Friday, September 5, 2025

month wise

 महत्त्वपूर्ण दिवस

जनवरी : 2-सफदर हाशमी शहादत दिवस, 
23-सुभाष चन्द्र बोस जयंती, 30-महात्मा गांधी शहादत

दिवस, 
फरवरी : 27-चंद्रशेखर आजाद शहीदी दिवस, 
मार्च : 8 अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस,
 मई : 1-अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस, 
अगस्त : 11-खुदीराम बोस शहादत दिवस, 
16-मदन लाल ढींगरा शहादत
दिवस,
सितंबर : 13-जतिन दास शहादत दिवस,
28-शहीद भगत सिंह जयंती, नवंबर : 14-बाल दिवस, 16-करतार सिंह सराभा शहादत दिवस,

दिसंबर : 10-अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस, 19-अशफाक उल्ला खान, राम प्रसाद बिस्मिल एवं रोशन सिंह शहादत दिवस

PRINT BY: RADHEY KRISHNA - 80596 11117, 94162 64604
[6/9, 9:49 am] Sabka Haryana: सरकारी अवकाश

जनवरी : 6-गुरु गोबिंद सिंह जयंती, 26-गणतंत्र दिवस, फरवरी : 3-वसंत पंचमी, 12-गुरु रविदास जयंती, 26-महाशिवरात्रि, 
मार्च : 14-होली, 23-शहीदी दिवस, 31-ईद उल-फितर, अप्रैल: 6-राम नवमी, 10-महावीर जयंती, 14-अंबेडकर जयंती, 29-महर्षि परशुराम जयंती,
 मई : 29-महाराणा प्रताप जयंती, 
जून : 7-ईद-उल-जूहा (बकरीद), 11-संत कबीर जयंती, 
जुलाई: 27-हरियाली तीज, 31-उधम सिंह शहीदी दिवस, अगस्त : 9-रक्षा बंधन, 15-स्वतंत्रता दिवस, 16-जन्माष्टमी, 
सितंबर : 5-मिलाद-उन-नबी, 22-महाराजा अग्रसेन जयंती, 23-हरियाणा शहीदी दिवस, अक्तूबर : 2-विजय दशमी, महात्मा गांधी जयन्ती, 7-महर्षि वाल्मीकि जयंती, 21-दिवाली, नवंबर: 1-हरियाणा दिवस, 5-गुरु नानक जयंती, 
दिसंबर 25-क्रिसमस, 26-शहीद उधम सिंह जयंती, 27-गुरु गोबिंद सिंह जयंती

March 23-

Martyrdom of Bhagat Anigh

March 31

Anandi Bai Joshi

April-7

World Health Day

Apsil 10

Abraham T Kovoor

April-11

Jyotiba Phule

April-14

BR Ambedkar

Aposil-15 - Leonardodarind

April-20-Chandita Mukherjee

April-22 - Earth Day.

May I -

International Labour Da

-May-7

Rabindra Nath Tagore

March 23-

Martyrdom of Bhagat Anigh

March 31

Anandi Bai Joshi

April-7

World Health Day

Apsil 10

Abraham T Kovoor

April-11

Jyotiba Phule

April-14

BR Ambedkar

Aposil-15 - Leonardodarind

April-20-Chandita Mukherjee

April-22 - Earth Day.

May I -

International Labour Da

-May-7

Rabindra Nath Tagore

May-10 JD Bernal

May 13 Ronald Ross

May's Pierse Curie

Date

May 17 - Edward Jenner

May 18-Karl Marx

May - 22. Rammohan Ray

May-22 Internatimal Dives

Jime 5. 1 World Environment

June 18 Kaunla Sohoni

Tume 30 CNR Rao


दिवस

 महत्त्वपूर्ण दिवस

जनवरी : 2-सफदर हाशमी शहादत दिवस, 
23-सुभाष चन्द्र बोस जयंती, 30-महात्मा गांधी शहादत

दिवस, 
फरवरी : 27-चंद्रशेखर आजाद शहीदी दिवस, 
मार्च : 8 अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस,
 मई : 1-अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस, 
अगस्त : 11-खुदीराम बोस शहादत दिवस, 
16-मदन लाल ढींगरा शहादत
दिवस,
सितंबर : 13-जतिन दास शहादत दिवस,
28-शहीद भगत सिंह जयंती, नवंबर : 14-बाल दिवस, 16-करतार सिंह सराभा शहादत दिवस,

दिसंबर : 10-अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस, 19-अशफाक उल्ला खान, राम प्रसाद बिस्मिल एवं रोशन सिंह शहादत दिवस

PRINT BY: RADHEY KRISHNA - 80596 11117, 94162 64604
 सरकारी अवकाश

जनवरी : 6-गुरु गोबिंद सिंह जयंती, 26-गणतंत्र दिवस, फरवरी : 3-वसंत पंचमी, 12-गुरु रविदास जयंती, 26-महाशिवरात्रि, 
मार्च : 14-होली, 23-शहीदी दिवस, 31-ईद उल-फितर, अप्रैल: 6-राम नवमी, 10-महावीर जयंती, 14-अंबेडकर जयंती, 29-महर्षि परशुराम जयंती,
 मई : 29-महाराणा प्रताप जयंती, 
जून : 7-ईद-उल-जूहा (बकरीद), 11-संत कबीर जयंती, 
जुलाई: 27-हरियाली तीज, 31-उधम सिंह शहीदी दिवस, अगस्त : 9-रक्षा बंधन, 15-स्वतंत्रता दिवस, 16-जन्माष्टमी, 
सितंबर : 5-मिलाद-उन-नबी, 22-महाराजा अग्रसेन जयंती, 23-हरियाणा शहीदी दिवस, अक्तूबर : 2-विजय दशमी, महात्मा गांधी जयन्ती, 7-महर्षि वाल्मीकि जयंती, 21-दिवाली, नवंबर: 1-हरियाणा दिवस, 5-गुरु नानक जयंती, 
दिसंबर 25-क्रिसमस, 26-शहीद उधम सिंह जयंती, 27-गुरु गोबिंद सिंह जयंती

Monday, September 1, 2025

कीटनाशक

**कीटनाशकों के बारे कुछ बातें **
***शरीर में कैसे पहुंचता है कीटनाशक*** हरियाणा में कीटनाशकों के अंधाधुंध इस्तेमाल ने कई समस्याएं खड़ी करदी हैं, जिस पर जनता का ध्यान बहुत कम है। इसी वजह से स्वास्थ्य विभाग और स्वास्थ्य सेवा ढांचा दोनों ही सक्रिय नहीं है। यहां हम कीटनाशकों के शरीर में पहुंचने व उससे होने वाली बीमारियों के बारे में जानेंगे।

1. पानी में कम घुलनशील कीटनाशक जो हैं वे वसा और कार्बनिक तेलों में आसानी से घुल जाते हैं। आसपास के जल स्रोतों में रहने वाले प्राणियों में और वनस्पति में भी इनके अंश संचित हो जाते हैं और जब ये जीव या वनस्पति दूसरे किसी जीव द्वारा खाये जाते हैं तो ये उनके शरीर की वसा में संचित हो जाते हैं।

2.पानी के जल स्त्रोतों के माध्यम से।

3. फलों, सब्जियों के माध्यम से

4. भूसे और पशु आहार से पशुओं में और फिर मनुष्य में।

5.हवा के माध्यम से : जब हम छिड़काव करते हैं तो कीटनाशक

की छोटी-छोटी बूंदें हवा में मिल जाती हैं। इसी कारण हमें कीटनाशक की महक आती है। जब हम खुली हवा में साँस लेते हैं तो ये बूँदें हमारे फेफड़ों में पहुँच जाती हैं। फिर रासायन फेफड़े की गीली दीवारों से हो कर खून में पहुँच जाता है। इस से बचने के लिए मुँह पर कपड़ा बाँध कर रखें।

6. त्वचा के द्वारा : हम सभी जानते हैं कि हमारी त्वचा में छोटे-छोटे

छिद्र होते हैं। इन छिद्रों से पसीना एवं तैलीय पदार्थ निकलता है। जब हम शारीरिक मेहनत करते हैं तो शरीर पर पसीने की एक पतली परत बन जाती है। यह परत कीटनाशक के अणुओं को घोल लेती है। फिर हमारी त्वचा इसे सोख लेती है। साँस के माध्यम से भी यह हमारे शरीर में जा सकता है। कभी-कभी कीटनाशक हमारे शरीर पर गिर जाता है। इस से वह और अधिक मात्रा में हमारे शरीर में पहुँच जाता है। हवा की दिशा के विपरीत छिड़काव करते समय खतरा और भी बढ़ जाता है। तब साँस द्वारा भी यह हमारे शरीर में पहुँचने लगता है। इसलिए हमें शरीर को पूरी तरह ढ़क कर रखना चाहिए। दूसरी बात, हमारे शरीर के विभिन्न अंग भिन्न-भिन्न गति से कीटनाशक को सोखते हैं।

7. मुँह के द्वारा : हमारे मुँह के रास्ते भी कीटनाशक बहुत जल्दी शरीर में पहुँच सकता है। बहुत से किसान या मज़दूर छिड़काव के दौरान  बीड़ी इत्यादि पीते हैं। इस बीच वे पानी पीने या कुछ खाने के लिए भी एक-दो बार रुकते हैं। अगर छिड़काव शाम तक होना है तो वे उसी या बगल वाले खेत में खाना भी खाते हैं।

छिड़काव वाले खेत के आसपास काफी मात्रा में कीटनाशक जमा हो जाते हैं। जहाँ सीधे छिड़काव नहीं किया जाता वहाँ भी कीटनाशक की सफेद परत पौधों की पत्तियों पर देखी जा सकती है। उसी तरह की सफेद परत वहाँ की सभी वस्तुओं पर जमी रहती है। इन में बर्तन या खाने का सामान भी हो सकता है। अगर पानी खुला रखा है तो कीटनाशक के कुछ कण उस में भी घुल जाते हैं।

इसलिए खेत के पास खाते-पीते या धूम्रपान करते हुए हम ज़रूर कुछ कीटनाशक खा लेते हैं। बिना नहाए-धोए खाने-पीने से भी उस का कुछ भाग हमारे शरीर में पहुँच जाता है। धूम्रपान करते हुए या कुछ खाते हुए छिड़काव करने वालों को तो कौन ही बचाये।

8.बर्तन एवं कपड़ों से : अच्छा तो छिड़काव का काम खत्म हुआ।
आप थके-भूखे घर जाते हैं। आप के साथ बर्तन, बाल्टी एवं उपकरण भी होता है, जिस से आपने दिन में काम किया है। अब आप बिस्तर पर लेट कर धूम्रपान करना चाहते हैं। पर रुक जाइये ! आप के साथ कुछ बिन बुलाये मेहमान भी हैं और धीरे से घर में प्रवेश कर गये हैं। कीटनाशक आपके शरीर पर, कपड़ों पर, बर्तनों तथा उपकरणों पर चढ़े हुए हैं। अब इन सब को पूरी साफ-सफाई की ज़रूरत है।
**कीटनाशक के प्रयोग से होने वाली दूसरी बड़ी बीमारियां हैं.... क्रोनिक  डिजीज*** मसलन 

कैंसर
विशेष रूप से खून हो तो त्वचा के कैंसर इस कारण से काफी देखने में आते हैं। ईनके प्रभाव में आने वाले लोगों में दिमाग के, स्तनों के, यकृत जिगर- लीवर के, अग्नाशय - पेनक्रियाज के, फेफड़ों- लंग्ज के कैंसर का रिस्क बढ़ जाता है। कैंसर के मरीजों की संख्या बहुत से प्रदेशों में बढ़ रही है । इसके अलावा श्वास संबंधी बीमारियां और शरीर के अपने डिफेंस तंत्र के कमजोर होने की समस्या इनके कारण काफी देखने में आती है । कई बार यह नर्वस प्रणाली को चपेट में ले लेता है। इसी प्रकार चमड़ी  की बीमारियां भी उनके प्रभाव के कारण ज्यादा होती हैं । नपुंसकता की संभावना बढ़ जाती है।

मां की औरनाल के रास्ते गर्भ में बच्चों में यह कीटनाशक प्रवेश पा जाते हैं और जन्मजात विकृतियों का रिस्क बढ़ जाता है खासकर तंत्रिका तंत्र - नर्वस सिस्टम की। इसी प्रकार पार्किंसोनिज्म  बीमारी का रिस्क 70% बढ़ जाता है । बच्चों में अग्रसीवेनैस बढ़ने का कारण भी हो सकते हैं । किसानों में आत्महत्या करने की मानसिकता को बढ़ावा देने में भी इनके  प्रभावों की भूमिका हो सकती है।
कीटनाशकों के कारखाने ,घर में, खाने में, पानी में ,पशुओं में , मौजूद कीटनाशक हमारे शरीर में पहुंचकर हमारे फैट में ,खून में इकट्ठा होते रहते हैं और नुकसान पहुंचाते हैं । स्टॉक होम कन्वेंशन ऑन परसिस्टेंट ऑर्गेनिक पोल्यूटेंट्स के मुताबिक 12 में से 9 खतरनाक और परसिस्टेंट केमिकल यह कीटनाशक हैं कई सब्जियों और फलों में धोने के बावजूद कीटनाशकों के अवशेष पाए गए हैं । अंडों में ,मीट में ,भैंस और गाय के दूध में भी इन कीट नाशकों के अवशेष पाए गए हैं। आजकल के बच्चों में बढ़ता एग्रेसिव नजरिया व किसानों में बढ़ती आत्महत्या की मानसिकता में भी इन  कीट नाशकों के   अवशेषों की भूमिका देखी जा रही है।  
      लगभग 20% खाद्य पदार्थों में भारत के कीटनाशकों के अवशेष की मात्रा टॉलरेंस लेवल से ज्यादा पाई गई है जबकि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर यह दो प्रतिशत ही है। महज 49% भारतीय खाद्य पदार्थों में जो डिटेकटेबल रेजिडयू पाए गए हैं जबकि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर यह प्रतिशत 80 प्रतिशत  का था । 
     मेरे 30 35 साल के अनुभव मुझे यह सोचने पर मजबूर करते हैं कि पेट दर्द की लंबी बीमारी जहां बाकी सभी टेस्ट नॉरमल आते हैं उन मरीजों में पेट दर्द का कारण कीटनाशक ही होते हैं। रिसर्च के लिए सुविधा न होने के कारण मेरा यह  मिशन पूरा नहीं हो सका । 
       कीटों और सूक्ष्म जीवों को मारने में प्रयुक्त होने वाला कीटनाशक मूल रूप से जहर ही है । अगर कीटनाशकों का दुरुपयोग किया जा रहा है तो इसके बहुत गंभीर परिणाम हो सकते हैं। यह उन सभी के लिए हानिकारक होता है जो कि इसके संपर्क में आता है । किसान, कर्मी, उपभोक्ता , जानवर सभी के लिए यह नुकसानदेह हो सकता है। इसलिए कीटनाशकों के इस्तेमाल पर सवालिया निशान खड़े हो गए हैं ?
कीटनाशकों के प्रयोग से मनुष्य के कई प्रकार की बीमारियों की चपेट में आ सकता है सबसे प्रमुख हैं :- 


1 इम्यूनोपैथोलोजिकल इफैक्टस-आटो इम्युनिटी, अक्वायरड इम्युनिटी,

2 हाईपर सैंसिविटी के स्तर पर विकार अलग अलग

3 कारसिनोजैनिक इफैक्ट,

4 मुटाजेनिसिटी,

5 टैटराजैनिसिटी,

6 न्यूरोपैथी,

7 हैपेटोटोक्सीयिसटी

8 रिपरोडक्टिव डिस्आर्डर

9 रकरेंट इन्फैक्सन्ज। 
इन पर यहां विस्तार से चर्चा न करके कुछ

बीमारियों के बारे चर्चा की जा रही है।

1 तीव्र विषाक्तता (एक्यूट प्वॉयजनिंग)

इसमें कीटनाशक प्रयोग करने वाला व्यक्ति ही इसकी चपेट में आ जाता है। हमारे देश में तो यह समस्या काफी देखने में आती है, इसमें सिर दर्द होना, जी मितलाना, चक्कर आना, पेट में दर्द, चमड़ी और आंखों में परेशानी, बेहोश हो जाना व मृत्यु तक शामिल  हैं ।आत्म हत्या के लिए भी इनका बड़े पैमाने पर इस्तेमाल कि जाता है। इनका इस्तेमाल करने वाले काफी लोगों में इनके इस्तेमाल के वक्त रखी जाने वाली सावधानियों की जानकारी का अभाव पाया गया है।

प्रस्तुति डॉक्टर रणवीर सिंह दहिया 

Tuesday, August 26, 2025

पुरानी यादें

पुरानी यादें 
24 -25 साल पहले की बात है । नार्थ जोन सर्जन कांफ्रेंस जम्मू में आयोजित की गई थी । रोहतक से 25-30 डॉक्टर थे । एक दिन सभी का मन वैष्णो देवी मंदिर की यात्रा का बना। मैने मना किया तो सभी ने अनुरोध किया कि चलें । हम चल दिये । 
       अर्ध कन्वारी से कुछ पहले 4-5 महिलाएं और 5-6 पुरुष परेशान से दिखाई दे रहे थे। हमारे में से किसी ने पूछा-क्या बात है क्या हुआ। 
बताया- उनके एक बुजुर्ग पेशाब करने बैठे थे और वे नीचे खाई में लुढ़क गए हैं । उन्हें देखने गए हैं। 
       हमने भी बुजुर्ग को ढूंढने की इच्छा बनाई और 5-6 डॉक्टर हम नीचे उतरते चले गए । 150 गज के करीब नीचे उतरने के बाद हमने आवाज लगाई कि क्या बुजुर्ग मिल गए। और नीचे से आवाज आई- हाँ मिल गए। हमने पूछा- कैसी तबियत है? जवाब आया- ठीक हैं। उप्पर रास्ते में खड़े लोगों ने सुना तो कुछ जय माता की बोलते चले गए।
         हमने फिर पूछा कि हम डॉक्टर हैं कोई चोट है तो हम आ जाते हैं मदद करने । बताओ कहाँ पर हो।
फिर आवाज आई थोड़ी धीमी - वो तो चल बसे । इतनी देर में हम भी वहां पहुंच गए थे। पूछा- पहले ठीक क्यों कहा ? जवाब था कि ऊपर वाले रिश्तेदारों में से किसी को सदमा न लग जाये इसलिए । 
        कुछ लोगों को तो लगा कि माता ने उस बुजुर्ग को बचा लिया। मगर सच्चाई यही थी कि माता उस बुजुर्ग को नहीं बचा पाई। 
      मैने सभी डॉक्टर सहयोगियों से पूछा -- यदि बुजुर्ग जिंदा होते और चोटिल होते तो हम क्या फर्स्ट एड कर सकते थे । सब ने अपने अपने ढंग से बात रखी। मैने फिर कहा- बिना इमरजेंसी किट के शायद हम ज्यादा फर्स्ट एड करने की हालत में नहीं होते।
         हम सबने तय किया कि जब इस तरह के ग्रुप में कहीं जाएंगे तो इमरजेंसी किट जरूर साथ लेकर चलेंगे । 
बाकियों का तो पता नहीं मैने एक किट जरूर बना ली । 
तीन साल बाद वही कांफ्रेंस पी जी आई चंडीगढ़ में थी। कालेज की बस में गए थे हम सब । वापसी पर अम्बाला पहुंचने से पहले हमारे सामने ट्रैक्टर सड़क के किनारे पलट गया। हमने गाड़ी रुकवाई ।
    ड्राइवर ट्रैक्टर के पहिये के नीचे दबा था । हमने सबने मिलकर उसको निकाला और देखा तो वह शॉक में था । मैं ने इमरजेंसी किट से उसे मेफेंटीन इंजेक्शन दिया और एक वोवरान का inj दिया । कुछ संम्भल गया मरीज । हमने उसे अपनी गाड़ी में लिटाया और उसे अम्बाला सिविल अस्पताल में दाखिल करवाया । इलाज शुरू हुआ तो मरीज और इम्प्रूव हुआ ।
   3 साल तक लगता था यह किट खामखा उठाये फिरता हूँ मगर उस रोज लगा कि खामखा नहीं उठाई किट ।
शायद जो डॉक्टर साथी इन दोनों मौकों पर थे उनको याद हों ये दोनों घटनाएं ।
रणबीर दहिया
9812139001
***//**
डॉ सुरेश शर्मा - पानीपत की चौथी लड़ाई 
डा सूरजभान
राजेश अत्रेय
डा शंकर इसराना
***/*
पुरानी यादें --मेरे बॉस डॉ सेखों 
1976 -1977 का दौर 
मेरी पोस्टिंग spm deptt की तरफ से सिविल अस्पताल बेरी में कर दी गई। सिविल अस्पताल के अलावा लेडीज का विंग भी था बाजार के अंदर जा कर । उसमें एक बुजुर्ग महिला फार्मासिस्ट की पोस्टिंग थी। designation दूसरा भी हो सकता है । वहां से सन्देश आया शाम के वक्त कि एक मुश्किल डिलीवरी है और डॉक्टर साहब को बुलाया है। मैं सोचता जा रहा था कि डेढ़ महीने की  maternity ड्यूटी में 5 या 6 डिलीवरी देखी थी। सोचते सोचते पहुंच कर देखा कि breech डिलीवरी थी। monaster था। चार टांगे , चार बाजू , धड़ एक और दो सिर वाला। चारों टांगे और दो बाजू डिलीवर हो चुकी थी। देख कर पसीने छूट गए। एक मिनट सोचा कि मेडिकल भेज दिया जाए। फिर सोचा इस हालत में कैसे भेजेंगे? अगले ही पल सोचा कोशिश करते हैं । मन ही मन Dr GS Sekhon मेरे बॉस याद आ गए। वे कहते थे कि कितना भी मुश्किल मामला हो अपनी कॉमन सैंस को मत भूलो और पक्के निश्चय के साथ शांत भाव से जुट जाओ । जुट गया । जल्दी लोकल लगाकर  episiotomy incision दिया और निरीक्षण किया। महिला का हौंसला बढ़ाया। बाकी के दो बाजू डिलीवर करने में 15 मिन्ट लगे । पसीने छूट रहे थे । खैर फिर मुश्किल से एक सिर और डिलीवर करवाया। फिर भी कुछ बाकी था । देखा अच्छी तरह तो एक सिर अभी बाकी था और पहले वाले सिर से कुछ बड़ा था । कोशिश की । episiotomy incision को extend किया । 15 से 20 मिन्ट की मश्शक्त के बाद दूसरा सिर भी डिलीवर हो गया । monaster था डेथ हो चुकी थी। मगर हम महिला को बचा पाए। पता लगता गया कि दो सिर चार बाजू चार टांगो वाला बच्चा पैदा हुआ है । कौतूहल वश बहुत लोग इकट्ठे हो गए थे। 6 महीने के बाद वापिस spm deptt में आ गया । 2-3 साल के बाद एक हैंड प्रोलैप्स का केस रेफ़ेर हुआ मेडिकल के लिए । रहडू पर लिटा कर बाजार के बीच से ले जा रहे थे तो किसी ने पूछा के बात कहां ले जा रहे हो। बताया कि एक हाथ बाहर आ गया । मेडिकल ले जा रहे हैं । तो अनजाने में उस बुजुर्ग ने कहा - एक बख्त वो था जिब चार चार हाथां आले की डिलीवरी करवा दी थी, आज एक हाथ काबू कोनी आया। किसी ने बताया था जब वह मरीज मेरे पास 6 वार्ड में दाखिल था । मेरे को मेरे बॉस Dr सेखों एक बार फिर याद आये। बहुत अलग किस्म की इंसानियत के धनी थे Dr सेखों।
***/***
आज किशनपुरा चौपाल में सुश्री उर्मिला जी भूतपूर्व सरपंच गांगटान और साक्षरता आंदोलन की अग्रणी कार्यकर्ता से मुलाकात हुई। पुरानी यादें उस दौर की सांझा की। बहुत अच्छा लगा । उनके साथ दो महिलाएं अपने स्वाथ्य के बारे परामर्श करने आई थी।
*****/
2014 अगस्त में रिटायरमेंट के टाइम पूरी यूनिट के डॉक्टर एक साथ अपनी पुरानी यादें, पुराने दुख सुख के दिन जो यूनिट में गुजरे थे उन्हें अपने अपने ढंग से याद कर रहे थे। एक सीनियर एस आर ने बताया कि एक बार एक unkown मरीज एक्सीडेंट के साथ आया । उसके पेट में चोट थी। उसको ऑपरेट करने की जरूरत थी मगर उसके ग्रुप का खून ब्लड बैंक में नहीं था । बताया कि सर आपका o पॉजिटिव ब्लड है जो पॉजिटिव दूसरे सभी ग्रुप्स को दिया जा सकता है। आप ब्लड बैंक गए वहां एक यूनिट ब्लड unkown मरीज के लिए दिया और वापिस आकर उसका आपरेशन किया। मरीज बचा लिया गया। 
मैने बहुत कोशिश की पुरानी याद को याद करने की । मगर जब डेट आदि बताई तो मुझे भी यकीन हुआ कि ऐसा कुछ हुआ था। 
और भी कई ना भुलाई जाने वाली पुरानी यादें साझा की गई। अब थोड़ा उम्र का असर होने लगा है तो सोचा सांझा कर लूँ सभी के साथ। मौके पर लिया गया फैंसला यदि एक ज्यान को भी बचा पाता है एक डॉक्टर के जीवन में तो एक एहसास और विश्वास बढ़ता है डॉक्टर का।
मेरे साथ के हमसफ़र सभी डॉक्टरों को याद करते हुए | मुझे गर्व है अपनी यूनिट के उन सभी डॉक्टरों पर जो मरीजों की सेवा में लग्न हैं। 
डॉ रणबीर
****/
'पानीपत की चौथी लड़ाई' साक्षरता आंदोलन की 1992 की रैली।
***पुरानी यादें***
****/*/
Dr O.P.Grewal
पन्द्राह साल हो लिए वे चले गए हमनै छोड़कै।।
उनहत्तर साल बिताए ज्ञान विज्ञान मैं जी तोड़कै।।
डॉ ओम प्रकाश ग्रेवाल अध्ययन संस्थान की जनरल बॉडी मीटिंग में हिस्सेदारी करने का मौका मिला। बहुत सी पुरानी यादें भी ताजा हो गई। डॉ ग्रेवाल के व्यक्तित्व बारे कहने को शब्द नहीं हैं मेरे पास। बहुत ही उत्साहवर्धक मीटिंग रही।
6.6.1937.....24.1.2006
****/
पुरानी यादें---
मंत्री खुर्सीद अहमद जी :
खेल प्रतियोगिता इनाम वितरण समारोह मेडिकल कॉलेज रोहतक सन 1971 के आस पास ।
******
डा• कृष्णा सांगवान,डा• सरोज मुदगिल,डा• सुखबीर सांगवान,डा• रणबीर सिंह दहिया,डा• रणबीर हुड्डा,डा• श्रीराम सिवाच ,डा• मुकेश इन्दौरा ,डा• कोहली।
*////****
पुरानी यादें -- डॉ विकाश कथूरिया, डॉ विकास अग्रवाल, डॉ अनिल जांगड़ा, डॉ सुनील , डॉ पूजा , डॉ कुलदीप, डॉ राजू राजन, डॉ दीपांशु और सभी कॉलीग्स -- आप सबको सलाम ।
******
सिरसली स्वर्गीय संतोष के पोते की शादी में -20 अप्रैल, 2022.पुरानी यादें ताजा हो गई। चम्पा सिंह जी भी मिले।
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आज नित्यानंद स्कूल गया सप्तरंग के प्रोग्राम में तो प्रोफेसर जय सिंह मलिक का फोटो नजर आया। देखकर पुरानी यादें ताजा हो गई। बहुत ही नेक दिल इंसान और दोस्त ।
******
समस्त कर्मचारी व छात्र पीजीआईएमएस रोहतक द्वारा बाबा साहेब भीम राव अम्बेडकर के 131वें जन्म दिवस पर आयोजित कार्यक्रम ।
पीजीआईएमएस,रोहतक लेक्चर थिएटर -1 में।
इस 1 थियेटर में कभी 1967से 1971के  दौर में अपने गुरुओं से पढ़ा और बहुत कुछ सीखा और फिर 1983 से 2014 तक पढ़ाया भी। बहुत सी पुरानी यादें ताजा हो गयी। (42 साल का सफर)
*****/
हरियाणा के प्रथम साक्षरता अभियान, जो कि पानीपत जिले में चला था, उस अभियान के एक परोधा डॉ. रणबीर सिंह दहिया (पी.जी.आई.एम.एस. के सेवानिवृत्त प्रोफेसर) को जिला विकास भवन में आयोजित हरियाणा विज्ञान मंच के कार्यक्रम में सुनने का मौका मिला। सचमुच आज भी युवाओं जैसा जोश हैं डॉ. दहिया में। 

इसी कार्यक्रम में कुछ फलैक्स  पर मेरे द्वारा विज्ञान लोकप्रियकरण एवं अंधविश्वासों के खिलाफ लिखे लेख और कुछ रिपोर्ट भी छपी हुई थी। पुरानी यादे ताजा हो गई। धन्यवाद, हरियाणा विज्ञान मंच का।
******
आज बहुत दिनों बाद एनोटमी विभाग के लेक्चर थिएटर  वन में 2 घण्टे के लिए जाने का मौका मिला । 1967 कि यादें ताजा हो गई । पुरानी यादें ; पुराने अध्यापक : डॉ इंदरजीत दीवान, डॉ इंद्रबीर सिंह , डॉ छिबर, डॉ गांधी, डॉ राठी याद आ गए। 67 बैच के साथी भी दिमाग में घूम गए । सुशील खुराना, आर एन कालरा, अशोक भाटिया, दयासागर गोयल, हरीश भंडारी , रमेश मित्तल, ईश्वर नासिर, रीटा गुलाटी, कर्मजीत कौर, कृष्णा सहरावत , स्वर्ण लता, विमला कादयान आदि आदि।
*///////
कल भिवानी में डॉ अनिल जांगड़ा, डॉ शिव शंकर भारद्वाज , डॉ ईश्वर दास और डॉ त्रिलोकी गुप्ता से मिलने का और पूरानी यादें ताजा करने का मौका मिला और भरपूर सहयोग मिला ।
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795 पिल्लर(टिकरी बॉर्डर) पर जन स्वास्थ्य अभियान द्वारा 1 साल किसानों के लिए फ्री हेल्थ कैम्प का आयोजन । आज वहां से गुजरने का मौका मिला  तो पुरानी यादें ताजा हो गयी तो यह वीडियो बना लिया।
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भुली बिसरी यादें 
सन 1956 की बात है की मेरे पिताजी चौधरी जागे राम सिरसा से बतोर इंस्पेक्टर एग्रीकल्चर की पोस्ट से  बतौर फार्म मैनेजर सरकारी एग्रीकल्चर फार्म रोहतक में तबादला हो कर आए। यह फार्म 100 एकड़ जमीन में बना सरकारी एग्रीकल्चर फार्म था , जिसमें हर तरह की खेती की जाती थी । चार जोड़ी हट्टे कट्टे बैल थे जो खेती करने में  बहुत कारगर रूप से इस्तेमाल किए जाते थे ।  पिताजी 1966 तक यहां पर रहे और यहीं से रिटायर हो गए।  आने वाले दिनों में यह फार्म नहीं रहा और जमीन कुछ बेच दी गई कुछ पर सरकारी दफ्तर खुलते गए और सरकारी अफसरों के रहने के लिये कोठियां और मकान बनते गए। सिरफ़ एग्रीकल्चर फार्म का मेन गेट बचा है जो कमिश्नर के  रेजिडेंस और दफ्तर दोनों यहां हैं, तक जाता है बाकि एग्रो मॉल इसकी जमीन में बना और कई कॉलोनी भी बन गई । बहुत से मकान हैं । दो पीपल के पेड़ आज भी पहचाने जा सकते हैं जो हमारे घर के सामने मौजूद थे। भूली बिसरी यादें हैं पूरे फॉर्म में घूमते थे। पिताजी बहुत सख्त मिजाज थे और फार्म के खेत से चूसने के लिए गन्ने भी नहीं लाने देते थे। बोहर वालों के खेतों से लेकर आते थे।  और चीजों का तो मतलब ही नहीं । यहीं से मैं बिल्कुल साथ लगता जाट स्कूल है वहां पर पढ़ने जाने लगा । पहले प्राइमरी स्कूल में पढ़ा  और फिर हाई स्कूल में छठी क्लास से हायर सेकेंडरी किया । बहुत सी यादें हैं उस दौर की जिन्हें याद करना इतना आसान नहीं है आज एक बार  कोशिश है उन पुरानी यादों को याद करने की। 
प्राइमरी स्कूल में पहले एक ही टीचर थे मास्टर फतेह सिंह दलाल। तीसरी में हुए तो सूरजमुखी बहिनजी ने भी ज्वाइन कर लिया। पांचवी तक पहुंचे तो मास्टर दलजीत सिंह राठी जी भी क्लास लेने लगे।
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भूली बिसरी यादें 
1978 में मेडिकल रोहतक में 98 दिन की हड़ताल हुई..उन दिनों चौधरी हरद्वारी लाल वाईस चांसलर थे। मेरे जीवन में बड़ा टर्निंग पॉइंट साबित हुई यह हड़ताल।
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वार्ड  6-- भूली बिसरी यादें 
एक बार की बात की झरौट के बुजुर्ग अपनी घरवाली को लेकर आये । उसकी एक टांग में गैंग्रीन हो गई बायीं या दायीं याद नहीं। हमने सभी concerned विभागों की राय ली और यह तय हुआ कि amputation करनी होगी । ताऊ को समझाया। कटने की बात सुनकर दोनों घबरा गए । ताऊ मेरे कमरे में आया और हाथ जोड़ कर खड़ा हो गया। मैने बिठाया और उसकी और देखा। " काटनी ए पड़ैगी डॉ साहब। और कोए राह कोण्या इसकी ज्यान नै खतरा करदेगी या गैंग्रीन -- मैंने जवाब दिया बहुत धीमे से। ताऊ बोल्या-- न्यों कहवै सैं अक गुड़गांव मैं शीतला माता की धोक मारकै ठीक होज्यां हैं। मैंने कहा-- मेरी जानकारी में नहीं। ताऊ-- एक बार जाना चाहवैं सैं। फेर आपके डॉ न्यों बोले-- LAMA होज्या । छुट्टी कोण्या देवें । और फिर हमारे वार्ड में दाखिला नहीं हो सकता। चाहूँ सू आप के वार्ड मैं इलाज करवाना। मैने कहा एक शर्त है-- जै इसकी टांग धोक मारकै ठीक होज्या तो भी लियाईये और नहीं ठीक हो तो भी। ठीक होगी तो मैं बाकी के इसे मरीज भी वहीं गुड़गांव भेज दिया करूंगा और ठीक न हो तो आप ये सारी बात एक पर्चे में लिखकर बांटना कि वहां मेरी घरवाली ठीक नहीं हुई। हम ने discharge on request कर दिया । दो दिन बाद वापिस आ गया । महिला की हालत ज्यादा खराब हुई थी। खैर amputation ortho विभाग  के सहयोग से की और महिला ठीक होकर चली गयी । बुजुर्ग जाने से पहले आया कमरे में और कहने लगा-- पर्चा छापना चाहूँ सूँ फेर गांव वाले कह रहे हैं शीतला माता 
 के खिलाफ पर्चा। बहोत दबाव सै मेरे पै डॉ साहब । पैरों की तरफ हाथ किये । मैने बुजुर्ग को छाती से लगा लिया और आशीर्वाद देने को कहा।
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भुली बिसरी यादें -- मेडिकल कालेज वार्षिक खेल आयोजन--2012
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समस्त कर्मचारी व छात्र पीजीआईएमएस रोहतक द्वारा बाबा साहेब भीम राव अम्बेडकर के 131वें जन्म दिवस पर आयोजित कार्यक्रम ।
पीजीआईएमएस,रोहतक लेक्चर थिएटर -1 में।
इस 1 थियेटर में कभी 1967से 1971के  दौर में अपने गुरुओं से पढ़ा और बहुत कुछ सीखा और फिर 1983 से 2014 तक पढ़ाया भी। बहुत सी पुरानी यादें ताजा हो गयी। (42 साल का सफर)
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हरियाणा के प्रथम साक्षरता अभियान, जो कि पानीपत जिले में चला था, उस अभियान के एक परोधा डॉ. रणबीर सिंह दहिया (पी.जी.आई.एम.एस. के सेवानिवृत्त प्रोफेसर) को जिला विकास भवन में आयोजित हरियाणा विज्ञान मंच के कार्यक्रम में सुनने का मौका मिला। सचमुच आज भी युवाओं जैसा जोश हैं डॉ. दहिया में। 

इसी कार्यक्रम में कुछ फलैक्स  पर मेरे द्वारा विज्ञान लोकप्रियकरण एवं अंधविश्वासों के खिलाफ लिखे लेख और कुछ रिपोर्ट भी छपी हुई थी। पुरानी यादे ताजा हो गई। धन्यवाद, हरियाणा विज्ञान मंच का।
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कल भिवानी में डॉ अनिल जांगड़ा, डॉ शिव शंकर भारद्वाज , डॉ ईश्वर दास और डॉ त्रिलोकी गुप्ता से मिलने का और पूरानी यादें ताजा करने का मौका मिला और भरपूर सहयोग मिला ।
जनवरी 2017
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Friday, August 22, 2025

महिला रागनी

रागनी ..1
सिस्टम की बदमासी 
सिस्टम की बदमासी का आज पाटग्या तोल भाई।।
औरत  नै औरत की दुश्मन कैहकै मारैं रोल भाई।।
1
ताकतवर सै पुरुष सदा प्रधान बताया सिस्टम नै 
नारी को बस भोग की वस्तु कैह कै गाया सिस्टम नै
नारी तुम केवल श्रद्धा हो भरम फलाया सिस्टम नै 
ढोल गंवार शुद्र पशु नारी जाल बिछाया सिस्टम नै
सम्पूर्ण मानव नारी सै क्यों कर रहे टाल मटोल भाई।।
औरत  नै औरत की दुश्मन कैहकै मारैं रोल भाई।।
2
नारी का गुण लिहाज शर्म या बदमाशी सिस्टम की सै
बस केवल पतिव्रत धर्म या बदमाशी सिस्टम की सै
सब की सेवा खास कर्म या बदमाशी सिस्टम की सै
जात बीर की कति नर्म या बदमाशी सिस्टम की सै
औरत की असली ताकत का कोण्या जांच्या मोल भाई।
औरत  नै औरत की दुश्मन कैहकै मारैं रोल भाई।।
3
असल छिपा कै कदे देब्बी कदे शक्ति गाई सिस्टम नै 
रणचंडी का रूप कदे कहि काली माई सिस्टम नै
कदे सती कदे सावित्री कदे डायन बताई सिस्टम नै
खान नरक की काली नागण तोहमत लाई सिस्टम नै
मानवता देई लहको बजा कै न्यारे न्यारे ढोल भाई।।
औरत  नै औरत की दुश्मन कैहकै मारैं रोल भाई।।
4
इस सिस्टम की जकड़न मैं कति रोल दिखाई दे ऱयी सै
यूं ढांचा सै उलझ पुलझ घमरोल दिखाई दे रयी सै
बेह माता खुद नारी पर अणबोल दिखाई दे ऱयी सै
डर मैं उसकी नियत भी कमतौल दिखाई दे ऱयी सै
इस सिस्टम के निर्माता की पड़ैगी पाड़नी पोल भाई।।
औरत  नै औरत की दुश्मन कैहकै मारैं रोल भाई।।
5
नारी नर की पूरक सै मैं कति पूजणा चाहूँ सूँ
चोगरदै जब संकट गहरा सही सूझना चाहूँ सूँ
रोग की जड़ कितै और बताई सहम जूझणा चाहूँ सूँ
के नर नर का दुश्मन ना मैं बात बूझणा चाहूँ सूँ
आज मंगतराम दो कदम बढ़या सै मतना करो मखौल भाई ।।
औरत  नै औरत की दुश्मन कैहकै मारैं रोल भाई।।
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रागनी...2

एक गरीब परिवार की बहू खेत में घास लेने गई। वहां दो पड़ौस के लड़के उसे दबोच लेते हैं। क्या बनती है~~
कोए सुणता होतै सुणियो दियो मेरी सास नै जाकै बेरा।
ईंख के खेत मैं लूट लई छाग्या मेरी आंख्यां मैं अन्धेरा।
चाल्या कोण्या जाता मेरे पै मन मैं कसूती आग बलै सै
दिमाग तै कति घूम रहया यो मेरा पूरा गात जलै सै
पिंजरे मैं घिरी हिरणी देखो या देखै कितै कुंआ झेरॉ।
म्हारे दो पड़ौसी उड़ै खेत मैं घात लगायें बैठे थे
मुँह दाब खींच ली ईंख मैं ईथर भी ल्यायें बैठे थे
गरीब की बहू ठाड्डे की जोरू मनै आज पाटग्या बेरा।
यो काच्चा ढूंढ रहवण नै भरया गाळ मैं कीचड़ री
पति नै ना दिहाड़ी मिलती घरके कहवैं लीचड़ री
गुजारा मुश्किल होरया सै बेरोजगारी नै दिया घेरा।
नहां धोकै बाळ बाहकै घूमै खाज्या किलो खिचड़
उंकी इसी हालत घर मैं जण होसै भैंस का चीचड़
खिलौने बेच गालाँ मैं दो रोटी का काम चलै मेरा।
घरां आकै रिवाल्वर दिखा धमकाया सारा परिवार 
बोल चुपाके रहियो नातै चलज्यागा यो हथियार
भीतरला रोवै लागै सुना मनै यो बाबयां बरगा डेरा।
मेरे बरगी बहोत घनी बेबे जो घुट घुट कै नै जीवैं 
दाब चौगिरदें तैं आज्यावै हम घूँट जहर का पीवें
यो रणबीर कलम उठाकै कहै हो लिया सब्र भतेरा।

रागनी ...3

महिला की दास्ताँ
पेट मैं मारण की तैयारी, मैं सुनाऊं पूरे समाज नै।।
क्यों चालै मेरे पै कटारी , मैं सुनाऊं पूरे समाज नै।।
1
मातम मनाते मेरे होण पै छोरे पै बजती थाली क्यों
छठ छोरे की सारे मनाते गामां ताहिं के हाली क्यों 
नामकरण करते छोरे का पढ़े लिखे और पाली क्यों
अग्नि देनी शमशान घाट मैं म्हारी करते टाली क्यों
पराया धन गई मैं पुकारी, मैं सुनाऊं पूरे समाज नै।।
2
धन धरती का हक म्हारा, किसनै खोस्या हमनै बताओ
रिवाज पुत्र वंश चलाने का किसनै थोंप्या हमनै बताओ
दोयम दर्जा म्हारे ताहिं , किसनै सोंपया हमनै बताओ
म्हारा मान सम्मान दखे किसनै खोस्या हमनै बताओ
म्हारी जगाह सिमटती जारी, मैं सुनाऊं पूरे समाज नै।।
3
स्वयंम्बर करकै पति चुनै या रही परंपरा म्हारी बताई
दमयंती नै नल के गल मैं माला खुद तैं डारी बताई
मातृ सत्ता म्हारे समाज मैं बहोत दिन रही जारी बताई
पितृ सत्ता की संस्कृति खुद बै खुद उभरती आरी बताई
आज या चारों कांहीं छाहरी, मैं सुनाऊं पूरे समाज नै।। 
4
धापां सीमा संतोष काफी यो नाम धरया भतेरी क्यों
सारी उम्र इन नामां करकै महिला झेलैं अंधेरी क्यों
दोयम दर्जा म्हारा समाज मैं लाज जावै बखेरी क्यों
कोई रास्ता नहीं देवै दिखाई चारों तरफ तैं घेरी क्यों
बनाई सां हम अबला नारी, मैं सुनाऊं पूरे समाज नै।।
5
इसे माहौल मैं माता क्युकर बेटी पैदा करदे देखो
परिवार महिला की नाड़ पै तुरत कटारी धरदे देखो
माँ का कसूर कड़ै इसमैं चाहवै रंग जीवन मैं भरदे देखो
सन्तुलन जब बैठे जब हटैं समाज की आंख्यां तैं परदे देखो
या पूरे समाज की बीमारी, मैं सुनाऊं पूरे समाज नै।।
6
औरत मर्द जड़ै बराबर वोहे समाज ठीक जताया सै
इस संकट की जड़ों मैं हाथ पितृ सत्ता का पाया सै
पुत्र लालसा छोरी मारै परिवारों नै जुल्म कमाया सै
परिवार पूरे समाज का दर्पण यो गया सही बताया सै
रणबीर की कलम पुकारी , मैं सुनाऊं पूरे समाज नै।।

रागनी...4

रिश्ते 
परिवार के रिश्ते सड़ते जावैं कसूता संकट छाया हे।।
म्हारे देश मैं औरत का वजूद गया बहोत दबाया हे।।
अन्याय नै समझन खातर या न्याकारी समझ होवै 
न्यायकारी समझ होतै माणस होश हवास नहीं खोवै 
औरत भी एक इंसान होसै सच यो गया छिपाया हे।।
किस पापी नै शरीर औरत का बाजार मैं दां पै लाया
शरीर के म्हां कै ऐस करो औरत को किसनै समझाया
उपभोग की वस्तु किनै बनाई किसनै जाल बिछाया हे।।
पितृसत्ता की ताकत भारी पुत्र लालसा इंकी जड़ मैं सै
औरत पुत्र पैदा कर मुक्ति पांवै या वेदों की लड़ मैं सै 
पुत्री मार कर पुत्र पैदा सबक जान्ता रोज पढ़ाया हे।।
घर भीतर अन्याय होन्ता किसे तैं छिप्या रह्या कड़ै
घर परिवार सब दिखावा रणबीर किसकै घरां बड़ै
छोरी कै लील गेर दिए  जिब धरती का डां ठाया हे ।।

रागनी...5

म्हारा हरियाणा 
म्हारा हरियाणा दो तरियां आज दुनिया के मैं छाया।।
आर्थिक उन्नति करी पर लिंग अनुपात नै खाया।।
1
पेट मैं मारैं छाँट कै ये म्हारे समाज के नर नारी
समाज अपने कसूर की माँ कै लावै जिम्मेदारी
जनता हुई हत्यारी पुत्र लालसा नै राज जमाया।।
म्हारा हरियाणा दो तरियां आज दुनिया के मैं छाया।।
2
औरत औरत की दुश्मन यो जुमला कसूता चालै
आदमी का दुश्मन आदमी ना जो रोजै ए घर घालै
यो दबंग भक्कड़ बालै हरियाणा बदनाम कराया।।
म्हारा हरियाणा दो तरियां आज दुनिया के मैं छाया।।
3
पुराणी परम्परा वंश की पुत्र नै चिराग बतावैं 
एक छोरा तै होणा चाहिए छोरियां नै मरवावैं 
जुल्म रोजाना बढ़ते जावैं सुण कै कांपै सै काया।।
म्हारा हरियाणा दो तरियां आज दुनिया के मैं छाया।।
4
सारै अफरा तफरी माची महिला महफूज नहीं 
बची जो पेट मार तैं उनकी समाज मैं बूझ नहीं 
आती हमनै सूझ नहीं रणबीर घणा घबराया।।
म्हारा हरियाणा दो तरियां आज दुनिया के मैं छाया।।

रागनी....6

महिला विरोधी यो माहौल नजर हरयाने मैं आवै।।।
मातृशक्ति जिंदाबाद का उपरले मन  तै नारा लावै।।
1
अशुरक्षा बढ़ाई चारों कान्ही महिला जमा घिरगी रै
महिला अजेंडा ठारे सें  पर लिंग अनुपात गिरगी रै
दिशा म्हारी कदे गलत हो रोजाना याहे चिंता खावै।।
मातृशक्ति जिंदाबाद का उपरले मन  तै नारा लावै 
2
महिला महिला की बैरी झूठ पै गहटा जोड़ लिया 
सच्ची बात किमै दूसरी उसतै  मूंह क्यों मोड़ लिया  
पितृसता पुत्र लालसा पै नहीं कोए आन्गली ठावै।।
मातृशक्ति जिंदाबाद का उपरले मन  तै नारा लावै।।
3
म्हारी मानसिकता सुन् ल्यो  हुई सै कसूती हत्यारी 
धन दौलत मैं हिस्सा ना बात बात पर जा दुत्कारी
पूरी मोर्चे बंदी करदी कोये दरवाजा ना खुल्या पावै।।
मातृशक्ति जिंदाबाद का उपरले मन  तै नारा लावै ।।
4
इसी निराशा मैं बी कई महिला आगे बढ़ी बताऊँ
खेलां मैं छाई सें करैं संघर्ष हर मोर्चे पै दिखाऊँ
रणबीर सिंह जी लाकै सच्चाई सबकै साहमी ल्यावै।।

रागनी..7

बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ 
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ सारे मिलकै कसम उठावां।।
ये छोरी छोरा बराबर होज्यां हम इसा माहौल बनावां।।
पढावन का ब्योंत हो सबका माँ बाप नै रोजगार मिलै
बढ़िया पढ़ाई मिलै सबनै ना किसे नै अंधकार मिलै
पुत्र लालसा की कुरीति नै समाज तैँ बाहर भगावां।।
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ सारे मिलकै माहौल बनावां।।
एक छोरा तो चाहिए जरूरी हमनै कुरीति भुलानी हो 
बेटी बेटा ये  होंसैं बराबर ईब नई सुरीति चलानी हो 
सिर्फ दिखावा करांगे तो हत्यारे का कैसे कलंक हटावां।।
बेटी बचाओ---------------------।।
जितना चाहवै पढ़ पावै छोरी इसा माहौल बनाना हो 
यो न पहरै वो ना पहरै यो रूढ़िवादी विचार हटाना हो 
औरत बी इंसान माणकै जेंडर फ्रेंडली बाग़ लगावां ।।
बेटी बचाओ--------------------।।
युवा लड़की लड़के की ताकत देश निर्माण मैं लागज्या
भारत देश की ताकत का बेरा पूरी दुनिया नै पाटज्या
बराबर के हक मिलज्यां मिलकै नई लहर चलावां।।
बेटी बचाओ ------------------।।
रणबीर --

रागनी....8
महिला विरोधी यो माहौल नजर हरयाने मैं आवै।।।
मातृशक्ति जिंदाबाद का उपरले मन  तै नारा लावै।।
1
अशुरक्षा बढ़ाई चारों कान्ही महिला जमा घिरगी रै
महिला अजेंडा ठारे सें  पर लिंग अनुपात गिरगी रै
दिशा म्हारी कदे गलत हो रोजाना याहे चिंता खावै।।
मातृशक्ति जिंदाबाद का उपरले मन  तै नारा लावै 
2
महिला महिला की बैरी झूठ पै गहटा जोड़ लिया 
सच्ची बात किमै दूसरी उसतै  मूंह क्यों मोड़ लिया  
पितृसता पुत्र लालसा पै नहीं कोए आन्गली ठावै।।
मातृशक्ति जिंदाबाद का उपरले मन  तै नारा लावै।।
3
म्हारी मानसिकता सुन् ल्यो  हुई सै कसूती हत्यारी 
धन दौलत मैं हिस्सा ना बात बात पर जा दुत्कारी
पूरी मोर्चे बंदी करदी कोये दरवाजा ना खुल्या पावै।।
मातृशक्ति जिंदाबाद का उपरले मन  तै नारा लावै ।।
4
इसी निराशा मैं बी कई महिला आगे बढ़ी बताऊँ
खेलां मैं छाई सें करैं संघर्ष हर मोर्चे पै दिखाऊँ
रणबीर सिंह जी लाकै सच्चाई सबकै साहमी ल्यावै।।
मातृशक्ति जिंदाबाद का उपरले मन  तै नारा लावै ।।

रागनी..9

~~अजन्मी बेटी ~~
चिंघाड़ अजन्मी बेटी की हमनै देती नहीं सुणाई।
किस्सा जमाना आग्या हुये माणस कातिल अन्याई।
पेट मैं मरवाना सिखया तकनीक इसी त्यार करी
लिहाज और शर्म सारी पढ़े लिख्याँ नै तार धरी
महिला संख्या घटती जा दुनिया मैं हुई रूसवाई।
परम्परा और कई रिवाज ये बुराई की जड़ मैं रै
दुभांत महिला की गेल्याँ होवै सबके बगड़ मैं रै
छोरे की खातर छोरी पै कटारी पैनी सै चलवाई।
महिला कम हुई सैं ज्यां इनपै अत्याचार बढ़गे
खरीद फरोख्त होण लगी साथ मैं व्यभिचार बढ़गे 
घर क3 भित्तर और बाहर ज्यांन बिघन मैं आई।
पुत्र लालसा की जड़ घनी गहरी म्हारे समाज मैं 
दोयम दरजा और दुभांत छिपी सै इस रिवाज मैं 
इस आधुनिक समाज नै और रापट रोल मचाई।
महिला शोषण के खिलाफ आवाज उठण लगी
विरोध की चिंगारी आज हरियाणा मैं दिखण लगी 
समाज के एक हिस्से नै बराबरी की मांग उठाई।
महिला नै इस माहौल मैं अपने कदम बढ़ा दिए
पिछड़ी सोच आल्याँ के कई बै छक्के छुड़ा दिए
रणबीर नै भी साथ मैं  या अपनी कलम घिसाई ।

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रागनी...10
मेरे जी नै भाण गुलाबो घणा मोटा फांसा होग्या हे।।
बाहर भीतर संकट भारी घणा भूंडा रासा होग्या हे।।
1
मैं पैदा जिस दिन हुई घर मैं घणी मुरदाई छागी 
भाई जिस दिन हुया पैदा दादी थाली खूब बजागी
बुआ मेरे होणे पै मेरी माँ नै घणी निरभाग बतागी
घर मैं चौथी छोरी आई मेरी मां नै चिंता खागी
सातवें जापे मैं हुया जिंगड़ा कुल की आशा 
होग्या हे।।
2
बेटी ग़म खाणा चाहिए सीख सिखाई शाम सबेरी
पढ़ण की कही मां बोली क्यों ज्याण बहम मैं गेरी
मेरे तैं सूकी गंठा रोटी भाई नै दूध मलाई देरी
बेटा तै बड्डा होकै वंश चलावै माड़ी तकदीर मेरी
किसा राम राज आया घणा अजब तमाशा 
होग्या हे।।
3
दुनिया कहै  मनु स्मृति नै म्हारा बेड़ा पार किया
उसमैं ढेठी औरत गेल्यां कुल्टा जिसा ब्यो हार किया
सेवा करणा काम बीर का मनू जी नै प्रचार किया
सदियों से महिला का शोषण यो बारंबार किया
मनू नै भी डांडी मारदी बेबे तोड़ खुलासा 
होग्या हे।।
4
बीर कहैं मर्द बराबर होसै असल मैं या बात नहीं 
कहैं क्यूकर हो मर्द बराबर सै कोए औकात नहीं
भोग की चीज बणादी छोड्डी म्हारी कोए जात नहीं
कहैं मर्द कमावै ठाली ख़ावै करै कदे 
खुभात नहीं
घर मैं पिसती बाहर मरण सै उल्टा हर पासा होग्या हे।।
5
दिन धौली दें मार लुगाई घणा बुरा जमाना आया
कुणसे कांड गिनाऊं आज दुर्योधन भी शरमाया 
स्टोवां नै भी नई ब्याहली काँहिं अपना मुंह सै बाया
गर्भ बीच चलावैं कटारी ये चाहते पिंड छुटवाया 
महिला आज बोझ बताई मजाक खासा होग्या हे।।
6
एक जीनस दी बना लुगाई समाज नै कमाल किया
बीर का मर्द बता बैरी खड़या नया बबाल किया
सास बहू का ईसा रिश्ता खड़या कर जंजाल दिया 
बीच बाजार मैं बिठा दी बिछा कसूता जाल दिया 
म्हारे देश मैं औरत का दर्जा तोले तैं मासा 
होग्या हे।।
7
रल मिल सोच समझ कै इब आगै बढ़ना होगा
अंध विश्वास पडै़ छोड़ना नया इतिहास गढ़ना होगा
नए दौर का नया सबेरा नई राही पै चढ़ना होगा
सोच समझ कै अपने हकों खातर कढ़ना होगा
रणबीर की बात सुणी मेरै चांदना खासा 
होग्या हे।।

रागनी...11

जागी महिला अब हरियाणे की 
जुल्मो सितम नहीं सहेंगी महिला अब हरियाणे की।।
आगे बढ़कर बात करेंगी महिला अब हरियाणे की ।।
1
खेतों में खलिहानों में दिन रात कमाई करती हैं
फिर भी दोयम दरजा हम बिना दवाई मरती हैं
बैठी बैठी नहीं सहेंगी महिला अब हरियाणे की।।
आगे बढ़कर बात करेंगी महिला अब हरियाणे की ।।
2
देवी का दरजा देकर इस देवी को किसने लूटा
सदियों से हम गई दबाई समता का दावा झूठा
दहेज़ की बलि नहीं चढ़ेंगी महिला अब हरियाणे की ।।
आगे बढ़कर बात करेंगी महिला अब हरियाणे की ।।
3
इंसान बन गए हैवान आज होते हैं अत्याचार 
यहाँ देखो नैया डूब रही अब हम थामेंगी पतवार
अबला बनकर नहीं मरेंगी महिला अब हरियाणे की।।
आगे बढ़कर बात करेंगी महिला अब हरियाणे की ।।
4
आगे बढे ये कदम हमारे पीछे ना हटने पायेंगे
जो मन धार लिया हमने अब करके वही दिखाएंगे
रणबीर सारी बात लहेंगी महिला अब हरियाणे की।।
आगे बढ़कर बात करेंगी महिला अब हरियाणे की ।।

रागनी ...12

जागी महिला हरियाणे की
करकै कमाल दिखाया सै, मिलकै नै कदम उठाया सै, खेतां मैं खूब कमाया सै, जागी महिला हरियाणे की।।
1. 
देश की आजादी खातर अपणी ज्यान खपाई बेबे
गामड़ी सांघी खिडवाली मैं न्यारी रीत चलाई बेबे
लिबासपुर रोहणात मैं बहादरी थी दिखलाई बेबे
अंग्रेजां तै जीन्द की रानी गजब करी लड़ाई बेबे
अंग्रेजां का भूत बनाया, यो सब कुछ दापै लाया,
देश आजाद कराणा चाहया जागी महिला हरियाणे की।।
2. 
देश आजाद होये पाछै हरित क्रांति ल्याई बेबे
खेत क्यार कमावण तै कदे नहीं घबराई बेबे
डांगर ढोर संभाले हमनै दिन रात कमाई बेबे 
घर परिवार आगै बढ़ाये स्कूलां करी पढ़ाई बेबे
हरियाणा आगै बढ़ाया सै ,सात आसमान चढ़ाया सै,
गुण्डयां का जुलूस कढ़ाया सै, जागी महिला हरियाणे की।।
3. 
हमनै गाम बराहणे मैं दारू बन्दी पै गोली खाई सै
खेलां के मैदानां मैं जगमति सांगवान खूबै छाई सै
सुशीला राठी बड्डी डॉक्टर हरियाणे की श्यान बढ़ाई सै
नकल रोकती बाहण सुशीला जमा नहीं घबराई सै
चावला नै नाम कमाया सै, महिला का मान बढ़ाया सै
यो रस्ता सही दिखाया सै, जागी महिला हरियाणे की।।
4. 
संतोष यादव बाहण म्हारी करकै कमाल दिखाया हे
सुमन मंजरी डीएसपी पुलिस मैं नाम कमाया हे
सांगवान मैडम नै बिमल जैन तै सबक सिखाया हे
नवराज जयवन्ती श्योकन्द जीवन सफल बनाया हे
ज्योति अरोड़ा सरोज सिवाच प्रशासन खूब चलाया हे
ये आगै बढ़ती जारी बेबे, करकै कमाल दिखारी बेबे
रणबीर मान बढ़ारी बेबे, जागी महिला हरियाणे की।।

रागनी...13

सावित्री बाई फुले के पुण्य दिवस के मौके पर

एक रागनी----
सावित्री बाई फुले आपको शत शत है प्रणाम म्हारा।।
पहली महिला शिक्षक देश की लिया जावै नाम थारा।।
1
तीन जनवरी ठारां सौ कतीस जन्मी दलित परिवार मैं
नौ साल की की शादी होगी ज्योतिराव फुले के घरबार मैं
उन बख्तों मैं समाज सुधार का था मुश्किल काम थारा।।
पहली महिला शिक्षक देश की लिया जावै नाम थारा।।
2
महिला शिक्षा की खातिर सबतैं पहला स्कूल खोल दिया
रूढ़िवादी विचारकों नै  डटकै हमला थारे पै बोल दिया
ना पाछै कदम हटाये महिला स्कूल खोले तमाम ठारा।।
पहली महिला शिक्षक देश की लिया जावै नाम थारा।।

3
बाल विवाह के खिलाफ विधवा विवाह ताहिं छेड़ी जंग
सती प्रथा छुआछूत के किले विचार फैला करे थे तंग
ब्राह्मण विधवा गर्भवती का ज़िम्मै लिया इंतज़ाम सारा।।
पहली महिला शिक्षक देश की लिया जावै नाम थारा।।
4
ब्राह्मण ग्रंथ मत पढ़ो जात पात से बाहर आ जाओ
मेहनत से जाति बन्धन तोड़ो शिक्षा पूरी तम पा जाओ
लिखै रणबीर बरोने आला महिला शिक्षा का पैगाम थारा।।।
पहली महिला शिक्षक देश की लिया जावै नाम थारा।

रागनी...14

भटेरी गांव की भंवरी बाई, संघर्ष की जिनै राह दिखाई,सारे देश मैं छिड़ी सै लड़ाई, साथ मैं चालो सारी बहना।।
1
साथिन भंवरी नहीं अकेली हम कसम आज उठाते सारे
बाल विवाह की बची बुराई इसके खिलाफ जंग चलाते सारे
जालिमों की क्यों ज्यान बचाई, कचहरी क्यों मदद पै आई, सब छिपा रहे हैं सच्चाई,भंवरी साथिन पुकारी बहना।।
2
देकर झूठी दलीलें देखो बलात्कारियों को बचाते क्यों
परम्परा का ढोंग रचाकर असल सच्चाई को दबाते क्यों
भंवरी ने सही आवाज उठाई,जुल्मी चाहते उसे दबाई,समझ गई भरतो भरपाई, भंवरी नहीं बिचारी बहना।।
3
इस तरह से नहीं झुकेंगी जुल्मो सितम से टकरायेंगी
परम्परा की गली सड़ी जंजीरें आज हम तोड़ बगायेंगी
भटेरी ने नई लहर चलाई, समता की है पुकार लगाई, जयपुर में हूंकार उठाई, यह जंग रहेगी जारी बहना।।
4
फासीवाद का खूनी चेहरा इससे हरगिज ना घबरायेंगी
आगे बढ़े हैं कदम हमारे हम नया इतिहास बनायेंगी
रणबीर सिंह ने कलम चलाई, अपने डिक्ल की बात बताई,सच की हुई जीत दिखाई, ना सेखी है बघारी बहना।।

रागनी...15

आज हम देखें औरत की जो सही तस्वीर सखी।। 
दिया समाज ने जो हमें उसको कहती तकदीर सखी।। 
घर में खटना पड़ता मर्दों की नजर में मोल नहीं औरत भी समझे इसे किस्मत लगा सकी तोल नहीं 
करती हम मखौल नहीं हमारी हालत है गंभीर सखी।।
घर खेत में काम करें जुताई और बुवाई करती बहना 
चारा पानी झोटा बुग्गी दिन और रात मरती बहना 
बैठी आहें भरती बहना समझें किस्मत की लकीर सखी।।
कैसा सलूक करते हमसे मालिक बंधवा का व्यवहार यहां 
खाना दोयम कपड़ा दोयम मिले सारा दोयम संसार यहां 
करोड़ों महिला बीमार यहां इलाज की नहीं तदबीर सखी।।
अहम फैंसले बिना हमारे मरद बैठ कर क्यों करते देखो 
जुल्म ढाते भारी हम पर नहीं किसी से डरते देखो 
हम नहीं विचार करते देखो तोडे़ं कैसे यह जंजीर सखी ।।
खुद चुपचाप सहती जाती मानें कुदरत का खेल इसको 
सदियों से सहती आई समझें राम का मेल इसको 
क्यों रही हो झेल ईसको मसला बहोत गम्भीर सखी।।
सदियों से होता ही आया पर किया मुकाबला है हमने 
सिर धड़की बाजी लगा नया रास्ता अब चुना है हमने 
जो सपना बुना है हमने होगा पूरा लिखे रणबीर सखी।।

रागनी...16

दिन काटे चाहूं
दिन काटे चाहूं मैं ये कोण्या सुख तैं कटण देवैं।।
चुपचाप जीणा चाहूं मैं फेर कोण्या टिकण देवैं।।
1
झाड़ झाड़ बैरी होगे आज हम बरगी बीरां के
मोह माया तैं दूर पड़े फेर दिल डिगें फकीरां के
नामी बदमाश पाल राखे बाबा ना पिटण देवैं।।
अच्छाई के बोये बीज ये जमा नहीं पकण देवैं।।
2
कई बै जी करै फांसी खालयूं इनकै अकल लागै
सहेली बोली मेरी बात मान मत प्राणां नै त्यागै
किसे कै कसक ना जागै हमनै नहीं बसण देवैं।।
आगै बढ़े कदम म्हारे उल्टे हम नहीं हटण देवैं।।
3
बताओ पिया के करूं मैं इणपै तूँ गीत बनादे नै
द्रोपदी चीर हरण गाओ म्हारे चीर हरण पै गादे नै
बणा रागनी सुनादे नै हम तेज नहीं घटण देवैं।।
हरयाणे मैं शोर माचज्या दबा इसा यो बटन देवैं।।
4
गाम के गोरै खड़े पावैं भैंस के म्हां कै ताने मारैं
इंसानियत जमा भूलगे भों किसे की इज्जत तारैं
बिना बात ये खँगारैं हमनै और घणी घुटण देवैं।।
रणबीर सिंह बरगे म्हारी इज्जत ना लुटण देवैं।।


रागनी...17

एक आह्वान रागनी 
हम कदम मिलजुल के मंजिल की तरफ बढ़ाएं बहना ॥ 
हमारी बहुविविधता को दे हर क़ुरबानी बचाएं बहना ॥ 
गुणवत्ता वाली पढ़ाई वास्ते  जनता लाम बन्द करेंगी 
सबको सस्ता इलाज मिले ऐसा मिलके प्रबंध करेंगी 
निर्माण के उदाहरण हम करके सबको दिखाएं बहना ॥ 
अन्ध विश्वास के खिलाफ लंबा चलाएं एक अभियान 
सबका मिलके होगा प्रयास बने संवेदनशील इंसान 
प्रति गामी विचार को  वैज्ञानिक आधार से  हराएं बहना ॥ 
मिल करके करेंगे विरोध  सभी दलित अत्याचार का 
महिला समता समाज में हो 
मुद्दा बनायेंगे प्रचार का 
रोजगार मिले सबको ये हम सब अभियान चलाएं बहना ॥ 
सद्भावना बढे समाज में नफरत का विरोध करें सभी
पूरे समाज का विकास हो इस पे पूरा शोध करें सभी 
बढ़े हुए कदम हमारे रणबीर आगे बढ़ते ही जायें बहना ॥

रागनी...18

सीढ़ी घड़ादे चन्दन रूख की सासड़ तीज ये मेरी आई री।।
चन्दन रूख ना म्हारै क्यों ना पीहर तैं घड़ा कै ल्याई री।।
1
अपनी तैं दे दी झूल पाटड़ी म्हारे तैं  दिया यो पीसणा
फोडूँ री सासड़ चाक्की के पाट क्यों चाहवै मनै घिसणा
आज तो दिन त्योहार का सै चाहिए ऊंच नीच भुलाई री।।
2
मनै खन्दा दे री मेरे बाप कै बीर आया यो माँ जाया
बहु इबकै यहीं तीज मना री तेरा पिया छुट्टी आया
गगन गरजै बिज्जल पाटै या मरती फसल तिसाई री।।
3
लरज लरज कै जावै बहू या जाम्मन की डाहली देख
पड़कै नाड़ ना तुड़ा लिए तेरी मां देगी मनै गाली देख
नन्द भी हचकोले मारैगी कहवैगी पहलम ना बताई री।।
4
मन मैं गुद गुद सी माच रही झूलण जाऊं बाग मैं हे
चढ़ पींघ पै जोर लगा कै मैं पींघ बधाऊँ बाग मैं हे
तीज रल मिलकै मनावां सारे रणबीर की या कविताई री।।


रागनी...19
हरियाणा के समाज मैं औरत कै घली जंजीर, क्यों हमनै दीखती नहीं।।
1
पहलम दुभान्त हुया करती
दुखी सुखी हम जिया करती
पीया करती इलाज मैं यो परम्परा का नीर, चिता तैं उठती नहीं।।
2
पेट मैं ए मारण की तैयारी
घनखरी दुनिया हुई हत्यारी
गांधारी आज भी लिहाज मैं
पीटती जावै वाहे लकीर,नई राही दीखती नहीं।।
3
बचावनिया और मारनिया के 
घले पाले खेल करनिया के
घेरनिया के मिजाज मैं यो 
मामला सै गम्भीर, क्यों हमनै सूझती नहीं।
4
समाज करना  चाहवै सफाया
सैक्स सेलेक्शन औजार बनाया
बताया सही अंदाज मैं, झूठ नहीं सै रणबीर, कलम चूकती नहीं।।

रागनी ...20

आयी तीज 
मॉनसून नै इबकै बहोतै बाट या दिखाई बेबे ।।
बरस्या नहीं खुलकै बूंदा बांदी सी आयी बेबे ।।
साम्मण के मिहने मैं सारे कै हरयाली छाज्या 
सोचै प्रदेश गया पति भाज कै घर नै आज्या 
ना गर्मी ना सर्दी रूत या घणी ए सुहाई बेबे ।।
कोये हरया लाल कोये जम्फर पीला पहर रही 
बाँट गुलगुले सुहाली फैला खुशी की लहर रही 
कोये भीजै बूंदां मैं कोये सुधां लत्यां नहाई बेबे।।
 आयी तीज बोगी बीज आगली फसल बोई या 
झूला झूल कै पूड़े खाकै थाह मन की टोही या 
पुरानी तीज तो इसी थी आज जमा भुलाई बेबे ।। 
बाजार की संस्कृति नै म्हारी तीज जमा भुलाई 
इस मौके पर जाया करती प्रेम की पींघ बढ़ायी 
कहै रणबीर सिंह कैसे करूँ आज की कविताई बेबे।।
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Thursday, August 21, 2025

हरियाणा में स्वास्थ्य में लैंगिक मुद्दे

हरियाणा में स्वास्थ्य में लैंगिक मुद्दे 
डॉ. आर.एस. दहिया पूर्व सीनियर प्रोफेसर, सर्जरी, पीजीआईएमएस, रोहतक। 

यह एक अच्छी तरह से स्थापित तथ्य है कि जैविक रूप से महिलाएं एक मजबूत सेक्स हैं। जिन समाजों में महिलाओं और पुरुषों के साथ समान व्यवहार किया जाता है, वहां महिलाएं पुरुषों से अधिक जीवित रहती हैं और वयस्क आबादी में पुरुषों की तुलना में महिलाओं की संख्या अधिक है। हमारे देश में गर्भावस्था के दौरान सबसे ज्यादा लड़कियों की मौत होती है।

स्वाभाविक रूप से जन्म के समय 100 लड़कियों पर 106 लड़के होते हैं क्योंकि जितने अधिक लड़के शैशवावस्था में मरते हैं, अनुपात संतुलित होता है। असमान स्थिति, संसाधनों तक असमान पहुंच और लिंग के कारण लड़कियों और महिलाओं द्वारा अनुभव की जाने वाली निर्णय लेने की शक्ति की कमी के परिणामस्वरूप स्वास्थ्य में नुकसान होगा। इन नुकसानों में स्वास्थ्य जोखिम की उच्च संभावना, जोखिम के परिणामस्वरूप प्रतिकूल स्वास्थ्य परिणामों की अधिक संवेदनशीलता और समय पर, उचित और पर्याप्त स्वास्थ्य देखभाल प्राप्त करने की कम संभावना शामिल है।

विभिन्न सेटिंग्स में किए गए अध्ययनों के आधार पर यह व्यापक रूप से स्वीकार किया गया है कि जनसंख्या समूहों में स्वास्थ्य में असमानताएं बड़े पैमाने पर सामाजिक और आर्थिक स्थिति में अंतर और बिजली और संसाधनों तक अलग-अलग पहुंच के परिणामस्वरूप उत्पन्न होती हैं। खराब स्वास्थ्य का सबसे बड़ा बोझ उन लोगों पर पड़ता है जो न केवल आर्थिक रूप से, बल्कि साक्षरता स्तर और सूचना तक पहुंच जैसी क्षमताओं के मामले में भी सबसे अधिक वंचित हैं। नोबेल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन के शब्दों में, 1 अरब की वर्तमान आबादी वाले भारत को लगभग 25 मिलियन लापता महिलाओं का हिसाब देना होगा।

ऊपर से आज की आधुनिक दुनिया में इस भेदभाव ने लिंग-संवेदनशील भाषा को विकसित नहीं होने दिया है। मनुष्य जाति तो है, परन्तु स्त्री जाति नहीं है; हाउस वाइफ तो है लेकिन हाउस हस्बैंड नहीं; घर में माँ तो है पर घर में पिता नहीं; रसोई नौकरानी तो है लेकिन रसोई वाला कोई नहीं है। अविवाहित महिला कुंआरी लड़की से लेकर सौतेली नौकरानी और बूढ़ी नौकरानी तक की दहलीज पार कर जाती है लेकिन अविवाहित पुरुष हमेशा कुंवारा ही रहता है।

भेदभाव का अर्थ है 'किसी निर्दिष्ट समूह के एक या अधिक सदस्यों के साथ अन्य लोगों की तुलना में गलत व्यवहार करना।' इस मुद्दे पर 1979 में संयुक्त राष्ट्र द्वारा महिलाओं के खिलाफ भेदभाव के एसीआई रूपों (सीईडीएडब्ल्यू) के उन्मूलन पर एक सम्मेलन आयोजित किया गया था। उस सम्मेलन में लिंग भेदभाव को इस प्रकार परिभाषित किया गया था: "सेक्स के आधार पर किया गया कोई भी भेदभाव, बहिष्करण या प्रतिबंध जिसका प्रभाव या उद्देश्य राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, नागरिक या किसी अन्य क्षेत्र में पुरुषों और महिलाओं की समानता, मानवाधिकारों और मौलिक स्वतंत्रता के आधार पर, उनकी भौतिक स्थिति के बावजूद, महिलाओं द्वारा मान्यता, आनंद या अभ्यास को ख़राब या रद्द करने का है"।

यह लिंग भेदभाव उस विचारधारा से उत्पन्न होता है जो पुरुषों और लड़कों का पक्ष लेती है और महिलाओं और लड़कियों को कम महत्व देती है। यह शायद भेदभाव के सबसे व्यापक और व्यापक रूपों में से एक है। लिंग सशक्तिकरण माप (जीईएम) के उपाय बताते हैं कि दुनिया भर में लिंग भेदभाव है। कई देशों में, विशेषकर विकासशील देशों में, पुरुषों की तुलना में महिलाओं का एक बड़ा हिस्सा निरक्षर है। दुनिया भर में महिलाएँ केवल 26.1% संसद सीटों पर काबिज हैं।

व्यावहारिक रूप से विकासशील और औद्योगिक रूप से विकसित सभी देशों में, श्रम बाजार में महिलाओं की भागीदारी पुरुषों की तुलना में कम है, महिलाओं को समान काम के लिए कम भुगतान किया जाता है और पुरुषों की तुलना में अवैतनिक श्रम में कई घंटे अधिक काम करना पड़ता है। महिलाओं के प्रति भेदभाव की सबसे स्पष्ट अभिव्यक्ति गर्भ में लिंग निर्धारण और फिर चयनात्मक लिंग गर्भपात की प्रथा है। आधुनिक तकनीक अब भेदभाव की संस्कृति को कायम रखने में मदद के लिए आई है, जिसके परिणामस्वरूप पिछले वर्षों में भारत के कई अन्य राज्यों के अलावा हरियाणा में पुरुषों की तुलना में महिलाओं के अनुपात में गिरावट आई है। कुल मिलाकर, गर्भावस्था के दौरान पुरुषों की तुलना में अधिक महिलाओं की मृत्यु होती है। इसीलिए जन्म के समय पुरुषों की संख्या अधिक होती है,'' ऑर्ज़ैक ने कहा, जिन्होंने इस मुद्दे पर शोध प्रकाशित किया है।24-जनवरी-2019 जन्म के बाद अधिकतर लड़के मर जाते हैं।

निदेशक नीरजा शेखर ने अनंतिम जनगणना डेटा का विवरण साझा करते हुए साक्षरता दर और लिंग अनुपात के बीच सह-संबंध बनाए रखा, विपरीत संबंध का सुझाव दिया, हालांकि अंतिम डेटा संकलित होने के बाद सटीक संबंध का अनुमान लगाया जाएगा। 
हरियाणा में 6 वर्ष से कम आयु के 18.02 लाख लड़के थे; इसी आयु वर्ग में लड़कियों की संख्या 14.95 लाख थी। (2011 की जनगणना)

2011 की जनगणना के अनुसार, सबसे अधिक लिंगानुपात मेवात में 907, उसके बाद फतेहाबाद में 902 देखा गया। 2021 की जनगणना के अनुसार, हरियाणा का बाल लिंग अनुपात (0-6 आयु समूह) प्रति 1000 पुरुषों पर 902 महिलाएं है। हरियाणा में लिंगानुपात 2011 में भारत की अंतिम जनगणना के अनुसार, हरियाणा में भारत में सबसे कम लिंगानुपात (834 महिलाएँ) है। यह राज्य कन्या भ्रूण हत्या के लिए पूरे भारत में जाना जाता है। हालाँकि, सरकारी योजनाओं और पहलों के साथ, हरियाणा में लिंगानुपात में सुधार दिखना शुरू हो गया है। राज्य में दिसंबर, 2015 में पहली बार बाल लिंग अनुपात (0-6 आयु वर्ग) 900 से अधिक दर्ज किया गया। 2011 के बाद यह पहली बार है कि हरियाणा लिंग अनुपात 900 के आंकड़े को पार कर गया है। 2011 की जनगणना के अनुसार, सबसे अधिक लिंगानुपात मेवात में 907, उसके बाद फतेहाबाद में 902 देखा गया।

राज्य के स्वास्थ्य विभाग के अनुसार हरियाणा का लिंग अनुपात 903 (2016) था। . 2021 की जनगणना के अनुसार, हरियाणा का बाल लिंग अनुपात (0-6 आयु समूह) प्रति 1000 पुरुषों पर 902 महिलाएं है। हरियाणा का विषम लिंगानुपात गोद लेने के आंकड़ों में भी प्रतिबिंबित होता है। हरियाणा से प्राप्त गोद लेने के आवेदनों के बारे में विशेष विवरण प्रदान करते हुए, सीएआरए के केंद्रीय सार्वजनिक सूचना अधिकारी ने कहा कि हरियाणा में लड़कियों को गोद लेने की वर्तमान प्रतीक्षा सूची 367 है और हरियाणा में पुरुष बच्चों को गोद लेने की प्रतीक्षा सूची 886 है।

लिंग भेदभाव की जड़ें हमारी पुरानी सांस्कृतिक प्रथाओं और जीवन जीने के तरीके में भी हैं, बेशक इसे एक भौतिक आधार भी मिला है। हरियाणा की सांस्कृतिक प्रथाओं में लैंगिक पूर्वाग्रह है। लड़के के जन्म के समय थाली बजाकर जश्न मनाया जाता है जबकि लड़की के जन्म पर किसी न किसी तरह से मातम मनाया जाता है; प्रसव के समय, यदि बच्चा लड़का है, तो माँ को 10 किलो घी (दो धारी घी) दिया जाएगा और यदि बच्चा लड़की है, तो माँ को 5 किलो घी दिया जाएगा; नर संतान का छठा दिन (छठ) मनाया जाएगा; यदि बच्चा लड़का है तो नामकरण संस्कार किया जाएगा; लड़कियों को परिवार के सदस्यों के अंतिम संस्कार में आग लगाने की अनुमति नहीं है, जबकि वे घर में चूल्हे में लकड़ी के ढेर जला सकती हैं। जैसे-जैसे हरियाणा में महिलाओं की संख्या कम होती जा रही है, वे समाज में और अधिक असुरक्षित होती जा रही हैं।

     हरियाणा में घर और बाहर हिंसा बढ़ गई है और इससे महिलाओं के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। समाचार पत्रों में इस संबंध में प्रतिदिन अनेक समाचार प्रकाशित होते रहते हैं। लैंगिक मुद्दों पर पूरा समाज जैसा व्यवहार करता है, वैसा ही व्यवहार स्वास्थ्य विभाग हरियाणा भी करता है। सरकार में स्त्री रोग विशेषज्ञों की संख्या अस्पताल महिलाओं के स्वास्थ्य को और भी अधिक खराब कर रहे हैं।

हरियाणा में महिलाओं के खिलाफ अपराधों में तेज वृद्धि के साथ ही बलात्कार के मामले भी बढ़े हैं। आंकड़ों से पता चलता है कि 2014 में 944, 2015 में 839, 2016 में 802, 2017 में 955, 2018 में 1178, 2019 में 1360, 2020 में 1211 और 2021 में 1546 बलात्कार के मामले हुए। (04-मार्च-2022 https://www.dailypioneer.com ›रैप...) 2022 में 1 जनवरी से 11 जुलाई की अवधि में दहेज हत्या की कुल 13 मौतें दर्ज की गईं, जबकि 2021 में यह संख्या 4 रही।(9 मौतें अधिक) (24-जुलाई-2022 https://www.tribuneindia.com › समाचार)

हरियाणा महिलाओं के खिलाफ अपराधों के लिए कुख्यात है और भारत में यौन अपराधों में इसकी हिस्सेदारी 2.4 प्रतिशत है, जो पंजाब और हिमाचल से भी अधिक है। लगभग 32 प्रतिशत महिलाएँ वैवाहिक हिंसा की शिकार हैं। इसके अलावा, 2015 से हर महीने बाल यौन शोषण के 88 मामले और बलात्कार के 93 मामले दर्ज किए गए हैं। (04-अगस्त-2018 https://www.tribuneindia.com › समाचार) अपंजीकृत मामले बहुत अधिक हैं. इससे पता चलता है कि महिलाओं की कीमत या उनकी महत्ता उनकी संख्या घटने से नहीं बढ़ी है, जैसा कि हरियाणा में कई लोगों ने कल्पना की थी।

इसी तरह यदि कुछ बढ़ोतरी हुई भी तो महिलाओं पर अत्याचार कम नहीं हो रहे हैं। हिंसा महिलाओं के स्वास्थ्य को कई तरह से प्रभावित करती है। आज भी महिलाओं को छोटे-बड़े कई संघर्षों से गुजरना पड़ता है। महिलाओं ने अपने संघर्षों के दम पर यह दिन हासिल किया है और इस मौके पर महिलाओं को भेदभाव, अन्याय और हर तरह के उत्पीड़न के खिलाफ लड़ना चाहिए।

क्योंकि आज भी महिलाओं द्वारा किए गए काम की कोई कीमत नहीं आंकी जाती, जबकि बाजार में उसी काम के लिए पैसे चुकाने पड़ते हैं। महिलाएं खुद भी अपना काम रजिस्टर नहीं करा पातीं जो उन्हें कराना चाहिए। उन्होंने बताया कि महिलाओं में पुरुषों की तुलना में अधिक सहनशक्ति होती है और वे बेहद खराब परिस्थितियों में भी अपने बच्चों का पालन-पोषण करती हैं। . उस स्थिति के बारे में सोचें जब एक सपने में एक आदमी को गर्भवती होने और बच्चे को जन्म देने की परेशानी से गुजरना पड़ा। तभी उसे प्रसव पीड़ा महसूस हुई. इसलिए पुरुषों को भी इस बात का एहसास होना चाहिए कि महिलाओं को बच्चे को जन्म देते समय काफी तकलीफों से गुजरना पड़ता है और पुरुष उन तकलीफों को कभी सहन नहीं कर पाते हैं। लेकिन दुर्भाग्य से, बच्चा पैदा करने और पालन-पोषण की पूरी प्रक्रिया को कभी भी एक बड़े काम के रूप में दर्ज नहीं किया गया है।

महिलाओं को न्याय, सम्मान और समानता की सबसे ज्यादा जरूरत है, इसीलिए उन्हें बार-बार संघर्ष करना पड़ता है। जबकि शारीरिक संरचना के अलावा पुरुष और महिला में कोई अंतर नहीं है। लेकिन फिर भी महिलाओं को वो सारे मौके नहीं मिल पाते जिनकी वो हक़दार हैं. दूसरी बात जो हरियाणा के अधिकांश गांवों में हो रही है वह यह है कि अविवाहित पुरुषों की संख्या बढ़ रही है। प्रत्येक गांव में 30 वर्ष से अधिक उम्र के अनेक पुरुष बिना विवाह के देखे जा सकते हैं। लड़कों और लड़कियों दोनों में बेरोजगारी बढ़ रही है। इसके अलावा कई कारकों के कारण पुरुषों में नपुंसकता की प्रवृत्ति भी बढ़ रही है।

अधिकांश गांवों में दूल्हे की खरीदारी एक स्वीकृत सांस्कृतिक प्रथा बनती जा रही है। ये सभी कारक हरियाणा में महिलाओं की मुश्किलें बढ़ा रहे हैं। साथ-साथ बेटे को प्राथमिकता देना और बेटी को कम महत्व देना, बेटियों के खिलाफ भेदभावपूर्ण प्रथाओं में प्रकट होता है, जैसे कि कन्या शिशु की असामयिक और रोकी जा सकने वाली मृत्यु। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण - 5 और एनएफएचएस 4 से डेटा

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 5 और 4 के आंकड़े यही संकेत देते हैं शिशु एवं बाल मृत्यु दर (प्रति1000 जीवित जन्म) नवजात मृत्यु दर..एनएनएमआर.. ..21.6 शिशु मृत्यु दर (आईएमआर)..33.3 एनएफएचएस 4..32.8 पाँच से कम मृत्यु दर(U5MR)..38.7 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चे जो बौने हैं (उम्र के अनुसार लंबाई)%..27.5 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चे जो कमज़ोर हैं (ऊंचाई के अनुसार वज़न)%..11.5 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चे जो गंभीर रूप से कमज़ोर हैं (ऊंचाई के अनुसार वज़न)%..4.4 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चे जिनका वजन कम है (उम्र के अनुसार वजन)%..21.5 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चे जिनका वजन अधिक है (ऊंचाई के अनुसार वजन)%..3.3

बच्चों में एनीमिया 6-59 महीने की आयु के बच्चे जो एनीमिया (11 ग्राम/डेसीलीटर से कम)% से पीड़ित हैं।.70.4 एनएफएचएस4..71.7 एनएफएचएस 5 डेटा से पता चला कि स्टंटिंग, वेस्टिंग, कम वजन, पर्याप्त आहार और एनीमिया 27.5%, 11.5%, 21.5%, 11.8% और 70.4% है, जबकि एनएफएचएस 4 34.0%, 21.2%, 29.4%, 7.5% और 71.7% है। एनीमिया बहुत अधिक है, लगभग पिछले सर्वेक्षण के समान ही। आहार सेवन में 4.3% का सुधार हुआ है लेकिन अभी भी बहुत कम प्रतिशत है। वी. गुप्ता और सभी ने अपने अध्ययन में पाया है कि लड़कियों में बौनेपन और कम वजन की समस्या अधिक है। . लड़कियों के लिए स्तनपान की औसत अवधि लड़कों के लिए स्तनपान की औसत अवधि से थोड़ी कम है।

बचपन में यह अभाव बड़ी संख्या में महिलाओं के कुपोषित होने और वयस्क होने पर उनका विकास अवरुद्ध होने में योगदान देता है। 15-49 वर्ष की गर्भवती महिलाएं जो एनीमिक हैं (एचबी 11 ग्राम से कम) 56.5% हैं जबकि एनएफएचएस 4 में वे 55% थीं। पिछले पांच वर्षों में इसमें वृद्धि हुई है। 15-19 वर्ष की सभी महिलाएं 62.3% हैं जबकि इस उम्र के 29.9% पुरुष एनीमिया से पीड़ित हैं। यहां लिंग भेद स्पष्ट करें। किशोर भारतीय लड़कियों के एक महत्वपूर्ण अनुपात के लिए, जल्दी शादी और उसके तुरंत बाद गर्भावस्था आदर्श है।

2019-21 के बीच किए गए नवीनतम राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) के अनुसार, 18-29 आयु वर्ग की लगभग 25 प्रतिशत महिलाओं और 21-29 आयु वर्ग के 15 प्रतिशत पुरुषों की शादी शादी की न्यूनतम कानूनी उम्र तक पहुंचने से पहले हो गई। कामुकता और प्रजनन पर महिलाओं का कोई अधिकार नहीं है। किशोरावस्था में बच्चे पैदा करने से महिलाओं पर कई तरह से प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है; सामाजिक, आर्थिक, मनोवैज्ञानिक और शारीरिक रूप से। यह उनकी शिक्षा को छोटा कर देता है, उनकी आय अर्जित करने के अवसरों को सीमित कर देता है और उस उम्र में उन पर जिम्मेदारियों का बोझ डाल देता है जब उन्हें जीवन की खोज करनी चाहिए। विकासशील देशों में, 20-24 वर्ष की आयु की महिलाओं की तुलना में बचपन में गर्भधारण और प्रसव के दौरान मृत्यु का जोखिम अधिक होता है। भारत का मातृ मृत्यु दर चूहा (एमएमआर) 2017-19 की अवधि में सुधरकर 103 हो गया, लेकिन हाल ही में जारी आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, पश्चिम बंगाल, हरियाणा, उत्तराखंड और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में अनुपात खराब हो गया है।

यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि हमारी कानूनी व्यवस्था मौजूदा सामाजिक पूर्वाग्रहों को दूर करने में सक्षम नहीं है। पुरुषों और महिलाओं के बीच समानता की संवैधानिक गारंटी के बावजूद कानून कार्यान्वयन एजेंसियां ​​अपने कार्यान्वयन में विफल रहीं। यही कारण है कि महिलाओं के पास अक्सर अपने स्वास्थ्य देखभाल संबंधी निर्णय स्वयं लेने का अधिकार नहीं होता है। हालाँकि संविधान बनने के बाद आधी सदी बीत गई है, लेकिन हमारे सामाजिक रीति-रिवाज संविधान की भावना के अनुरूप नहीं बदले हैं। अभी भी प्रथागत कानूनों और परंपराओं को पितृसत्तात्मक मानदंडों के साथ संवैधानिक प्रतिबद्धता पर महत्व दिया जाता है जो महिलाओं को उनकी कामुकता, प्रजनन और स्वास्थ्य के संबंध में निर्णय लेने के अधिकार से वंचित करते हैं। हरियाणा में महिलाओं को रुग्णता और मृत्यु दर के टाले जा सकने वाले जोखिमों का सामना करना पड़ता है। 
डॉ. आर.एस.दहिया पूर्व वरिष्ठ प्रोफेसर, पीजीआईएमएस,रोहतक।

Wednesday, August 20, 2025

लैंगिक असमानता

लैंगिक भेदभाव क्या है? 


लैंगिक भेदभाव किसी व्यक्ति या समूह को उनके लिंग के आधार पर असमान अधिकार, उपचार और अवसर देने का कार्य है। लैंगिक भेदभाव का निशाना कोई भी हो सकता है, लेकिन लड़कियां और महिलाएं मुख्य रूप से प्रभावित होते हैं। “हीन लिंग” के रूप में, सदियों से लड़कियों और महिलाओं की ज़रूरतों और हितों को व्यवस्थित रूप से उत्पीड़ित किया जाता रहा है और उन्हें ख़ारिज किया जाता रहा है। व्याप्त पूर्वाग्रहों, प्रतिबंधात्मक लैंगिक मानदंडों और संस्थागत भेदभाव ने व्यापक लैंगिक असमानता को जन्म दिया है।

लैंगिक भेदभाव समाज के हर क्षेत्र को प्रभावित करता है। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, समान आयु वर्ग के प्रत्येक 100 पुरुषों की तुलना में 25-34 वर्ष की 122 महिलाएँ अत्यधिक गरीबी में जीवन यापन कर रही हैं। सत्ता और नेतृत्व में व्यापक कमियां हैं। अगली पीढ़ी की महिलाएं, पुरुषों की तुलना में अवैतनिक काम और घरेलू काम पर हर दिन औसतन 2.3 घंटे अधिक बिताएंगी। वैश्विक स्तर पर, महिलाओं के पास संसद में केवल 26.7%, स्थानीय सरकार में 35.5% और प्रबंधन पदों पर 28.2% सीटें हैं। बढ़े हुए निवेश और लैंगिक समानता के प्रति प्रतिबद्धता के बिना, लैंगिक समानता हासिल करने में दुनिया को लगभग 300 साल लग सकते हैं

लैंगिक भेदभाव कैसा दिख सकता है? लैंगिक भेदभाव, उत्पीड़न की एक बहुआयामी प्रणाली है जो समाज के हर क्षेत्र को छूती है। यह कैसा दिख सकता है, इसके सात उदाहरण यहां दिए गए हैं:

1किसी को उनके लिंग के कारण कम भुगतान करना दुनिया भर में, महिलाओं को तुलनीय काम करने के लिए पुरुषों की तुलना में कम भुगतान किया जाता है। संयुक्त राज्य अमेरिका में, लिंग वेतन अंतर में बहुत कम बदलाव आया है, भले ही इस समस्या पर ध्यान दिया जाता है। प्यू रिसर्च के अनुसार, 2002 में महिलाओं ने पुरुषों की तुलना में लगभग 80% कमाया, जबकि 2022 में उन्होंने 82% कमाया। उसी वर्ष, विश्व बैंक ने पाया कि 178 देशों में से सिर्फ 95 ही समान काम के लिए समान वेतन की रक्षा करते हैं। लैंगिक भेदभाव इस बात का भी कारक है कि कैसे कुछ प्रकार के काम का सही मूल्यांकन नहीं किया जाता है। उदाहरण के तौर पर संयुक्त राज्य अमेरिका लौटते हुए, आर्थिक नीति संस्थान के शोध में पाया गया कि 2.2 मिलियन घरेलू कामगारों को कम वेतन दिया जाता है, जो अन्य श्रमिकों की तुलना में गरीबी में रहने की संभावना से तीन गुना अधिक है और श्रम कानूनों से असुरक्षित हैं। उन घरेलू कामगारों में 90.2% महिलाएं थीं, विशेष रूप से अश्वेत, हिस्पैनिक, या एशियाई अमेरिकी और प्रशांत द्वीप समूह की महिलाएं।

2. लिंग के आधार पर काम के प्रकारों को अलग करना-- कम वेतन वाले और असुरक्षित घरेलू कामों में महिलाओं की व्यापकता लैंगिक नौकरी के अलगाव का एक उदाहरण है। नौकरी के अलगाव से इंजीनियरिंग और निर्माण जैसे क्षेत्रों में पुरुषों का वर्चस्व बढ़ता है, जबकि महिलाएं घरेलू काम, नर्सिंग, शिक्षण और अन्य “महिलाओं” के करियर में नौकरी करने की प्रवृत्ति रखती हैं। नियोक्ता शायद ही कभी कहते हैं कि वे केवल पुरुषों या महिलाओं को कुछ नौकरियों के लिए आवेदन करना चाहते हैं, लेकिन भेदभाव कई रूप ले लेता है। व्यापार में महिलाओं के सामने आने वाली “कांच की छतों” पर एक रिपोर्ट में, अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन बताता है कि किस तरह लैंगिक पूर्वाग्रह, जो महिलाओं और पुरुषों के नजरिए को प्रभावित करता है, के कारण पुरुषों को महिलाओं की तुलना में अधिक ज़िम्मेदारी और पदोन्नति मिलती है। यह तब भी लागू होता है जब पुरुषों और महिलाओं के पास समान कौशल और अनुभव होते हैं। सेंटर फ़ॉर अमेरिकन प्रोग्रेस के अनुसार, जब एक हाशिए पर रहने वाले समूह — जैसे महिलाओं — का नौकरी के क्षेत्र में अधिक प्रतिनिधित्व किया जाता है, तो इससे उस क्षेत्र में काम करने वाले सभी लोगों के लिए वेतन में कमी आती है और काम करने की स्थिति और भी बदतर हो जाती है।

3. जानबूझकर किसी को गलत तरीके से पेश करना-- सिजेंडर महिलाएं और लड़कियां लैंगिक भेदभाव से प्रभावित एकमात्र लोग नहीं हैं। ट्रांस लोग, जिनमें ट्रांस महिलाएं, ट्रांस पुरुष, गैर-द्विआधारी लोग और अन्य शामिल हैं, को अक्सर निशाना बनाया जाता है। जानबूझकर किया गया गलतफहमी भेदभाव का सिर्फ एक रूप है। इसका मतलब क्या है? गलतफहमी तब होती है जब कोई व्यक्ति किसी के लिए गलत सर्वनाम का उपयोग करता है, जैसे कि “वह/उसे” सर्वनाम का उपयोग करने पर किसी को “वह” कहना। जब किसी को बार-बार ठीक किया जाता है और फिर भी वह गलत सर्वनाम का उपयोग करने पर जोर देता है, तो यह भेदभाव है। ग़लतफ़हमी किसी क़ानून को तोड़ती है या नहीं, यह इस बात पर निर्भर करता है कि आप कहाँ रहते हैं। कनाडा में, ओंटारियो मानवाधिकार संहिता ने 2012 में लैंगिक पहचान और अभिव्यक्ति के लिए सुरक्षा को जोड़ा। कानून अब गलतफहमी को भेदभाव के एक रूप के रूप में मान्यता देता है, विशेष रूप से कोड द्वारा कवर किए गए क्षेत्रों में, जैसे कि रोजगार, आवास और शैक्षिक सेवाएं।

4. गर्भवती होने के लिए किसी के साथ भेदभाव करना— 2021 के वैश्विक आंकड़ों के अनुसार, 190 में से 38 अर्थव्यवस्थाएं महिलाओं को गर्भवती होने के कारण निकाल दिए जाने से नहीं बचाती हैं। यहां तक कि उन जगहों पर भी, जो कानूनी उपचार प्रदान करते हैं, भेदभाव जारी है, लेकिन यह अधिक सूक्ष्म है। संयुक्त राज्य अमेरिका में तीन संघीय कानून हैं जो नौकरी के आवेदकों और कर्मचारियों की सुरक्षा करते हैं, लेकिन 2019 न्यूयॉर्क टाइम्स के एक लेख में, पत्रकारों ने पाया कि देश की कुछ सबसे बड़ी कंपनियां भेदभाव में उलझी हुई थीं। गर्भवती महिलाओं को पदोन्नति और परवरिश के लिए पास किया जाता था, और शिकायत करने पर निकाल दिया जाता था। उन नौकरियों में, जिनमें शारीरिक श्रम शामिल था, जैसे कि भारी बक्से उठाना, गर्भवती महिलाओं को आराम या अतिरिक्त पानी जैसी उचित जगह नहीं दी जाती थी। क्योंकि गर्भावस्था मुख्य रूप से महिलाओं को प्रभावित करती है, गर्भावस्था में भेदभाव लैंगिक भेदभाव का एक रूप है जो नौकरी के अवसरों, न्याय तक पहुंच आदि को सीमित करता है।

5. कार्यस्थल में किसी का यौन उत्पीड़न करना-- हर कोई भेदभाव से मुक्त एक सुरक्षित कार्यस्थल का हकदार है। दुर्भाग्य से, काम अक्सर एक ऐसी जगह होती है जहाँ लोगों के अधिकारों को खतरा होता है। एक वैश्विक विश्लेषण के अनुसार, लगभग 23% लोग काम के दौरान शारीरिक, मनोवैज्ञानिक या यौन हिंसा और उत्पीड़न का अनुभव करते हैं। पुरुषों की तुलना में महिलाओं द्वारा अपने अनुभव साझा करने की संभावना अधिक होती है और यौन उत्पीड़न की रिपोर्ट करने की संभावना अधिक होती है, लेकिन किसी व्यक्ति का लिंग चाहे जो भी हो, कार्यस्थल पर उत्पीड़न भेदभाव है। क्योंकि बहुत से लोग अपने द्वारा झेले गए उत्पीड़न की रिपोर्ट कभी नहीं करते हैं, इसलिए वास्तविक संख्या बहुत अधिक होने की संभावना है। देश के अनुसार सुरक्षा अलग-अलग होती है, लेकिन संयुक्त राज्य अमेरिका में, उत्पीड़न में यौन एहसान के लिए अनुरोध करना, अवांछित यौन टिप्पणियां करना और अवांछित यौन संबंध बनाना शामिल हो सकता है। कानून उत्पीड़न को “किसी व्यक्ति के लिंग के बारे में आपत्तिजनक टिप्पणी” के रूप में भी परिभाषित करता है। इसके लिए ज़्यादातर यौन संबंध बनाने की ज़रूरत नहीं है। यौन उत्पीड़न में कोई भी शामिल हो सकता है, जिसमें एक ही लिंग के दो लोग भी शामिल हैं।

6.  लिंग के कारण शिक्षा के अवसरों को सीमित करना-- किसी को अच्छी शिक्षा मिलती है या नहीं, इसका उनके जीवन के बाकी हिस्सों पर बहुत बड़ा प्रभाव पड़ता है। विश्व बैंक के अनुसार, स्कूली शिक्षा के हर अतिरिक्त वर्ष में प्रति घंटा कमाई में 9% की वृद्धि होती है, जबकि इससे आर्थिक विकास, नवाचार और सामाजिक सामंजस्य में भी सुधार होता है। लड़कियों को ऐतिहासिक रूप से शिक्षा के अवसरों से वंचित रखा गया है, लेकिन हालांकि उल्लेखनीय प्रगति हुई है, लेकिन यह अंतर अभी तक खत्म नहीं हुआ है। UNICEF का अनुमान है कि लगभग 129 मिलियन लड़कियाँ स्कूल नहीं जाती हैं। लड़कियों, मातृत्व और काम के बारे में सख्त लैंगिक मानदंड इस बात के लिए जिम्मेदार हैं कि क्यों कई लड़कियां शिक्षित नहीं हैं, लेकिन संघर्ष, स्कूलों में खराब स्वच्छता और स्वच्छता, और गरीबी भी जिम्मेदार हैं। भेदभाव हमेशा जानबूझकर नहीं किया जाता है, लेकिन जब लड़कियों और महिलाओं को मुख्य रूप से शिक्षा नहीं मिल पाती है, तब भी यह मायने रखता है।

7. लिंग के आधार पर हिंसा भड़काना -- लिंग आधारित हिंसा लैंगिक भेदभाव का सबसे घातक रूप है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, दुनिया भर में 3 में से 1 महिला शारीरिक और/या यौन हिंसा का अनुभव करती है, जो आमतौर पर एक अंतरंग साथी द्वारा की जाती है। महिलाओं और लड़कियों की इरादतन हत्या, जिसे “नारीहत्या” के नाम से जाना जाता है, विश्व स्तर पर प्रचलित है। 2022 में कुल जानबूझकर की गई महिलाओं की हत्याओं की संख्या सबसे अधिक थी। ट्रांसजेंडर और लिंग-गैर-अनुरूपता वाले लोगों को भी निशाना बनाया जाता है। 2023 में, ह्यूमन राइट्स कैंपेन फाउंडेशन ने एक और साल तक ट्रांस लोगों की अनुपातहीन हत्याओं की सूचना दी। ज़्यादातर पीड़ित रंग-बिरंगे युवा थे।

लैंगिक असमानता के 10 कारण पिछले कुछ वर्षों में, दुनिया लैंगिक समानता हासिल करने के करीब पहुंच गई है। दुनिया के कई स्थानों पर राजनीति में महिलाओं का बेहतर प्रतिनिधित्व, अधिक आर्थिक अवसर और बेहतर स्वास्थ्य सेवा है। हालांकि, वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम का अनुमान है कि वास्तविक लैंगिक समानता को हकीकत बनने में एक और सदी लग जाएगी। लिंगों के बीच अंतर किस वजह से होता है? लैंगिक असमानता के 10 कारण यहां दिए गए हैं:

# 1 शिक्षा तक असमान पहुंच दुनिया भर में, महिलाओं की अभी भी पुरुषों की तुलना में शिक्षा तक पहुंच कम है. 15-24 के बीच की ¼ युवा महिलाएं प्राथमिक स्कूल की पढ़ाई पूरी नहीं कर पाएंगी। इस समूह में 58% लोग उस बुनियादी शिक्षा को पूरा नहीं कर पाते हैं। दुनिया के सभी अनपढ़ लोगों में से, ⅔ महिलाएँ हैं। जब लड़कियों को लड़कों के समान स्तर पर शिक्षित नहीं किया जाता है, तो इसका उनके भविष्य और उन्हें मिलने वाले अवसरों पर बहुत बड़ा असर पड़ता है

#2 रोज़गार में समानता का अभाव दुनिया के केवल 6 देश ही महिलाओं को पुरुषों के समान कानूनी काम के अधिकार देते हैं। वास्तव में, अधिकांश अर्थव्यवस्थाएं महिलाओं को केवल ¾ पुरुषों के अधिकार देती हैं। अध्ययनों से पता चलता है कि यदि रोज़गार एक और समान अवसर बन जाता है, तो इसका लैंगिक असमानता से ग्रस्त अन्य क्षेत्रों पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

#3 नौकरी का पृथक्करण रोज़गार के भीतर लैंगिक असमानता का एक कारण नौकरियों का विभाजन है। अधिकांश समाजों में, यह अंतर्निहित धारणा है कि पुरुष कुछ नौकरियों को संभालने के लिए बेहतर तरीके से सुसज्जित होते हैं। ज़्यादातर समय, यही वे नौकरियाँ होती हैं जो सबसे अच्छा भुगतान करती हैं। इस भेदभाव से महिलाओं की आमदनी कम होती है। अवैतनिक श्रम के लिए महिलाएं प्राथमिक ज़िम्मेदारी भी लेती हैं, इसलिए जब वे भुगतान किए गए कर्मचारियों में भाग लेती हैं, तब भी उनके पास अतिरिक्त काम होते हैं जिन्हें कभी भी आर्थिक रूप से मान्यता नहीं मिलती है।

#4 कानूनी सुरक्षा का अभाव विश्व बैंक के शोध के अनुसार, एक बिलियन से अधिक महिलाओं को घरेलू यौन हिंसा या घरेलू आर्थिक हिंसा के खिलाफ कानूनी सुरक्षा नहीं है। दोनों का महिलाओं की पनपने और आज़ादी से जीने की क्षमता पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। कई देशों में, कार्यस्थल पर, स्कूल में और सार्वजनिक रूप से उत्पीड़न के ख़िलाफ़ कानूनी सुरक्षा का भी अभाव है। ये जगहें असुरक्षित हो जाती हैं और सुरक्षा के बिना, महिलाओं को अक्सर ऐसे निर्णय लेने पड़ते हैं जो समझौता करते हैं और उनके लक्ष्यों को सीमित करते हैं।

#5। शारीरिक स्वायत्तता का अभाव दुनिया भर में कई महिलाओं का अपने शरीर पर या जब वे माता-पिता बन जाती हैं, तब उनका अपने शरीर पर अधिकार नहीं होता है। जन्म नियंत्रण हासिल करना अक्सर बहुत मुश्किल होता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, 200 मिलियन से अधिक महिलाएं जो गर्भवती नहीं होना चाहती हैं, वे गर्भनिरोधक का उपयोग नहीं कर रही हैं। इसके कई कारण हैं जैसे कि विकल्पों की कमी, सीमित पहुंच और सांस्कृतिक/धार्मिक विरोध। वैश्विक स्तर पर, लगभग 40% गर्भधारण योजनाबद्ध नहीं होते हैं और जबकि उनमें से 50% गर्भपात में समाप्त हो जाते हैं, 38% के परिणामस्वरूप जन्म होता है। ये माताएं अक्सर अपनी स्वतंत्रता खो कर किसी अन्य व्यक्ति या राज्य पर आर्थिक रूप से निर्भर हो जाती हैं।

#6 खराब चिकित्सा देखभाल गर्भनिरोधक तक सीमित पहुंच के अलावा, कुल मिलाकर महिलाओं को पुरुषों की तुलना में कम गुणवत्ता वाली चिकित्सा देखभाल मिलती है। यह लैंगिक असमानता के अन्य कारणों से जुड़ा हुआ है, जैसे कि शिक्षा और नौकरी के अवसरों की कमी, जिसके परिणामस्वरूप अधिक महिलाएं गरीबी में होती हैं। उनके अच्छी स्वास्थ्य सेवा का खर्च उठाने में सक्षम होने की संभावना कम होती है। पुरुषों की तुलना में महिलाओं को अधिक प्रभावित करने वाली बीमारियों के बारे में भी कम शोध हुए हैं, जैसे कि ऑटोइम्यून विकार और पुरानी दर्द की स्थिति। कई महिलाएं अपने डॉक्टरों से भेदभाव और बर्खास्तगी का भी अनुभव करती हैं, जिससे स्वास्थ्य देखभाल की गुणवत्ता में लैंगिक अंतर बढ़ जाता है।

#7 धार्मिक स्वतंत्रता का अभाव जब धार्मिक स्वतंत्रता पर हमला होता है, तो महिलाओं को सबसे ज्यादा नुकसान होता है। वर्ल्ड इकोनॉमिक फ़ोरम के अनुसार, जब चरमपंथी विचारधाराएँ (जैसे ISIS) एक समुदाय में आती हैं और धार्मिक स्वतंत्रता को प्रतिबंधित करती हैं, तो लैंगिक असमानता और बढ़ जाती है। जॉर्जटाउन यूनिवर्सिटी और ब्रिघम यंग यूनिवर्सिटी द्वारा किए गए एक अध्ययन में, शोधकर्ता धार्मिक असहिष्णुता को महिलाओं की अर्थव्यवस्था में भाग लेने की क्षमता से जोड़ने में भी सक्षम थे। जब धार्मिक स्वतंत्रता अधिक होती है, तो महिलाओं की भागीदारी के कारण अर्थव्यवस्था और अधिक स्थिर हो जाती है।

#8 2019 की शुरुआत में सभी राष्ट्रीय संसदों में राजनीतिक प्रतिनिधित्व का अभाव, केवल 24.3% सीटें महिलाओं द्वारा भरी गईं। 2019 के जून तक, 11 राष्ट्राध्यक्ष महिलाएँ थीं। पिछले कुछ वर्षों में इस क्षेत्र में हुई प्रगति के बावजूद, सरकार और राजनीतिक प्रक्रिया में महिलाओं का अभी भी बहुत कम प्रतिनिधित्व है। इसका मतलब यह है कि कुछ ऐसे मुद्दे जिन्हें महिला राजनेता उठाते हैं — जैसे कि माता-पिता की छुट्टी और बच्चे की देखभाल, पेंशन, लैंगिक समानता कानून और लिंग आधारित हिंसा — को अक्सर नज़रअंदाज़ कर दिया जाता है।

#9 जातिवाद जातिवाद के बारे में बात किए बिना लैंगिक असमानता के बारे में बात करना असंभव होगा। यह प्रभावित करता है कि रंग-बिरंगी महिलाओं को कौन सी नौकरियां मिल सकती हैं और उन्हें कितना भुगतान किया जाता है, साथ ही साथ कानूनी और स्वास्थ्य देखभाल प्रणालियों द्वारा उन्हें किस तरह देखा जाता है। लैंगिक असमानता और जातिवाद का लंबे समय से गहरा संबंध रहा है। एक प्रोफेसर और लेखक सैली किच के अनुसार, वर्जीनिया में रहने वाले यूरोपीय निवासियों ने फैसला किया कि काम करने वाली महिला की जाति के आधार पर किस काम पर कर लगाया जा सकता है। अफ्रीकी महिलाओं का काम “श्रम” था, इसलिए यह कर योग्य था, जबकि अंग्रेजी महिलाओं द्वारा किया जाने वाला काम “घरेलू” था और कर योग्य नहीं था। गोरी महिलाओं और रंग-बिरंगी महिलाओं के बीच वेतन का अंतर भेदभाव की विरासत को बरकरार रखता है और लैंगिक असमानता में योगदान देता है।

#10 सामाजिक मानसिकता यह इस सूची के कुछ अन्य कारणों की तुलना में कम मूर्त है, लेकिन समाज की समग्र मानसिकता का लैंगिक असमानता पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। पुरुषों बनाम महिलाओं के बीच अंतर और मूल्य को समाज कैसे निर्धारित करता है, यह हर क्षेत्र में एक प्रमुख भूमिका निभाता है, चाहे वह रोजगार हो या कानूनी व्यवस्था या स्वास्थ्य सेवा। लिंग के बारे में मान्यताएं गहरी हैं और भले ही कानूनों और संरचनात्मक परिवर्तनों के माध्यम से प्रगति की जा सकती है, लेकिन बड़े बदलाव के समय अक्सर पीछे हट जाते हैं। हर किसी (पुरुष और महिला) के लिए यह भी आम बात है कि प्रगति होने पर लैंगिक असमानता के अन्य क्षेत्रों को नज़रअंदाज़ किया जाए, जैसे कि नेतृत्व में महिलाओं का बेहतर प्रतिनिधित्व। इस प्रकार की मानसिकता लैंगिक असमानता को बढ़ावा देती है और महत्वपूर्ण बदलाव में देरी करती है.

       आप लैंगिक भेदभाव के खिलाफ कार्रवाई कैसे कर सकते हैं? -- लैंगिक भेदभाव समाज में अंतर्निहित लग सकता है, लेकिन हम इसके खिलाफ कार्रवाई कर सकते हैं। यहां तीन तरीके दिए गए हैं: सुरक्षित स्थान बनाएं जहां लोग लैंगिक भेदभाव के बारे में बात कर सकें. लैंगिक भेदभाव की पूरी तस्वीर पाना मुश्किल है क्योंकि इसके बारे में बात करना अभी भी बहुत कलंकित है। कुछ जगहों पर, कार्यस्थल पर उत्पीड़न, यौन उत्पीड़न और अंतरंग साथी हिंसा जैसे विषयों पर बात करने से लोगों की नौकरी और यहां तक कि शारीरिक सुरक्षा भी खतरे में पड़ सकती है। सबसे अच्छी चीजों में से एक जो आप कर सकते हैं, वह है ऐसी जगहें बनाना और उनकी सुरक्षा करना जहां भेदभाव के बारे में बात करना सुरक्षित हो। ये जगहें लोगों को अपनी कहानियों को साझा करने, एक-दूसरे का समर्थन करने, सहयोग करने और ऐसे नेटवर्क बनाने के लिए सशक्त बनाती हैं, जो उनके समुदायों में वास्तविक बदलाव लाते हैं। सर्वाइवर ग्रुप, इंटरनेट सुरक्षा क्लास, सेल्फ डिफेंस क्लास वगैरह जैसे स्पेस अच्छे फ़ोरम हो सकते हैं।

1.   महिलाओं के संगठनों का समर्थन करें कई सरकारें लैंगिक समानता को बेहतर बनाने के लिए काम कर रही हैं, लेकिन उनके मौजूदा प्रयास पर्याप्त नहीं हैं। दुनिया भर में ऐसे कई एनजीओ हैं जो गरीबी, बच्चों के अधिकारों, LGBTQ+ अधिकारों, महिलाओं के अधिकारों और लैंगिक भेदभाव से जुड़े अन्य मुद्दों को संबोधित करते हैं। आप पैसे दान करके, स्वेच्छा से अपना समय देकर, अभियान साझा करके या नौकरी के लिए आवेदन करके इन संगठनों की सहायता कर सकते हैं। यदि आप लैंगिक भेदभाव पर केंद्रित अपना खुद का एनजीओ स्थापित करने में रुचि रखते हैं, तो एनजीओ शुरू करने के तरीके के बारे में हमारा लेख यहां दिया गया है।

2.   महिलाओं के लिए नेतृत्व और आर्थिक अवसर बढ़ाएं- पुरुष और महिला नेतृत्व, आर्थिक और राजनीतिक अवसरों के बीच का अंतर अभी भी काफी व्यापक है। आप लड़कियों और महिलाओं को सशक्त बनाने वाली चीज़ों पर अपने प्रयासों को केंद्रित करके कार्रवाई कर सकते हैं, जैसे कि शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल, परामर्श और प्रशिक्षण, चाइल्डकैअर, कार्यस्थल पर सुरक्षा इत्यादि। जब महिलाएं सशक्त होती हैं, तो सभी को लाभ होता है, जिनमें पुरुष, परिवार और बच्चे शामिल हैं। महिला सशक्तिकरण के बारे में और जानने के लिए, ऑनलाइन उपलब्ध आठ वर्गों की इस सूची को देखें। लैंगिक असमानता के खिलाफ कार्रवाई करने के तरीके क्या हैं? लैंगिक असमानता अपनी जड़ें काम, घरेलू जिम्मेदारियों, स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा आदि जैसे क्षेत्रों में फैलती है। कार्रवाई करने के चार तरीके यहां दिए गए हैं:

#1 शिक्षा और सामाजिक सेवाओं के लिए धन बढ़ाएँ-- जबकि शिक्षा समानता ने महत्वपूर्ण जीत हासिल की है, फिर भी कई जगहों पर इसे खतरा है। शिक्षकों के वेतन, परिचालन खर्च, और लड़कियों के लिए कार्यक्रमों जैसे क्षेत्रों में धन बढ़ाना महत्वपूर्ण है, लेकिन आप समुदायों की सहायता करके शिक्षा तक पहुँचने में भी मदद कर सकते हैं। लड़कियां अक्सर स्कूल इसलिए छोड़ देती हैं क्योंकि उनके श्रम से सामाजिक सेवाओं में कमियां दूर हो जाती हैं, लेकिन जब समुदायों के पास वे सामाजिक सेवाएं होती हैं जिनकी उन्हें ज़रूरत होती है, तो लड़कियों के स्कूल में रहने की संभावना बढ़ जाती है। स्कूल को एक सुरक्षित स्थान भी होना चाहिए, ताकि भवन निर्माण सुरक्षा, स्वच्छ पानी और स्वच्छता, उत्पीड़न और धमकाने पर नीतियां, और शिक्षक प्रशिक्षण जैसे क्षेत्रों में कार्रवाई की जा सके।

#2 प्रजनन अधिकारों के लिए लड़ाई हाल के वर्षों में प्रजनन अधिकारों को नुकसान हुआ है। हर साल, लाखों लोगों को मासिक धर्म, गर्भावस्था, गर्भपात और अन्य प्रजनन स्वास्थ्य आवश्यकताओं के लिए गुणवत्तापूर्ण देखभाल नहीं मिलती है। लोग स्वास्थ्य देखभाल और कानूनी सुरक्षा बढ़ाने की वकालत करके और आवश्यक स्वास्थ्य आपूर्ति और सेवाएं प्रदान करने वाले संगठनों को समय या पैसा दान करके कार्रवाई कर सकते हैं। लैंगिक समानता का प्रजनन स्वतंत्रता से गहरा संबंध है, इसलिए यह आवश्यक है कि लोगों को बच्चे पैदा करने या न होने का अधिकार हो।

#3 आर्थिक सुरक्षा और समान वेतन में वृद्धि की वकालत करें आर्थिक असमानता और लैंगिक असमानता के बीच की कड़ी को दूर करना सबसे कठिन है। जब लोग अपने लिंग के कारण अर्थव्यवस्था में समान रूप से भाग नहीं ले पाते हैं, तो इसके परिणाम सामने आते हैं, जो आने वाली पीढ़ियों की स्वास्थ्य सेवा, आवास, शिक्षा और धन को प्रभावित कर सकते हैं। विरासत सुधार और भूमि अधिकार जैसी आर्थिक सुरक्षा आवश्यक है, जबकि समान काम के लिए समान वेतन, लचीली कार्य व्यवस्था, और अवैतनिक काम के लिए सहायता भी मायने रखती है।

#4 भेदभावपूर्ण नीतियों और व्यवहार के खिलाफ बोलें लैंगिक असमानता एक आर्थिक और राजनीतिक वास्तविकता है, लेकिन इसके सामाजिक और सांस्कृतिक प्रभाव भी हैं। लोग भेदभावपूर्ण नीतियों को बुलाकर कार्रवाई कर सकते हैं। कुछ लोग लिंग का उल्लेख नहीं कर सकते हैं, लेकिन यदि परिणाम ऐतिहासिक लैंगिक असमानता या हानिकारक भेदभाव में योगदान करते हैं, तो उन्हें संबोधित करने की आवश्यकता है। भेदभावपूर्ण व्यवहार और भाषा को भी खारिज किया जाना चाहिए। हालांकि चुटकुले हानिरहित लग सकते हैं, लेकिन वे व्यक्तियों को चोट पहुँचाते हैं और उन मानसिकता को मजबूत करते हैं जो लैंगिक असमानता को सहन करने में मदद करती हैं।

हरियाणा में कन्या भ्रूण हत्या एक अभिशाप
कम लिंगानुपात होने के निम्न कारण पाए जाते हैं:- 
1)
जागरूकता की कमी:

समाज में अभी भी बेटियों को समान महत्व देने की सोच पूरी तरह से विकसित नहीं हुई है।
2)
कानूनों का उल्लंघन:

कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए बने कानूनों का उल्लंघन भी एक कारण है।
3)
तकनीकी प्रगति:
आधुनिक तकनीकों का विकास हुआ है।
अल्ट्रासाउंड और गर्भपात जैसी आधुनिक तकनीकों के दुरुपयोग से लिंग-चयनात्मक गर्भपात में वृद्धि हुई है।

4)

सामाजिक-आर्थिक कारक:

१) बेटों को प्राथमिकता:

पारंपरिक रूप से, हरियाणा में बेटों को परिवार और समाज में अधिक महत्व दिया जाता है। 

२) दहेज प्रथा:

दहेज प्रथा के कारण, बेटियों को बोझ माना जाता है, जिससे कन्या भ्रूण हत्या और लिंग-चयनात्मक गर्भपात को बढ़ावा मिलता है।



कम लिंगानुपात के परिणाम: 

1)
लैंगिक असंतुलन:
कन्या भ्रूण हत्या के कारण समाज में पुरुषों की संख्या महिलाओं की तुलना में बहुत अधिक हो जाती है, जिससे विवाह योग्य महिलाओं की कमी हो जाती है, बिहार और दूसरे प्रदेशों से महिलाएं खरीद कर लाई जाती हैं जिससे और सामाजिक समस्याएं पैदा होती हैं।
2)
महिलाओं के खिलाफ अपराध:
जब महिलाओं की संख्या कम होती है, तो उनके खिलाफ हिंसा, दुर्व्यवहार और शोषण की घटनाएं बढ़ सकती हैं।
सामाजिक संरचना में परिवर्तन:
कन्या भ्रूण हत्या के कारण सामाजिक संरचना में बदलाव आता है, जैसे कि विवाह के लिए महिलाओं की कमी और परिवारों में महिलाओं की भूमिका में कमी।
3)
मानव तस्करी:
महिला तस्करी और बाल विवाह जैसी समस्याएं भी बढ़ सकती हैं क्योंकि विवाह योग्य महिलाओं की कमी होती है। 
4)
आर्थिक दुष्परिणाम:
१)श्रमिकों की कमी:
कन्या भ्रूण हत्या के कारण देश के विकास के लिए आवश्यक कार्यबल में कमी हो सकती है, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में जहां महिलाओं की भूमिका महत्वपूर्ण है।
२)सामाजिक सुरक्षा पर बोझ:
कन्या भ्रूण हत्या के कारण, वृद्ध माता-पिता की देखभाल करने और सामाजिक सुरक्षा प्रणालियों पर बोझ बढ़ सकता है, क्योंकि महिलाओं की संख्या कम होने के कारण सामाजिक सुरक्षा में गिरावट आती है।
5) 
मनोवैज्ञानिक दुष्परिणाम:
मां पर नकारात्मक प्रभाव:
कन्या भ्रूण हत्या के कारण मां को भावनात्मक आघात और अपराधबोध का सामना करना पड़ सकता है, खासकर यदि यह गर्भावस्था के बाद किया जाता है।
6)
समाज में भय और असुरक्षा:
कन्या भ्रूण हत्या के कारण समाज में भय और असुरक्षा की भावना बढ़ सकती है, खासकर महिलाओं और लड़कियों में।
7)
नैतिक मूल्यों का पतन:
कन्या भ्रूण हत्या नैतिक मूल्यों के पतन का संकेत है और यह समाज को नकारात्मक रूप से प्रभावित करता है। 
8)
इन दुष्परिणामों के अलावा, कन्या भ्रूण हत्या एक गंभीर मानवाधिकार उल्लंघन है और इसे रोकना आवश्यक है। 


9)
सामाजिक असंतुलन: 
विषम लिंगानुपात से महिलाओं के खिलाफ बढ़ती हिंसा और विवाह साथी ढूंढने में कठिनाई जैसी सामाजिक समस्याएं पैदा हो सकती हैं।  
10)
जनसांख्यिकीय असंतुलन: 
यह भविष्य की जनसंख्या वृद्धि और आयु संरचनाओं को प्रभावित कर सकता है। 
11
आर्थिक प्रभाव: 
बेटों को प्राथमिकता देने से लड़कियों की शिक्षा और स्वास्थ्य देखभाल में कम निवेश हो सकता है, जिससे उनकी आर्थिक क्षमता बाधित हो सकती है।
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Sunday, August 17, 2025

महिलाओं के मुद्दे

~~अजन्मी बेटी ~~
चिंघाड़ अजन्मी बेटी की हमनै देती नहीं सुणाई।
किस्सा जमाना आग्या हुये माणस कातिल अन्याई।
पेट मैं मरवाना सिखया तकनीक इसी त्यार करी
लिहाज और शर्म सारी पढ़े लिख्याँ नै तार धरी
महिला संख्या घटती जा दुनिया मैं हुई रूसवाई।
परम्परा और कई रिवाज ये बुराई की जड़ मैं रै
दुभांत महिला की गेल्याँ होवै सबके बगड़ मैं रै
छोरे की खातर छोरी पै कटारी पैनी सै चलवाई।
महिला कम हुई सैं ज्यां इनपै अत्याचार बढ़गे
खरीद फरोख्त होण लगी साथ मैं व्यभिचार बढ़गे 
घर क3 भित्तर और बाहर ज्यांन बिघन मैं आई।
पुत्र लालसा की जड़ घनी गहरी म्हारे समाज मैं 
दोयम दरजा और दुभांत छिपी सै इस रिवाज मैं 
इस आधुनिक समाज नै और रापट रोल मचाई।
महिला शोषण के खिलाफ आवाज उठण लगी
विरोध की चिंगारी आज हरियाणा मैं दिखण लगी 
समाज के एक हिस्से नै बराबरी की मांग उठाई।
महिला नै इस माहौल मैं अपने कदम बढ़ा दिए
पिछड़ी सोच आल्याँ के कई बै छक्के छुड़ा दिए
रणबीर नै भी साथ मैं  या अपनी कलम घिसाई ।



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Consequences of Low Sex Ratio:

Social Imbalance: A skewed sex ratio can lead to social problems like increased violence against women and difficulties in finding marriage partners. 

Demographic Imbalance: It can affect future population growth and age structures. 

Economic Impact: The preference for sons can lead to underinvestment in girls' education and healthcare, hindering their economic potential. 




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जागरूकता की कमी:

समाज में अभी भी बेटियों को समान महत्व देने की सोच पूरी तरह से विकसित नहीं हुई है, According to Apni Pathshala. 

इन कारकों के कारण, हरियाणा में लिंगानुपात देश में सबसे कम है. 



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कानूनों का उल्लंघन:

कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए बने कानूनों का उल्लंघन, According to Apni Pathshala. 

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तकनीकी प्रगति:

अल्ट्रासाउंड और गर्भपात जैसी तकनीकों के दुरुपयोग से लिंग-चयनात्मक गर्भपात में वृद्धि हुई है, according to ETV Bharat. 


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सामाजिक-आर्थिक कारक:

कुछ परिवारों में, सीमित संसाधनों के कारण, वे केवल एक लड़के को प्राथमिकता देते हैं, According to Lukmaan IAS. 


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हरियाणा में लिंगानुपात कम होने का मुख्य कारण सामाजिक-आर्थिक और सांस्कृतिक कारक हैं, जिनमें बेटों को प्राथमिकता देना और कन्या भ्रूण हत्या जैसी प्रथाएं शामिल हैं। 

हरियाणा में लिंगानुपात कम होने के कुछ मुख्य कारण इस प्रकार हैं:

बेटों को प्राथमिकता:

पारंपरिक रूप से, हरियाणा में बेटों को परिवार और समाज में अधिक महत्व दिया जाता है। 

दहेज प्रथा:

दहेज प्रथा के कारण, बेटियों को बोझ माना जाता है, जिससे कन्या भ्रूण हत्या और लिंग-चयनात्मक गर्भपात को बढ़ावा मिलता है, According to Drishti IAS. 



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कन्या भ्रूण हत्या
कन्या भ्रूण हत्या के कई गंभीर दुष्परिणाम हैं, जिनमें सामाजिक, आर्थिक और मनोवैज्ञानिक पहलू शामिल हैं। यह न केवल एक लड़की के जीवन को छीन लेता है, बल्कि इसके दूरगामी नकारात्मक प्रभाव समाज पर भी पड़ते हैं। 
सामाजिक दुष्परिणाम:
लैंगिक असंतुलन:
कन्या भ्रूण हत्या के कारण समाज में पुरुषों की संख्या महिलाओं की तुलना में बहुत अधिक हो जाती है, जिससे विवाह योग्य महिलाओं की कमी हो जाती है और सामाजिक समस्याएं पैदा होती हैं।
महिलाओं के खिलाफ अपराध:
जब महिलाओं की संख्या कम होती है, तो उनके खिलाफ हिंसा, दुर्व्यवहार और शोषण की घटनाएं बढ़ सकती हैं।
सामाजिक संरचना में परिवर्तन:
कन्या भ्रूण हत्या के कारण सामाजिक संरचना में बदलाव आता है, जैसे कि विवाह के लिए महिलाओं की कमी और परिवारों में महिलाओं की भूमिका में कमी।
मानव तस्करी:
महिला तस्करी और बाल विवाह जैसी समस्याएं भी बढ़ सकती हैं क्योंकि विवाह योग्य महिलाओं की कमी होती है। 
आर्थिक दुष्परिणाम:
श्रमिकों की कमी:
कन्या भ्रूण हत्या के कारण देश के विकास के लिए आवश्यक कार्यबल में कमी हो सकती है, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में जहां महिलाओं की भूमिका महत्वपूर्ण है।
सामाजिक सुरक्षा पर बोझ:
कन्या भ्रूण हत्या के कारण, वृद्ध माता-पिता की देखभाल करने और सामाजिक सुरक्षा प्रणालियों पर बोझ बढ़ सकता है, क्योंकि महिलाओं की संख्या कम होने के कारण सामाजिक सुरक्षा में गिरावट आती है। 
मनोवैज्ञानिक दुष्परिणाम:
मां पर नकारात्मक प्रभाव:
कन्या भ्रूण हत्या के कारण मां को भावनात्मक आघात और अपराधबोध का सामना करना पड़ सकता है, खासकर यदि यह गर्भावस्था के बाद किया जाता है।
समाज में भय और असुरक्षा:
कन्या भ्रूण हत्या के कारण समाज में भय और असुरक्षा की भावना बढ़ सकती है, खासकर महिलाओं और लड़कियों में।
नैतिक मूल्यों का पतन:
कन्या भ्रूण हत्या नैतिक मूल्यों के पतन का संकेत है और यह समाज को नकारात्मक रूप से प्रभावित करता है। 
इन दुष्परिणामों के अलावा, कन्या भ्रूण हत्या एक गंभीर मानवाधिकार उल्लंघन है और इसे रोकना आवश्यक है। 
एआई से मिले जवाबों में गलतियां हो सकती हैं. ज़्यादा जानें
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लोकगीत

हे दुखी जात बीर की, सुख सपने म्ह भी कोन्या। 
सुख सपने म्ह मिलता कोन्या, इसी बीर की जात हो सै, बीमारी नै भी कम गाउँ यू, गजब इसका गात हो सै, चार बजे तै पहल्या उठै, फिर चाकी का झोणा हो स. रड़का और बुहारी करकै, सेर पक्का पोणा हो सै. बारह पड़ कै चार उठ ज्या, यो भी के हो सोणा।

हे दुखी जात बीर की.

हाण्डी और बिलौणी धोकै, गोबर कूड़ा करणा हो सै. सारे दिन बालकां के म्ह, भौंक-भौंक के मरणा हो सै. सारे कुणबे तै पाछे खाणा, उस पै भी पडज्या रोणा।

हे दुखी जात बीर की..

दांती-पल्ली ठाकै नै वा, खेता के म्हां छूट ले सै. जबर भरोटा धरै टाट पै, बोझ तलै वा टूट ले सै, जब हाली की रोटी लेकै, जाणा पड़ज्या खेत म्ह, तीन मील का सफर करकै, वा ताती बलज्या रेत म्ह, आगै हाली छौ मैं आज्या, यू सबतै मोटा रोणा।

हे दुखी जात बीर की........।। 3 ।।

घर बाहर के धन्धे म्ह जब, बुरी तरा वा टूट ले सै. कदे-कदे छो मैं आकै, काम करण तै रूस ले सै, जब या कमेरी पढ-लिख ज्यागी हो ज्या दूणा सोना।

******हे दुखी जात बीर की.।।4।।

आच्छी भूण्डी सबकी सुणणी, घुट-घुट कै न मरणा हो सै मार पिटाई तानाकशी, रोज-रोज की बात हो सै लत्ते धोणे, पाटा-टूटा, सिमणा और पिरोणा हो सै डांगर कै आगै पाछे, गितवाडा भी संगवाणा हे दुखी जात बीर की...... ।। 5 ।

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उर्मिल गांगटान
आए मत समझो बेटी बोझ , मैं देकै जोर कह री सूं 
क्यूं यू बेटा कुलभूषण सै ,जिसमैं ना क्याहें का गुण सै ,
आए या बेटी घर का चिराग, मैं देकै जोर कह री सूं
आए मत समझो.......(1)

हे जो कुलभूषण कहलावै, हे वो तै दारू पी घर आवै, 
आए वो करै ना किसे का मान, मैं देकै जोर कह री सू 
आए मत समझो. 11 211

क्यूं बेटी कमजोर कहावै, सब कामां में हाथ बटावै, 
आए सुख-दुख में आवै काम, मैं देकै जोर कह री सू 
आए मत समझो. || 311

आए जब बेटी ब्याही जा सै, हे वा तै घर साजन के जा सै. 
हे उसनै मां की सतावै याद, मैं देकै जोर कह री सू 
आए मत समझो. || 411

मत बेटी जण पछताइयो, हे बेटी नै खूब पढाइयो, 
हे या बेटी चलादे नाम, मैं देकै जोर कह री सू 
आए मत समझो. || 5||

ए या 'उर्मिल' भी बेटी सै, या तो बहोत घणी ढेठी सै, 
वतन पै हो ज्यागी कुर्बान, मैं देकै जोर कह री सूं, 
आए मत समझो.
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रामफल जख्मी

पाड़ बगादो बहना, चुपकी चुनरिया, 
इस चुनरी नै गले को घोट्या, 
जुल्म करे बोल्यण तै रोक्या, 
जकड़े राखी पिया की अटरिया, 
पाड़ बगादो बहना..1

इस चुनरी नै जुल्म गुजारा. 
चुनरी में दुबका हाथ हमारा, 
खूब पिटाया हमें सारी हे उमरिया, 
पाड़ बगादो बहना.......... 11211

चुनरी पति परमेश्वर बोल्लै, 
जिन्दा जली चुनरी के ओल्हे, 
खड़ी-खड़ी हंस रही सारी हे नगरिया, 
पाड़ बगादो बहना...

एक दिन चुनरी पड़ेगी बगाणी, 
मिलकै पड़ेगी तकलीफ मिटाणी, 
तब अपणी होगी, पूरी हे डगरिया, 
पाड़ बगादो बहना... 1|4||

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मुकेश

हरियाणा की बहने मिलकै आज रही ललकार है। 
जात-गोत के पंचायती ये हमें नहीं स्वीकार हे।।

कदे जौणधी, कदे बाढडा, आसण्डे म्हं आवै हे, 
पति पत्नी के राखी बांधै, भाई बहन बणावें 
हे, 
संविधान नै धर कै ताक पै, बन बैठे सरकार है, 
जात गोत के पंचायती.. 11(1)

दिन-दिन लड़की कम होरी, ये कोन्या बात उठावै है. 
ब्याह का फैसला खुद करले, तो लड़की नै मरवावें हे, 
मासूमां की ले-ले जान, ये बण कै ठेकेदार हे. 
जात गोत के पंचायती.. 11211

न्याय का करते ढोंग सदा ये, बिल्ली दूध रूखाली हे 
पगड़ीधारी मूछा आले, बोदे नै मरवावैं हे बेपेंदी के लोटे सारे, बोले बिना अधिकार हे जात गोत के पंचायती.....।।3।।

कानून का आड शासन होग्या, बोलो मिलकै सारी हे. 
इसी पंचायतां पै रोक लगाओ, सबतै बड़ी बीमारी हे, 
कै 'मुकेश तम चौकस होल्यो, छिड़गी से तकरार हे 
जात गोत के पंचायती.. 11411
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सांझी संस्कृक्ति, सांझी विरासत । सबका सांझा देश है भारत ।।

संघर्ष करें, नई राह गर्दै। सामाजिक न्याय की ओर बढ़ें।।

मनुस्मृति से इंकार हमें। भेदभाव नहीं स्वीकार हमें ।।

न हिन्दू हम, न मुसलमान। हमारी नागरिकता, हमारी पहचान ।।

जिन से पिछड़ा रहे समाज । बदलो ऐसे रीत रिवाज ।।

महिलाएं जब आगे आएं। लोकतंत्र तब जीवन पाए।।

डर तोड़ेंगे, मुंह खोलेंगे। हम न्याय के हक में बोलेंगे।।

दहेज नहीं प्यार दो। संपत्ति में अधिकार दो।।

संघर्ष करो आगे बढ़ो। जनतंत्र की रक्षा करो।।

हो कोई मजहब, कोई जात। सद्भावना से रहना साथ ।।

सांझी संस्कृति रीत हमारी। भिन्नता में ही जीत हमारी।।

हिंदू राष्ट्र का निर्माण। लोकशाही का अपमान ।।


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भ्रूण हत्या पै रोक लगावां, बेटी नै दिल तै अपणावां दहेज प्रथा नै जड़ तै मिटावां, सम्पत्ति मैं अधिकार दिलावां लड़की का गर मान घटेगा, हिंसा और अपराध बढ़ेगा



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*हरियाणा के आंकड़े बहुत कुछ कहते हैं*
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 5 (2019--2021) % में
1.महिलाओं की जनसंख्या 6 साल और इससे ऊपर जो कभी स्कूल गई हैं  --अर्बन --82.30, रूरल-- 69.6, कुल जोड़-- 73.8
2. जनसंख्या 15 साल से कम उम्र की अर्बन 23.2 रॉयल 26.3 कुल --- 25.3
3. जनसंख्या में लिंग अनुपात (महिला प्रति एक हजार पुरुष)--अर्बन--911, रूरल--933, कुल जोड़--926.
4. लिंगानुपात पिछले 5 साल में जन्म के वक्त-अर्बन--943, रूरल--873, कुल जोड़--893.
5. 20 से 24 साल के बीच की महिलाएं जिनकी 6 साल से कम उम्र में शादी हुई---अर्बन--9.9, रूरल--13.7, कुल जोड़--12.5.
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6. नवजात शिशु मृत्यु दर--अर्बन--19.0, रूरल--22.7, कुल जोड़-- 21.6.
7. शिशु मृत्यु दर--अर्बन--28.6, रूरल--35.3, कुल जोड़--33.3
8. 5 वर्ष से छोटे बच्चों की मृत्यु दर--अर्बन--36.0, रूरल--39.8, कुल जोड़--38.7.
9. अस्पताल में डिलीवरी--अर्बन--96.1,रूरल--94.4, कुल जोड़--94.9.
10. सरकारी अस्पताल में डिलीवरी--अर्बन--48.6,रूरल--61.1, कुल जोड़--57.5. 11.सिजेरियन सेक्शन से डिलीवरी--अर्बन--23.5,रूरल--17.8,कुल जोड--19.5.
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पानी के नलके 
फिलहाल हरियाणा ग्रामीण क्षेत्र में 53.47 प्रतिशत घरों तक कनेक्शन कराकर देश में चौथे नंबर पर है।
जबकि
मार्च 2023 तक के संसद के रिकॉर्ड बताते हैं कि पश्चिम बंगाल में 69 फीसदी, झारखंड में 67 फीसदी, उत्तरप्रदेश में 66 फीसदी, छत्तीसगढ़ में 60 फीसदी और राजस्थान में 63 फीसदी घरों में नल के कनेक्शन नहीं हैं।




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कलकता  हवाई अड्डे पर पता लगा की दामिनी ने अपने संघर्ष की आखिरी साँस सिंघापुर में ली है तो बहुत दुःख हुआ और यह रागनी वहीँ पर  लिखी -----
याद रहैगा थारा  बलिदान दामिनी भारत देश जागैगा ।।
थारी क़ुरबानी रंग ल्यावैगी समाज पूरा हिसाब मांगैगा ।।
1
सिंघापुर  मैं ले जा करकै  बी हम थामनै बचा नहीं पाये  
थारी इस कुर्बानी नै दामिनी आज ये सवाल घने ठाये  
गैंग रेप की कालस का यो अँधेरा भारत देश तैं भागैगा ।।
थारी क़ुरबानी रंग ल्यावैगी समाज पूरा हिसाब मांगैगा ।।
2
पूरा देश थारी साथ यो पूरी तरियां खड्या हुया
जलूस विरोध प्रदर्शन कर समाज सारा अड़या हुया
फांसी तोड़े जावैंगे वे जालिम इसपै  हांगा पूरा लागैगा ।।
थारी क़ुरबानी रंग ल्यावैगी समाज पूरा हिसाब मांगैगा ।।
3
महिला संघर्ष की थाम दामिनी आज एक प्रतीक उभरगी
दुनिया मैं थारी कुर्बानी की कोने कोनै सन्देश दिगर गी
इसमें शक नहीं बचर या कोर्ट जालिमों नैं फांसी टांग़ैगा।।
थारी क़ुरबानी रंग ल्यावैगी समाज पूरा हिसाब मांगैगा ।।
4
लम्बा संघर्ष बदलन का सोच समझ आगै बढ़ ज्यांगे
मंजिल दूर साईं दामिनी हम राही सही पै चढ़ ज्यांगे
कहै रणबीर सिंह नए साल मैं जालिम जरूरी राम्भैगा ।।
थारी क़ुरबानी रंग ल्यावैगी समाज पूरा हिसाब मांगैगा ।।


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महिला भ्रूण हत्या करके सबते तेज कार चलावें
गर्भ वती महिला खून कमी जापे के माह मरजयावें

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मानसिकता हमारी
१. छाँट कर पेट में कन्या भ्रूण हत्या की मानसिकता
२. रोजाना दारू पीने की मानसिकता
३. दूसरे नशे करने की मानसिकता
४. अपने परिवार में अपनी बेटी से बलात्कार करने की मानसिकता
५. महिला को अपने पीहर में प्रोपर्टी में अधिकार मांगने पर उसको नीची नजर से देखने और मार डालने की मानसिकता
६. लड़कियों पर बीस तरह की पाबंदियां  लगाने की मानसिकता
७. भ्रष्टाचार को बढ़ाने की मानसिकता 
८. पंचायती जमीनों पर कब्ज़ा करने की मानसिकता 
यह मानसिकता क्या प्रेमी जोड़ों ने पैदा की है ?
इस संकट का समाधान सिर्फ शादी के साथ जोड़कर देखना मुरखता ही कही जा सकती है
इसी मानसिकता के लोग 
झूठी श्यान के नाम पर  खुद शादी करने वालों का कत्ल करते हैं 
१० साल की बच्ची के साथ बलात्कार करते हैं 
 अपील है समाज से कि इस मानसिकता को बदलने के लिए आगे आयें | एक नए नवजागरण के समाज सुधार में अपनी आहुति डालें |
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संकट और नवजागरण
आज देश हमारा चौतरफा संकट से घिर गया 
उदारीकरण के करण सिर उनका फिर गया 
वैश्वीकरण के नाम पर कितना कहर ढाया है 
आर्थिक संकट बेरोजगारी ने उधम मचाया है 
छंटनी महंगाई लूट खसोट आज बढती जा रही 
भ्रूण हत्या और दहेज़ की अंधी चढ़ती आ रही 
कठिनाईयों का बोझ ये  महिलाओं पर आया है 
युवा लड़कियों की दुनिया पे काला बादल छाया है 
गहरे तनाव में लड़कियां ये जीवन बिता रही हैं 
फिर भी हिम्मत करके करतब खूब  दिखा रही हैं 
सारे रिश्ते कलंकित हुए आज के इस संसार में 
सगे सम्बन्धी परिचित फंसे घिनोने बलात्कार में 
शिक्षक का रिश्ता भी तो हरयाणा में दागदार हुआ 
अभिभावकों का दिलो दिमाग आज तार तार हुआ 
सामाजिक मूल्यों में आज गिरावट आई है भारी 
चारों तरफ अपसंस्कृति की छाई देखो महामारी 
फेश बुक पर चैटिंग से नहीं  समाज बचने वाला 
उदारीकरण और ज्यादा भोंडे खेल रचने वाला 
वंचित तबके और महिला युवा लड़के लड़कियां 
मिलके खोलेंगे जरूर समाज की बंद खिड़कियाँ 
इंसानी रिश्ते बनेंगे रंग भेद जात  भूल जायेंगे 
नवजागरण का सन्देश घर घर तक पहुंचाएंगे 

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छांटकर कन्या भ्रूण हत्या
आज के दौर में सम्पूर्ण देष में महिलाएं विभिन्न प्रकार के भेदभाव और उत्पीड़न का षिकार हैं। लिंग चयनित गर्भपात महिलाओं के साथ की जाने वाली सबसे बुरी तरह की हिंसा है और एक तरह से कहें तो पूरा हरियाणा एक हत्यारी मानसिकता के मनोरोग से ग्रस्त है। इसी के चलते महिलाओं को उनके सबसे बुनियादी अधिकार जीवन के अधिकार से वंचित किया जाता है। लिंग चयनित गर्भपात एक इस प्रकार की प्रक्रिया है जिसमें गर्भ के षुरुआती वक्त में ही लिंग निर्धारण परीक्षण करके कन्याभ्रूण को चयनित रुप से नश्ट कर दिया जाता है। अब तो नई तकनीक के चलते गर्भ धारण करने से पहले ही लिंग निर्धारण करके ही लड़के का गर्भ धारण किया जाता है।भारत वर्श में लगभग पांच लाख कन्या भ्रूण का गर्भपात किया जाता है। एक ब्रिटिष मेडिकल पत्रिका ‘लेनसेट’ द्वारा 2006 में किए गये एक अघ्ययन के अनुसार यह एक अत्यन्त स्तब्धकारी तथ्य है कि भारत में पैदा होने वाली 120 लाख कन्याओं में से 10 लाख बच्चियां अपना पहला जन्म दिन भी नहीं मना पाती। घटता लिंग अनुपातयदि हम भारत के लिंग अनुपात को देखें तो 2011 की जनगणना के अनुसार बाल लिंग अनुपात ; 0.6 आयु वर्ग में  भारत में बालकों के 1000 अनुपात के मुकाबले में कन्याओं का अनुपात घटकर 914 रह गया है। यह देष के आजाद होने के बाद का सबसे कम लिंग अनुपात है। भारत में 1961 से ही 0.6 बर्श के आयु वर्ग में लिंग अनुपात निरन्तर कम होता आ रहा है परन्तु 2001 में 927ण्31 के अनुपात की तुलना में 2011में 914ण्23 का अनुपात स्वतन्त्रता के प्ष्चात सबसे न्यूनतम है। इससे प्रतीत होता है कि कन्या षिषु के मुकाबले में लड़का षिषु पाने की पसन्द बढ़ती जा रही है।  यह अनुपात हरियाणा और पंजाब में अन्य सब राज्यों के मुकाबले सबसे कम है। एक हजार बालकों के अनुपात में हरियाणा का अनुपात 830 और पुजाब में 846 है। वैष्विक अनुपात 1000 लड़कों पर 1050 कन्याओं का है।1970 के आसपास आरम्भ हुई जब सोनोग्राफी और अल्ट ªासाउंड की मषीनें अस्पतालों में उपलब्ध होने लगी। यद्यपि गर्भ के दौरान परीक्षण प्रोद्यौगिकी का विकास गर्भ में पल रहे षिषु की स्वास्थ्य जांच के लिए हुआ परन्तु डाक्टरों ने इस प्रोद्यौगिकी का प्रयोग भ्रूण के लिंग का पता लगाने के लिए आरम्भ करने में देर नहीं लगाई। परिणामस्वरुप इस प्रोद्यौगिकी लिंग चयन में सहायता के लिए होने लगा। क्लिीनिक्स में टंगे साईनबोर्ड ‘ यहां लिंग निर्धारण के लिए परीक्षण नहीं होता’ कानून का दिखावे मात्र के लिए पालन करने के इलावा कुछ नहीं है। पोर्टेबल अल्ट ªासाउन्ड मषीनों से तो दूरस्थ गावों में भी परीक्षण किया जा सकता है। प्रोद्यौगिकी ने गर्भ के आरम्भिक दिनों में ही लिंग चयन के कार्य को आसान बना दिया है।  प्रचलित पितृसतात्मक दृश्टिकोण, मैडीकल प्रोद्यौगिकी तथा बेईमान मैडीकल प्रैक्टीषनरज के कारण हमारे देष में कन्याभ्रूण हत्या की घटनाओं में भयावह स्तर तक वृद्धि हुई है। पितृसतात्मक प्रणाली में पु़त्र प्राप्ति की इच्छा अत्यन्त गहरी होती है। एक लड़के को परिवार में भरण पोशण करने वाले, वृद्धावस्था में माता पिता की देख भाल करने वाले,परिवार की सम्पति के उतराधिकारी तथा परिवार के नाम को आगे बढ़ाने के रुप में गर्व और सम्मान से देखा जाता है। इसके विपरीत कन्याओं को बोझ समझा जाता है। उन्हें वितिय देनदारी तथा जन्मदाता परिवार में एक अस्थाई निवासी माना जाता है। परिवार की आर्थिक स्थिति में कन्याओं के योगदान की सदा उपेक्षा की जाती है।उपभोग्तावाद का अभिषाप इससे भी बढ़कर नव उदारवादी आर्थिक नीतियों ने बाजार संचालित तथा बाजार नियन्त्रित उपभोग्तावाद को प्रोत्साहन दिया है। दहेज प्रथा की बढ़ती हुई बुराई और विवाह समाराहों में बढ़ते प्रदर्षनवाद ने एक ऐसी स्थिति पैदा कर दी है जिसमें बेटियों को परिवार पर एक भारी आर्थिक बोझ समझा जाने लगा है। परिणामलिंग चयनित गर्भपात के भयंकर परिणाम हें जिसके फलस्वरुप एक भावुकतापूर्ण आाघात लगता है और एक सामाजिक संकट पैदा हो जाता है। लिंग चयनित गर्भपात के कारण भारत के कई राज्यों में मानव व्यापार एक आाम बात हो गई है। जहां किषोरियों को बेचा और खरीदा जा रहा है। लड़कियों को सैकस की वस्तु समझा जाता है। वर्श 2011 में हरियाणा जैसे क्षेत्रों में 15,000 भारतीय महिलाओं को दुल्हनों के रुप में बेचा और खरीदा गया और इससे यहां लिंग चयनित गर्भपात के कारण क्न्या लिंग असन्तुलन पेदा हो गया है। इस प्रकार के असंतुलन वाले क्षेत्रों में हिंसा और अस्थिरता पैदा होती है।

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यह दुनिया भर में सर्वविदित और प्रलेखित है कि श्रमिक वर्ग ग्रामीण क्षेत्रों में कामकाजी गरीबों की महिलाएँ और महिलाएँ रही हैं नवउदारवादी नीतियों और साम्राज्यवादी वैश्वीकरण के सबसे बुरी शिकार। यह है ऐसा नहीं है कि कामकाजी पुरुषों को महिलाओं की कीमत पर लाभ हुआ है। गरीबी के स्त्रीकरण पर बहस इसके भीतर होनी चाहिए वैश्वीकरण की मुख्य विशेषता की वास्तविकता, अर्थात् वृद्धि असमानताएँ, अमीर और ग़रीब के बीच और भीतर राष्ट्र. आजीविका और जीवनयापन में सामान्य गिरावट के भीतर कामकाजी लोगों के मानक देखें तो महिलाएं अधिक प्रभावित हुई हैं।
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हरियाणा
***** 1272 बच्चियों  से यौन शोषण के केस दर्ज किए गए 2022 में
अमर उजाला, 9 दिसम्बर, 2023
234 महिलाओं की दहेज के लिए की गई हत्या,2022 में
अमर उजाला, 9दिसंबर 2023

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हिंदुस्तान की महिलाओं के बाबत
यूनेस्को के अनुसार 1951 में देश में महिला शिक्षकों की संख्या केवल 82000 थी, 2022 की यूनिफाइड डिस्ट्रिक इनफॉरमेशन सिस्टम फॉर एजुकेशन रिपोर्ट के अनुसार यह संख्या 48.75 लाख से अधिक हो चुकी है। **साल 2014-15 के मुकाबले स्कूलों में लड़कियों का नामांकन 31% बढा। खास बात है कि इसमें वंचित समुदायों की वृद्धि और तेज रही। इसके नतीजे भावी जनगणना के परिणाम में भी देखने को मिल सकते हैं। **भारत में 1951 में महिला साक्षरता दर 8.86 प्रतिशत थी । 2011 में 6 5.46 प्रतिशत हो गई ।
स्रोत: यूनेस्को, नीति आयोग रिपोर्ट और राज्यसभा में दिया उत्तर।
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रोहतक में सबसे ज्यादा 53 अंकों की गिरावट

2023 में जिन शहरों के लिंगानुपात में गिरावट दर्ज की गई है, उनमें फतेहाबाद, नूंह, सिरसा, यमुनानगर, जींद, कैथल, पानीपत, अंबाला, चरखी दादरी, सोनीपत, महेंद्रगढ़, रोहतक, करनाल और भिवानी शामिल हैं। वहीं, गुरुग्राम, पलवल, कुरुक्षेत्र, फरीदाबाद, पंचकूला, हिसार, रेवाड़ी और झज्जर में वृद्धि दर्ज की गई है। पिछले साल प्रदेश में कुल 5,50,465 बच्चों ने जन्म लिया। इनमें 2,87,336 लड़के और 2,63,129 लड़कियां शामिल थीं। एसआरबी के आंकड़ों के मुताबिक राज्य में सबसे ज्यादा गिरावट वाले पांच ऐसे शहर हैं, जिनका लिंगानुपात 900 से नीचे दर्ज किया गया है। इनमें सबसे खराब स्थिति रोहतक की है। 2022 में रोहतक का लिंगानुपात 936 था, जो 2023 में घटकर 883 रह गया। 53 प्वाइंट की गिरावट है।
हरियाणा के 14 जिलों में गिरा लिंगानुपात, रोहतक में सबसे अधिक 53 अंकों की गिरावट की गई दर्ज
punjabkesari.in Sunday, Jan 14, 2024 - 04:25 PM (IST)
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*मोदी राज में महिलाओं के खिलाफ जघन्य अपराध बढ़े हैं।*
*महिलाओं के खिलाफ अपराधों में चिंताजनक वृद्धि बहुत सोचने की बात है।*
*राष्ट्रीय अपराध रिपोर्ट ब्यूरो(एनसीआरबी) के नवीनतम आंकड़ों के अनुसार 2014 में महिलाओं के खिलाफ अपराध की दर 52.5 प्रति लाख थी ।* *2021 तक महिलाओं के खिलाफ अत्याचार की यह दर  64.5 प्रति लाख हो गई है । 2021 तक, दैनिक बलात्कार की संख्या प्रतिदिन 90 बलात्कार से ऊपर थी । 2017 में महिलाओं के खिलाफ अपराध के 315215 से अधिक मामले दर्ज किए गए। 2022 में यह संख्या बढ़कर 365300 से अधिक हो गई।  6 साल की अवधि में महिलाओं के खिलाफ अपराधों की दर में 15.88 प्रतिशत की वृद्धि काफी महत्वपूर्ण है।* *एनसीआरबी डेटा  में 2017 के बाद से बच्चों के खिलाफ यौन अपराधों में 94.47 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई  है । 2017 से 2022 तक  लगातार 6 वर्षों तक महिलाओं के खिलाफ अपराधों में उत्तर प्रदेश शीर्ष पर रहा है ।* *2019 से 2022 तक महिलाओं के खिलाफ अपराधों में राजस्थान दूसरे स्थान पर रहा । 2022 में दिल्ली और हरियाणा, महिलाओं के खिलाफ उच्च अपराध दर वाले राज्य बन गए थे।*
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Men (15--49) who have ever used the internet(%) 72.4
Haryana 
NFHS..5
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Children under 5 years who are stunted (height for age)%..27.5%
Haryana
NFHS..5
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Under Five Mortality Rate(U5MR)..38.7
Haryana
NFHS..5
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Neonate Mortality Rate..NNMR.. ..21.6
Infantil Mortality Rate(IMR)..33.3
Haryana
NFHS-5
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Women age 15-19 years who were already mothers or pregnant at the time of survey (%)..3.9
Haryana 
NFHS..5
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Women (15--49) who have ever used the internet(%) 48.4
Haryana 
NFHS..5
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This story is from November 30, 2019
1.30 Lakh Haryana Brides ‘Bought’ From Other States: Survey
CITY
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Sat Singh | TNN | Nov 30, 2019, 09:16 IST

1.30 lakh Haryana brides ‘bought’ from other states: Survey
In Haryana, which historically has had one of the poorest sex ratios in the country, nearly 1.30 lakh brides have been “purchased... Read More
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ROHTAK: In Haryana, which historically has had one of the poorest sex ratios in the country, nearly 1.30 lakh brides have been “purchased” over from outside the state, according to a survey conducted by Jind-based Selfie-With-Daughter foundation.
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“Almost every village in Haryana has 10-12 such daughters-in-law. In the larger villages, this figure is over 200. Such marriages usually take place among Jats, Brahmins, Yadavs and the Rod castes,” said social activist Sunil Jaglan.

Most of the time, a human trafficking network is involved in this ‘transaction’ of brides. According to data released by the Haryana government, in 2016, 30 such cases of human trafficking were registered in the state with 48 others reported in 2017.

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With Haryana recording 916 female births per 1,000 males in 2023 and registering a dip in the sex ratio at birth (SRB) over 2022, health minister Anil Vij on Wednesday said the flagship 'save the girl child' programme has been suffering setbacks due to availability of illegal gender detection facilities in the ...4 Jan 2024
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