड़ बचे है. लेकिन अगर भारत की बात करें,तो 1 हिंदुस्तानी के लिए सिर्फ 28 पेड़ बचे हैं.

☄️पेड़ो की कतार धूल-मिट्टी के स्तर को 75% तक कम कर देती है. और 50% तक शोर को कम करती हैं.

☄️एक पेड़ इतनी ठंड पैदा करता है जितनी 1 A.C 10 कमरों में 20 घंटो तक चलने पर करता है. जो इलाका पेड़ो से घिरा होता है वह दूसरे इलाकों की तुलना में 9 डिग्री ठंडा रहता हैं.

☄️पेड़ अपनी 10% खुराक मिट्टी से और 90% खुराक हवा से लेते है. एक पेड़ एक साल में लगभग 2,000 लीटर पानी धरती से चूस लेता हैं.

☄️एक एकड़ में लगे हुए पेड़ 1 साल में इतनी Co2 सोख लेते है जितनी एक कार 41,000 km चलने पर छोड़ती हैं.

☄️दुनिया की 20% oxygen अमेजन के जंगलो द्वारा पैदा की जाती हैं. ये जंगल 8 करोड़ 15लाख एकड़ में फैले हुए हैं.

☄️इंसानो की तरह पेड़ो को भी कैंसर होती है.कैंसर होने के बाद पेड़ कम ऑक्सीजन देने लगते हैं.

☄️पेड़ की जड़े बहुत नीचे तक जा सकती है. दक्षिण अफ्रिका में एक अंजीर के पेड़ की जड़े 400 फीट नीचे तक पाई गई थी.

☄️दुनिया का सबसे पुराना पेड़ स्वीडन के डलारना प्रांत में है. टीजिक्कोनाम का यह पेड़ 9,550 साल पुराना है. इसकी लंबाई करीब 13 फीट हैं.

☄️किसी एक पेड़ का नाम लेना मुश्किल है लेकिन तुलसी, पीपल, नीम और बरगद दूसरों के मुकाबले ज्यादा ऑक्सीजन पैदा करते हैं.

🙏 *इस बरसात में कम से कम एक पेड़ अवश्य लगायें*🙏

*हमारा  परिवार*
आएँ …..हम सब भी पर्यावरण संरक्षण में अपना योगदान अर्पित करें.

*जय प्रकृति....जय वनस्पति*
15 जुलाई को पौधारोपण करते हुए अपनी व परिवारजनों का एक छायाचित्र भी प्रेषित कीजिएगा.
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Will fail Fighting and not surrendering

I will rather die standing up, than live life on my knees:

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