Wednesday, November 28, 2012

"कछुआ संस्कृति

  1.  जब समाज की चादर में ही संकीर्णता के धागे मौजूद हैं तो इसकी सफाई सबकी जिम्मेदारी है ।
  2. जहाँ खाप पंचायतें नहीं हैं ऑनर किलिंग तो वहां भी है अर्थात तरह तरह की खाप सभी जगह सक्रीय हैं ।
  3. विडम्बना यही है की आम जनता की मानसिकता भी \उनके साथ इसी संकीर्ण सोच के साथ खड़ी  नजर आती है ।
  4. खाप पंचायतों के प्रमुख छाती ठोककर यह कहते हैं की भारतीय संविधान को वे नहीं मानते .उनके लिए खाप का अलिखित संविधान ही सर्वोपरि  है ।
  5. "कूप मंडूकता और हिंसक तौर तरीके " यह  हमारे समाज की प्रवर्ति है ।
  6. "कछुआ संस्कृति" का क्षेत्र माना  जाता है यह एरिया ।
  7. जब कोई समाज इस तरह की मानसिकता से संचालित हो रहा हो तो पुलिस की या प्रशासन के अधिकारियों  की मानसिकता समझी जा सकती है ।
  8. इस संकीर्ण सोच का जाति  की शुद्धता के प्रति घोर आग्रह है । जबकि वैज्ञानिक दृष्टि से "गोत की प्यूरिटी का कंनसेप्ट "बिलकुल गलत है ।
  9. गोत की गोत में शादी करने से जन्म जात बीमारियों के बढ़ने का खतरा ज्यादा है" इसे गोत की गोत में शादी न करने का वैज्ञानिक अधर बताया जाता है। मगर वास्तविकता कुछ और है । यदि खाप वाले मेरे महानुभाव वास्तव में जन्म जात बीमारियों के प्रति चिंता रखते हैं तो जन्म जात बीमारियों का खतरा कम करने के लिए अंतरजातीय  विवाहों को बढ़ावा दिया जाना चाहिए ।
  10. जात गोत धर्म की आड़ लेकर संकीर्ण सोच अपना प्रेम विरोध छिपा रही है । प्रेम से यह संकीर्ण सोच वास्तव में बहुत डरती है । इसका कारन साफ़ है कि प्रेम इंसान को एक स्वतंत्र सोच देता है और प्रेम की खातिर जोखिम उठाने का साहस और ताकत देता है ।
  11. इस स्वतंत्र विचार की भावना से संकीर्ण सोच मतलब एक तरह की सोच की जिद्द धराशाही होती दिखाई देती है ।
  12. इस संकीर्ण सोच की रुचि हम सब इंसानों को भेड़ के रूप में बने रहने या भेड़ समूह में बदलने की है ताकि पूरी जनता एक झुण्ड में रहे और इसे आसानी से जिधर चाहें उधर हांका जा सके ।{हर्ड कम्यूनिटी कंनसेप्ट]
  13. इसी संकीर्ण सोच की परछाई हमारी जयादातर संस्थाओं पर भी देखने को मिलती है   --- कत्ल का आरोपी राजनीयिक दल में बना रह सकता है मगर स्वतंत्र सोच वाला निर्भीक व्यक्ति दल से निकाल बाहर कर दिया जाता है ।
  14. विडम्बना है कि हमारे समाज की मूल बुनावट में ही संकीर्णता के धागों की अधिकता है और अगर इनको अकेले अकेले करके अलग करने की कोशिश की जाती है तो समाज की पूरी चादर ही झीनी हो जायेगी ।
  15. इसके लिए एक बड़े नए नवजागरण आन्दोलन की आवश्यकता है जिसमें वंचित तबके . दलित , महिला और नौजवान सब मिल कर एक बहुत बड़ा समाज सुधीर आन्दोलन चलाकर इस संकीर्ण सोच से मुक्ति पा   सकते हैं ।

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