Sunday, October 29, 2023

वैज्ञानिक मानसिकता -2

 वैज्ञानिक मानसिकता -2

मानव जाति का पदार्पण इस धरती पर करीब करीब 500000 साल पहले हुआ था और बाघ करीब 4 करोड साल पहले आए थे । विकास क्रम में इंसान भी बाकी की तरह गुफाओं में रहते थे, कच्चा मांस खाते थे और तन पर उनके कोई कपड़े नहीं होते थे । तो उसके बाद ऐसा क्या हुआ कि बाघ  तो अब भी उसी अवस्था में जंगलों में रहते हैं जबकि मानव ने न जाने कितनी क्रांतिकारी खोजें करली हैं।

     मानव को कई समस्याओं का सामना करना पड़ा और  इंसानों तथा भागों के बीच के अंतर बढ़ने लगे। अपने शिकार को भरपेट खाने के बाद, रात को पेड़ के नीचे सुस्ताते हुए, आकाश को देखते वक्त बाघ के मन में यह सवाल कभी नहीं आया कि ये अनगिनत टिमटिमाते तारे कहां से आए हैं ? लेकिन यह सवाल मानव के ध्यान में आया। मूसलाधार बारिश के दौरान बाघ को यह पूछना कभी नहीं सूझा कि यह बारिश कहां से आती है, और यह रुक क्यों जाती है ? लेकिन इंसान ने इस बारे में सोचा : कभी बरसात होती है , और कभी नहीं होती- इसका क्या कारण है? दूर दिखाई देने वाली उस पहाड़ी के पीछे क्या है? सागर के पार क्या होगा? यानी इंसानों ने सोचना शुरू किया - या तो जिज्ञासा वश या फिर  प्रकृति के रहस्यमई होने के संदर्भ में। 

     वैज्ञानिक रवैया जिज्ञासा और रहस्य भाव से जन्म लेता है, और निरीक्षण, तर्क, अनुमान, अनुभव तथा प्रयोग की प्रक्रिया से स्थापित होता है ।

       वैज्ञानिक मानसिकता को परिभाषित करने वाले विवरण में जाने से पहले , सरल भाषा में एक वाक्य में इसके बारे में बताना हो तो वह है- "उतना ही विश्वास, जितने का प्रमाण है।" इसका अर्थ है कि हम वैज्ञानिक मानसिकता का प्रयोग दिन-प्रतिदिन के अपने जीवन के लिए करते हैं। उदाहरण के लिए, आप अमोरी जाना चाहते हैं और आपके सामने प्रश्न है जिला गडचिरोली में गांव अमोरी कहां स्थित है, और वहां कैसे पहुंचा जाए? तो आप किसी से पूछते हैं -"मुझे अमोरी जाना है, वहां मैं  कैसे पहुंचूं?" आपको जवाब मिलता है-" यूं, इधर जाइए ,आप अमोरी पहुंच जाएंगे।" आप उससे पूछते हैं-" तुम्हें कैसे मालूम?" और जवाब मिलता है-" 6 महीने हुए , मुझे अमोरी जाने बाबत एक सपना आया था और मैं वहां पहुंचा था । " आप यही सवाल एक अन्य व्यक्ति से पूछते हैं और आपको जवाब मिलता है -"इधर , और फिर उस ओर चले जाइए, आप हमारी पहुंच जाएंगे।" आप पूछते हैं, "आपको कैसे मालूम?" जवाब आता है-" 2 महीने पहले मैं एस.टी. बस अड्डे पे था तो मैंने किसी को अपने साथी से कहते सुना कि वह इस रास्ते से अमोरी गया था। जो मुझे याद है ,  वही बता रहा हूं आपको।" आप एक तीसरे व्यक्ति से अमोरी का रास्ता पूछते हैं और  वह आपको एक और रास्ता बताता है । आप उससे भी पूछते हैं कि उसे रास्ता कैसे मालूम है। वह कहता है - पिछले महीने मेरा दोस्त गया था और इसी रास्ते अमोरी से लौटा था । और फिर जब आप चौथे व्यक्ति से अमोरी का रास्ता पूछते हैं,  वह पूरे विवरण के साथ संपूर्ण रास्ता बताता है। आप उससे भी पूछते हैं कि उसे रास्ता कैसे पता चला तो जवाब में कहता है,"मुझे किसी जरूरी काम के लिए जाना था और अभी 4  दिन पहले मैं इसी रास्ते से वहां गया था और लौटा था।"

       अब आप ही बताइए जाने के लिए इन चार  वृत्तांतों में से आप किसे सबसे अधिक और किसे कम  विश्वसनीय मानेंगे ? आप उस व्यक्ति पर  सबसे कम विश्वास करेंगे जो 6 महीने पहले सपने में अमोरी गया था । इससे अधिक विश्वास उस व्यक्ति की बात पर होगा जिसने उस व्यक्ति की बात सुनी थी जो उसके  दोस्त को अमोरी का रास्ता बता रहा था । इससे भी अधिक विश्वास आपको उस व्यक्ति पर होगा जिसका दोस्त असल में मोरी गया था जबकि शक की गुंजाइश तो आपके दिमाग में फिर भी रहेगी । लेकिन आप सबसे अधिक विश्वास उस व्यक्ति की बात करेंगे जो स्वयं अमोरी गया था। इसका अर्थ है कि" उतना ही विश्वास ,जितने का प्रमाण है" का जो सिद्धांत हम अपने व्यवहार में लागू करते हैं वही वैज्ञानिक रवैया के केंद्र में है।

      लेकिन जैसा मैंने कहा निरीक्षण, तर्क, अनुमान , अनुभव और प्रयोग के आधार पर वैज्ञानिक प्रणाली कार्य करती है। 

वैज्ञानिक मानसिकता: मूल भाषण

डॉ नरेंद्र दाभोलकर

अंग्रेजी अनुवाद: डॉ विवेक मोंटेरो

हिंदी अनुवाद : वेदप्रिय

Monday, October 16, 2023

परिवार

 1 एकल परिवार

5.24 संख्या

2 संयुक्त परिवार 

दादा दादी, माता पिता, उनके भाई बहन, चाचा ताऊ, चाची ताई, 

3 व्यक्तिवादी परिवार

4 आदिवासी परिवार

5 मेड परिवार

6 महिला प्रमुख परिवार

7 प्रवासी परिवार

8 विधवा महिला परिवार

9 महज पति पत्नी , बच्चे नहीं

10 माता पिता बच्चे विदेश या दूसरे शहर में

11 Live in relation

12 अबका परिवार पति पत्नी और बच्चे, माता पिता और भाई बहन

13 असमानता पर टिका परिवार

14 एक कमरे में रहने वाला परिवार

15 लस्सी बेचकर गुजारा करने वाला परिवार

16 दिहाड़ीदार परिवार

17 मनरेगा पर टिका परिवार

18 झुगी झोंपड़ी में रहता परिवार

19 सड़क पर रहता परिवार

20 खेत पर टिका परिवार

21 ड्राइवर परिवार (छोटी जॉब करता)

22 संभ्रांत परिवार 



आज का दौर 

** भ्रष्ट राजनीति --पुलिस अफसर, नौकर शाह , कानून के रखवाले, गुंडों के टोल-- पच गड्डे

** कालेधन और काली संस्कृति  को बढ़ावा हरेक स्तर पर 

**सेल्फी का रिवाज

** तेजी से बढ़ते वृद्धाश्रम

** संभ्रांत परिवारों में भी 30 से 50 फीसद बुजुर्ग अकेले रहने के कारण अवसाद का शिकार

**56% केस में बेटा 26 % में बहु बुजुरगों की प्रताड़ना का कारण

**34% पेंसन पाते हैं बुजुर्ग

** बदलता परिवेश बढ़ता तनाव

** बढ़ता नशा और बढ़ते अपराध

** घटते पारिवारिक व सामाजिक सम्बन्ध

** सोशल मीडिया की लत

** बेरोजगारी, अवैध कामों की जननी

** भ्रष्टाचार का बढ़ना

** वैश्यावृति का बढ़ना

** शिक्षा की पहुंच और गुणवत्ता की कमी

** स्वास्थ्य सेवाओं के ढांचे की समस्या

** जात धर्म पर प्रायोजित झगड़े

** अंधविश्वासों को सांगठनिक रूप से बढ़ावा

** महिला का परिवार में दोयम दर्जा

** लिंगानुपात की समस्या

** अभिव्यक्ति की समस्या

** गरीबी की मार के प्रभाव

** बढ़ती महंगाई की मार

** कंवारपन की समस्या

** लड़की बहु दोनों का शोषण परिवार में

** न्यारा होने की ई इच्छा 

** घर पहली पाठशाला

** Nuclear family more at present because of urbanisation

- economic independence of young generation

** Joint Family

Same household, common purse spending,contributed by all.

इज़राइल-गाजा युद्ध: कब्ज़ा समाप्त करें

 इज़राइल-गाजा युद्ध: कब्ज़ा समाप्त करें


दक्षिणी इज़राइल में हमास के आश्चर्यजनक हमलों और गाजा पर बर्बर बमबारी के साथ इजरायली जवाबी हमले के साथ शुरू हुआ क्रूर संघर्ष कब्जे के चल रहे इतिहास और फिलिस्तीनी लोगों द्वारा इसके प्रतिरोध में एक नया अध्याय है।

इस लेख को लिखने के समय, संघर्ष के चौथे दिन के बाद, यह बताया गया है कि 1,200 इजरायली मारे गए हैं (जिनमें से 155 सैनिक हैं) और 2700 घायल हुए हैं। फ़िलिस्तीनी पक्ष की ओर से, गाजा पर इज़रायली बमबारी में अब तक 1,055 लोग मारे गए हैं और 5,128 घायल हुए हैं; कब्जे वाले वेस्ट बैंक में 17 फिलिस्तीनी मारे गए और 80 घायल हो गए।(अब संख्या बढ़ गई है)

         इज़राइल के भीतर हमास के हमलों के कारण महिलाओं और बच्चों सहित नागरिक जीवन की दुखद हानि और गाजा में नागरिकों की बढ़ती मौतें, जहां बमबारी के कारण महिलाएं और बच्चे भी मारे गए हैं, कड़ी निंदा की जानी चाहिए।

     साथ ही, वैश्विक कॉर्पोरेट मीडिया और विशेष रूप से पश्चिमी सत्तारूढ़ हलकों द्वारा पेश की गई इस कहानी को खारिज करना जरूरी है कि जो कुछ हुआ है वह इजरायल पर एक भीषण आतंकवादी हमला है, जिसमें इजरायली कब्जे का कोई जिक्र नहीं है।

      हमास के हमले को दशकों से चले आ रहे इजरायली कब्जे और फिलिस्तीनी लोगों की अधीनता के संदर्भ में स्थापित किया जाना चाहिए। 1967 के युद्ध के बाद से, वेस्ट बैंक और गाजा पर इजरायली सशस्त्र बलों ने कब्जा कर लिया था और पिछले 56 वर्षों से वे उसके कब्जे में रहे।

      अंतर्राष्ट्रीय कानून और संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों के अनुसार, ये कब्जे वाले क्षेत्र हैं। पिछले कुछ वर्षों में, वेस्ट बैंक में अवैध यहूदी बस्तियाँ स्थापित की गई हैं और क्षेत्र को सुरक्षा बाधाओं के साथ अलग-अलग हिस्सों में विभाजित किया गया है। वेस्ट बैंक को इज़राइल से बंद करने के लिए एक दीवार बनाई गई थी।

     रंगभेद प्रणाली स्थापित की गई है। 2022 में बेंजामिन नेतन्याहू के नेतृत्व वाली धुर दक्षिणपंथी सरकार के आगमन के साथ ही फिलिस्तीनियों पर अत्याचार तेज हो गया है। अति-राष्ट्रवादी सरकार ने फ़िलिस्तीनियों के जीवन को नर्क बना दिया है, बसने वाली भीड़ और दूर-दराज़ गिरोहों ने फ़िलिस्तीनियों को उनके घरों और गाँवों से बाहर निकाल दिया है और लोगों को बेरहमी से मार डाला है।

     संघर्ष से पहले अकेले इस वर्ष में, सुरक्षा बलों और बसने वालों द्वारा 248 फ़िलिस्तीनी मारे गए हैं, जो प्रति दिन एक फ़िलिस्तीनी है।

यरूशलेम में फिलिस्तीनी परिवारों को बलपूर्वक बेदखल कर दिया गया है और उनके घरों पर कब्जा कर लिया गया है। पूर्वी येरुशलम में जातीय सफाये की प्रक्रिया चल रही है.

     अल-अक्सा मस्जिद परिसर, मुस्लिम दुनिया का तीसरा सबसे पवित्र स्थल, चरम यहूदी भीड़ और सुरक्षा बलों द्वारा मस्जिद में प्रवेश करने और उपासकों की पिटाई करने के उकसावे को देखा गया है।

      जहां तक ​​गाजा पट्टी का सवाल है, 2007 में अपने सैन्य बल को वापस लेने के बाद, इज़राइल ने उस पट्टी की नाकाबंदी लगा दी, जो 2.3 मिलियन फिलिस्तीनियों का घर है। पिछले 16 वर्षों से गाजा निर्दयी घेराबंदी में है और एक खुली जेल बन गया है। इस अवधि के दौरान, जब भी नाकाबंदी का विरोध करने का प्रयास किया गया तो हवाई बमबारी की लहरें उठीं। इसी "नरक की पट्टी" से हमास ने लामबंद होकर अपना नवीनतम अभूतपूर्व हमला आयोजित किया।

          

    अत्यधिक प्रशंसित इजरायली खुफिया और सेना आश्चर्यचकित रह गई और इजरायली रक्षा बलों की अजेयता का मिथक टूट गया। बदला लेने के लिए, नेतन्याहू और उनके साथियों ने गाजा के खिलाफ पूर्ण युद्ध छेड़ने का फैसला किया है और नेतन्याहू के शब्दों में "गाजा में वास्तविकता को बदल देंगे"। इज़रायली रक्षा मंत्री गैलेंट ने गाजा की पूरी घेराबंदी करने का आदेश दिया है और पट्टी पर कोई ईंधन, भोजन या बिजली की आपूर्ति नहीं की जाएगी। उन्होंने गाजा में "मानव जानवरों" के खिलाफ संघर्ष का आह्वान किया।


चार दिनों की हवाई बमबारी में महिलाओं और बच्चों सहित लगभग 900 लोग मारे गए हैं और हजारों घायल हुए हैं। कई हिस्सों में बिजली, पानी या भोजन नहीं है. संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार प्रमुख ने इस घेराबंदी को "सामूहिक सज़ा" कहा है, जो अंतरराष्ट्रीय कानून के अनुसार एक युद्ध अपराध है। इज़राइल गाजा के साथ सीमा पर सेना इकट्ठा कर रहा है और जमीनी आक्रमण आसन्न है। जो सामने आएगा वह हजारों लोगों का नरसंहार होगा। तमाम तबाही और विनाश के बावजूद, इससे फिलिस्तीनी लोगों द्वारा प्रतिरोध के एक और दौर को बढ़ावा मिलेगा, जिन्होंने पिछले सात दशकों में मुक्ति के लिए अपनी लड़ाई कभी नहीं छोड़ी है।

           संयुक्त राज्य अमेरिका, जो इज़राइल का मुख्य समर्थक है, ने सशस्त्र बलों को घातक हथियार और गोला-बारूद की आपूर्ति करने के लिए कदम उठाया है जिसका उपयोग फिलिस्तीनियों को मारने के लिए किया जाएगा। इन वर्षों के दौरान, संयुक्त राज्य अमेरिका और उसके पश्चिमी सहयोगियों ने फ़िलिस्तीनियों की अधीनता को रोकने के लिए कुछ नहीं किया है, भले ही वे दो-राज्य समाधान के लिए दिखावा करते हों।

       वर्तमान संघर्ष में, नरेंद्र मोदी ने आतंकवादी हमलों की निंदा करते हुए अमेरिकी रुख को दोहराया है और "इजरायल के साथ एकजुटता" की घोषणा की है। फ़िलिस्तीनी मुद्दे और दो-राज्य समाधान के समर्थन का कोई उल्लेख नहीं है। जब तक फ़िलिस्तीनी भूमि पर कब्ज़ा जारी रहेगा और फ़िलिस्तीनी लोगों पर अत्याचार होता रहेगा, तब तक इज़राइल और पश्चिम एशिया के लिए कोई स्थायी शांति नहीं हो सकती।

    गांधीजी के नेतृत्व में राष्ट्रीय आंदोलन के दिनों से, भारत हमेशा फिलिस्तीनी लोगों के साथ खड़ा रहा है। अब इस संकल्प को दोहराने का समय आ गया है।


(11 अक्टूबर 2023)

(पी डी से)

भारत ग्लोबल हंगर इंडेक्स में पाकिस्तान-बांग्लादेश से पीछे:*

 *भारत ग्लोबल हंगर इंडेक्स में पाकिस्तान-बांग्लादेश से पीछे:*


 दुनिया के 125 देशों में 111वां स्थान मिला; 


केंद्र सरकार ने रिपोर्ट को गलत बताया 


https://dainik-b.in/tJBqczOwQDb


*ग्लोबल हंगर इंडेक्स (GHI) 2023* की लिस्ट में दुनियाभर के 125 देशों में भारत को 111वां स्थान मिला है।


 गुरुवार को जारी की गई रिपोर्ट में भारत के पड़ोसी देशों की स्थिति बेहतर है। 6


हंगर इंडेक्स की लिस्ट में 


पाकिस्तान की रैंकिंग 102, बांग्लादेश की 81, 

नेपाल की 69 और 

श्रीलंका की 60 है।


भारत की रैंकिग में लगातार तीसरे साल गिरावट दर्ज की गई है। ग्लोबल हंगर इंडेक्स में 28.7 स्कोर के साथ भारत में भुखमरी की स्थिति को गंभीर बताया गया है। 


इससे पहले 2022 में 121 देशों की लिस्ट में भारत 107 नंबर पर था।


 2021 में भारत को 101वां रैंक मिला था।


हालांकि भारत सरकार ने इस रिपोर्ट को गलत और और भ्रामक बताया है। महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने कहा कि ग्लोबल हंगर इंडेक्स भारत की वास्तविक स्थिति को नहीं दर्शाता है। भारत ने आरोप लगाया कि यह देश की छवि खराब करने का प्रयास है।


केंद्र के मुताबिक, इस इंडेक्स के चार में से तीन इंडिकेटर बच्चों के स्वास्थ्य से जुड़े हैं और पूरी आबादी का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं। वहीं चौथा और सबसे महत्वपूर्ण इंडिकेटर ओपिनियन पोल पर आधारित है।


2023 की रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में बच्चों की कमजोरी की दर 18.7 प्रतिशत दुनिया में सबसे ज्यादा है।


 यह अति कुपोषण को दर्शाती है।


 वहीं, भारत में अल्पपोषण की दर 16.6 प्रतिशत और पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु दर 3.1 प्रतिशत है। 


इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि 15 से 24 वर्ष उम्र की महिलाओं में एनीमिया 58.1 प्रतिशत है।


*पिछले साल की रिपोर्ट पर सरकार ने उठाए थे सवाल*


 ग्लोबल हंगर इंडेक्स 2022 की रिपोर्ट को लेकर भारत सरकार ने कहा था कि गलत जानकारी देना ग्लोबल हंगर इंडेक्स का हॉलमार्क लगता है। 


भारत को ऐसे देश के रूप में दिखाया जा रहा है जो अपनी आबादी के लिए फूड सिक्योरिटी और पोषण की जरूरतों को पूरा नहीं कर पा रहा है।


 यह इंडेक्स भुखमरी को गलत तरीके से मापता है। 


इसमें जो मेथड इस्तेमाल किया जाता है वह भी गंभीर रूप से गलत है।


*ग्लोबल हंगर इंडेक्स क्या होता है?*


ग्लोबल हंगर इंडेक्स (GHI) बताता है कि किसी भी देश में भुखमरी की स्थिति क्या है।


 इस लिस्ट को हर साल कंसर्न वर्ल्डवाइड और वर्ल्ड हंगर हेल्प (जर्मनी में Welthungerhilfe) नामक यूरोपीयन NGO तैयार करते हैं। 


दुनियाभर के अलग-अलग देशों में 4 पैमानों का आंकलन करने के बाद इंडेक्स को तैयार किया जाता है।


 *GHI स्कोर कैसे कैलकुलेट किया जाता है?*


 हर देश का GHI स्कोर 3 डायमेंशन के 4 पैमानों पर कैलकुलेट किया जाता है। 


ये तीन डायमेंशन हैं- 


अंडररिशमेंट, 


चाइल्ड मोर्टालिटी, 


चाइल्ड अंडरन्यूट्रिशन। 


चाइल्ड अंडरन्यूट्रिशन में दो कैटेगरी हैं- 


चाइल्ड वेस्टिंग और 


चाइल्ड स्टंटिंग 


*1. अंडरनरिशमेंट:* अंडरनरिशमेंट यानी एक स्वस्थ व्यक्ति को दिनभर के लिए जरूरी कैलोरी नहीं मिलना।


 आबादी के कुल हिस्से में से उस हिस्से को कैलकुलेट किया जाता है


 जिन्हें दिनभर की जरूरत के मुताबिक पर्याप्त कैलोरी नहीं मिल रही है।


*2. चाइल्ड मोर्टालिटी :* चाइल्ड मोर्टालिटी का मतलब हर एक हजार जन्म पर ऐसे बच्चों की संख्या जिनकी मौत जन्म के 5 साल की उम्र के भीतर ही हो गई ।


*3. चाइल्ड अंडरन्यूट्रिशन: इसमें 2 कैटेगरी आती हैं-*


*चाइल्ड वेस्टिंग:* चाइल्ड वेस्टिंग यानी बच्चे का अपनी उम्र के हिसाब से बहुत दुबला या कमजोर होना 


5 साल से कम उम्र के ऐसे बच्चे, जिनका वजन उनके कद के हिसाब से कम होता है। 


ये दर्शाता है कि उन बच्चों को पर्याप्त पोषण नहीं मिला इस वजह से वे

कमजोर हो गए।


*चाइल्ड स्टंटिंग:*


 चाइल्ड स्टंटिंग का मतलब ऐसे बच्चे जिनका कद उनकी उम्र के लिहाज से कम हो। 


यानी उम्र के हिसाब से बच्चे की हाइट न बढ़ी हो । 


हाइट का सीधा-सीधा संबंध पोषण से है। जिस समाज में लंबे समय तक बच्चों में पोषण कम होता है 


वहां बच्चों में स्टंटिंग की परेशानी होती है।


इन तीनों आयामों को 100 पॉइंट का स्टैंडर्ड स्कोर दिया जाता है। इस स्कोर में अंडरनरिशमेंट, चाइल्ड मोर्टलिटी और चाइल्ड अंडरन्यूट्रिशन तीनों का एक-एक तिहाई हिस्सा होता है। स्कोर स्केल पर 0 सबसे अच्छा स्कोर होता है, वहीं 100 सबसे बुरा।

न्यूज़क्लिक पर बेशर्म हमला

 न्यूज़क्लिक पर बेशर्म हमला


न्यूज़क्लिक पर हमला और इसके संस्थापक संपादक, प्रबीर पुरकायस्थ और इसके मानव संसाधन प्रमुख, अमित चक्रवर्ती की गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के प्रावधानों के तहत गिरफ्तारी, इस समाचार पोर्टल को दबाने का एक ज़बरदस्त प्रयास है, जिसने वह मोदी सरकार और उसकी नीतियों के कट्टर आलोचक रहे हैं।

         न्यूज़क्लिक के विरुद्ध अभूतपूर्व कार्रवाई संपूर्ण स्वतंत्र मीडिया के लिए भी एक अशुभ चेतावनी है कि मोदी सरकार उसकी आवाज़ को दबाने के लिए किसी भी हद तक जा सकती है। पुरकायस्थ और चक्रवर्ती की गिरफ्तारी से पहले 46 पत्रकारों, स्टाफ सदस्यों और वेबसाइट के अंशकालिक कर्मचारियों के घरों पर छापे मारे गए थे। इन सभी लोगों के मोबाइल फोन और लैपटॉप जब्त कर लिए गए और उनसे दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल के कार्यालय में बार-बार पूछताछ की गई।

             

जिस तरह के सवाल उठाए गए उससे दिल्ली पुलिस और केंद्रीय गृह मंत्रालय में बैठे उनके आकाओं की मंशा और मकसद का पता चलता है। पत्रकारों से पूछा गया कि क्या उन्होंने सीएए विरोधी आंदोलन, उत्तर-पूर्वी दिल्ली सांप्रदायिक हिंसा और 2020-21 के किसान आंदोलन को कवर किया था। इन मुद्दों के बारे में 'संदिग्धों' द्वारा लिखना और वीडियो बनाना उन्हें गैरकानूनी गतिविधियों के दायरे  में ले आया है। दिल्ली पुलिस ने पत्रकारिता का अपराधीकरण कर दिया है.

           

न्यूज़क्लिक को 2021 में निशाना बनाया गया था जब प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने वेबसाइट के कार्यालय और इसके प्रमोटर और संपादक, प्रबीर पुरकायस्थ के आवास पर छापा मारा था। ईडी ने उन पर मनी लॉन्ड्रिंग का आरोप लगाया और उनके खिलाफ कार्यवाही शुरू की। उस समय ही, न्यूज़क्लिक ने उस कंपनी में निवेश किए गए धन के बारे में सभी विवरण प्रदान किए थे जो उसके मालिक हैं और संयुक्त राज्य अमेरिका में कुछ फाउंडेशनों और कंपनियों से कानून के अनुसार और आरबीआई की मंजूरी के साथ कैसे धन निवेश किया गया था।

           न्यूज़क्लिक संपादक ने दिल्ली उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया और अदालत से सुरक्षा प्राप्त की, जिसने ईडी को जब कोई भी दंडात्मक कार्रवाई नहीं करने का आदेश दिया।

           फंडिंग और निवेश प्रक्रिया के बारे में कोई भी अवैधता साबित करने में असमर्थ, मोदी सरकार ने अपना रास्ता बदल लिया। इसमें उसे 5 अगस्त के द न्यूयॉर्क टाइम्स के लेख में एक सुविधाजनक खूंटी मिली, जिसमें एक अमेरिकी नागरिक और एक तकनीकी कंपनी के पूर्व मालिक नेविल रॉय सिंघम द्वारा वित्त पोषित संस्थानों और मीडिया उद्यमों के नेटवर्क का मानचित्रण किया गया था। भारत में न्यूज़क्लिक का केवल एक सरसरी संदर्भ है और तथ्य यह है कि उस पर भारतीय अधिकारियों द्वारा छापा मारा गया था। किसी भी गलत काम का जिक्र नहीं है

              हालाँकि, यह भाजपा के लिए न्यूज़क्लिक के खिलाफ एक भयानक हमला शुरू करने का संकेत बन गया और सूचना और प्रसारण मंत्री ने झूठा आरोप लगाया कि वेबसाइट को चीन से धन प्राप्त हुआ था।

              जाहिर है, मोदी सरकार ने न्यूज़क्लिक को निशाना बनाने के लिए चीन का सहारा लेने का फैसला किया और इसके बाद दिल्ली पुलिस की कार्रवाई हुई।


प्रबीर पुरकायस्थ और अन्य के खिलाफ दर्ज एफआईआर आखिरकार अदालत के आदेश के बाद पुलिस को गिरफ्तार आरोपियों को सौंप दी गई। एफआईआर में कठोर यूएपीए की विभिन्न धाराएं और आईपीसी की धारा 153ए और 120बी (क्रमशः धर्म के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच धार्मिक शत्रुता को बढ़ावा देना और आपराधिक साजिश) लगाई गई है।

             एफआईआर आरोपों का एक संग्रह है और यह सामान्यीकरण करती है कि कैसे सरकार के खिलाफ असंतोष पैदा करने, भारत की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता को बाधित करने आदि के उद्देश्य से देश के लिए शत्रु ताकतों द्वारा अवैध रूप से विदेशी धन भारत में लाया गया था। अरुणाचल प्रदेश और कश्मीर को "भारत का हिस्सा नहीं" दिखाने की साजिश। इनमें से किसी भी आरोप को स्थापित करने के लिए कोई सामग्री उपलब्ध नहीं कराई गई है। इसके अलावा, एफआईआर में यह विचित्र आरोप लगाया गया है कि "समुदाय के जीवन के लिए आवश्यक आपूर्ति और सेवाओं" को बाधित करने के लिए 2020-21 के किसान आंदोलन को लम्बा खींचने के लिए कदम उठाए गए थे। इसके द्वारा, किसानों के आंदोलन को बदनाम किया गया है और इसे एक विघटनकारी गतिविधि के रूप में वर्णित किया गया है।

               Xiaomi और Vivo जैसी चीनी दूरसंचार कंपनियों के खिलाफ कानूनी मामलों में उत्साही बचाव करने की साजिश रचने" का एक अजीब आरोप है। इसमें आगे दावा किया गया है कि, "इन दो चीनी कंपनियों ने इस साजिश को आगे बढ़ाने के लिए भारत में अवैध रूप से विदेशी धन जमा करने के लिए पीएमएलए/फेमा का उल्लंघन करते हुए भारत में हजारों शेल कंपनियों को शामिल किया।" इतना व्यापक आरोप लगाने के बाद, आरोपी या न्यूज़क्लिक को इन कंपनियों से जोड़ने के लिए कुछ भी नहीं दिखाया गया है।

          सभी ने बताया, एफआईआर से न्यूज़क्लिक पर चीनी स्रोतों से फंडिंग के झूठे आरोप लगाकर और इसे यूएपीए के उपयोग को सही ठहराने के लिए राष्ट्र-विरोधी गतिविधियों के शानदार आरोपों से जोड़कर न्यूज़क्लिक को निशाना बनाने की मोदी सरकार की राजनीतिक मंशा का पता चलता है।

           न्यूज़क्लिक पर हमले की वीभत्सता इस तथ्य से भी उपजी है कि यह वामपंथी रुझान वाली एक समाचार वेबसाइट है, जिसने किसानों और मजदूर वर्ग के आंदोलनों की ठोस कवरेज की है। हाल ही में, आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने भारत में 'वामपंथी पारिस्थितिकी तंत्र' के खिलाफ अथक संघर्ष का आह्वान किया था।

              न्यूज़क्लिक पर हमला प्रेस की स्वतंत्रता पर एक क्रूर हमला है। लेकिन यह केवल इतना ही नहीं है, यह लोकतंत्र और नागरिकों के अधिकारों पर बढ़ते सत्तावादी हमलों का हिस्सा है। इसलिए, इसका पूरी ताकत और दृढ़ संकल्प के साथ विरोध किया जाना चाहिए।


(अक्टूबर 11, 2023

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