Tuesday, January 10, 2023

शराब आदत नहीं, जानलेवा बीमारी है।’

 ‘सप्तरंग’ कार्यक्रम रिपोर्ट

‘शराब आदत नहीं, जानलेवा बीमारी है।’


ऐल्कहौलिक्स एनौनिमस संस्था से जुड़े एक समय के पुराने शराबियों परन्तु अब उस से मुक्ति

पा चुके प्रतिनिधियों ने रोहतक के अनजान लोगों के सामने इस इतवार (8 जनवरी 2023) अपने दिल

खोल कर रख दिए। ‘सप्तरंग’ द्वारा आयोजित गोष्ठी में इन चार वक्ताओं ने शौक़िया यदा-कदा शराब

का सेवन करने की शुरुआत से ले कर शराबी हो जाने और फिर शराब से निजात पाने की अपनी कहानी

सुनाई। उन का कहना था कि शराब कोई आदत नहीं, लाइलाज बीमारी है - मधुमेह (डायबीटीज़/शूगर) की

तरह जीवनभर चलने वाली बीमारी। जिस तरह मधुमेह का मरीज़ कुछ सावधानियाँ रख कर बीमारी से

निपट सकता है, उसी तरह एक शराबी भी अपनी इस बीमारी से निपट सकता है। इस से निपटने में एक

समय के शराबी परन्तु अब उसे छोड़ चुके लोग उस की काफ़ी सहायता कर सकते हैं क्योंकि वह एक

शराबी की मन: स्थिति को भली-भाँति समझते हैं। यह संस्था नियमित ऑनलाइन एवं आमने-सामने,

दोनों तरह की बैठकों के माध्यम से शराबी को मानसिक रूप से शराब छोड़ने के लिए तैयार करती है।

संस्था के सदस्य कोई दवाई नहीं देते।

वक्ताओं में कोई 25 साल की उम्र तक आते-आते ही शराबी हो गया था तो कोई 32 की उम्र में।

कोई 20 साल शराबी रहने के बाद शराब छोड़ पाया था, किसी को शराब छोड़े 10 बरस हुए थे तो कोई

5 साल की कोशिश के बाद अभी मात्र 2 महीने से ही शराब से बचा हुआ था। वक्ताओं ने बताया कि

शराबी होने (यानी शराब के नशे की गिरफ़्त में आ चुके) एवं यदा-कदा शराब पीने वाले के बीच तीन

अन्तर होते हैं जिन के आधार पर व्यक्ति ख़ुद पहचान सकता है कि वह शराबी है या नहीं। एक शराबी

भले ही पीये केवल शाम को परन्तु वह 24 घण्टे शराब के बारे में सोचता रहता है - कि कब, कहाँ, कैसे

मिलेगी। वह एक तरह का मानसिक खिंचाव महसूस करता है। दूसरा, शराब पीने पर उस के शरीर की

ऐसी प्रतिक्रिया होती है कि वह शारीरिक तौर पर इस की और अधिक ज़रूरत महसूस करता है और शराब

अन्दर जाते ही वह अपना नियंत्रण खो बैठता है। तीसरा, वह नैतिक/मानसिक तौर पर खोखला हो जाता

है। यहाँ तक कि वह माँ के दाह संस्कार के एक घण्टे बाद ठेके पर हो सकता है और फिर शर्म तथा

आत्म-ग्लानि के चलते दोबारा पी सकता है। इन तीनों में से कोई एक लक्षण भी आप में है, तो आप

शराबी बन चुके हैं।

इस बीमारी की पहचान के उपरोक्त तीन तत्वों के अलावा, इस के प्रभाव भी चिह्नित किये गए।

पहला, इस से बचने के लिए पूरा जीवन प्रयास करने होंगे। अगर उपाय न किये जाएँ तो यह रोग बढ़ता

जाता है। और यह जानलेवा है - न केवल जानलेवा बल्कि दर्दनाक रूप से जानलेवा रोग, जिस का चरम

लिवर (कलेजा/जिगर) इस हद तक ख़राब होने के रूप में सामने आता है कि ‘पी लो या जी लो’ की

स्थिति आ पहुँचती है। यह बीमारी केवल शराबी को ही नहीं, पूरे परिवार को तबाह करती है। सब से

दर्दनाक पक्ष यह है कि व्यक्ति इस के होने को स्वीकार ही नहीं करता। उसे लगता ही नहीं कि उसे कोई

रोग है, कि वह इस के सामने लाचार हो चुका है। व्यक्ति को लगता है कि वह दो पैग तक सीमित रह


सकता है परन्तु शराब का एक घूँट अन्दर जाते ही वह अपना नियंत्रण खो बैठता है। इस लिए

ऐल्कहौलिक्स एनौनिमस का पहला प्रयास शराबी को यह एहसास दिलाने का रहता है कि वह इसे रोग के

रूप में स्वीकार करे। बिना इस तथ्य को स्वीकार किए आगे प्रगति करना मुश्किल है। उसे यह स्वीकार

करना होगा कि उस के लिए पहला घूँट अंतिम घूँट नहीं हो सकता। इस लिए उसे पहला घूँट ही नहीं

लेना।

वक्ताओं के मुताबिक़ शराब छोड़ने की प्रक्रिया में ‘HALT’ प्रक्रिया प्रभावी पाई गई है। H से

हंगरी यानी भूखा न रहना। ऐल्कहौलिक्स एनौनिमस का अनुभव है कि पेट भरा होने पर शराब पीने की

सम्भावना कुछ कम हो जाती है। A से ऐंग्रि यानी ग़ुस्सा नहीं होना। ग़ुस्सा/झगड़ा शराब पीने की

सम्भावना को बढ़ा देता है। इस लिए शराब छोड़ने के इच्छुक व्यक्ति को ग़ुस्से और लड़ाई-झगड़े की

स्थिति से बचना चाहिए। L से लोनली, यानी अकेले रहने से बचें। शराब न पीने वाले दोस्तों/परिजनों के

साथ रहें। आख़िर में, T से टायर्ड नहीं होना यानी बहुत ज़्यादा मशक्कत/थकने से बचना चाहिए (क्योंकि

थकान के बाद शराब की ज़रूरत महसूस होगी)। मीठा खाने से भी शराब की तलब कुछ कम होती है।

इस के अलावा, शराबी को शराब छोड़ने के लिए छोटे लक्ष्य रखने चाहिएँ; यह कोशिश करनी चाहिए कि

कम से कम आज शराब नहीं पीनी। उन की सलाह थी कि जो भी आप का इष्ट हो, उस से सुबह उठते

ही प्रार्थना करें कि कम से कम आज का दिन बिना पीये गुज़र जाए। इसी तरह एक-एक दिन कर के

शराब से दूरी बनाए रखी जा सकती है। साथ ही, होली-दीवाली जैसे मौक़ों पर विशेष सावधानी बरतनी

चाहिए।

वक्ताओं ने बताया कि विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार पूरी दुनिया में यह मृत्यु का तीसरा

सब से बड़ा कारण है। अगर दुर्घटना और चोट इत्यादि को शामिल कर लें तो पहला सब से बड़ा कारण

बन जाता है। उन्होंने यह भी बताया कि आंकड़े दिखाते हैं कि शराब का सेवन करने वालों में से 10-

15% लोग शराबी हो जाते हैं। युवतियों में भी यह समस्या बढ़ती जा रही है, यहाँ तक कि दिल्ली में उन

के सदस्यों में लगभग 20% महिलाएँ हैं।

ऐल्कहौलिक्स एनौनिमस का अनुभव यह है कि शराब केवल व्यक्ति नहीं बल्कि पूरे परिवार के

लिए बीमारी है। इस लिए उन का पहला प्रयास परिवार को इस के प्रभाव से निकाल कर जितना सम्भव

हो, सामान्य जीवन जीने के लिए तैयार करने का रहता है। इसी लिए शराब- पीड़ित परिवारों के लिए

काम करने वाली भी एक संस्था है जिस का नाम ALANON (सम्पर्क सूत्र - https://al-anon.org या

9871970664) है। यह नियमित बैठक के माध्यम से परिवारों को शराबी की शराब छुटवाने या कम से

कम परिवार पर उस के असर को कम करने में सहायता करती है। शराब के अलावा अन्य नशों से बचने

के लिए नार्कोटिक्स एनौनिमस नामक एक नयी संस्था शुरू की गई है ( https://nadelhi.org/ या

https://na.org/ )। ये सभी संस्थाएँ पूरी तरह से नि:शुल्क सहायता प्रदान करती हैं। इन से

9811908707 एवं 9810912534 या www.aagsoindia.in के माध्यम से सम्पर्क किया जा सकता है।

वक्ताओं ने बताया कि क्योंकि वे स्वयं भुक्तभोगी रहे हैं, इस लिए वे शराब छोड़ने के इच्छुक लोगों की

सहायता करना अपना फ़र्ज़ समझते हैं। देश भर में उन के सदस्य/समूह हैं एवं पीड़ित व्यक्ति या परिवार

द्वारा सम्पर्क करने पर उन की संस्था के सदस्य फ़ोन पर या व्यक्तिगत तौर पर मिल कर सहायता


करते हैं और यह सहायता पूरी तरह नि:शुल्क होती है। संस्था का सब साहित्य भी उन के वेबसाइट पर

मुफ़्त उपलब्ध है।

बैठक में ‘सप्तरंग’ के नियमित प्रतिभागी कम थे परन्तु नए प्रतिभागी काफ़ी थे। 30 के लगभग

लोगों ने बैठक में भाग लिया जिन में बड़ी संख्या नए लोगों की थी। इस से इस समस्या की भयावहता

का एहसास होता है। इस चर्चा में प्रतिभागियों ने यह भी रेखांकित किया कि शराब केवल व्यक्ति या

परिवार के लिए ही नहीं, बल्कि समाज के लिए भी एक बीमारी है। न केवल इस के प्रभाव सामाजिक हैं,

इस के सामाजिक कारण भी हैं। इसलिए इस से निपटने के लिए व्यक्तिगत या पारिवारिक उपायों के

साथ-साथ सामाजिक स्तर के उपाय भी आवश्यक हैं। हालाँकि कार्यक्रम में सामाजिक पक्ष पर चर्चा नहीं

हुई परन्तु इस को नज़रअंदाज़ करना सही नहीं होगा।

ऐल्कहौलिक्स एनौनिमस के प्रतिनिधियों की पीड़ा के साथ-साथ शराब छोड़ पाने का गौरव उन के

चेहरों से साफ़ झलक रहा था। आशा है कि हम सब लोग मिल कर पीड़ित व्यक्तियों/परिवारों तक यह

जानकारी पहुँचाएँगे ताकि कल को उन के चेहरे भी गर्व भरे दिखाई दें। ‘सप्तरंग’ ऐल्कहौलिक्स एनौनिमस

के प्रतिनिधियों के प्रति दिल से आभारी है।

कार्यक्रम के फ़ोटो संलग्न हैं। ऐल्कहौलिक्स एनौनिमस के नियमों के चलते कार्यक्रम की

वीडियो/ऑडियो रिकार्डिंग नहीं की गई एवं प्रतिनिधियों की पहचान भी ज़ाहिर नहीं की गई है।  


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Sunday, January 8, 2023

फातिमा शेख़

 क्या आप फ़ातिमा शेख को जानते हैं?


फ़ातिमा शेख भारत की पहली मुस्लिम शिक्षिका थीं. वह सावित्रीबाई फुले की सखी थीं. ज्योतिबा फुले और सावित्री बाई फुले ने 19वीं सदी में शिक्षा की जो अलख जलाई थी उसकी आग को प्रसारित करने में फ़ातिमा शेख ने बराबरी से हिस्सेदारी की. 

फ़ातिमा शेख (9 जनवरी 1831 – अक्टूबर 1900) ज्योतिबा फुले (1827-1890) और सावित्रीबाई फुले (1831-1897) के समकालीन थीं. उनके भाई उस्मान शेख ज्योतिबा के मित्र थे. ज्योतिबा फुले ने जब सावित्रीबाई फुले को पढ़ाने का फैसला किया तो रूढ़िवादी समाज की भृकुटियाँ तनने लगीं. फिर जब सावित्रीबाई फुले ज्योतिबा के साथ मिल कर शूद्रों और अतिशूद्रों के लिए स्कूल में पढ़ाने लगीं तो समाज के दबाव में उन्हें घर छोड़ना पड़ा. ऐसे मुश्किल समय में उस्मान शेख ने न केवल अपने घर में रहने की जगह दी बल्कि ज्योतिबा को स्कूल खोलने के लिए अपना घर भी दे दिया. 1 जनवरी 1848 में ज्योतिबा ने लड़कियों का स्कूल खोला तब फ़ातिमा शेख उसमें पहली छात्रा बनीं. वे स्कूल में मराठी भाषा की पढ़ाई करने लगीं. सावित्रीबाई उसी स्कूल में पढ़ाती थीं. आगे चल कर उसी स्कूल में वह शिक्षिका बन गईं. इस तरह वह आधुनिक भारत की पहली मुस्लिम शिक्षिका बनीं. 

यही नहीं, फ़ातिमा शेख ने सावित्रीबाई फुले के साथ अहमदनगर के एक मिशनरी स्कूल में टीचर्स ट्रेनिंग ली. फ़ातिमा शेख और सावित्री बाई को स्कूल में सिर्फ़ पढ़ना ही नहीं होता था, बल्कि वह घूम-घूम कर लोगों को इस बात के लिए जागरूक करती थीं कि वे अपनी बेटियों को स्कूल भेजें. इस काम के दौरान उन्हें समाज के लोगों ख़ास तौर पर ऊंची जाति के लोगों के गुस्से का सामना भी करना पड़ा. 

कहते हैं सावित्रीबाई और ज्योतिबा ने जब बाल विधवाओं के प्रसव के लिए एक आश्रम ‘बालहत्या प्रतिबंधक गृह’ खोला तो फ़ातिमा शेख ने सावित्री के साथ प्रसव कराना सीखा. 

1856 में सावित्रीबाई के बीमार पड़ने पर फ़ातिमा शेख ने स्कूल के प्रबंधन की ज़िम्मेदारी भी उठाई और स्कूल की प्रधानाचार्या भी बन गई. इस बात का उल्लेख सावित्रीबाई ने ज्योतिबा को लिखे एक पत्र में किया है.

इस तरह फ़ातिमा शेख आधुनिक भारत की पहली मुस्लिम महिला एक्टिविस्ट शिक्षिका, प्रधानाचार्या थीं.

फ़ातिमा शेख को सलाम!

Monday, January 2, 2023

Sahkari Samitiyon Dinesh Abrol

 डेयरी क्षेत्र में सामाजिक सहकारी समितियों को बनाए रखना


 सहकारी समितियों की सफलता के लिए पारिस्थितिकी तंत्र पर प्रारंभिक अवलोकन


 दिनेश अबरोल



 1 परिचय


 पशुधन क्षेत्र कृषि क्षेत्र के उत्पादन में लगभग एक-चौथाई योगदान देता है।  दुग्ध विपणन और अन्य प्रकार की सहकारी एमविपणन समितियों में सहकारी समितियों की भूमिका और योगदान को डेयरी क्षेत्र के लिए एक महत्वपूर्ण मुद्दे के रूप में चिन्हित करने की आवश्यकता है।  2000 के दशक की शुरुआत में दुग्ध आपूर्ति समितियों की सदस्यता (73 लाख) सभी विपणन समितियों (54 लाख) की संयुक्त सदस्यता से अधिक थी।  यहां तक ​​कि दुग्ध आपूर्ति सहकारी समितियों के व्यवसाय संचालन भी कुल विपणन समितियों का लगभग 80 प्रतिशत थे।  इस प्रकार की आरामदायक स्थिति निश्चित रूप से बदल गई है। और यह उभर कर आता है कि देश नियमित आधार पर आपूर्ति और मांग के बेमेल का सामना करता है।  व्यापार संगठन के एक रूप के रूप में निगम प्रभुत्व पर है।  केंद्र सरकार पर दबाव डाला जाना चाहिए कि वह असमान व्यापार समझौते न करे।  मुक्त व्यापार समझौतों और द्विपक्षीय व्यापार और निवेश समझौतों सहित केंद्र सरकार की व्यापार और निवेश नीतियां अंततः निजी क्षेत्र और बहुराष्ट्रीय कंपनियों को सक्षम कर रही हैं।

सदस्यों को लाभ के स्रोत


 अध्ययनों से पता चला है कि सहकारी और उत्पादक कंपनियों जैसे किसान सामूहिक संगठन स्थानीय गाय और भैंस दोनों के दूध उत्पादन के मामले में और छोटे (1-3) और मध्यम (3-6) झुंड-आकार की श्रेणी (में) के लिए भी लाभदायक हैं।  किसानों की मानक पशु इकाइयां या (एसएयू)। कुल औसत फ़ीड लागत और कुल परिवर्तनीय लागत (टीवीसी) दोनों प्रति पशु प्रति दिन सदस्यों द्वारा क्रमशः गैर-सदस्यों की तुलना में 12 प्रतिशत और 11 प्रतिशत कम है। के सदस्य  सहकारी वार्षिक बोनस प्राप्त करते हैं और निर्माता कंपनी के सदस्य वार्षिक लाभांश और नकद प्रोत्साहन प्राप्त करते हैं, सदस्यों द्वारा प्राप्त इस अतिरिक्त लाभ के साथ, उनका प्रति लीटर कुल रिटर्न गैर-सदस्यों की तुलना में 25 प्रतिशत अधिक है। कुल औसत वार्षिक  गैर-सदस्यों के 3955/- रुपये के रिटर्न की तुलना में सदस्यों के लिए प्रति परिवार डेयरी से शुद्ध रिटर्न 11,641/- रुपये अधिक है। किसान सामूहिक संगठनों की पहुंच का विस्तार करने से डेयरी उनके लिए अधिक लाभदायक उद्यम बन जाएगी।

राज्यों से कुछ महत्वपूर्ण iInsights


 स्वच्छ प्रथाओं, बेहतर चारा और अधिक उपज देने वाले पशुधन के रूप में उन्नत प्रौद्योगिकी अपनाने में महत्वपूर्ण क्षेत्रीय अंतर हैं।  उदाहरण के लिए, सामान्य तौर पर, आंध्र प्रदेश की तुलना में पंजाब में प्रौद्योगिकी अपनाने की दर बहुत अधिक थी।


 4.1


 आंध्र प्रदेश


 लगभग 50% प्रतिशत किसानों ने पंजाब में यौगिक/मिश्रित सांद्रित फ़ीड का उपयोग किया, लेकिन आंध्र प्रदेश में 10 प्रतिशत से कम।  हालांकि सर्वेक्षण से पहले के वर्षों में गायों और भैंसों में महत्वपूर्ण निवेश किया गया था, फिर भी आंध्र प्रदेश में डेयरी पशुओं में कम उपज देने वाले पशुओं की संख्या लगभग 70 प्रतिशत थी, जबकि पंजाब में 10 प्रतिशत से कम थी।  सर्वेक्षण (2008/2010) के समय डेयरी फार्मों द्वारा प्रौद्योगिकी अपनाने को प्रोत्साहित करने में मूल्य श्रृंखलाओं ने प्रमुख भूमिका नहीं निभाई थी।  डेयरी कंपनियों ने दूध निकालने और ठंडा करने के बीच के समय को कम करने के लिए गांवों में संग्रह केंद्रों में निवेश किया था, लेकिन किसानों की स्वच्छता प्रथाओं में सुधार के लिए प्रशिक्षण या विस्तार कार्यक्रमों में या खेत-स्तर के निरीक्षणों में शायद ही कुछ निवेश किया था।  जबकि आंध्र प्रदेश में डेयरी कंपनियों ने दावा किया कि वे अपने किसानों को अक्सर रियायती कीमतों पर बेहतर फ़ीड प्रदान कर रहे थे, हमारे सर्वेक्षण में बहुत कम किसान कंपनियों से निजी क्षेत्र द्वारा प्रदान किए गए मिश्रित फ़ीड को खरीदते और उपयोग करते हैं।  इसके अलावा, और बेहतर यौगिक/मिश्रित केंद्रित फ़ीड के संभावित लाभों पर वास्तव में कोई प्रशिक्षण या जानकारी नहीं दी जा रही थी।


 अनुसंधानआंध्र प्रदेश की स्थिति पर शोधकर्ताओं द्वारा प्रकाशित इन निष्कर्षों से संकेत मिलता है कि दूध की बढ़ती मांग के बावजूद, इसने (अभी तक) मूल्य श्रृंखलाओं में महत्वपूर्ण संस्थागत नवाचारों को गति नहीं दी थी।  शोध निष्कर्ष बताते हैं कि आंध्र प्रदेश में बढ़ी हुई मांग ज्यादातर मौजूदा डेयरी उत्पादों के लिए थी, जिसके लिए महत्वपूर्ण गुणवत्ता निवेश की आवश्यकता नहीं थी, जिसने बदले में अधिक व्यापक गुणवत्ता निगरानी (बेहतर और व्यक्तिगत गुणवत्ता परीक्षण में निवेश सहित) को प्रेरित नहीं किया था।  उत्तरार्द्ध ऑन-फ़ार्म निवेश और नज़दीकी फ़ार्म-प्रोसेसर लिंक के लिए मजबूत माँगों को ट्रिगर कर सकता है।  प्रदान की गई एक अन्य व्याख्या बताती है कि मौजूदा बुनियादी ढाँचा (और परीक्षण के लिए संस्थानों और बुनियादी ढाँचे की अनुपस्थिति) से डेयरी कंपनियों के लिए आपूर्ति प्रणालियों के उन्नयन में निवेश करना बहुत महंगा हो सकता है।  इसके अलावा, किसानों के लिए कई दूध बिक्री चैनल विकल्पों की उपलब्धता (औपचारिक और अनौपचारिक दोनों) ने संभावित आपूर्तिकर्ता अनुबंधों को लागू करना बहुत महंगा बना दिया।


[02/01, 1:48 pm] Dharam Singh. Hisar: बिहार


 भारत में उत्पादित कुल दूध में बिहार का हिस्सा 2001-02 में 3.2 प्रतिशत% से बढ़कर 2018-19 में 5.2 प्रतिशत% हो गया, लेकिन इसके डेयरी क्षेत्र की उत्पादकता राष्ट्रीय औसत से कम है।  पैमाने की निम्न मितव्ययिता, संस्थागत समर्थन की कमी और छोटे और सीमांत किसानों के प्रभुत्व ने क्षेत्र की दक्षता को बाधित किया है।  डेयरी किसानों की तकनीकी दक्षता - एक किसान के झुंड के आकार, खेती की भूमि, शिक्षा और अनुभव के आकार के आधार पर निर्धारित - कौशल विकास और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण द्वारा सुधार किया जाएगा।


 4.4 राजस्थान


 डेयरी एक प्रमुख उत्पादक गतिविधि है जो राजस्थान में छोटे और सीमांत किसानों, भूमिहीन मजदूरों को पूरक सहायता और स्थिर आय प्रदान करती है।  खेती से आय का समर्थन करने के लिए, डेयरी क्षेत्र किसान को पूरे वर्ष के लिए पारिवारिक आय का एक नियमित स्रोत उत्पन्न करता है।  डेयरी उद्योग को लाभदायक गतिविधि बनाने के लिए दूध उत्पादन की लागत और प्रतिफल के क्षेत्रों में अपेक्षित ध्यान ने राजस्थान के किसानों की आय में अंतर डाला है।  जयपुर दुग्ध उत्पाद सहकारी संघ लिमिटेड, राजस्थान राज्य का प्रमुख दूध संघ, अब भारत में दूध के शीर्ष उत्पादकों में से एक है।  कुल मिलाकर, यह अध्ययन से स्पष्ट रूप से स्पष्ट है कि डेयरी सहकारी समितियों ने बेहतर गुणवत्ता वाले पशुओं की अधिक संख्या प्राप्त करने में अपने सदस्यों का समर्थन करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है और सदस्यों को अपने दुधारू पशुओं को इष्टतम के साथ प्रबंधित और बनाए रखने के लिए प्रासंगिक वैज्ञानिक ज्ञान के प्रसार में सहायता की है।  मुनाफे का अंतर।  डेयरी सहकारी समितियों के इन सभी प्रयासों ने सदस्य परिवारों के बेहतर सामाजिक आर्थिक विकास का मार्ग प्रशस्त किया।

[02/01, 1:49 pm] Dharam Singh. Hisar: पंजाब


 भारत के भीतर, पंजाब में प्रति व्यक्ति दूध उत्पादन सबसे अधिक है (2017 (एनडीडीबी, 2018) में राष्ट्रीय औसत 0.355 किलोग्राम प्रति व्यक्ति प्रति दिन के मुकाबले प्रति दिन 1.075 किलोग्राम) और उत्पादन मात्रा के साथ छठा सबसे बड़ा दूध उत्पादक राज्य है  2017 में 11.3 मिलियन टन। इसे कई कारकों के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है: (1) अनुकूल कृषि-जलवायु परिस्थितियां, (2) एक अच्छी तरह से विकसित परिवहन बुनियादी ढांचा जो डेयरी व्यावसायीकरण का समर्थन करता है, (3) अपेक्षाकृत उच्च जीवन स्तर स्थानीय मांग को बढ़ाता है।  और (4) डेयरी क्षेत्र को व्यापक सरकारी सहायता।  ग्रामीण पंजाब में गोजातीय झुंड मुख्य रूप से भैंसों के होते हैं, हालांकि पिछले दशकों में, कुल झुंड में क्रॉसब्रीड गायों, उच्च उपज वाली विदेशी गाय की नस्ल के साथ स्थानीय गायों का हिस्सा बढ़ गया है।  घरेलू स्तर पर श्रम और भूमि की उपलब्धता विकास से सकारात्मक रूप से संबंधित है और डेयरी से बाहर निकलने की संभावना को कम करती है।  पंजाब में किसानों को चारे तक पहुंच और प्रवासी बाहरी श्रम दोनों के संबंध में बाधाओं का सामना करना पड़ता है।  इन बाधाओं को देखते हुए, इनपुट उपलब्धता डेयरी किसानों के विकास और निकास निर्णय में एक महत्वपूर्ण विचार के रूप में उभरती है और दक्षता के प्रभाव को ओवरराइड कर सकती है।


 अध्ययनों से पता चलता है कि 2008 और 2015 के बीच पंजाब में सभी तीन प्रौद्योगिकी संकेतकों को अपनाने में प्रभावशाली वृद्धि हुई थी। 2015 तक स्वच्छता प्रथाओं में काफी सुधार हुआ, हमारे स्वच्छता सूचकांक पर स्कोर में औसतन 31% की वृद्धि हुई: 2008 में 0.53 से 2015 में 0.70  2008 में मिश्रित फ़ीड का उपयोग 53.3% से बढ़कर 2015 में 68.8% हो गया।  उनका कुल झुंड 29% तक बढ़ गया, 2008 से 45% परिवर्तन। दूसरा, छोटे किसानों द्वारा प्रौद्योगिकी अपनाने से संबंधित सूचना विस्तार में कंपनियों की भागीदारी की रिपोर्ट करने के बावजूद, मूल्य श्रृंखला (अभी भी) किसानों के लिए प्रौद्योगिकी अपनाने को प्रोत्साहित करने में एक प्रमुख भूमिका नहीं निभाती है।  हमारे नमूने में सभी खेत।


 हाल ही में, बड़े डेयरी फार्मों का एक नया वर्ग सामने आया है।  उनके पास अधिक भारवाही पशु, संकर नस्ल की गायें और भूमि थी और उन्होंने दुहने का मशीनीकरण किया था।  इसके अलावा, वे मूल्य श्रृंखलाओं से अधिक जुड़े हुए थे।  अधिक विशेष रूप से, डेयरी प्रोसेसर के प्रतिनिधि विभिन्न विषयों पर जानकारी प्रदान करते हुए नियमित रूप से डेयरी फार्मों का दौरा करते हैं।  बल्क मिल्क कूलर का प्रावधान, फीडिंग मशीन के लिए ऋण और क्रॉसब्रीड गायों की खरीद के दौरान सहायता, इन सभी कारकों ने फार्म स्तर पर प्रौद्योगिकी अपनाने की सुविधा प्रदान की।  दूध देने वाली मशीनों के लिए सब्सिडी और कर्ज का प्रावधान भी आम नजर आ रहा है।

[02/01, 1:49 pm] Dharam Singh. Hisar: हिमाचल प्रदेश


 हिमाचल प्रदेश के पहाड़ी राज्य में आजीविका का एक प्रमुख स्रोत होने के बावजूद, डेयरी फार्मिंग को अक्सर दूध के लिए कम कीमत की प्राप्ति जैसे कई मुद्दों का सामना करना पड़ता है।  राज्य का संगठित दुग्ध विपणन ढांचा देश में सबसे कमजोर है।  कम पारिश्रमिक रिटर्न ने डेयरी फार्मिंग के प्रति किसानों के रवैये को प्रभावित किया है।  ऐसी ही समस्याओं के समाधान के रूप में राज्य में नवोन्मेषी किसान संगठन प्रगति कर रहे हैं।  ये संगठन किसानों के दरवाजे पर कम कीमत पर इनपुट सेवाएं प्रदान करते हैं।  वे प्रचलित दरों से अधिक कीमतों पर दूध भी खरीदते हैं।  किसान उत्पादक संगठनों के माध्यम से डेयरी हस्तक्षेपों के कथित प्रमाण अभी भी इस क्षेत्र से न्यूनतम हैं।  इन संगठनों के सदस्यों द्वारा अर्जित लाभ में इनपुट उपलब्धता, विस्तार परामर्श, ऋण सहायता और पशु चिकित्सा सेवाएं शामिल हैं।


 4.7 हरियाणा


 हरियाणा में, बछड़े के दौरान उच्च उपज देने वाली गायों में कैल्शियम की कमी "दूध बुखार" का कारण बनती है, जिससे प्रति वर्ष लगभग 1,000 करोड़ रुपये (137 मिलियन अमेरिकी डॉलर) का आर्थिक नुकसान होता है।  दूध उत्पादन बढ़ने के साथ मिल्क फीवर का खतरा लगातार बढ़ रहा है।  यह सर्वविदित है कि दुग्ध ज्वर की घटना पर एक निवारक स्वास्थ्य उत्पाद (आयनिक खनिज मिश्रण (एएमएम)) का प्रभाव दूध उत्पादकता और किसानों की आय पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाल सकता है।  पशु चिकित्सा सहायता और इनपुट आपूर्ति और किसानों के बीच जागरूकता एक महत्वपूर्ण योगदान दे सकती है।  उपचारित पशुओं में दुग्ध ज्वर की घटनाएं बेसलाइन पर 21% से घटकर 2% हो गईं।  इसके अलावा, एएमएम प्रशासन ने क्रमशः दूध की उपज और किसानों की शुद्ध आय में 12% और 38% की वृद्धि की।  दूध बुखार की रोकथाम के कारण अर्जित लाभ [₹ 16,000 (यूएस $ 218.7)] दूध बुखार से होने वाले नुकसान से अधिक है [₹ INR 4,000 (यूएस $ 54.7)];  इस प्रकार, एएमएम का प्रयोग रोकथाम इलाज से बेहतर है।

[02/01, 1:50 pm] Dharam Singh. Hisar: गुजरात


 कृषि मंत्रालय के पशुपालन, डेयरी और मत्स्य पालन विभाग के अनुसार वर्ष 2018-19 में गुजरात राज्य में कपास की खेती पद्धति के लिए सतत डेयरी फार्मिंग एक प्रमुख विकल्प के रूप में उभर रहा है, जो पहले से ही लगभग 14.493 मिलियन टन दूध का उत्पादन करता है।  किसान कल्याण, भारत सरकार।  20वीं पशुधन जनगणना के अनुसार, गुजरात में गायों और भैंसों (दूध में और सूखे) में दुधारू पशुओं की कुल संख्या 125.34 मिलियन है, जो पिछली जनगणना यानी 2012 की तुलना में 6.0% अधिक है। पशुधन पूंजी को मानवता का सबसे पुराना धन संसाधन माना जाता है।  और यह क्षेत्र ग्रामीण अर्थव्यवस्था और आजीविका में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।  दुग्ध उत्पादन के विकास में सहायता के लिए दुग्ध उत्पादन के लिए गुजरात सरकार द्वारा घोषित गुजरात में डेयरी फार्मिंग की नीतियों और योजनाओं ने एक प्रमुख भूमिका निभाई है।  यदि दूध के मूल्य में वृद्धि करना अपरिहार्य है, यदि क्षेत्र की लाभप्रदता में सुधार करना है, तो सबक यह है कि सहकारी नेतृत्व वाले संरचित बाजार ने सफलता में योगदान दिया है।  अमूल का त्रि-स्तरीय मॉडल आज भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।  आगामी वर्षों में दुग्ध अनुमानों की मांग इंगित करती है कि दूध की मांग दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है।  अनुमानों से पता चलता है कि राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (एनडीडीबी), दूध की मांग 2022 में 180 मिलियन टन के आंकड़े को पार करने की उम्मीद है।

[02/01, 1:50 pm] Dharam Singh. Hisar: केरल


 केरल में, MILMA, पशुपालन विभाग और डेयरी विकास विभाग जैसी संस्थागत एजेंसियां ​​डेयरी किसानों का समर्थन करने के लिए विभिन्न सहायता और प्रोत्साहन प्रदान कर रही हैं।  सहायता और प्रोत्साहन के प्रभाव का अध्ययन किया गया है।  उत्पादन, विपणन योग्य अधिशेष, सकल आय, लागत और शुद्ध आय जैसे पहचाने गए महत्वपूर्ण चरों पर तुलना की गई है।  लागत में कमी पर सहायता और समर्थन का महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है।  लेकिन यह केरल के डेयरी किसानों की शुद्ध आय में परिलक्षित नहीं हो रहा है, क्योंकि किसानों को विभिन्न प्रकार की सहायता और समर्थन का लाभ लेने के लिए संगठित नहीं किया जा रहा है।  जहां तक ​​एक डेयरी किसान का संबंध है, फ़ीड लागत प्रमुख खर्चों में से एक है।  इस लागत को कम करने में किसान को समर्थन देने में सहायता का उनकी आय और उनकी लाभप्रदता पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ेगा।  ग्रीष्मकालीन प्रोत्साहन डेयरी किसान के लिए एक अन्य प्रमुख लाभप्रद सहायता है।  सूखे के मौसम में, चारे की अनुपलब्धता के कारण उत्पादन लागत में लगातार वृद्धि होती है जिससे किसान के लिए दूध की कीमत से इसकी भरपाई करना मुश्किल हो जाता है।


 प्रकाशित अध्ययन में पाया गया है कि सदस्य समूह के बीच ही, उनके लिए उपलब्ध विभिन्न योजनाओं के बारे में जागरूकता पैदा करने की आवश्यकता है।  अधिकांश डेयरी किसान केवल दूध डालने और अपनी उपज का स्थिर मूल्य प्राप्त करने के लिए समाज का लाभ उठा रहे हैं।  और वे उन विभिन्न सहायता और प्रोत्साहनों के बारे में सबसे कम चिंतित हैं जो उनके लिए उपलब्ध हैं।  कई किसानों ने बताया कि बढ़ी हुई प्रक्रियात्मक औपचारिकताएँ उन्हें कठिन बना देती हैं और इसे प्राप्त करने में उनकी रुचि कम होती है।  चूँकि डेयरी का काम चौबीसों घंटे चलता है, इसलिए डेयरी किसान इन मामलों में निवेश करने के लिए अपना अधिक समय नहीं दे पाते हैं।  वे मुख्य रूप से अपनी अज्ञानता और इसे समझने और इसे उपलब्ध कराने के लिए निवेश करने के लिए समय की कमी के कारण सहायता के बारे में कम से कम चिंतित या चिंतित हैं।  इन सहायता और प्रोत्साहनों को उपलब्ध कराकर यह डेयरी की व्यवहार्यता सुनिश्चित कर सकता है और इस प्रकार मौजूदा डेयरी किसानों को बनाए रख सकता है और नए किसानों को भी आकर्षित कर सकता है और इस तरह राज्य में निरंतर दूध उत्पादन सुनिश्चित कर सकता है।


 केरल में दूध उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाले प्रमुख कारणों में से एक उनके मवेशियों में बीमारियों का होना है।  इससे डेयरी किसान को बड़ी मात्रा में रुपये खर्च करने पड़ते हैं, जिसकी भरपाई वह अपने दैनिक दूध विक्रय मूल्य से नहीं कर सकता।  इसलिए, जब भी पशु चिकित्सा लागत बढ़ती है, तो यह उत्पादन पर नकारात्मक प्रभाव डालती है।  भले ही बीमा लागत सकारात्मक रूप से उत्पादन से संबंधित है, यह महत्वपूर्ण नहीं है।  और इसका कारण उन उत्तरदाताओं की संख्या में कमी है जिन्होंने अपने मवेशियों के लिए बीमा कवरेज लिया है।


 केरल के कोझिकोड जिले के 200 किसानों से एकत्र किए गए प्राथमिक आंकड़ों के आधार पर डेयरी किसानों पर कोविड-19 महामारी के बहुआयामी प्रभाव का आकलन करने वाले एक अन्य अध्ययन से संकेत मिलता है कि दूध की कीमतों में गिरावट और सूखे चारे की कमी प्रमुख समस्या के रूप में सामने आई है।  महामारी के दौरान।  डेयरी किसानों को प्रति दुधारू पशु पर 7175 रुपये की औसत हानि हुई।  किसान सीधे उपभोक्ता परिवारों को दूध बेच रहे थे, और बड़े आकार के झुंड वाले किसानों को तुलनात्मक रूप से अधिक नुकसान हुआ।  नए उपभोक्ताओं की तलाश, अधिशेष दूध को घी में बदलना और घर पर चारा मिश्रण तैयार करना किसानों द्वारा अपनाई जाने वाली मुख्य मुकाबला रणनीतियाँ थीं।

[02/01, 1:51 pm] Dharam Singh. Hisar: दूध बाजार और कीमतों में उतार-चढ़ाव


 दुग्ध उत्पादन में वृद्धि दर को बढ़ाने, दूध और दुग्ध उत्पादों के बढ़ते घरेलू बाजार को पूरा करने और  यह सुनिश्चित करने की तत्काल आवश्यकता है कि भारत दूध में आत्मनिर्भर बना रहे।  IIMB के राजेश्वरन और गोपाल नाइक लिखते हैं कि भारत में दूध का उत्पादन बढ़ा है, और यह वृद्धि एक वरदान होगी यदि इसे बनाए रखा जा सकता है।  IIMB के राजेश्वरन और गोपाल नाइक लिखते हैं कि भारत में दूध का उत्पादन बढ़ा है, और यह वृद्धि एक वरदान होगी यदि इसे बनाए रखा जा सकता है।  उनका सुझाव है कि हालांकि यह हाल की उच्च वृद्धिशील विकास दर केवल तीन राज्यों तक सीमित थी, जबकि सबसे बड़े दूध उत्पादक राज्य उत्तर प्रदेश ने विकास के राष्ट्रीय स्तर से नीचे स्थिर लेकिन नीचे दिखाया।  इसके अलावा, प्रति पशु उत्पादकता में बहुत कम वृद्धि के साथ वयस्क मादा गोवंश की आबादी में वृद्धि कम होती दिख रही है।


 उनका सुझाव है कि आपूर्ति, मांग और दूध की कीमत के साथ-साथ स्किम मिल्क पाउडर की कीमत और बफर स्टॉक और उपभोक्ता और किसान स्तर पर कीमत बनाए रखने में इसकी भूमिका के संदर्भ में वृद्धि का विश्लेषण करने की आवश्यकता है।  अल्पावधि में, भारत के भीतर या बाहर वृद्धिशील मात्रा के लिए कोई तत्काल बाजार नहीं होने के कारण, अधिकांश वृद्धिशील मात्रा को स्किम मिल्क पाउडर और मक्खन के रूप में संसाधित और संग्रहीत किया जा रहा है।  इससे दूध खरीदने वालों पर आर्थिक दबाव पड़ रहा है और वे ताजा दूध की मांग और कीमत कम करने को मजबूर हैं।  नतीजतन, यह

[02/01, 1:51 pm] Dharam Singh. Hisar: वे यह भी सुझाव देते हैं कि उपभोक्ता मूल्य में निरंतर वृद्धि भी उत्पादक को हस्तांतरित होने की उम्मीद नहीं है, जैसा कि एक पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाजार में है।  वे बताते हैं कि फार्म गेट की कीमतें न केवल कम हो गई हैं, बल्कि अत्यधिक अस्थिर भी हो गई हैं, जिससे डेयरी पशु पालन उच्च जोखिम वाला उद्यम बन गया है, और यह अल्पावधि में एक अभिशाप है।  आय के स्तर में वृद्धि और स्किम मिल्क पाउडर के निर्यात पर प्रतिबंध हटाने के कारण भारत में दूध बाजार मांग आधारित विकास के चरण में है।  इसके परिणामस्वरूप घरेलू दूध की कीमत में अभूतपूर्व और लगातार वृद्धि हुई है, जिससे उपभोक्ताओं को चिंता हो रही है।  यह खाद्य मुद्रास्फीति से निपटने वाले नीति निर्माताओं के लिए भी एक प्रमुख चिंता का विषय बन गया है क्योंकि दूध भारतीय आहार का एक अभिन्न अंग है।

[02/01, 1:52 pm] Dharam Singh. Hisar: इस मूल्य वृद्धि का अध्ययन करना महत्वपूर्ण है क्योंकि दूध के दो दीर्घकालिक आपूर्ति पक्ष निर्धारक हैं जो मादा गोजातीय पशु आबादी और प्रति पशु दूध उत्पादन 2007 के बाद से वृद्धि की प्रवृत्ति में उलट प्रदर्शन कर रहे हैं। अध्ययनों से पता चलता है कि स्किम मिल्क पाउडर, मक्खन और प्रति व्यक्ति आय  लंबी और छोटी अवधि में दूध की कीमत पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है।  बीफ की कीमत का महत्वपूर्ण दीर्घकालिक प्रभाव पाया जाता है।  भारत में दुग्ध उत्पादन की वर्तमान विकास दर बढ़ती घरेलू आवश्यकता को पूरा करने के लिए अपर्याप्त मानी जाती है।  हाल के वर्षों में दूध की कीमत में तीव्र और निरंतर वृद्धि मांग और आपूर्ति के बीच बेमेल का संकेत है।  शून्य निर्यात शुल्क के साथ मिल्क पाउडर और मक्खन के निर्यात की अनुमति देने से दूध की कीमत को स्थिर करने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले स्किम मिल्क पाउडर और मक्खन के घरेलू बफर स्टॉक पर भी असर पड़ सकता है।


 दुग्ध उत्पादन में वृद्धि उन नीतियों से बाधित होती है जो उत्पादन के कारकों को प्रभावित करती हैं।  दुग्ध बाजार के लिए अल्पाधिकार बाजार संरचना के कारण दूध के उपभोक्ता मूल्य और उत्पादन प्रणाली के संदर्भ में दूध के मांग संकेतों के बीच "डिस्कनेक्ट" का मुद्दा है।  इस संरचना के कारण उपभोक्ता मूल्य में रैखिक वृद्धि हुई है, जबकि बढ़ती भिन्नता के साथ फार्म गेट मूल्य अधिक अनिश्चित हो गया है।  कर्नाटक राज्य में दूध मूल्य प्रोत्साहन नीति के प्रभाव की जांच करते हुए यह महत्वपूर्ण अध्ययन अनुमान लगाता है कि फार्म गेट दूध की कीमत और पशु चारा बिक्री का डेयरी सहकारी को दूध की आपूर्ति के साथ दीर्घकालिक संबंध है लेकिन महत्वपूर्ण नहीं है।  राज्य सरकार के प्रत्यक्ष हस्तक्षेप से दुग्ध बाजार की स्थापित ईको-सिस्टम बाधित होने की दिशा में सहायक नहीं रहा है।  इसके परिणामस्वरूप किसानों को दूध के भुगतान में देरी हुई और डेयरी सहकारी को डेयरी किसानों के लिए प्रोत्साहन के हिस्से को अवशोषित करने के लिए मजबूर होना पड़ा।  अध्ययन में अनुमान लगाया गया है कि अपर्याप्त भोजन और खराब प्रबंधन के कारण जानवर इष्टतम मात्रा से कम दूध दे रहे थे।

[02/01, 1:53 pm] Dharam Singh. Hisar: जनवरी 2010 से अप्रैल 2014 तक की अवधि के लिए स्किम्ड मिल्क पाउडर (एसएमपी), मक्खन और बीफ की कीमत और प्रति व्यक्ति आय के साथ दूध की कीमत के मासिक पैनल डेटा का विश्लेषण, संक्षेप में प्रत्यक्ष प्रभावों के माध्यम से दूध की घरेलू कीमत की महत्वपूर्ण भूमिका को प्रकट करता है।  दीर्घावधि में -टर्म और अप्रत्यक्ष प्रभाव।  हम यह भी पाते हैं कि इस अवधि के दौरान स्किम मिल्क पाउडर और मक्खन के घरेलू बफर स्टॉक पर भारत सरकार के नीतिगत हस्तक्षेप से दूध की कीमतों में वृद्धि पर अंकुश नहीं लगा।  इसलिए, दुग्ध उत्पादन और उत्पादकता वृद्धि कार्यक्रम के बारे में नीतियों को इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए उत्पादन कारकों के एक नए सेट के तहत देश भर में लागू करने की आवश्यकता है कि पशु आबादी में वृद्धि में गिरावट आ रही है।  नीतियों को किसानों को भैंसों और गायों की संख्या में वृद्धि करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए, विशेष रूप से औसत दूध क्षमता से अधिक, नस्ल के अनुसार।  नए उत्साह के साथ जिन विशिष्ट क्षेत्रों को नए सिरे से संबोधित करने की आवश्यकता है, वे हैं पशुधन के लिए ऋण, बीमा और बाजार के साथ-साथ निवारक स्वास्थ्य कवर के साथ-साथ छोटे किसानों को लक्षित करना।  तभी भारत दूध के संबंध में अपने नागरिकों के लिए खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित कर सकता है।  यदि भारत कृषि उत्पादकता वृद्धि को बढ़ावा देना चाहता है, तो उसे प्रमुख आदानों तक पहुंच में सुधार करना चाहिए।  डेयरी में यह विशेष रूप से फ़ीड और श्रम से संबंधित है।

[02/01, 1:53 pm] Dharam Singh. Hisar: सहकारी सदस्यता आय के लिए मायने रखती है


 यह अखिल भारतीय ग्रामीण ऋण समीक्षा समिति, 1969 का सुझाव था और 2019 की हाल ही में जारी रिपोर्ट ने फिर से किसानों को डेयरी फार्मिंग जैसे सहायक व्यवसाय के लिए कहीं अधिक ऋण सहायता प्रदान करने की आवश्यकता पर बल दिया है।  इसके अलावा देश का लगभग 35 प्रतिशत भोजन अभी भी लगभग 143mha के कुल कृषि योग्य क्षेत्र के 67 प्रतिशत से आता है।  खाद्य उत्पादन, जो अनियमित मानसून पर निर्भर करता है, अत्यंत अस्थिर हो गया है जिसके कारण खाद्यान्नों की कम कीमत और कमजोर विपणन मूल्य हो गया है।  कृषि और ग्रामीण गैर-कृषि उद्यम अल्प रोजगार, मौसमी रोजगार और प्रच्छन्न बेरोजगारी की समस्याओं का अनुभव करते हैं;  वे अभी भी कुल आबादी के 70 प्रतिशत के करीब लोगों को क्रॉल करने के लिए गठित करते हैं।  ग्रामीण क्षेत्रों के युवा लोग काम के लिए कस्बों या शहरों की ओर पलायन करते हैं क्योंकि भारत में जलवायु परिवर्तन के कारण ग्रामीण अर्थव्यवस्था चरमरा गई है।  डेयरी उद्यम ऐसी समस्याओं को दूर करने का एक समाधान है और भारत में किसानों की सामाजिक आर्थिक स्थिति में सुधार के लिए एक प्रभावी उपकरण होने के अलावा।


 दुग्ध सहकारी समितियों के सदस्य बनने के लिए डेयरी किसानों के निर्णयों को प्रभावित करने वाले कारक, और दूध की उपज पर सहकारी सदस्यता के प्रभाव, प्रति लीटर शुद्ध रिटर्न, और खाद्य सुरक्षा उपायों (एफएसएम) को अपनाने की राज्यवार पहचान करने की आवश्यकता है।  दूध की औसत उपज, प्रति लीटर शुद्ध रिटर्न और एफएसएम अपनाने की सरल तुलना से डेयरी सहकारी समितियों के सदस्यों और गैर-सदस्यों के बीच महत्वपूर्ण अंतर का पता चला।  परिणामों से पता चला कि सदस्यता निर्णय पर विचार किए बिना परिणाम विनिर्देशों का अनुमान लगाने पर नमूना चयन पूर्वाग्रह का परिणाम होगा।  अनुभवजन्य परिणामों ने डेयरी सहकारी सदस्यता और दूध की उपज, प्रति लीटर शुद्ध रिटर्न और एफएसएम को अपनाने के बीच एक सकारात्मक और महत्वपूर्ण संबंध दिखाया।  विशेष रूप से, एक डेयरी सहकारी समिति के सहयोग से दूध की उपज में 40 प्रतिशत की वृद्धि होती है, शुद्ध रिटर्न में 38 प्रतिशत की वृद्धि होती है, और एफएसएम को अपनाने में 10 प्रतिशत की वृद्धि होती है।  खेत के आकार के आधार पर अलग-अलग अनुमानों से पता चला है कि डेयरी सहकारी सदस्यता द्वारा आय लाभ छोटे पैमाने के किसानों के लिए अधिक था।  इस खोज से पता चलता है कि छोटे डेयरी किसानों की घरेलू आय बढ़ाने में डेयरी सहकारी समितियां महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं।  अध्ययन से यह भी पता चला कि डेयरी सहकारी समितियों में दूध की उपज और शुद्ध रिटर्न बढ़ाने और एफएसएम के साथ किसानों के अनुपालन में सुधार करने की क्षमता है।

[02/01, 1:54 pm] Dharam Singh. Hisar: मिश्रित खेती से पशुपालन में मदद मिल सकती है


 भारत में जहां मिश्रित कृषि प्रणाली प्रचलित है, पशुधन उत्पादन और आय स्रोतों के विविधीकरण के माध्यम से जोखिम को कम करता है और इसलिए, तरल संपत्ति का प्रतिनिधित्व करने के लिए पशुधन की अधिक क्षमता होती है जिसे किसी भी समय महसूस किया जा सकता है, जिससे उत्पादन प्रणाली में और स्थिरता आती है।  कृषि स्तर पर आय के स्रोत के रूप में पशुधन का महत्व पारिस्थितिक क्षेत्रों और उत्पादन प्रणालियों में भिन्न होता है, जो बदले में उगाई गई प्रजातियों और उत्पादित उत्पादों और सेवाओं को निर्धारित करता है।  इस प्रकार, डेयरी उत्पाद सबसे नियमित आय जनक है और इसके परिणामस्वरूप डेयरी विकास ने भारत में किसानों की आय, रोजगार और चुकौती क्षमता में वृद्धि की है।  भारत में डेयरी बड़े पैमाने पर छोटे और असंगठित किसानों द्वारा प्रचलित है, जो कम नियोजित और बेरोजगार परिवार के श्रमिकों, विशेष रूप से महिला कार्यबल की मदद से एक या दो दुधारू पशुओं को फसल अवशेषों और उप-उत्पादों पर पालते हैं।  महिलाएं हरा चारा एकत्र करती हैं।  साथ ही डेयरी अब लाखों ग्रामीण परिवारों के लिए आय का एक महत्वपूर्ण माध्यमिक स्रोत बन गया है, मिश्रित खेती की प्रथा और विशेष रूप से सीमांत और महिला किसानों के लिए रोजगार और आय सृजन के अवसर प्रदान करने में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।  उपविभाजन और विखंडन और लगातार बढ़ती जनसंख्या के कारण घटती परिचालन भूमि जोत के संदर्भ में डेयरी की भूमिका ने महत्वपूर्ण आयाम ग्रहण किया है, क्योंकि हमारे देश की ग्रामीण अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से निर्वाह कृषि और सकल बेरोजगारी की विशेषता है।


 भारत-गंगा के मैदानों (आईजीपी) में चावल-गेहूं प्रणाली की एकल-फसल प्रणाली के परिणामस्वरूप प्राकृतिक संसाधनों का क्षरण, कृषि लाभप्रदता में गिरावट, कारक उत्पादकता और पर्यावरण सुरक्षा में कमी आई है।  मोनो-क्रॉपिंग के विपरीत, जैव विविधता को कृषि स्थिरता के सूचकांक के रूप में माना जाता है।  तदनुसार, एकीकृत कृषि अनुसंधान संस्थान, मोदीपुरम में शोधकर्ताओं द्वारा 1 हेक्टेयर क्षेत्र में भूमि आधारित उद्यमों - फसलों, डेयरी, मत्स्य पालन, बत्तख पालन, मुर्गी पालन, बायोगैस संयंत्र और कृषि-वानिकी को शामिल करते हुए एक एकीकृत कृषि प्रणाली (IFS) मॉडल विकसित किया गया था।  वर्तमान अध्ययन का उनका उद्देश्य चावल-गेहूं प्रणाली को बदलने के लिए एक वैकल्पिक दृष्टिकोण खोजना और स्थायी रूप से किसान की आय में वृद्धि करना था।  आईएफएस मॉडल में चावल-गेहूं प्रणाली से 68,200 रुपये की तुलना में विभिन्न प्रकार की उपज, ऑन-फार्म संसाधन रीसाइक्लिंग और उनकी आय को 378,784 रुपये तक बढ़ाने के साथ किसानों की आजीविका में सुधार करने की क्षमता थी।  एक उद्यम के अपशिष्ट और उप-उत्पादों ने दूसरे के लिए एक इनपुट के रूप में कार्य किया, और गैर-कृषि आदानों पर निर्भरता काफी हद तक कम हो गई, जिससे पर्यावरणीय स्थिरता को मजबूत करने में मदद मिली।


 समापन टिप्पणी


 पशुपालन और डेयरी किसानों के इस संक्षिप्त सर्वेक्षण में यह स्पष्ट है कि एक सिस्टम दृष्टिकोण के माध्यम से डेयरी मूल्य श्रृंखला को संबोधित करने की तत्काल आवश्यकता है, और उनकी समस्याओं को हर तरफ से दूर करने की आवश्यकता है, जिसमें दूध बाजार में उनका समर्थन भी शामिल है।  वे अंततः डेयरी फार्मिंग से अपनी आय का एहसास करते हैं।

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