वैज्ञानिक मानसिकता -2
मानव जाति का पदार्पण इस धरती पर करीब करीब 500000 साल पहले हुआ था और बाघ करीब 4 करोड साल पहले आए थे । विकास क्रम में इंसान भी बाकी की तरह गुफाओं में रहते थे, कच्चा मांस खाते थे और तन पर उनके कोई कपड़े नहीं होते थे । तो उसके बाद ऐसा क्या हुआ कि बाघ तो अब भी उसी अवस्था में जंगलों में रहते हैं जबकि मानव ने न जाने कितनी क्रांतिकारी खोजें करली हैं।
मानव को कई समस्याओं का सामना करना पड़ा और इंसानों तथा भागों के बीच के अंतर बढ़ने लगे। अपने शिकार को भरपेट खाने के बाद, रात को पेड़ के नीचे सुस्ताते हुए, आकाश को देखते वक्त बाघ के मन में यह सवाल कभी नहीं आया कि ये अनगिनत टिमटिमाते तारे कहां से आए हैं ? लेकिन यह सवाल मानव के ध्यान में आया। मूसलाधार बारिश के दौरान बाघ को यह पूछना कभी नहीं सूझा कि यह बारिश कहां से आती है, और यह रुक क्यों जाती है ? लेकिन इंसान ने इस बारे में सोचा : कभी बरसात होती है , और कभी नहीं होती- इसका क्या कारण है? दूर दिखाई देने वाली उस पहाड़ी के पीछे क्या है? सागर के पार क्या होगा? यानी इंसानों ने सोचना शुरू किया - या तो जिज्ञासा वश या फिर प्रकृति के रहस्यमई होने के संदर्भ में।
वैज्ञानिक रवैया जिज्ञासा और रहस्य भाव से जन्म लेता है, और निरीक्षण, तर्क, अनुमान, अनुभव तथा प्रयोग की प्रक्रिया से स्थापित होता है ।
वैज्ञानिक मानसिकता को परिभाषित करने वाले विवरण में जाने से पहले , सरल भाषा में एक वाक्य में इसके बारे में बताना हो तो वह है- "उतना ही विश्वास, जितने का प्रमाण है।" इसका अर्थ है कि हम वैज्ञानिक मानसिकता का प्रयोग दिन-प्रतिदिन के अपने जीवन के लिए करते हैं। उदाहरण के लिए, आप अमोरी जाना चाहते हैं और आपके सामने प्रश्न है जिला गडचिरोली में गांव अमोरी कहां स्थित है, और वहां कैसे पहुंचा जाए? तो आप किसी से पूछते हैं -"मुझे अमोरी जाना है, वहां मैं कैसे पहुंचूं?" आपको जवाब मिलता है-" यूं, इधर जाइए ,आप अमोरी पहुंच जाएंगे।" आप उससे पूछते हैं-" तुम्हें कैसे मालूम?" और जवाब मिलता है-" 6 महीने हुए , मुझे अमोरी जाने बाबत एक सपना आया था और मैं वहां पहुंचा था । " आप यही सवाल एक अन्य व्यक्ति से पूछते हैं और आपको जवाब मिलता है -"इधर , और फिर उस ओर चले जाइए, आप हमारी पहुंच जाएंगे।" आप पूछते हैं, "आपको कैसे मालूम?" जवाब आता है-" 2 महीने पहले मैं एस.टी. बस अड्डे पे था तो मैंने किसी को अपने साथी से कहते सुना कि वह इस रास्ते से अमोरी गया था। जो मुझे याद है , वही बता रहा हूं आपको।" आप एक तीसरे व्यक्ति से अमोरी का रास्ता पूछते हैं और वह आपको एक और रास्ता बताता है । आप उससे भी पूछते हैं कि उसे रास्ता कैसे मालूम है। वह कहता है - पिछले महीने मेरा दोस्त गया था और इसी रास्ते अमोरी से लौटा था । और फिर जब आप चौथे व्यक्ति से अमोरी का रास्ता पूछते हैं, वह पूरे विवरण के साथ संपूर्ण रास्ता बताता है। आप उससे भी पूछते हैं कि उसे रास्ता कैसे पता चला तो जवाब में कहता है,"मुझे किसी जरूरी काम के लिए जाना था और अभी 4 दिन पहले मैं इसी रास्ते से वहां गया था और लौटा था।"
अब आप ही बताइए जाने के लिए इन चार वृत्तांतों में से आप किसे सबसे अधिक और किसे कम विश्वसनीय मानेंगे ? आप उस व्यक्ति पर सबसे कम विश्वास करेंगे जो 6 महीने पहले सपने में अमोरी गया था । इससे अधिक विश्वास उस व्यक्ति की बात पर होगा जिसने उस व्यक्ति की बात सुनी थी जो उसके दोस्त को अमोरी का रास्ता बता रहा था । इससे भी अधिक विश्वास आपको उस व्यक्ति पर होगा जिसका दोस्त असल में मोरी गया था जबकि शक की गुंजाइश तो आपके दिमाग में फिर भी रहेगी । लेकिन आप सबसे अधिक विश्वास उस व्यक्ति की बात करेंगे जो स्वयं अमोरी गया था। इसका अर्थ है कि" उतना ही विश्वास ,जितने का प्रमाण है" का जो सिद्धांत हम अपने व्यवहार में लागू करते हैं वही वैज्ञानिक रवैया के केंद्र में है।
लेकिन जैसा मैंने कहा निरीक्षण, तर्क, अनुमान , अनुभव और प्रयोग के आधार पर वैज्ञानिक प्रणाली कार्य करती है।
वैज्ञानिक मानसिकता: मूल भाषण
डॉ नरेंद्र दाभोलकर
अंग्रेजी अनुवाद: डॉ विवेक मोंटेरो
हिंदी अनुवाद : वेदप्रिय