Saturday, September 12, 2009

बाजार का बोलबाला

चारों तरफ़ बोल बाला है इस बाजार का
खता बंद कर दिया इंसानी वयवहार का
पैसे के पीछे आदमी ये खूब दौड़ रहा
मां बाप पत्नी को अंधकार में छोड़ रहा
चरमरा गया ढांचा ये हमारे परिवार का ||
दिखावा ही दिखावा बचा हमारे रिश्तों में
सचाई ख़त्म हो रही है आज किस्तों में
चारों तरफ़ दबदबा है लालची संसार का ||
परिवारों की सच खुलके सामने आ रही
गले आम की सडांध ये बढती जा रही
जुल्मी दायरा बढ़ रहा पैसे के आधार का ||
अंधी गली में हम बढ़ते ही जा रहे है
छोर आज इसका नहीं पकड़ पा रहे हैं
कलम डरता है रणबीर से लिखर का ||

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